इबारत / हेमन्त शेष

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इन दिनों खाली काग़ज़ के सामने कलम लिए उसे घूरता रहता हूँ, इस उम्मीद में कि कोई नायाब इबारत उस पर लिख सकूं..... काग़ज़ अभी भी कोरा ही है!