इन्तज़ार / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Gadya Kosh से
मुझे चुपके से आकर मुन्नी ने बताया कि वह आपसे मिलने आई है।
मेरा चेहरा भावशून्य हो गया। सब फ़ाइलें तुरन्त समेटी. सेफ़ को धड़ाक् से बन्द कर दिया। उँगलियों पर कुछ खरोंच आ गई. लहू चुहचुहा उठा। साहब ने ओवर टाइम में भी क्षण भर रोक लिया था। दिन भर की थकान को मिटाने के लिए मुँह धोया। रूमाल से पूरे चेहरे को रगड़ा। तेज़ी से वहाँ जा पहुँचा और उसको बुलाने के लिए मुन्नी को घर में भेजा। वह काफी अर्से बाद आई थी।
पता चला कि वह मेर इन्तज़ार करके अपनी माँ के साथ चली गई. मैं बाहर निकल आया और उसे आवाज़ लगाने को हुआ; परन्तु तब तक वह बहुत दूर जा चुकी थी।
(रचना तिथि: 29 जून 1972)