इच्छा मृत्यु की वैधता / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :11 अगस्त 2016
दशकों पूर्व फिल्म बनी थी, 'दे किल हॉर्सेस, डोन्ट दे?' रेस के घायल घोड़े को गोली मार दी जाती है परंतु मनुष्य और घोड़े में अंतर है। लाइलाज बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को इच्छा-मृत्यु का अधिकार कुछ देशों में दिया गया है। डॉक्टर समूह यह प्रमाणित करता है कि इसका रोग लाइलाज है। भारत में इच्छा-मृत्यु की इजाजत नहीं है। संभवत: भ्रष्टाचार के कारण ऐसा है कि रिश्वत देकर लाइलाज होने का प्रमाण-पत्र प्राप्त करके धन संपत्ति की लालसा में उम्रदराज व्यक्ति को मार दिया जाए गोयाकि हत्या को कानूनी वैधता प्रदान की जाए। इच्छा-मृत्यु के पक्ष में कुछ दलीलें दी जाती हैं परंतु प्राय: यह माना जाता है कि, 'जिंदा है तो जिंदगी की जीत में यकीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर-' यह गीत शैलेंद्र ने इंडियन पीपुल्स थिएटर के कार्यक्रम के लिए लिखा था। इरोम शर्मिला ने अपनी सोलह वर्ष से चली आ रही भूख हड़ताल खत्म कर दी है। मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा 1972 में प्राप्त हुआ और 2 नवंबर 2000 को शर्मिला ने आमरण अनशन प्रारंभ किया। उनका विरोध 1958 में बने आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट से था, जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताकर बंदी बनाया जा सकता है। संविधान हर घर को सुरक्षित किला मानता है, आज्ञा के बिना जिसमें कोई प्रवेश नहीं कर सकता परंतु 1958 के एक्ट से यह भंग होता है और यही शर्मिला के लंबे अनशन का कारण था। 6 नबंवर 2000 को शर्मिला को आत्महत्या के प्रयास के अपराध में कैद कर लिया गया और इस लेख का असल मुद्दा आत्महत्या का अधिकार ही है। एक दलील यह है कि यदि जीवन पर मनुष्य का अधिकार है तो उसे मरने का भी अधिकार होना चाहिए परंतु इसके दुरुपयोग के भय के कारण यह कानून बना है।
वर्षों पूर्व एक हकीकत यूं उजागर हुई थी कि एक ज्येष्ठ भ्राता अपने कोमा में गए पिता को अस्पताल में विज्ञान की मदद से जीवित रखता है, क्योंकि व्यवसाय के सारे अधिकार उसके पास है। मृत्यु होने पर वसीयत के अनुरूप संपत्ति को भाइयों के बीच समान प्रमाण मंे बांटने का प्रावधान है। छोटा भाई इंतजार कर रहा है पिता की मृत्यु का ताकि उसे आधी संपत्ति मिले। ज्येष्ठ भ्राता व्यवसाय में हेराफेरी करके अपनी व्यक्तिगत संपत्ति बढ़ा रहा है। आख्यान कहते हैं कि लक्ष्मी की रचना के समय ही तय था कि यह चंचला हाथों से फिसलती रहेगी परंतु सरस्वती का वरदान स्वयं देने वाली शक्ति भी वापस नहीं ले सकती। इसके विपरीत हमारा सबसे बड़ा त्योहार लक्ष्मी पूजन का है, जबकि बंगाल में दिवाली के बाद सरस्वती पूजन को धूमधाम से मनाया जाता है, इसलिए आश्चर्य नहीं कि बांग्ला भाषा और मराठी भाषा में रचित पुस्तकें हिंदी से अधिक बिकती हैं और पढ़ी जाती हैं। हिंदी का सबसे बड़ा शत्रु उसका अपना पाठक वर्ग है। इसी कारण हिंदी भाषा की किताबों के प्रकाशक सरकार द्वारा वाचनालय के लिए किताबों की खरीद पर निर्भर करते हैं।
इच्छा मृत्यु के विषय पर मैंने नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी अभिनीत 'शायद' लिखी और बनाई भी थी परंतु सेंसर ने एक लाइलाज रोगी के जिद करने पर उसकी पत्नी द्वारा उसे जहर दिए जाने पर आपत्ति ली और हमें क्लाइमैक्स बदलकर आत्महत्या करना पड़ा। इस तरह साहसी विचार की हत्या हो गई। इसी फिल्म से निदा फाज़ली को भरपूर अवसर मिला और आज के लोकप्रिय गायक शान (पूरा नाम शान्तनु) के पिता मानस मुखर्जी ने फिल्म में संगीत दिया था। फिल्म में अवैध शराब की त्रासदी के दृश्य में पार्श्वगीत बजता है, 'दिनभर धूप का पर्वत काटा, शाम को पीने निकले हम, जिन गलियों में मौत बिछी थी, उसमें जीने निकले हम।'
मेडिकल विज्ञान आत्महत्या की इजाजत नहीं देता। प्रतिपल नई दवाओं के आविष्कार हो रहे हैं। डॉक्टर पारम्परिक हिपोक्रेटिक ओथ से बंधे हैं, जिसमें उनकी नैतिक जवाबदारी महत्वपूर्ण है। डॉक्टरों के विषय में बहुत उपन्यास लिखे गए हैं। महान लेखक सामरसेट मॉम और ऑर्थर कानन डायल तो डॉक्टरी का इम्तिहान पास करने के बाद लेखक बने, क्योंकि यही उन्हें पसंद था। हमारे धार्मिक आख्यान महाभारत में भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था और सूर्य के उत्तरायण मंे जाने की प्रतिज्ञा में कई दिन वे बाणों की शय्या पर सोए और उन दिनों यधिष्ठिर ने उनसे बहुत से प्रश्न पूछे, जिनके उत्तर आज भी प्रासंगिक हैं। बादल सरकार के नाटक 'बाकी इतिहास' में एक पड़ोसी की आत्महत्या के कारणों पर पति-पत्नी दोनों के संस्करण अलग-अलग हैं और तीसरे अंक में आत्महत्या कर लेने वाला व्यक्ति प्रकट होकर उन दोनों से पूछता है कि उन्होंने अभी तक आत्महत्या क्यों नहीं की। आज समाज और सरकार में इतनी क्रूरता है कि सचमुच जीने के कारण कम हैं।