इलेक्ट्रॉन / आइंस्टाइन के कान / सुशोभित
सुशोभित
पदार्थ का स्वरूप अपने में एक रहस्य है।
हमारे आसपास जितनी भी वस्तुएँ हैं, जितने भी पदार्थ और तत्व हैं, वे अणुओं (या मोलेक्यूल्स) से बने हैं। अणु परमाणु (या एटम) से बने हैं। और ये एटम सब-एटॉमिक पार्टिकल्स से। एक समय था जब एटम्स को ही एलीमेंट्री पार्टिकल्स माना जाता था, फिर सब-एटॉमिक पार्टिकल्स इलेक्ट्रॉन्स वग़ैरा को माना गया, अब क्वार्क्स पदार्थ ही बुनियादी घटक कहलाते हैं। लेकिन क्वाण्टम मैकेनिक्स की मानें तो एटम वस्तुत: ख़ाली जगहें हैं, इनमें अवकाश और रिक्तियाँ हैं।
एटम के परिमाण (वॉल्यूम) का लगभग समूचा हिस्सा एक इलेक्ट्रॉन-क्लाउड होता है, जो केवल एक विद्युत-आवेशित धुंध (क्लाउड्स ऑफ़ मूविंग फ़्लफ़) है। जबकि एटम के द्रव्यमान (मास) का लगभग समूचा हिस्सा उसके न्यूक्लियस में होता है, जो इस इलेक्ट्रॉन-क्लाउड के भीतर गहरे छुपा है। न्यूक्लियस में प्रोटोन और न्यूट्रॉन होते हैं। ये प्रोटोन और न्यूट्रॉन क्वार्क कहलाने वाले और भी सूक्ष्म-घटकों से बनते हैं, जबकि इलेक्ट्रॉन के अभी तक कोई घटक या उपसंरचनाएँ नहीं खोजे जा सके हैं। इसी से वे एलीमेंट्री पार्टिकल्स कहलाए हैं। सृष्टि की बुनियादी और सबसे महत्वपूर्ण इकाई।
प्रोटोन का विद्युत-आवेश धनात्मक और न्यूट्रॉन का उदासीन होता है। इनकी तुलना में इलेक्ट्रॉन लगभग द्रव्यमानरहित होते हैं, लेकिन जिस तत्व का वह एटम है, उसके गुण-दोषों का निर्धारण उसके इलेक्ट्रॉनों से ही होता है। इन इलेक्ट्रॉनों का विद्युत-आवेश ऋणात्मक होता है और वे स्वभाव से चित्तबिंदु की तरह चंचल होते हैं। इनके स्वरूप का दर्शन या निर्धारण सहज नहीं। इन्हें वेव कहें या पार्टिकल, इस पर विज्ञान ने बहुत सिर खपाया है। इलेक्ट्रॉन के नकारात्मक विद्युत-आवेश से ही यह समूचा पदार्थमयी संसार अस्तित्वमान है, चीज़ें पृथक आकार लेती हैं, एक वस्तु दूसरी में मिल नहीं जाती क्योंकि विभिन्न वस्तुओं में गहरे-भीतर निहित इलेक्ट्रॉनों के निगेटिव इलेक्ट्रॉनिक चार्ज एक-दूसरे को विकर्षित करते हैं। इलेक्ट्रॉनों की संख्या से उसके एटम का धनात्मक या ऋणात्मक विद्युत-आवेश निर्धारित होता है। इसी से एटम का इलेक्ट्रॉनिक कॉन्फिगरेशन भी तय होता है। पीरियॉडिक टेबल के ब्योरे और वर्गीकरण उभरकर सामने आते हैं।
कार्ल सैगन ने कहा था कि अगर इलेक्ट्रॉन का विद्युत-आवेश बुझ जावे तो यह समूची सृष्टि धूल के कणों-सी बिखर जावेगी! ऋणात्मक आवेश वाले ये इलेक्ट्रॉन न्यूक्लियस के आकर्षण के वशीभूत होकर उसकी परिक्रमा करते हैं (और एक डिफ्यूज़ क्लाउड बनाते हैं), ठीक वैसे ही जैसे गुरुत्वाकर्षण के वशीभूत होकर सौरमण्डल के पिण्ड सूर्य की प्रदक्षिणा करते हैं। यह आकर्षण न हो तो वे अपनी कक्षा से च्युत होकर अनन्त में खो जावें। पदार्थ के स्वरूप में इन इलेक्ट्रॉनों से बड़ा रहस्य कोई और नहीं। वे विद्युत-आवेश, चुम्बकीय आवेग, रसायन, थर्मल कंडक्टिविटी, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फ़ील्ड्स और कदाचित् गुरुवात्कर्षण में भी अपनी एक भूमिका निभाने वाले मूलभूत कण हैं।
1897 में जब जे.जे.थॉमसन और उनकी टीम ने कैथोड-रे ट्यूब एक्सपेरिमेंट के दौरान इलेक्ट्रॉन्स को परख लिया था, उसके बाद से ही चीज़ों के स्वरूप को लेकर हमारी धारणाएँ पूर्ववत नहीं रह सकी हैं। वैसे 1838 में ही ब्रिटिश नेचरल फ़िलॉस्फ़र रिचर्ड लैमिंग यह अनुमान लगा चुके थे कि एटम्स की कैमिकल प्रॉपर्टीज़ को निर्धारित करने वाला कोई ऐसा अविभाज्य-पार्टिकल उसमें होना चाहिए, जिसमें विद्युत-आवेश हो। वे इलेक्ट्रॉन के ही बारे में सोच रहे थे।
इलेक्ट्रॉन में यह विद्युत-आवेश कहाँ से जन्मा? यह उसी कड़ी का प्रश्न है, जिस कड़ी के ये प्रश्न हैं कि देह में प्राण कैसे आया, पिण्डों के बीच गुरुत्वाकर्षण कैसे निर्मित हुआ (“ग्रैविटी एक्स्प्लेन्स द मोशन्स ऑफ़ द प्लैनेट्स, बट इट कैन नॉट एक्सप्लेन हू सेट द प्लैनेट्स इन मोशन!”- आइज़ैक न्यूटन), पदार्थ में चुम्बकीय आवेग कैसे उत्पन्न हुए, ब्रह्माण्ड में प्रसार की गति कहाँ से जन्मी, महाविस्फोट कैसे हुआ, उससे ऊर्जा कैसे व्युतपन्न हुई, महाविस्फोट से पहले ऊर्जा का स्वरूप क्या था, आदि-इत्यादि? बौद्ध ग्रंथ 'प्रज्ञापारमिताहृदयं' का पहला ही कथन है- "बोधिसत्व अवलोकितेश्वर ने बड़ी ऊँचाई से नीचे देखा और पाया कि पाँचों स्कन्ध अपने स्वरूप में भीतर से शून्य थे!"
कहीं यह महायानियों की वही 'एम्प्टीनेस' तो नहीं, जिसकी ओर कार्ल सैगन ने संकेत किया था कि "मैटर इज़ कम्पोज़्ड चीफ़ली ऑफ़ नथिंग!"
किसी न किसी बिंदु पर फ़िज़िक्स और मेटाफ़िज़िक्स का सुमेल तो अवश्यम्भावी होना ही है, जो भी पदार्थ या चेतना के आशयों में गहरे झाँकेगा, किसी मोड़ पर दूसरे से टकराएगा।