इरफान खान: हिंदी मीडियम से अंग्रेजी मीडियम तक / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 05 मार्च 2020
इरफान खान अभिनीत फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ सुर्खियों में है। फिल्म का नायक चांदनी चौक दिल्ली का मध्यम दर्जे का व्यापारी है। वह अपनी पुत्री को इंग्लैंड भेजना चाहता है। पुत्री की इच्छा इंग्लैंड में पढ़ने की है। अपनी पुत्री की इच्छा पूरी करने के लिए इरफान को बहुत पापड़ बेलने होते हैं। ज्ञातव्य है कि भारत को राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत से लंबा संघर्ष करना पड़ा। गौरतलब यह है कि इस संघर्ष के अधिकांश नेता इंग्लैंड में शिक्षा प्राप्त करके आए थे। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, बाबा साहेब अंबेडकर इत्यादि ने इंग्लैंड में ही शिक्षा प्राप्त की थी।
ज्ञातव्य है कि इंग्लैंड की संसद में लंबी बहस इस मुद्दे पर चली कि ब्रिटिश शिक्षा व्यवस्था भारत में रोपित की जाए या नहीं। अधिकांश सांसदों ने यह भय व्यक्त किया कि कुछ प्रतिभाशाली छात्र इंग्लैंड आएंगे और अपने वतन लौटकर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो सकते हैं। शिक्षा का प्रस्ताव रखने वाले लार्ड मैकाले ने स्पष्ट किया कि किसी भी देश को हमेशा के लिए गुलाम नहीं रखा जा सकता। यह संभव है कि इंग्लैंड में शिक्षित लोगों के कारण स्वतंत्रता संग्राम की धार पैनी हो जाए, परंतु एक लाभ यह है कि अंग्रेजी भाषा अजर, अमर, अनंत भारत में हमेशा जीवित रहेगी। विज्ञान की अधिकांश किताबें अंग्रेजी में लिखी गई हैं। चीन में विदेशी भाषा की किताब को महत्व नहीं दिया जाता, परंतु डॉक्टर ग्रे की एनोटॉमी का उनके पास भी कोई विकल्प नहीं है। अत: वह किताब पाठ्यक्रम में शामिल है। आश्चर्य है कि जिस डॉक्टर ग्रे ने मानवता का इतना भला किया, वह स्वयं युवा अवस्था में ही दिवंगत हो गए।
इरफान खान अभिनीत ‘हिंदी मीडियम’ भी बहुत सफल रही थी। उस फिल्म में अपने पुत्र के अंग्रेजी मीडियम में दाखले के लिए, वह गरीबों की बस्ती में रहने जाते हैं, ताकि गरीबों के लिए आरक्षित सीट उनके बेटे को प्राप्त हो जाए। एक दृश्य में एक पात्र के संवाद का आशय यह है कि इरफान अभी-अभी गरीब हुए हैं, उनका व्यवसाय चौपट हुआ है, परंतु वह खुद तो पुश्तैनी गरीब हैं। उनकी विगत पीढ़ियां गरीब थीं और भावी पीढ़ियां भी गरीब ही रहेंगी। गरीबी एक सोचा-समझा प्रॉडक्ट है, जिसे बड़ी सफलता से सर्वत्र बेचा गया है। गरीबी में पीढ़ियां बड़े प्यार से पाली जाती रही हैं। इरफान खान ने कुछ अत्यंत सफल सार्थक अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में अभिनय किया है। जैसे लाइफ ऑफ पाई, वारियर, स्लमडॉग मिलेनियर, अमेजिंग स्पाइडर मैन इत्यादि।
इरफान खान अभिनीत ‘लंच बॉक्स’ को अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। विशाल भारद्वाज की ‘मैकवेथ’ से प्रेरित फिल्म ‘मकबूल’ में भी उसे बहुत सराहा गया। इरफान खान को पानसिंह तोमर, पीकू, जज्बा और तलवार में बहुत पसंद किया गया। ज्ञातव्य है कि इरफान खान का जन्म जयपुर में हुआ और अभिनय के जुनून ने उन्हें विश्व भ्रमण के अवसर दिए। दूरदर्शन पर प्रस्तुत नाटकों में अभिनय करके बड़ा फासला तय किया है।
कुछ समय पूर्व उन्हें एक बीमारी हो गई थी, जिसके इलाज के लिए वे इंग्लैंड गए थे। सुना गया है कि वे निरोग होकर लौटे हैं। इलाज के बाद उन्होंने अंग्रेजी मीडियम में अभिनय किया है। हिंदी सिनेमा में चॉकलेट चेहरे वाले सितारों के साथ ही खुरदुरे चेहरे वाले कलाकारों ने भी लंबी सफल पारी खेली है। यह सिलसिला शेख मुख्तार से प्रारंभ होकर ओम पुरी से गुजरते हुए इरफान खान तक पहुंचा है और यह सदा जारी रहेगा। भावों की अभिव्यक्ति खूबसूरती की मोहजात नहीं है। मनुष्य अपने पूरे शरीर का उपयोग भावाभिव्यक्ति के लिए करता है। पारंगत कलाकार अपने शरीर की हर मांसपेशी का इस्तेमाल करते हैं। गॉडफादर में अपनी भूमिका के लिए मार्लिन ब्रेंडो ने शल्य क्रिया द्वारा माथे पर रबर की एक गांठ प्रत्यारोपित कराई थी। संभवत: ब्रेंडो यह अभिव्यक्त करना चहते थे कि सर्वशक्ति संपन्न अपराध सरगना के अवचेतन में पैठे दर्द को माथे की गांठ द्वारा प्रस्तुत किया जाए। आश्चर्य यह है कि दिलीप कुमार भी ब्रेंडो को अपना आदर्श मानते रहे। उनके माथे पर एक गांठ जन्म के समय से ही बनी हुई है। अजीबोगरीब इत्तफाक होते हैं।
इरफान खान अपनी बड़ी-बड़ी आंखों द्वारा ही पात्र के दर्द को अभिव्यक्त करते हैं। उनकी भावाभिव्यक्ति की प्रतिभा को किसी शारीरिक बैसाखी की आवश्यकता नहीं है। इरफान खान ने अपने मुंबई स्थित मकान में कई पौधे लगाए हैं। वे परिंदों को आकर्षित करने के लिए छत पर दाना-पानी उपलब्ध कराते हैं। उनसे संवाद स्थापित करने के जतन भी करते हैं। जानवरों और परिंदों के शरीर संचालन से भी अभिनय सीखा जा सकता है। जीवन ही सबसे बड़ी पाठशाला है। इस पाठशाला में जिस छात्र को सबक याद हो जाता है, उसे कभी छुट्टी नहीं मिलती। विषम परिस्थितियों में जीना एक कला है। इरफान खान जानते हैं कि विशेष वे लोग होते हैं, जो अत्यंत साधारण काम को भी अपनी अदायगी से विशेष बना देते हैं।