इज़्ज़त का धंधा / सुषमा गुप्ता
"आए-हाए बड़ा खूबसूरत है रे तू, ख़ूब सुंदर दुल्हन मिले। निकाल तो पचास रुपल्ली जेब से" , ताली पीटते हुए रानी किन्नर ने कार में बैठे लड़के से कहा।
कार रेड लाइट पर रुकी थी। लड़के ने बहुत ध्यान से रानी को देखा। रानी यूँ तो किन्नर थी, पर थी बेहद खूबसूरत। गोरा रंग, नीली आँखें, छरहरा बदन। वह अगर वैसा भेष न बना कर रखे, तो उसे किन्नर कहना नामुमकिन है।
"क्यों री, सचमुच हिजड़ा ही है न तू?"
"क्या बाबू, किन्नर भी कोई शौकिया बन कर घूमता है क्या?"
"अच्छा, ले मेरा कार्ड रख। रात ढले इस पते पर आ जाना। फिर कभी भीख नहीं माँगनी पड़ेगी" , लड़के ने एक आँख दबाते हुए कुटिल मुस्कान के साथ रानी को कहा।
रानी कुछ पल कार्ड अलट-पलट कर देखती रही फिर बोली, "गाड़ी साइड तो ले ज़रा छैला।"
"क्यों!"
"अरे ले तो। ढंग से बात खोल ले पहले।"
कार साइड खड़ी करके वह लड़का कार से उतरते हुए बोला, "वैसे तू है बहुत सुंदर।"
"धंधा कराएगा मुझसे?" रानी ने सीधा पूछा।
"धंधा क्या? फिर तेरे जैसे को तो क्या ही फ़र्क पडता है! मोटे आसामी है मेरे सब क्लाइंट। हमेशा से ए वन माल सप्लाई करता रहा हूँ। आज कल गे और समलैंगिक बहुत बढ़ जाने से तेरे जैसो की डिमांड भी बहुत बढ़ गई है। मोटे नोट कमाएगी। भीख माँगने से तो अच्छा है।"
चटाक!
रानी ने उस लड़के को झन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया। वह सिर्फ़ देखने में नाज़ुक थी, हाथ तो इतना भारी कि लड़का ज़मीन पर पड़ा दर्द से बिलबिलाने लगा।
"कमीने, भीख भी शौक से नहीं माँगती, तुम लोगों का अंधविश्वास है कि हम जैसो की दुआ फलती है, तो दुआ देकर पैसा माँगती, पेट पालने को। नौकरी करके भी कमा लेती, अगर तुम जैसे लोग स्कूल साथ पढ़ने देते, इज़्ज़त की नौकरी देते। सब जगह से दुत्कार कर ज़लील कर-करके भगा देते हो। तुम गए-बीते, सुअर जात, पढ़ा-खिला नहीं सकते साथ में, जो हम भी इज़्ज़त से कमा खा लें। पर बिस्तर पर कोई दिक्कत न है तुम्हें हमसे। धंधा कराएगा कमीने। अभी इतना आँख का पानी नहीं मरा बे। तुम लोग मानो न मानो इज़्ज़त हमारे लोगों की भी होती है।"
गुस्से से उफनती रानी ने लड़के पर थूका और आगे बढ़ गई।
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