इतिहास की किताब में महकता गुलाब / जयप्रकाश चौकसे

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इतिहास की किताब में महकता गुलाब
प्रकाशन तिथि : 14 नवम्बर 2014


27 मई 1964 को नेहरु की मृत्यु हुई आैर डॉक्टर के प्रमाण पत्र में कारण ह्रदयाघात बताया गया जो पूरा सच नहीं। चीन के विश्वासघात के साथ नेहरु के आदर्श मिटने से मृत्यु हुई। नेहरु जैसे दार्शनिक कवि के लिए नश्वर शरीर से अधिक महत्वपूर्ण थे आदर्श आैर जीवन मूल्य। गांधी जी भी देश के विभाजन के साथ अपना आदर्श खो चुके थे, इसी कारण नफरत की गोली उन्हें मार पाई। इसके पहले तीन प्रयास विफल हो चुके थे। नेहरु की मृत्यु के पूर्व जॉन. एफ. कैनेडी का कत्ल हो चुका था। उस काल खंड में निकिता ख्रुश्चेव भी प्रभाव खो रहे थे। गोयाकि अंतरराष्ट्रीय राजनीति से उदात्त आदर्श मिट रहे थे, उसमें काव्य का दौर जा रहा था, गद्य दस्तक दे रहा था आैर दूर से ग्रामर की पद्चाप सुनाई दे रही थी जिनमें मुक्तिबोध को फासिज्म के आने का अहसास हो रहा था। साहित्य में अकविता के आगमन की संभावना प्रबल हो गई थी आैर सिनेमा में रंग राधा के मोह में सामाजिक प्रतिबद्धता को खारिज किया जा रहा था। श्याम बेनेगल कहते हैं कि उनकी तरह अदूर आैर अन्य फिल्मकार नेहरु से प्रेरित थे। यह नेहरु का ही प्रभाव था कि सार्थक फिल्में बनाने वालों के साथ ही वे पॉपुलर के सृजकों के भी प्रेरणा स्रोत थे। नेहरु की इच्छा के अनुरूप उनकी राख का एक हिस्सा उनकी प्रिय नदी गंगा में बहाया गया आैर शेष हेलीकॉप्टर द्वारा खेतों पर डाला गया। उन्होंने भारत को समझने के अथक परिश्रम किए, सारे महान ग्रंथों को पढ़ने के साथ पूरे देश के अनेक सघन दौरे किए, अवाम से परिचय किया। इंदौर आए तो मांडू जाने की इच्छा प्रकट की आैर अपने संगमरमरी गुंबदों में बंद आला अफसरों को मांडू की जानकारी नहीं थी। वे भारत के सांस्कृतिक केंद्रों में अपने इतिहास बोध के साथ विचरण करते हुए भविष्य के सपने देखते थे। उनके व्यक्तित्व में संगम होता है, भारतीय शाश्वत मूल्यों का पश्चिम की वैज्ञानिक आधुनिकता के साथ। गंगा की भारतीयता के साथ, यमुना की आधुनिकता जिस सरस्वती पुत्र के ह्रदय में मिलती थी उसी संगम को नेहरु कहते हैं।

नेहरु ने भारतीयता को आत्मसात कर 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' लिखी जो विश्व के विश्वविद्यालयों में पढ़ी-पढ़ाई जा रही है। उनकी 1144 पृष्ठों की 'ग्लिमसेस ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री' जो उन्होंने 1934-35 में जेल में लिखी जहां कोई संदर्भ ग्रंथ नहीं था, इतिहास की एकमात्र किताब है जो मानवीय करूणा के दृष्टिकोण से लिखी गई है। प्राय: इतिहास की किताबें दरबारियों या उस दौर के बाजार की दृष्टि से लिखी जाती है। उनकी आत्म-कथा भी स्वतंत्रता संग्राम के काल खंड का दस्तावेज है। उनकी तीनों अमर अजर किताबें जेल या समुद्र-यात्रा में लिखी गई है आैर एकमात्र संदर्भ उनका अपना विलक्षण मस्तिष्क रहा है।

उन्होंने एक आेर भाखरा नंगल, भिलाई इस्पात, एटोमिक एनर्जी संस्था आैर टेक्नोलॉजी की शिक्षण संस्थाआें की स्थापना की तो दूसरी आेर साहित्य अकादमी, कला अकादमी इत्यादि की। पूना में फिल्म प्रशिक्षण संस्थान के साथ भारत में अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह प्रारंभ किए। उनकी देख-रेख में अंतर विश्वविद्यालय युवा मेला आयोजित होता था। नेहरु द्वारा स्थापित महानतम वस्तु भारत में गणतांत्रिक परंपरा मूल्य हैं जो इतने तटस्थ है कि उनमें नेहरु को समझ पाने वाले तथा उनसे सख्त नफरत करने वाले भी सत्ता पा सकते हैं। यही डेमोक्रेसी का सार है। भारत के महान नेताआें आैर समाज शास्त्रियों द्वारा सींचे देश की अखंडता धर्मनिरपेक्षता जैसे मूल्यों का पतन आज डेमोक्रेटिक सीमाआें के भीतर-बाहर हो रहा है। ये भी नेहरु की विराटता का प्रमाण है कि उनके अंधे विरोधी भी भारतीय सांस्कृतिक बहुलता को आत्मसात करने के स्वांग के साथ सत्ता में आते हैं।

ये नेहरु का इतिहास बोध आैर मूल्यों से प्रतिबद्धता थी कि उन्होंने बाइबिल के साक्ष्य पर इजराइल की स्थापना का विरोध किया आैर इसे मूल फिलिस्तीनी निवासियों के प्रति अत्याचार माना। स्वेज चैनल के राष्ट्रीयकरण पर उन्होंने ब्रिटेन का विरोध किया आैर नासर के साथ खड़े हुए। आज इजरायल से अपने स्वार्थ के लिए गलबहियां की जा रही हैं जो धर्मनिरपेक्षता की घरेलू हानि का प्रमाण मात्र है। आठवें दशक में बनी "नौनिहाल' में कैफी आजमी का गीत उन्हें सर्वश्रेष्ठ आदरांजलि है... "मेरी दुनिया में कोई पूरब है ना पश्चिम कोई, सारे इंसान सिमट आए खुली बांहों में कल भटकता था मैं जिन राहों में तन्हा-तन्हा काफिले कितने मिले आज इन्हीं राहों में आैर सब निकले मेरे , हमदर्द मेेर हमराज सुनो। नौनिहाल आते हैं, अर्थी को किनारे कर लो, मैं जहां था, इन्हें जाना है वहां से आगे आसमां इनका, जमीं इनकी, जमाना इनका, इन्हें कलियां कहो ये हैं चमनसाज सुनो। मेरी आवाज सुनो, प्यार का राग सुनो।