इश्क का साफ्टवेयर / गंगा प्रसाद शर्मा 'गुणशेखर'
हमारी दुनिया जितनी तेज भागती है अपराध और प्रेम की दुनिया उससे चौगुना तेज भागती है। कुछ दिनों पहले पुलिस ने यह खुलासा किया था कि ड्रग मफियाओं ने अपने धंधे को आसान करने के लिए मारीजुआना,अफ़ीम, चरस,गाँजा ,भाँग,हेरोइन या स्मैक को हीरोइनों के नामों पर बेचना शुरू कर दिया है।
इधर इश्क के व्यापारियों ने भी इनके इस आविष्कार का भरपूर लाभ उठाना शुरू कर दिया है। इनमें सबसे आगे है दिल्ली का एक आई. ए. एस. अधिकारी। शराब और शबाब का शौकीन यह अधिकारी अपने से ऊपर के शासकों -प्रशासकों की कितनी खातिरदारी करता था , यह अभी जाँच का विषय है। इस जाँच से ही पता चल सकेगा कि इसका साफ्टवेयर इनफ़ोसिस तैयार करेगी या कोई आई. आई. एम। लेकिन इतना तो पक्का ही है कि इसका साहित्य बहुत ही सस्ता और आसान होगा। सीडियों की तरह सड़क पर खुलेआम बिकेगा।
बताया यह जा रहा है कि दिल्ली का शबाब माफ़िया लड़कियों की व्यवस्था करने -कराने में बहुत माहिर था। यह दलालों का सरदार ही नहीं काफ़ी असरदार भी था। यह अपने शिकार यानी शबाब को साफ्टवेयर कहता था।वहजितनी जल्दी पकड़ा गया हैउतनी ही जलदी छूट भी जाएगा। ये लोग जिनकी सेवाओं में रहते हैं वे भरसक इसी कोशिश में रहते हैं कि उनके ये गुर्गे जल्दी से जल्दी छूट के घर आ जाएँ और अपने आकाओं की सेवा में लग जाएं वैसे ऐसे अधिकारी शासकों के लिए तो जिन्न की तरह उपयोगी होते ही हैं।
रसूख वाले होने के कारण ये शासक-प्रशासक आगे चलकर इसी रसूख के बल पर या तो छूट जाते हैं या फ़िर हलकी-फुलकी सज़ा काट के ससुराल से घर वापस आ जाते हैं।
कुछ दिनों के बाद यह साफ्टवेयर बाज़ार में पक्का आने वाला है। उस समय लड़के एक-दूसरे से पूछेंगे कि अबे तेरा साफ्टवेयर कहाँ है? दूसरा दाँत निपोर के या तो यह बोलेगा कि अभी सब्सक्राइब ही नहीं किया है या फ़िर यह कि कुछ दिनों के लिए अपना ही दे-दे तो मेरा भी काम चल जाएगा।
इंसान को हमने मशीन बहुत पहले ही बना दिया था अब उसे उसी तरह इस्तेमाल करना-कराना भी सीख गए हैं। वह दिन भी बहुत दूर नहीं जब हममें से बहुत सारे अपने-अपने साफ्टवेयर मार्केट मे लांच ही नहीं बल्कि उनकी मार्केटिंग भी करेंगे। नित नए-नए साफ्टवेयर शेयरों को चढ़ाएँगे-गिराएँगे। खैर!अभी क्या कम गुल खिला रहे हैं?
भला हो उस आई. ए. एस अफ़सर का जिसने इश्क के साफ्टवेयर का यह नया वर्ज़न निकाला है। मैं भी आई. ए. एस अकादमी में बतौर सहायक प्रोफ़ेसर काम कर चुका हूं पर इतना होनहार प्रशासक मेरी नज़रों से कभी नहीं गुजरा कि जिसने माफ़ियाओं के कान कतर कर रख दिए हों।
इसके विरुद्ध पत्रकारों को जिस स्तर का अभियान छेड़ना चाहिए था वैसा छेड़ा नहीं गया है। जब तरुणपाल जैसे पत्रकार इसे महत्त्व नहीं देते तो दूसरों की क्या कहें?
'हमने कहीं से ईंट कहीं से रोड़ा इकट्ठा कर लेख की इमारत बनाने और नितंब और वक्षस्थल वाली पत्रकारिता औरों के लिए ही छोड़े रखी. क्योंकि हमारे पास पहले से ही इतना कुछ करने को हमेशा ही रहा'
हम अपनी पत्रकारिता को जब भी देखते हैं वह भी बहुत ईमानदार नहीं दिखाई देती। वैसे पत्रकारिता भी अन्यों की तरह टिकाऊ कम बिकाऊ अधिक होती जा रही है। यदि कोई पत्रकार कोई गुल खिलाता है उस खबर को उस पत्रकार का जानी दुश्मन भी नहीं छापता। तरुण तेजपाल जैसा मिशनरी पत्रकार भी नहीं। पत्रकारों को भी अपने मंथन की उसी तरह ज़रूरत है जैसे आई. ए. एस लाबी ने किया है। वे अपने भीतर बैठे सबसे भ्रष्ट की पहचान ही नहीं करते उसका नाम भी जगजाहिर करते हैं। पत्रकारिता जगत को ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों, नेताओं और पत्रकारों के भी विरुद्ध अभियान छेड़ना चाहिए जिससे कि समाज भ्रष्टाचार के प्रदूषण से मुक्त वतावरण में साँस ले सके। सरकार और न्याय पालिका जब कुछ करेगी तब करेगी पत्रकारिता को तो तुरंत मुहिम छेड़ देनी चाहिए और चाहिए तो यह भी कि ऐसे साफ़्टवेयर निर्माताओं का हार्ड वेयर समाज ऐसा बिगाड़े कि इनकी स्क्रीन पर कुछ भी पढ़ा न जा सके।
लोकतंत्र के जिन चार खंभों पर हमारे समाज का भवन खड़ा है सब के सबों में पानी भर रहा है।इसे रोकने के लिए भी तरुणों को ही आगे आना होगा तब जाके कहीं बेहद नाज़ुक साफ़्ट वेयर इन दरिंदे हार्डवेयरों के वयरसों से बचाया जा सकेगा । नई पीढ़ी के कर्णधार इस वर्ज़न से बहुत खुश हैं। उन्हें अपना भविष्य बहुत-बहुत रंगीन नज़र आ रहा है। उनका यह मानना है कि जैसे आज 'गे' आंदोलन जोर-शोर से चल रहे हैं ऐसे ही इनका भी एक-आध आंदोलन जल्दी से जल्दी चलना ही चहिए अन्यथा कहीं देर न हो जाय और अमेरिका या ब्रिटेन वाले अपने
नए-नए दर्ज़नों वर्ज़नों से दुनिया का बाज़ार न पाट दें। यदि अमेरिकी साम्राज्यवाद से बचना है तो आज नहीं तो कल इश्क के अपने साफ्टवेयर लांच करने ही पड़ेंगे।
इश्क का साम्यवाद भी यही कहता है कि सब अपने-अपने साफ्टवेयर साझा करें।