इंसानियत का स्वाद / शोभना 'श्याम'
उसके साँवले सलोने गोलाकार मुख, बड़ी-बड़ी मासूम-सी आँखें, घुंघराले बाल और फ़िल्मी संवाद बोंलने के अद्भुत अंदाज को देखकर रामलीला कमिटी के प्रधान उस किशोर को अपने साथ ले आये थे।
आज रामलीला का पहला दिन था। उसे उसके संवाद तथा सारे दृश्य समझा और याद करा कर अब राम की भूमिका के लिए उसका शृंगार किया जा रहा था कि कमिटी के सेकेट्री वहाँ आ पहुँचे।
"ये आप किसको ले आये प्रधान जी? ये तो दूसरे महल्ले का एक नंबर का छटा हुआ बदमाश, चोर और जेबकतरा है इसकी शक्ल और आयु पर मत जाईये। अभी दो महीने पहले बाल सुधार-गृह में तीन वर्ष की सज़ा काट कर आया है और आते ही इसने फिर अपने कारनामे शुरू कर दिए। अभी भी इसकी जेब में एक-दो चाक़ू-छुरे आपको मिल ही जायेंगे।" सेकेट्री प्रधान के कानों में फुसफुसाते हुए बोले।
प्रधान ने मुस्कुराते हुए मेकअप कराते उस किशोर को देखा और बोले-"बंसल साहब, इसकी छवि पर तो मेरा दिल आ गया है, राम तो इसी को बनाएंगे, जो होगा सो देखा जायेगा।"
आज की रामलीला के ख़त्म होने के बाद परंपरानुसार चारों भाइयों की आरती की जा रही थी। श्रद्धालु उस मनमोहक व् सुदर्शन राम के दर्शनों के लिए मंच पर उमड़ आए थे। पुरुष, स्त्री, बच्चे-कोई प्रणाम कर रहा था कोई पैर छू रहा था। कुछ प्रौढ़ा और वृद्धाएँ तो स्नेहवश अपने हाथ को चुम्बन की मुद्रा में अपने होठों को छू कर उसके गाल को छुआ गयी। अनजाने में ही सेकेट्री बंसल भी उस छवि के सम्मुख नतमस्तक हो गए।
राम की पोशाक उतार कर वह अपने कपडे पहन ही रहा था कि उसका साथी सोमू उसे खींच कर एक और ले गया-" अबे राजू तू तो ये कह के आया था कि मौका पाते ही यहाँ से पोशाकें और जेवर वगैरह समेट कर भाग आएगा। तू तो यही रह गया, साले सच्ची में राम बनने का इरादा तो नहीं? ... ले लगा ले सुट्टा, मुझे पता है तुझे तलब लग रही होगी, इतनी देर तो तू कभी इसके बिना नहीं रहता। भूल तो नहीं गया न कि आज लंबा हाथ मारने का प्लान है। वह मोटे सेठ का पूरा परिवार शहर से बाहर गया हुआ है।
"सोमू रे, सोच कर तो यही आया था कि कमिटी के माल पर हाथ मार कर यहाँ से चम्पत हो जाऊंगा, लेकिन आज जो इज्जत और प्यार मिला है न, माँ कसम! कभी सपने में भी नहीं मिला। बड़े-बड़े इज्जतदार, नामी रईस, आंटियाँ मुझे भगवान् समझ कर मेरे पैर छू रहे थे... सोमू मैं भगवान् तो नहीं बन सकता पर इनके प्यार और श्रद्धा ने इंसान बनने पर मजबूर कर दिया है...अब ये सुट्टा ...नहीं चाहिए ... ये ले, मेरा चाकू भी ले जा, अब इसकी ज़रूरत नहीं है। मैंने इंसानियत का स्वाद चख लिया है स्सा..., सोमू!"
"रुक सोमू, अभी रामलीला में बहुत सारे किरदारों की जगह खाली है अगर तू चाहे तो ।"