इज्ज़त / दीपक मशाल
उससे सहन नहीं हुआ। जब तक उसके साथ ये सब होता रहा तब तक वो खामोशी से सब सहती रही। परिवार और छोटे भाई बहिनों की खातिर एक लाश बना लिया उसने अपने आपको। लेकिन जब वही सब उसकी छोटी बहिन के साथ करने की कोशिश होने लगी तो उसने घर से भाग कर पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करा दी। आखिर कैसे उसकी भी अस्मत लुट जाने देती उस राक्षस के हाथों।
अनजाने ही कई लोगों को कम से कम कुछ दिनों के लिए रोजी-रोटी दे दी उसने। जाने कैसे सूंघ-सूंघ कर पत्रकार उस तक पहुँच गए। उसके धुंधले चेहरे के साथ उसकी तस्वीर टी.वी. पर आ गई। पुलिस ने बड़ी बेटी के बयान और मेडिकल जांच के आधार पर घर के मुखिया यानि उसके बाप को तुरंत ही गिरफतार कर लिया। छोटी को उसने ना पुलिस के सामने आने दिया और ना ही टी।वी। वालों के। सामने आने भी कैसे देती? माँ के मर जाने के बाद से वही माँ थी अपने से छोटी और एक छोटे भाई के लिए। उसे ही तो उन सब को हर धूप-बारिश से बचाना था।
शराबी पिता को पुलिस पकड़ के ले गई। जब शराब का नशा उतरा तो ज़माने को मुँह दिखाने से बचने के लिए वो हवालात में ही अंगोछे को फंदा बना फांसी पर लटक गया।
पंचनामे के बाद लाश का अंतिम संस्कार भी उसी को करना था। रिश्तेदार और संबंधी तो आने से कतराए लेकिन खानदान के कुछ लोग जमा हो गए। अब तक सबको पता चल चुका था।
सब आपस में कानाफूसी कर रहे थे और अर्थी बाँधने की तैयारी में लगे थे। हर किसी की नज़र में नफरत देखी जा सकती थी। हाँ नफरत!!! लेकिन मरने वाले बलात्कारी बाप के लिए नहीं। उनकी नज़रों में घर की इज्ज़त को मिट्टी में मिला देने वाली लड़की के लिए।