इतिहास के गलियारे और वाचनालय / जयप्रकाश चौकसे

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इतिहास के गलियारे और वाचनालय
प्रकाशन तिथि : 05 अगस्त 2019


अभिनेता-फिल्मकार संजय खान ने टीपू सुल्तान बायोपिक बनाने का प्रयास किया था। बेंगलुरू में भव्य सेट लगाए गए थे। एक सेट पर शाॅर्ट सर्किट होने से आग लग गई थी और कुछ लोगों की मृत्यु हो गई थी। संजय भी झुलस गए थे, परंतु इलाज की लंबी प्रक्रिया के बाद वे सेहतमंद हो गए। उन दिनों शूटिंग में दुर्घटना के लिए कोई भी बीमा नहीं कराया जाता था। उस दुर्घटना में सॉन्ग रिकॉर्डिस्ट अलाउद्दीन खान का भी निधन हो गया था। अलाउद्दीन, आरके स्टूडियो में मासिक वेतन पर काम करते थे। मुंबई से कुछ मील दूर उनका छोटा-सा फार्म हाउस था। उस फार्म हाउस में एक गहरा कुंआ था, जिसका पानी पीने से पाचन क्रिया को बहुत लाभ होता था। अलाउद्दीन खान ने फार्म हाउस में एक माह बिताया। उस कुएं का जल पिया और पैथोलॉजी लैब में खून की जांच कराई। उनका हीमोग्लोबिन 15 आया जो अच्छी सेहत का प्रमाण होता है। उन्होंने एक माह मुंबई में अपने घर पर बिताया और खून परीक्षण में हीमोग्लोबिन 11 आया।

उनके एक रिश्तेदार ने कुएं के जल को बोतलों में भरा और बोतलों को बर्फ में रखकर मुंबई लाए। पैथोलॉजी लैब का परिणाम आशाजनक नहीं था। गोयाकि उस कुएं के जल का लाभ उसी गांव में पीने से होता था। बोतल में लाकर व्यवसाय करने का विचार असफल हो गया। ज्ञातव्य है कि अलाउद्दीन खान अभिनेता याकूब के सगे भाई थे। चौथे-पांचवें दशक में याकूब ने खलनायक की भूमिकाएं अभिनीत की। महबूब खान की 1940 में बनी 'औरत' में याकूब खान ने जो भूमिका अभिनीत की थी उसी भूमिका को 'मदर इंडिया' में सुनील दत्त ने अभिनीत किया था। भारत में बोतलबंद पानी एक बड़ा व्यवसाय है। पश्चिम के देशों में जल प्रदाय इस तरह का है कि नहाने वाला पानी ही पिया भी जाता है। स्वतंत्रता प्राप्त करने के इतने दशक बाद भी हम आम नागरिक को पीने का स्वच्छ जल नहीं दे पाए और बोतल बंद पानी का व्यवसाय पनपता रहा। इस व्यवसाय में लगी कुछ कंपनियां जल को स्वच्छ भी नहीं करती परंतु कितनी चीजों का कितना परीक्षण कराएं। स्मरण आती है कवि सरोज कुमार की पंक्तियां, 'कितने टन सोने में कितने वित्त मंत्रियों का गुणा करें/ कि सस्ती हो जाए तुअर की दाल/ और भरे भरे हो जाए जनता के गाल/ कितनी अजानों को कितनी आरतियों के निकट लाएं/ कि टोटल कर्फ्यू में नहीं आए और नदियों में खून नहीं केवल पानी बह पाए।'

बहरहाल, कर्नाटक सरकार ने फैसला किया है कि इस वर्ष टीपू जयंती नहीं मनाई जाएगी। टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध किया था। उसने 17 वर्ष राज किया। उसने सिल्क उत्पादन व्यवसाय को प्रोत्साहित किया और खेतों में नहरों को विकसित किया। टीपू सुल्तान ने शृंगेरी मठ की रक्षा के लिए भी भरपूर प्रयास किए। प्राय: सुल्तान, राजा और बादशाह रंगीन साफे व टोपियां पहनते रहे परंतु टीपू सुल्तान ने विविध रंगों से बनी पगड़ी पहनी। वह विविधता का हिमायती रहा। इसके साथ यह भी माना जाता है कि वह अत्यंत क्रूर व्यक्ति था। एक दौर में वह अनावश्यक रूप से जैन मत मानने वालों के खिलाफ हो गया। दरअसल, टीपू सुल्तान विवादास्पद शासक रहा है। एक ओर वह शृंगेरी मठ की रक्षा करता है, दूसरी ओर जैन मंदिर ध्वस्त करता है। कर्नाटक में सत्ता में आए नए मुख्यमंत्री ने ही टीपू जयंती उत्सव को रद्द किया है। दरअसल, इतिहास लेखन में तटस्थता बनाए रखना कठिन काम है। इतिहास में प्राय: युद्ध के विजेता का यशोगान किया जाता है, परंतु युद्ध में पैदल सिपाही के दृष्टिकोण को हमेशा अनदेखा किया जाता है। विगत दिन ही पत्रकार रवीश कुमार को एक पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई तो बीबीसी के दिल्ली में काम करने वाले पत्रकार ने राह में चलते आम आदमियों से पूछा कि रवीश कुमार के बारे में उनके क्या विचार हैं। अधिकांश लोगों ने कहा कि अन्याय व समानता के खिलाफ युद्ध करने वाले वे एकल सेनानी हैं। आम आदमी भी अपने परिवार में प्रेम करने वाला व्यक्ति रहता है। सड़क पर आते ही वह भीड़ का हिस्सा बनते हुए बदल जाता है। संध्याकाल वह घर लौटता है तो दफ्तर की कड़वाहट लिए लौटता है। अतः किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन अत्यंत कठिन है। ज्ञातव्य है कि टीपू सुल्तान ने एक वाचनालय स्थापित किया था, जिसमें देश-विदेश से किताबें बुलाई गई थीं और पर्शियन भाषा टीपू की प्रिय भाषा थी। अतः आज विवादास्पद टीपू सुल्तान का सत्य शायद उसके द्वारा स्थापित वाचनालय में जाने पर मिल सकता है। ज्ञातव्य है कि राजकुमार हिरानी के पात्र 'मुन्नाभाई' की मुलाकात महात्मा गांधी से एक वाचनालय में होती है।