इलाज / हरीश बी. शर्मा

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रोजीना घर में मीटिंग हुंवती। विकास समिति में अजय रा पापा अध्यक्ष हा। मोहल्लै रा विगसाव किंयां हुवै, इण विषै पर बातां चालती। आं दिनां सगळा पदाधिकारियां री चिंता बधगी ही। चैक रे एक कानी बण्यै पाणी रै स्टैण्ड रै लारली जमीन पर कमलियै री आंख ही।
करै तो कांई करै, करै तो कुण करै ? इणी उळझाव नैं सुळझावण सारू रोज मीटिंग हुंवती, चायां चलती। मम्मी री चख-चख न्यारी ही। रात नैं बारै-एक बजी तांई बातां चालती तो पढाई नैं पलीतौ और लागतौ।
बातां रो विषै रैवतो खांचा भूमि अर कमलियो। आपरै भायलां रै कारणै बियांही लुगायां में डर रो कारण बण्यो कमलियो चुनावां में ही चोखो लागतो। आं दिनां उणरी अक्कड़ नरमाई में बदळ जांवती। हाथ जोड़यां घर-घर घूमतो। मीठी-मीठी बातां करतो। चुणाव निकळतां ही पाछा बै ही घोड़ा, बै ही मैदान।
आज री रात निरणै री रात ही। साफ-साफ हो कै जे आज फैसलो नीं हुयो तो, तर-तर आगै बधतौ कमलियो कब्जो कर लेवैलो। मीटिंग भलां ई झांझरकै तांई चालै, आज फैसलो करणो है। केई सुझाव आया पण बात नीं बणी।
निरमल चाचोजी री बात सगळां नैं ठीक लागी। उणां रो कैणो हो कै कमलियै रो कब्जो तो आपां रोक सकां कोनीं, क्यूंनी समिति आपरै फंड सूं अठै एक मिंदर बणवाय दै। मिंदर में समिति रो दतर भी बण जासी। निरमल चाचोजी री बात सगळां नैं दाय आयी। आपां गुंडा-बदमाष तो हां कोनीं। ज्हैर नै ज्हैर काटै। अबै इण जमीन माथै कब्जो हुवणो ही लिख्यो है तो क्यूंनी भगवान रो हुवै।
सगळी बात सुण अजय रा माथो ठणक्यो। मिंदर बण्यां तो रोजीनै री रमाण है। दिनूंगै कीरतन, सिंझ्यां सुंदरकांड अर रात रा जागण। उण नैं लागण लाग्यो कै बडा-बडा स्पीकरां सूं गूंजती आवाज उणरै कानां में पड़ण लागी है अर नींद उडगी। बठीनै मीटिंग खतम हुयगी। सगळा आप-आपरै घरां चला गया। पापा म्हनैं जागतो देख्यो तो बक्या, ‘इत्ती रात तांई जागण री कांई जरूरत है, अबै सोयजा !’
पण नींद कठै ही ? करां तो कांई करां, कांई हुय सकै है ? सोचतां-सोचतां ठा ही नीं पड़यो कै कद नींद आयगी।
दिनूंगै उठयो तो चैक में कार सेवा सरू हुयगी ही। ईंटां आय चुकी ही। मजूर नींवं खोदै हा। चलवो फीतो लेय’र जमीन नाप रैयो हो। समिति रा सगळा लोग-लुगाई हाजर हा। क्यूंकै कमलियै रो कांई भरोसो, कणै आय‘र राफड़ घालदै।
पण कमलियो तो सिंझ्या तांई कोनीं आयो। अठीनै अजय सांमी औ सवाल-करै तो कांई करै ? आ जमीन खेल रो मैदान ही। टाबर-टोळी अठै ही खेलती। मिंदर बणग्यो तो खेल रो मैदान नीं बचैलो। पण पापा रै आगै कांई करतो। स्कूल गयो तो बठै भी मन नीं लाग्यो। सागै रै टाबरां नैं भी औ मजूंर कोनीं हो। पण कुण कांई करै ? पंकज, अभिषेक, मोहित आद भी दुखी हा। करै तो कांई करै ?
पांचूं भायला पाछा घरां आय रैया हा। रोजीना हुल्लड़बाजी करता आवणियां आं टाबरां नै उदास देख‘र बागवान चाचा सूं रैयो नीं गयो। बागवान चाचा स्कूल रो बगीचो संभाळता हा। अजय रै घर सूं आगलै मोहल्लै में रैवता।
‘कांई हुयो रे टींगरां ! उदास किंयां हो ?’ बागवान चाचा पूछयो।
‘ऐ हैं, इंयां ही, कीं बात कोनी।’ पंकज बोल्यो
‘कीं-न-कीं तो है, कीं बात नीं जण थै तो रोज राफड़ घालता ही चालो हो, आज गुमसुम किंयां ? बोलो-बोलो !’
अजय पैलां तो सोच्यो कै आंनैं बतायां कीं नीं हुवै। पण दुख हळको तो हुय जासी। आ सोच‘र सगळी बात बताय दी।
‘तो थै अबै कांई चोवो ?’ बागवान चाचा पूछयो।
‘आ जमीन, यूं ही खुल्ली रैवणी चाइजै।’ अजय बोल्यो।
बागवान चाचा खासी ताळ चुप रैय‘र बोल्या, ‘सुणो ! जे थांरी इण जमीन पर बगीचो बणाय दियो जावै तो समस्या रो हल हुय सकै।’
‘किंयां ?’ सगळां रो सवाल हो।
‘देखो, बगीचो बणसी तो कोई रो कब्जो कोनीं हुवै। ना मिंदर, ना घर। पर्यावरण साफ रैसी। फूल ही फूल, सौरम ही सौरम।’
बागवान चाचा री बात सगळां नैं ठीक लागी। पण औ हुसी किंयां ? बठै तो चिणाई सरू हुयगी हुवैला।
‘उणरो इलाज भी है म्हारै कनै। ....थे एक काम करो, अबार रा अबार कमलियै नै जोय‘र लावो। उणनै कैवो कै अठै तो बगीचो बणणो चाइजै अर बण रैयो है मिंदर !’
‘पण म्हे कठै ........’, पंकज बोलणो सरू करयो ई हो कै सांमी सूं कमलियो आंवतो दीख्यो।
‘कमलियो आयग्यो ....। तीनूं अेकण सागै बोल्या।
‘किंयां कमलिया, सिध गयो हो रे ?’ बागवान चाचा पूछयो।
‘पगै लागूं काका, काम गयो हो कनलै गाँव।’
‘आछी तरयां जाणूं थारा काम-धाम। खैर ! अबार तो आं छोरां री सुण।’
‘अरे ऐ तो म्हारै चैक रा छोरा है। किंयां, कोई मारपीट हुई कांई रे ?’ कमलियै पूछयो।
‘नीं बो कांई है कै ....’
बागवान चाचा बीच में बोल्या, ‘म्हैं बतावूं सगळी बात, थनैं आं छोरां खातर बगीचो बणावणो है। थारै नेता सूं बात करलै। पइसा लगावणा पड़सी। थूं बगीचै रो व्यवस्थापक हुसी।’
‘म्हैं !’
‘हां, थूं।’
‘अर, अबै सुण ! मोहल्लै में पाणी-स्टैण्ड रै लारै खाली पड़ी जमीन माथै मिंदर बण रैयो है। बगीचो बठै ही बणणो है।’
‘कुण बणावै है, मिंदर ?’
‘समिति आळा।’
समिति रो नांव सुणतां ही कमलियै रा तौर बदळग्या। बागवान चाचा बोल्या, ‘देख भाई, राड़ करणै में कीं फायदो नीं है। अर आं टींगरां खातर लडयो तो बात बण जासी। दूजी बात आं टींगरां रो नांव नीं आवणो चाइजै। धिंगाणै ही कूटीज जावैला। जिंदगी-भर लड़ायां करी है। कीं तो सेवा कर। टींगरां रो काम कर।’
कमलियै रै सगळी बात समझ में आयगी। ‘अबार लो काका......’ कैय‘र बो चैक कांनी दौड़यो।
बागवान काका टींगरां नै रोक लिया। बोल्या, ‘थै अबार बठै ना जाओ। पैलां अठीनै आवो अर फैसलो करो कै थांरै बगीचै में किसा-किसा फूल उगावणा है। बाकी काम कमलियो कर लेसी।’