इरफान, कैंसर, चीन और भारत / जयप्रकाश चौकसे

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इरफान, कैंसर, चीन और भारत
प्रकाशन तिथि : 06 अगस्त 2018


इरफान खान के मस्तिष्क में मौजूद कैंसर की गठान का इलाज हो रहा है और कीमियोथैरेपी के पांच चक्र पूरे हो गए हैं और अंतिम चक्र दिया जा रहा है। ज्ञातव्य है कि इलाज के दरमियान वे भारत आकर निर्माणाधीन फिल्म 'पज़ल' में अपना काम पूरा कर चुके हैं। उनका कथन है कि कई बार उनकी आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है। इरफान खान ने लंबा संघर्ष करके अभिनय क्षेत्र में अपना स्थान बनाया। वे बलराज साहनी की याद दिलाते हैं, जिन्होंने साधारण-सी शक्ल सूरत के बावजूद अपनी प्रतिभा से अपना स्थान बनाया। बलराज साहनी इप्टा के सदस्य थे और वामपंथी विचारधारा के व्यक्ति थे। चेतन आनंद उनके परम मित्र रहे और एक बार मजदूर संघ द्वारा प्रायोजित आमसभा में दोनों के बीच तकरार हो गई। कुछ दिन तक अबोला रहा। चेतन आनंद भारत पर चीनी हमले को लेकर फिल्म बनाना चाहते थे। उन्होंने पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री से फिल्म बनाने के लिए सरकारी ऋण मांगा, जो उन्हें आनन-फानन में मंजूर हो गया। उनके पास एक कथा विचार था परंतु कोई पटकथा नहीं थी और कागज पर तो कुछ लिखा ही नहीं था।

चेतन आनंद ने कुछ कलाकारों और तकनीशियन को चुना और लोकेशन पर पहुंच गए। उनके साथ उनसे रूठे हुए मित्र बलराज साहनी भी थे। इस तरह 'हकीकत' एक त्वरित फिल्म की तरह बनी। वे दोनों सिनेमा विधा के आशु कवि कहलाए। शूटिंग के दरमियान बलराज साहनी के हवाले यूनिट छोड़कर चेतन आनंद संगीतकार मदनमोहन और कैफी आजमी से मिले। गीत रिकॉर्ड किए गए और चेतन आनंद लोकेशन पर पहुंचे। गीतों का छायांकन प्रारंभ हुआ। मदन मोहन और कैफी आज़मी साहब ने सरहद पर युद्धरत सोल्जर के अवचेतन को बखूबी अभिव्यक्त किया गीत-संगीत के माध्यम से। फिल्म की बॉक्स ऑफिस सफलता में गीत-संगीत का बहुत योगदान रहा। इसी फिल्म में लंदन में प्रशिक्षित प्रिया राजवंश को नायिका के रूप में प्रस्तुत किया गया। प्रिया राजवंश और चेतन आनंद के बीच मधुर रिश्ता पनपा। बाद में उन्होंने अपनी सभी फिल्मों में प्रिया राजवंश को लिया। उस बेचारी को हिंदुस्तानी संवाद बोलने में परेशानी थी और उसकी संवाद अदाएगी आम दर्शक को पसंद नहीं आई। कालांतर में चेतन आनंद ने अपना बंगला उनके नाम कर दिया, जिस कारण चेतन के पुत्र ने प्रिया की हत्या की।

बहरहाल, चेतन आनंद की 'हकीकत' को भारत की पहली प्रामाणिक युद्ध फिल्म माना गया, जबकि वह फौज की रिट्रीट फिल्म थी। फौज की वापसी की व्यथा-कथा थी। 'कर चले फिदा जानो तन साथियो' एक मार्मिक समूह गीत था। फिल्म में प्लैश बैक में जवानों के अपनी प्रेमिकाओं से विदा लेने के समय का भी गीत था। वह यादगार गीत रहा, 'मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था/के वो रोक लेगी मना लेगी मुझको/हवाओं में लहराता आता था दामन/के दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको/कदम ऐसे अंदाज़ से उठ रहे थे/के आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको….मैं आहिस्ता आहिस्ता बढ़ता ही आया यहां तक के उससे जुदा हो गया मैं…

चेतन आनंद की 'हकीकत' नेहरू के स्वप्न दृश्य के लिए भी हकीकत की तरह सिद्ध हुआ। एक राजनीतिक आदर्श भंग हुआ। एक विश्वासघात हुआ और पंचशील का यूटोपिया भी ध्वस्त हुआ। नेहरू ने आधुनिक भारत की आधारशिला रखी थी। उन्हीं की पहल पर भाखड़ा नंगल का निर्माण किया गया, आणविक ऊर्जा संस्थान की स्थापना के साथ ही साहित्य अकादमी व कला अकादमी जैसी अनेक संस्थाएं भी बनीं। पंडित नेहरू सभी प्रांतों के मुख्यमंत्रियों को महीने के पहले और तीसरे सप्ताह पत्र लिखते थे, जिनमें दिशा-निर्देश होते थे। उन पत्रों के संकलन की किताब भी प्रकाशित हुई है। ये खत नियमित रूप से 1963 तक लिखे गए। यह किताब पेंगुइन प्रकाशन संस्था ने प्रकाशित की है। इस किताब में नेहरू ने समाजवाद की व्याख्या भी की है। उनका विचार था कि औद्योगिक क्रांति की ही जायज संतान है समाजवाद। मार्क्सवाद ने पूंजीवाद की अलसभोर में अपने महान विचार अभिव्यक्त किए थे।

नेहरू द्वारा भारत के चहुंमुखी विकास से चीन को यह भय लगा कि भारत इस क्षेत्र का अग्रणी देश बन जाएगा। अत: उन्होंने भारत के प्रगति चक्र में एक अड़ंगा लगाने के लिए यह युद्ध छेड़ा। उसके बाद ही भारत के राष्ट्रीय बजट में भारी मात्रा में धन हथियार खरीदने में लगाया जाने लगा, जो आज भी जारी है। यह वही धन है, जो अवाम को सुविधाजनक जीवन उपलब्ध कराने में बड़ा योगदान दे सकता था। युद्ध के हवन में विजेता और पराजित दोनों के हाथ झुलस जाते हैं। इस तरह चीन ने एक तंदूर दहका दिया, जिस पर वह अपने स्वार्थ की रोटियां सेंक रहा है। आज चीन के अवाम में असंतोष है और एक और भीतरी क्रांति की संभावना को रद्‌द नहीं किया जा सकता। बहरहाल, इरफान खान एक बेहद गंभीर और त्रासद अनुभव से गुजर रहे हैं और इस भट्‌टी से तपकर वे इस्पात की तरह बाहर आएं ऐसी प्रार्थना दर्शक करते हैं। कैंसर से भी एक युद्ध की तरह लड़ा जा रहा है। मेडिकल क्षेत्र में निरंतर शोध हो रहा है। चीन की महत्वकांक्षाओं का एंटीडोट भी उसी देश का अवाम बना रहा है। हर किस्म के कैंसर का इलाज खोजा जा राह है।