इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल - 2 / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 05 नवम्बर 2019
गुरु रवीद्रनाथ टैगोर के उपन्यास 'गोरा' में एक अंग्रेज शिशु का लालन-पालन हिंदुस्तानी परिवार में हुआ और अपनी युवावस्था में उसने अंग्रेजों के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। इस तरह एक अंग्रेज ही अंग्रेजों के खिलाफ लामबंद हुआ। ठीक इसी तरह का उपन्यास ख्वाजा अहमद अब्बास ने लिखा, इस विचार से प्रेरित कुछ फिल्में बनी हैं। बलदेव राज चोपड़ा ने 'धर्मपुत्र' नामक सफल फिल्म बनाई थी। राज कपूर की 'आवारा' भी मनुष्य जन्म से अधिक महत्त्व उसके लालन-पालन को देती है। प्रयागराज की लिखी 'धरम-करम' रणधीर कपूर ने निर्देशित की थी और घोर आश्चर्य की बात है कि यह फिल्म लालन-पालन से अधिक महत्व जन्म को देती है। गोयाकि 'आवारा' को सिर के बल खड़ा कर देती है। इस फिल्म में एक संगीतकार के पुत्र का लालन-पालन एक गुंडा करता है और उसे अपराधी बनाने का जी तोड़ परिश्रम करता है, परंतु संगीत तो उसके पोर-पोर में बसा है। गुंडे के पुत्र का लालन-पालन संगीतकार करता है, परंतु वह अपराध करता है। कुछ दिन पूर्व ही टेलीविजन पर परेश रावल अभिनीत फिल्म 'धरम संकट' में एक मुस्लिम बालक को हिंदू परिवार गोद लेता है। वह अपने जन्म की सच्चाई मालूम पड़ते ही अपने पिता से मिलने जाता है, परंतु उस संस्था का अधिकारी उसे आज्ञा नहीं देता। पुत्र के पिता से मिलने की जद्दोजहद के इर्द-गिर्द पूरी फिल्म घूमती है और अदालत से हुक्म जारी होने पर जब वह पिता से मिलने पहुंचता है तब कुछ क्षण पूर्व ही उसके पिता की मृत्यु हो जाती है। पुत्र, पिता को कंधा देता है। राज कपूर और नरगिस के अलगाव के बाद राज कपूर ने शराब पीना शुरू कर दिया था। उनके पिता पृथ्वीराज कपूर ने उनसे कहा कि बड़ा अभागा होता है वह पिता जिसके कंधे पर उसका पुत्र जाता है। प्राय: पुत्र के कंधे पर पिता जाते हैं। इतना सुनकर ही राज कपूर पुनः फिल्म निर्माण के कार्य में लग गए। कुछ वर्ष पूर्व ही पंकज कपूर अभिनीत फिल्म 'धरम' प्रदर्शित हुई थी। बनारस में दंगे होते हैं और पंडित को एक शिशु सड़क पर बिलखता हुआ मिलता है। वह उसे घर ले आते हैं। एक ज्ञानी के घर बालक ने संस्कृत श्लोक का अर्थ समझा और उन्हें कंठस्थ कर लिया। ओजस्वी बालक पर पूरा परिवार और मोहल्ला मंत्रमुग्ध था। वह सभी का लाडला बन गया। कुछ वर्ष पश्चात उसे जन्म देने वाले माता-पिता आए और उन्होंने यथेष्ट प्रमाण देकर सिद्ध किया कि बालक उनका पुत्र है। अतः मुस्लिम परिवार में जन्मा बालक अपने परिवार में लौट गया। पंकज कपूर अपनी आत्म शुद्धि के लिए घनघोर तपस्या करते हैं। कुछ समय बाद शहर में पुनः दंगे होते हैं और दंगाई उस बालक के घर में आग लगा देते हैं। वेद उपनिषद के ज्ञानी पंकज कपूर नंगी तलवारों से घिरे घर में जाकर बालक की रक्षा करते हैं। उस बामन पर कोई तलवार नहीं चलाता। सब हिंसा उसकी नैतिकता के सामने लाचार हो जाती है।
परम श्रद्धेय श्री रामकृष्ण परमहंस कुछ समय तक एक मुसलमान परिवार में एक मुसलमान की तरह रहे और अपने इस विलक्षण अनुभव के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सभी धर्म अपने मूल स्वभाव में एक समान हैं। स्वामी विवेकानंद ने भी कहा था कि वे उस समय के लिए प्रार्थना करते हैं, जब हिंदू-मुस्लिम भाईचारे से काम करते हुए भारत को गरीबी और बेरोजगारी से मुक्त कराएंगे। ज्ञातव्य है स्वामी विवेकानंद, श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। आज प्रतिक्रियावादी समूह रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद की दुहाई देते हैं, परंतु उनके आदर्श के विपरीत आचरण करते हैं। राजकुमार हिरानी की फिल्म 'पीके' में नायक पूछता है कि मानव शरीर पर पहचान का ठप्पा कहां लगा है। गौरतलब यह है कि वर्तमान में सभी लोग लालन-पालन और सामाजिक वातावरण के महत्व को स्वीकार करते हैं। इसके साथ ही जेनेटिक प्रभाव के वैज्ञानिक तथ्य को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। यह संभव है कि मनुष्य की विचार प्रक्रिया पर जेनेटिक प्रभाव लालन-पालन और सामाजिक वातावरण के मिले-जुले प्रभाव का असर होता है। किसी एक बात को निर्णायक नहीं माना जा सकता। मनुष्य विचार प्रणाली की मिक्सी बहुत महीन पीसती है।