इम्तियाज़ अली और रणबीर कपूर की जुगलबंदी / जयप्रकाश चौकसे

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इम्तियाज़ अली और रणबीर कपूर की जुगलबंदी
प्रकाशन तिथि :27 अप्रैल 2017


'रॉक स्टार' और 'तमाशा' के बाद फिल्मकार इम्तियाज़ अली और रणबीर कपूर एक और फिल्म करने जा रहे हैं। दोनों के बीच आपसी समझदारी का रिश्ता है और एक ही लय पर उनके दिल धड़कते हैं। फिल्मकार और सितारों के बीच इस तरह की अंतरंगता और निरंतरता हमेशा रही है। पृथ्वीराज कपूर ने अपने मित्र विश्राम बेडेकर के साथ फिल्में की हैं। 'रुस्तम सोहराब' की शूटिंग के आखिरी दौर में पृथ्वीराज कपूर ने विश्राम से कहा कि वे प्राय: उनका मेहनताना पूरा नहीं देते और लंच ब्रेक के बाद एक किश्त नहीं मिलने पर वे शूटिंग नहीं करेंगे। पृथ्वीराज को आश्चर्य हुआ, जब लंच ब्रेक के बाद विश्राम बेडेकर ने उन्हें किश्त दे दी परंतु शूटिंग के बाद जब पृथ्वीराज कपूर घर आए तब उनकी पत्नी ने उनसे पूछा कि शूटिंग के समय आपने विश्राम को घर भेजकर रुपए क्यों मंगवाए थे गोयाकि विश्राम बेडेकर ने 'तेरा तुझको' अर्पण कर दिया।

'रुस्तम-सोहराब' की शूटिंग के समय ही विश्राम बेडेकर का बेटा अमेरिका से फिल्म निर्माण का प्रशिक्षण लेकर लौटा था। उसने देखा कि कुछ कलाकार मुगलों की पोशाक पहने हैं, कुछ शिवाजी महाराज के सैनिकों की तरह लग रहे हैं। उसने अपने पिता से पूछा कि वे किस कालखंड की फिल्म बना रहे हैं। विश्राम ने जवाब दिया कि यह उनके बुरे वक्त की फिल्म है, क्योंकि पिछली फिल्म नहीं चली अत: किसी पूंजी निवेशक का साथ नहीं मिला। जहां से जो उपलब्ध हुआ, वही जोड़कर यह भानुमति का कुनबा रचा जा रहा है। ज्ञातव्य है कि सुरैया और पृथ्वीराज कपूर अभिनीत यह फिल्म सफल रही थी। दर्शक को आपके स्रोत से कोई लेना-देना नहीं होता। परदे पर प्रस्तुत छवियों से उनका भावनात्मक तादात्म्य स्थापित होने पर वे फिल्म की प्रशंसा करते हैं। फिल्म के पसंद और नापसंद किए जाने का रहस्य व कीमिया कोई नहीं जानता। एक बार एक अघोरी अमेरिका पहुंच गया और उसकी भारत वापसी के लिए धन जुटाने हेतु एक तमाशा यह रचा गया कि यह अघोरी सरेआम मानव मल खाकर दिखाएगा। तमाशे को रुचिकर बनाने के लिए आयोजक ने मंच पर विविध सामग्री रखी। अघोरी ने एक को छोड़कर सभी को ग्रहण किया और वजह पूछे जाने पर उसने कहा कि इसमें एक मक्खी पड़ी है गोयाकि मल नहीं वरन मक्खी पर एतराज था। ज्ञातव्य है कि अघोरी पंथ के लोग सभी चीजों को खाते हैं, क्योंकि उनका विश्वास है कि धरती पर प्रस्तुत हर सामग्री ईश्वर की कृपा है। मतलब यह कि दर्शक को कब कहां कोई मक्खी दिख जाए और वह फिल्म को अस्वीकार कर दे यह कोई नहीं जानता मनोरंजन उद्योग तराजू पर मेंढक तौलने की तरह है।

इम्तियाज़ अली की पहली फिल्म के निर्माता सनी देओल थे और नायक उनके ताऊ का पुत्र अभय देओल था। फिल्म का नाम था 'सोचा न था' और उसी कथा विचार पर अलग पैमाने पर करीना कपूर व शाहिद कपूर अभिनीत 'जब वी मेट' बनी थी, जो एक यादगार फिल्म है। यह उस दौर का परिणाम है जब करीना व शाहिद प्रेम का ट्वेंटी-ट्वेंटी खेल रहे थे। क्रिकेट का यह गुटका संस्करण अत्यंत लोकप्रिय है। सभी क्षेत्रों में गुटका संस्करण ही लोकप्रिय हो रहा है। यह महाकाव्य या उपन्यास की लोकप्रियता का कालखंड नहीं है। आजकल तो पंडित भी यजमान के अमीर या अधिक व्यस्त होने को भांपकर पूजा, हवन व कथा को छोटा या बड़ा कर लेते हैं। प्रज्वलित हवन कुंड में डाली जाने वाली सामग्री भी इसी आधार पर तय होती है।

आश्चर्य केवल इस बात का है कि रणबीरकपूर के अनन्य सखा अयान मुखर्जी की कोई फिल्म प्रारंभ नहीं हो रही है। वे इतने गहरे मित्र हैं कि दोपहर से अलसभोर तक एक-दूसरे के साथ रहते हैं। एक दौर में कहा गया कि अयान कोई विज्ञान फंतासी लिख रहे हैं। आजकल रणबीरकपूर संजयदत्त बायोपिक में व्यस्त हैं, जिसे राजकुमार हिरानी बना रहे हैं। यह संभवत: हिरानी के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि हिरानी की फिल्मों का आधार पात्रों की सहजता व अच्छाई पर रखा होता है। यह देखना सचमुच दिलचस्प होगा कि वे 'खलनायक' संजय दत्त को कैसे भोले व मासूम पात्र की तरह प्रस्तुत करते हैं। संजय दत्त पर कई आपराधिक मुकदमे कायम हुए थे। संजय के पक्ष में केवल यह कहा जा सकता है कि वह अपने पिता सुनील दत्त द्वारा 'मदर इंडिया' में अभिनीत पात्र बिरजू की तरह है। ज्ञातव्य है कि फिल्मकार मेहबूब खान ने बिरजू का पात्र अभिनीत करने के लिए अपने प्रिय भिनेता दिलीप कुमार से अनुरोध किया था, जिन्होंने इस कारण भूमिका स्वीकार नहीं की कि वे नरगिस के साथ प्रेमी नायक अभिनीत कर चुके हैं। अत: उनके पुत्र की भूमिका नहीं करेंगे परंतु बिरजू उनके अवचेतन में इतना गहरा पैठा हुआ था कि उन्होंने 'गंगा जमुना' में बिरजू को अन्य नाम से जिया। दरअसल, बिरजू पात्र में इतनी गहरी कशिश है कि 'मदर इंडिया' में प्रस्तुत यह पात्र 'गंगा यमुना' तैरकर सलीम-जावेद और अमिताभ बच्चन की 'दीवार' में पुन: परदे पर प्रस्तुत हुआ है। पहले चम्बल को बीहड़ डाकुओं का जन्म स्थान माना जाता था और खेदजनक है कि अब चम्बल के बीहड़ महानगरों तक फैल गए हैं।