इतिहास प्रेरित फिल्मी अफसाने / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 11 जनवरी 2020
अजय देवगन की इतिहास प्रेरित फिल्म 'तान्हाजी' का प्रदर्शन हुआ है। पहली इतिहास प्रेरित फिल्म शांताराम की 'उदयकाल' विगत सदी के तीसरे दशक में बनी थी। इतिहास प्रेरित 'मुगल-ए-आज़म' इस श्रेणी की सफलतम और बहुचर्चित फिल्म रही है। आशुतोष गोवारीकर की ऋतिक रोशन और ऐश्वर्या रॉय अभिनीत 'जोधा-अकबर' को हम 'मुगल-ए-आज़म' का प्रीक्वल मान सकते हैं।
मनुष्य इतिहास में पराजित राजा की बेटी से जीतने वाला विवाह करता रहा है। आज भी हमारे देश में बाराती विजेता की तरह व्यवहार करता है और वधू पक्ष पराजित पक्ष की तरह उलाहने सुनता है। राजकुमार संतोषी की फिल्म 'लज्जा' के एक दृश्य में अनिल कपूर अभिनीत पात्र कहता है कि समारोह में मौजूद बाराती और घराती को आसानी से पहचाना जा सकता है। उनके शरीर की भाषा सब कुछ अभिव्यक्त कर देती है।
हुक्मरान अपने दरबारी से इतिहास लिखवाता है। विजेता और पराजित अपनी-अपनी सहूलियत से घटना का विवरण लिखते हैं। युद्ध में लड़ने वाले और लहूलुहान होने वाले सामान्य सैनिकों की दृष्टि से इतिहास लिखा जाना चाहिए। हर युद्ध के बाद महंगाई अवाम के दरवाजे पर आ खड़ी होती है। बाजार भी अपने ढंग से घटना को प्रस्तुत करता है। आवश्यक वस्तुओं का अभाव और महंगाई युद्ध के वे परिणाम हैं, जिसे आम आदमी सहता है। इतिहास में किंवदंतियां शामिल हो जाती हैं। बैठे ठाले लतीफेबाज भी इतिहास में तड़का लगाते हैं। इतिहास को गरिमामंडित करते हुए उसे रोमांटिसाइज किया जाता है। तटस्थता से कभी इतिहास लिखा नहीं गया है। मसलन हिंदुस्तान में अकबर नायक है तो पाकिस्तान में औरंगजेब नायक है। माइथोलॉजी को भी इतिहास को स्रोत बनाया जाता है। अलिखित इतिहास से जन्म लेती हैं लोक गाथाएं और लोक गीत। कुछ इतिहासकार लोक गाथाओं से प्रेरित होकर घटना का विवरण प्रस्तुत करते हैं। ऐतिहासिक इमारतों के निर्माण की गाथा में कभी उन अनाम मजदूरों का जिक्र नहीं होता, जिनसे बेगार करवाई गई थी। रक्त से लिखा हुआ इतिहास उपलब्ध है। मानो अवाम के पसीने से कुछ लिखा ही नहीं गया। बादल सरकार के नाटक 'बाकी इतिहास' में एक ही घटना के कई काल्पनिक विवरणों की पोल खोली गई है। दरअसल सारे विवरण आधी हकीकत, आधा फसाना होते हैं। इतिहास एक पुरानी शराब है, जिसे नई बोतलों में भरकर नए लेबल चस्पा करके बारम्बार बेचा जाता है। बेचने वाले को क्यों मुजरिम समझें जब खरीदने वाला ही दोषी है। इसी बात को इतिहासकार अर्नाल्ड टॉयनबी यूं बयां करते हैं कि बोतल और लेवल पुराने हैं, शराब नई है।
आज दिन-प्रतिदिन का जीवन भी एक संग्राम की तरह है और आम आदमी के पास कोई जिरह बख्तर या ढाल भी नहीं है। इच्छा शक्ति ही उसका कवच है। जाने कब कोई साधु का वेश धारण करके हमसे यह कवच दान में मांग ले। अवाम दानवीर है और व्यवस्था नाना वेश धारण करने वाले भिक्षुक की तरह है। भूगोल भी इतिहास की छेड़छाड़ से बदलता है।
'तान्हाजी, शिवाजी महाराज के दाएं हाथ की तरह थे। उनका शौर्य किंवदंतियों में दर्ज है। अजय देवगन लंबे समय से इस फिल्म पर काम कर रहे थे। इस फिल्म में उनकी पत्नी काजोल ने भी अभिनय किया है। काजोल की परदे पर वापसी का इंतजार किया जा रहा था। इस फिल्म की भव्य लागत की वापसी के लिए ही काजोल अभिनय के क्षेत्र में लौटी हैं। फिल्म के कारोबार में पूंजी की रक्षा रियासत की रक्षा की तरह पूरी शक्ति से की जाती है। शोभना समर्थ की पुत्री तनुजा की पुत्री हैं काजोल। शोभना समर्थ भारतीय फिल्म उद्योग की पहली आधुनिका रही हैं। तनुजा भी अत्यंत बिंदास थीं। नूतन इसी परिवार की श्रेष्ठ कलाकार रही हैं। एक दौर में काजोल ने शेयर मार्केट का अध्ययन किया था। खरीदी और बिक्री का खेल उसे रास नहीं आया। फिल्म उद्योग में काजोल को हमेशा ही किताबें पढ़ने का शौक रहा है और सेट पर भी वे किताब साथ लिए आती थीं। अनीस बज्मी की मनोरंजक फिल्म 'प्यार तो होना ही था' में अजय और काजोल ने अभिनय किया था। अजय और काजोल के लिए फिल्म का टाइटल ही जीवन राग गया। पुराने दौर में किले पर कमंद फेंककर चढ़ाई की जाती थी। कमंद लोहे की बनी होती है, परंतु इसी शक्ल का एक जीव भी अपनी पकड़ के लिए जाना जाता है। किले की फतह के बाद कमंद जीव को अंगार का स्पर्श कराकर उसे अपने स्थान से हटाया जाता था। अवाम भी कमंद की भांति जीवन को पकड़े हुए है।