इशिता की फेयरवेल पार्टी / पद्मा राय
पर्स अभी कन्धे पर ही अटका था।मेज पर पर्स रखने के पहले ही साहिल के पेट में खलबली मची। कोई खास खबर होगी तभी।
“दीदीऽ दीदीऽऽ बताऊं न ऽऽ,”थोडी देर सांस लेने के लिये रूका फिर मुंह तक आये थूक को घोंटकर अपनी अधूरी बात आगे बढायी-
“बताऊं न दीदी ऽऽ आज न ऽऽआज नऽऽ हमारे स्कूल मे अभी मैजिक शो होने वाला है।”
“अच्छा , मुझे तो मालूम ही नहीं था।”
“मैं बता रहा हूं न दीदी।सुनिये न वहां उस पुरानी वाली लॉबी में होगा। अभी हम सब वहां देखने जाने वालें हैं।”आंख मटका कर सिर हिलाय उसने।
“तब तो बडा मजा आयेगा। मैं भी देखूंगी। हम सब देखेंगे। विनयना और तानिश भी वहां जायेगें।”
तानिश महाराज लगातार अपने तबले के रियाज में इतने मशरूफ थे कि उनके कान तक कोई आवाज नहीं पहुंच पा रही थी।
“लेकिन दीदी सुनिये नऽऽकहीं जादूगर मुझे कुछ कर तो नहीं देगा न ऽऽ?” जादू देखने की इच्छा भी थी और उससे डर भी लग रहा था साहिल को। शायद उसके अजीबोगरीब पहनावे से मन में डर बैठ गया हो।मुझे गलत साबित करते हुये तानिश महाराज ने अपने दांयें हाथ की पूरी की पूरी हथेली उसकी तरफ दिखाते हुये बोले-
“कितना बुद्धू है न दीदी ये?” इसका मतलब सिर्फ तबला ही नहीं बजा रहे थे तानिश जी बल्कि उनके कान भी पूरी तरह मुस्तैद थे। फिर अपना सिर हिलाते हुये तानिश ने कहा -
“अभी बच्चा है न दीदी ये ऽऽ।” साढे पांच वर्ष के साहिल की और इशारा करते हुये चार वर्ष के बुजुर्ग महाशय 'तानिश' ने अपना बडप्पन दर्शाया।अपनी समझदारी की मुहर लगाकर फिर से तबले के रियाज में मस्त हो गया।पूरा कमरा हंसी से सराबोर, उसकी बात सुनकर देर तक उसीमें डूबता उतराता रहा।
मुझे लगा साहिल की बात अब समाप्त हो चुकी है ,अपना पर्स मेज पर रख दूं। रखा ही था कि सामने ठंडे पानी का गिलास हथेली पर टिकाये पृथ्वी हमेशा की तरह वहां मौजूद था।प्यास तो लगी ही थी। गटागट पूरा गिलास खाली कर गयी।फिर चारों ओर नजर दौडायी। मीनू आज भी नहीं दिखायी दी, तबियत गडबड है उसकी। जादूगर के हाथ की सफाई देखने से वह वंचित रह जायेगी। उसके लिये अफसोस हुआ।बार-बार ऐसा मौका कहां मिल पाता है।
उधर रह-रह कर मेरी साडी क़े पल्ले को खींचते हुये साहिल से मुझे उलझन होने लगी।
“क्या बात है साहिल?” झुंझलाहट में मेरी आवाज की पिच कुछ हाई हो गयी थी। नतीजा- साहिल सहम गया। सिर झुकाकर अपनी ऊंगलियों से मेज खुरचने लगा।तुरंत अपनी गलती सुधारने की कोशिश करते हुये मैने प्यार से साहिल के बालों मे अपनी ऊंगलिया फिराते हुये उससे पूछा-
“हां बेटे साहिल , तुम कुछ बताना चाह रहे थे न , अभी तक बताया क्यों नहीं?”
अभी थोडी देर पहले क्या हुआ,भूल भाल कर साहिल ने एक नयी बात और बतायी-
“दीदी ऽऽ आज न ऽऽआज नऽऽ,इशिता आयेगी। उसको हम सब फेयरवेल देंगे।औरऽ ऽ्नऽऽगिफ्टस भी देंगे ,है न अंजना दीदी?”
“तुम सही कह रहे हो साहिल।”अंजना ने उसकी बात से सहमति जतायी।इशिता को अभी कुछ दिन पहले ही नार्मल स्कूल में एडमिशन मिला है। इसीलिये उसे उसके पुराने स्कूल से फेयरवेल दी जायेगी।यह मेरे लिये एक सूचना थी। मैंने कौतूहलवश अंजना और अमित दोनो को बारी बारी देखा। इत्तेफाक से आज दोनो यहां मौजूद हैं।
“हां, सही कह रहा है साहिल। आज इशिता को हम लोगों ने बुलाया है। कल मैं उसके नये स्कूल भी गयी थी। अभी थोडी देर में वो आने वाली है।” बोलते वक्त अमित ने पर्दा हटाकर थोडा बाहर भी झांक लिया।
मैजिक शो साढे दस बजे आरम्भ होगा। टाईम हो गया है। लेकिन तानिश महोदय को ठीक इसी वक्त टॉयलेट जाना है। पृथ्वी को देखते ही नाराज हुआ -
“भइया आप पहले क्यों नहीं आये? मुझे कितनी देर से आपकी याद आ रही थी।”तानिश की बातें हमेशा हंसने का मौका देती हैं। दूसरी क्लासेस के बच्चे अब वहां पहुंचने लगे होंगे। तानिश पांच मिनट के अंदर ही लौट आया। हम सब लॉबी के रास्ते मे ही थे कि इशिता के मम्मी-पापा और बीच में इशिता स्वयं- चले आ रहे थे। अपनी मां का सहारा लेकर आती हुयी इशिता का ध्यान कभी कभी अपने पुराने क्लास रूम के पर्दों पर पहुंच जा रहा था।उसकी चाल आज कुछ ज्यादा तेज थी। कई बार उसे उसकी मम्मी को संभालना पडा।
इशिता अपना फेयरवेल लेने के पहले मैजिक शो देखेगी। एक हाथ में क्वाड्री पैड और लडख़डाते कदमों के साथ इशिता , और उसके पीछे पीछे उसकी मम्मी पापा और अंत मे मैं लॉबी की तरफ बढ रहे थे।
लॉबी करीब करीब भर चुकी थी लेकिन अभी लोग आते जा रहे थे। मैजिक शो शुरू होने वाला है। अभी हम लोग दरवाजे के पास पहुंचे ही थे कि विनयना को पहले इशिता ने देखा और फिर विनयना ने उसे।
“मम्मी , देखो मेरी प्यारी दोस्त विनयना।” कहते हुये वह करीब करीब गिरने ही वाली थी कि संभल गयी। अगर थोडी सी भी गफलत होती तो पता नहीं क्या होता।उसका क्वाड्री पैड विनयना के रोलेटर पर चढ ही गया होता ,वो तो अच्छा हुआ कि पृथ्वी की नजर पड ग़यी। नन्हीं नन्हीं दो सहेलियों के मिलने का निराला अंदाज था।इशिता विनयना के गाल नोच रही थी और विनयना उसे कस कर पकडना चाहती थी लेकिन किसी तरह से उसे बस छू पा रही थी। उसके हाथ इशिता तक पहुंचते और फिर अपना लक्ष्य भूल किसी और दिशा मे चल देते। कभी उसके गाल तो कभी हाथ को छू कर महसूस करती विनयना काफी उत्तेजित हो गयी थी। अपने ऊपर कंट्रोल नहीं कर पा रही थी। ज्यादा दिन नहीं हुयें हैं अभी इशिता को नये स्कूल मे एडमिशन लिये हुये लेकिन इन दोनो के मिलन के इस अनोखे अंदाज को देखकर लग रहा था कि जैसे अरसे बाद इन्होने एक दूसरे को देखा है।दोनो लगातार एक दूसरे को देख रहीं हैं। लगभग साथ साथ एक दूसरे से सटी हुयी लॉबी के अंदर सबसे आगे वाली लाइन में-दोनो जादू देखने बैठ गयीं।
जादूगर किसी पुराने समय के राजा महाराजा की तरह के अंदाज में किनखाब का जमीन को छूता हुआ लम्बा कोट पहने और तुर्रेदार साफा बांधे हुये सबके आकर्षण का केन्द्र बना हुआ था। गिली-गिली गप्पा कहता हुआ एक के बाद दूसरा -नये नये कारनामे दिखाता जा रहा था।उसकी अजीबोगरीब हरकतें बच्चों के पेट में गुदगुदी पैदा कर रहीं थीं। बच्चे -बडे सब हंस रहे थे। जादूगर ने एक बडा मजेदार जादू दिखाया। उसने पीले और लाल रंग के दो दो टुकडे लिये। एक खाली डिब्बे में उसे बंद किया और एक बच्चे को उसे पकडने के लिये कहा और फिर एक दूसरे बच्चे को बुलाकर उसे खोलकर निकालने के लिये कहा। अलग-अलग टुकडे ये उस डिब्बे में से गायब हो गये थे। उसकी जगह ले ली थी एक सिले सिलाये पीले रंग के कच्छे ने जिस पर लाल रंग की गोट लगी हुयी थी। लॉबी में मौजूद सभी लोगों के हंसते हंसते पेट में हंसते हंसते बल पडने लगे। ऊपर से बोला-
“देखिये आप लोग, जनाब देखिये अब भला रूपा अण्डरवियर खरीदने की किसी को जरूरत नहीं है। जब भी किसी को इसकी आवश्यकता हो दो टुकडे लाकर इस डिब्बे वाले बच्चे को दे दीजियेगा -एक मिनट भी नहीं लगेगा और आपका अण्डरवियर तैयार हो जायेगा।”
पूरी लॉबी हंसी के फव्वारों में डूबता उतराता रहा देर तक। काफी देर तक बच्चे पेट पकड क़र हंसते रहे। सब कुछ हिलोरे लेता रहा। मैजिक शो साढे ग्यारह बजे तक चलता रहा। बीच-बीच में लोगों को हंसी के दौरे भी पडते रहे। साढे ग्यारह बजा और मैजिक शो खतम हुआ।
अब इशिता की फेयर वेल पार्टी होगी। आज इशिता को सबसे ज्यादा मान दिया जा रहा है। अब वह यहां नहीं आयेगी। उसे तरह तरह के गिफ्ट दिये जा रहें हैं। विनयना अपनी मम्मी से कह कर एक कार्ड लायी है उसे देने के लिये। पृथ्वी दो फ्रूटी ले आया- उसकी तरफ से इशिता को गिफ्ट है।इशिता को बहुत अच्छा लगता है। दीवाल के पास रखी पीले हत्थे वाली कुर्सी पर बैठी उसकी ममा यह दृश्य देखकर अभिभूत हैं। उनकी आंखें बार बार भीग रहीं हैं। यहां इशिता को कोई परेशानी नहीं हैं। सब उसे इतना प्यार करतें हैं। इस माहौल का हिस्सा है वह। किन्तु यहां से उसे जाना है।
इशिता की मम्मी अमित से कह रहीं थीं -
“यहां इशिता को बहुत अच्छा लगता है परन्तु इस स्कूल की अपनी कुछ लिमिटेशन है।आगे के बारे में हम सोचते थे और परेशान होते थे। किन्तु आप लोगों की कोशिशों की वजह से मेरी बेटी नार्मल स्कूल में एडमिशन पा गयी है। वहां वह कितना कुछ नया सीख सकती है इसलिये हम बहुत खुश हुये थे। किन्तु नये स्कूल में उससे बच्चे जिज्ञासा वश अजीब अजीब से प्रश्न पूछतें हैं। उसे समझ में नहीं आता कि उन प्रश्नों को क्या और कैसे उत्तर दे। आकर हमसे पूछती है। मैं क्या करूं? कई बार तो लगने लगता है कि नार्मल स्कूल में एडमिशन कराकर शायद हमने गलती कर दी है।”उनकी बातों से परेशानी साफ झलक रही थी।
अमित ने बाकायदा उन्हें एक लिस्ट बनाकर दी जिसमें कुछ प्रश्न- जिनकी नार्मल स्कूल के बच्चों के द्वारा पूछने की संभावना हो सकती थी और उनके उत्तर जो इशिता को देना था -लिखे थे। इशिता की ममा ने तय किया कि इन्हें जल्दी से जल्दी अपनी बेटी को रटा देंगीं।
फेयरवेल पार्टी चल रही थी। फ्रूटी पीते हुये इशिता ने विनयना से पूछा-
“विनयना ,तू भी आयेगी न मेरे स्कूल में पढने ?”
पहले मुंह मे इकट्ठा हुये थूक को उसने घोंटा और तब अपना सिर कुर्सी पर टिकाकर विनयना ने जवाब दिया -स्पीच थैरेपी की क्लास में दीदी ने इसी तरह से बोलने के लिये कहा है -
“हां।” सिर अभी भी कुर्सी पर टिका है विनयना का।
तानिश कहां चूकने वाला है। खाने की प्लेट पर झुके झुके ही उसने कहा-
“मैंऽऽ मैं भी तो जाऊंगा और साहिल भी।”
“हां ये दोनो तो चले ही जायेंगे एक आध साल में। किन्तु विनयना , जेरिन और मीनू।” आगे का वाक्य अधूरा रह गया। बात पूरी करने की जरूरत भी नहीं थी। सब जानते थे। किसी ने कुछ नहीं कहा। माहौल भारी हो गया। फेयरवेल पार्टी जारी थी। मेरा लौटने का वक्त हो चला था। मैंने अपना पर्स उठाया और विनयना और जेरिन को देखते हुये खडी हो गयी। पर्दा उठाकर किसी से बिना कुछ कहे धीरे धीरे कमरे से बाहर निकल गयी। चलते चलते कानो ने सुना- इशिता अपनी दोस्त को अपने नये स्कूल में पढने के लिये एक बार फिर से निमंत्रित कर रही थी। और विनयना शायद मान भी गयी थी किन्तु मैं साफ साफ उसका जवाब सुन नहीं पायी। तब तक थोडा दूर निकल चुकी थी।