इनाम और सजा / दीनदयाल शर्मा
एक था गांव। गांव में था छोटा सा स्कूल। एक दिन स्कूल के हैडमास्टर जी का तबादला हो गया। शहर से नए हैडमास्टरजी आए। आते ही उन्होंने स्कूल की काया पलट दी। सबसे पहले तो उन्होंने पूरे स्कूल में सफाई करवाई। फिर वन विभाग से पौधे मंगवा कर उन्हें पंक्तिबद्ध लगवाया।
नए हैडमास्टर जी सभी छात्रों को अपने बेटों की तरह प्यार करते थे। वे नियमित रूप से पढ़ाई करवाते। प्रार्थना स्थल पर छात्रों को ज्ञान की अनेक बातें बताते तथा सदैव अनुशासन और कर्तव्य के प्रति सजग रहने की शिक्षा देते थे। स्कूल के प्रति उनका समर्पण भाव देखकर सभी अध्यापकगण जी-जान से पढ़ाने लगे। कुछ ही दिनों में हैडमास्टरजी ने छात्रों और अध्यापकों के साथ-साथ गांव के प्रत्येक व्यक्ति का दिल जीत लिया।
एक दिन स्कूल के पास मुख्य सड़क पर एक छात्र को उसके सहपाठी ने ट्रक की चपेट में आने से बचा लिया। इस बात की चर्चा उस दिन पूरे सकूल में थी कि तीसरे पीरियड में आकाश ने नरेश को सड़क दुर्घटना से बचा लिया। हैड मास्टरजी को जब पता चला तो उन्होंने आकाश व नरेश दोनों को अपने ऑफिस में बुलाया।
'क्यों आकाश, क्या यह सही है कि तुमने नरेश को ट्रक की चपेट में आने से बचाया है ?' हैडमास्टर जी ने पूछा।
'हां सर' आकाश ने गर्व से सिर उठाते हुए कहा।
'क्यों नरेश' नरेश ने अपराधी की भांति गर्दन झुकाते हुए धीरे से कहा, 'यह साथ नहीं होता, तो मैं मर ही जाता सर।'
हैडमास्टर ने गौर से दोनों की ओर देखा। फिर पूछा, 'तुम पढ़ाई के समय स्कूल से बाहर किसलिए गए थे?'
हैडमास्टरजी का प्रश्र अप्रत्याशित था। दोनों बच्चे अवाक रह गए। नरेश ने कोई जवाब नहीं दिया तो हैडमास्टरजी ने आकाश से पूछा, 'स्कूल से बाहर किसलिए गए थे आकाश ?'
आकाश भी चुप रहा। वह अपने दाहिने पैर के अंगूठे से जमीन कुरेदने लगा। हैडमास्टरजी को गुस्सा आ गया। वे बोले, 'मैं पूछता हूं, तुम दोनों स्कूल से बाहर किसलिए गए थे? बोलो, चुप क्यों हो ?'
नरेश और आकाश एक-दूसरे की ओर कनखियों से देखते हुए खामोश खड़े रहे। वे मन ही मन डर रहे थे कि इस घटना पर हैडमास्टर जी इतना ज्यादा गुस्सा करेंगे, उन्होंने सोचा भी न था।
'चलो, दोनों अपनी कक्षा में चलो।' हैडमास्टर के इतना कहने पर नरेश व आकाश चुपचाप अपनी कक्षा में चले गए। कक्षा के अनेक सहपाठियों की आंखें उन्हें सवालिया निगाहों से देख रही थी लेकिन वे दोनों चुपचाप सीट पर जा बैठे और अपनी अपनी पुस्तकें निकाल कर पढऩे लगे।
शनिवार होने के कारण सातवें पीरियड में बाल सभा आयोजित होती थी। जैसे ही छठा पीरियड खत्म हुआ सभी छात्र हॉल की ओर बढऩे लगे। हॉल छात्रों से खचाखच भर गया। सारे छात्र हॉल में बिछी दरी पर बैठे थे। हैडमास्टरजी और अध्यापकण हॉल में लगी कुर्सियों पर बैठ गए।
बाल सभा पूरे एक घंटे तक चली। अन्त में हैडमास्टरजी ने आकाश और नरेश को अपने पास बुलाया और बहादुरी के इस कार्य के लिए आकश को रंग- बिरंगे फूलों का एक खूबसूरत गुलदस्ता इनाम में दिया। इनाम पाकर आकाश बहुत खुश हुआ। सब बच्चों ने तालियां बजाई।
तालियों की गडग़ड़ाहट बंद होते ही हैडमास्टरजी बोले, 'यह बड़े गौरव की बात है कि आज आकाश ने अपने एक सहपाठी को ट्रक की चपेट में आने से बचा लिया। अत: यह इनाम पाने का हकदार है लेकिन ये दोनों स्कूल समय में बिना छुट्टïी लिए स्कूल से बाहर चले गए थे। यह इन दोनों की सबसे बड़ी गलती है। क्यों आकाश, तुम दोनों बिना छुट्टïी लिए स्कूल से बाहर गए थे ना?'
'हां सर।' कहते हुए आकाश ने शर्म से अपनी नजरें झुका ली। नरेश भी अपनी गलती पर शर्मिन्दा था।
हैडमास्टरजी अपनी बात पर जोर देते हुए बोले, 'यह गलती तुम दोनों की है और इसकी सजा ये है कि तीन दिन के लिए तुम दोनों को स्कूल से बाहर निकाला जाता है। इसी के साथ ही मैं बाल सभा समाप्ति की घोषणा करता हूं।'
हैडमास्टरजी का निर्णय सुनकर सभी छात्र और अध्यापकण हतप्रभ रह गए।