इश्क पर जोर नहीं / प्रमोद यादव

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‘देखोजी....अब आप ये पार्टी छोड़ दो जिसमें चौबीसों घंटे पगलाए रहते हो...’ रात को घर में घुसा नहीं कि पत्नी की तुगलकी फरमान ने चौंका दिया.

‘क्या हुआ भागवान? अचानक तुम्हें ये क्या दौरा पड़ा? सुबह तक तो ठीक थी तुम...’ मैंने शांत भाव से कुरता उतारते कहा.

‘सुबह का भूला शाम को घर लौट आये तो उसे भूला नहीं कहते जी...’ पत्नी बोली.

‘क्या सुबह का भूला और कैसी शाम? साफ़-साफ़ कहो...क्या बात है? ‘

‘अजी मेरा मतलब है कि उस”राजाजी” की तरह तुम्हारा भी अगर”किसी” से चक्कर हो तो बताये देती हूँ...छोड़ दो उसे......मैं अभी के अभी आपको माफ़ किये देती हूँ...’ उसने कहा.

‘कौन राजा? किसका चक्कर? किसको छोड़ दूँ? खुलकर बताओ...’ मैंने किंचित आवेश में कहा...

‘अजीब आदमी हो...दुनिया जहान की ख़बरें मुझे सुनाते हो...और इतनी बड़ी और बुरी खबर से बेखबर हो...ऐसा तो हो ही नहीं सकता...आपके पार्टी के वरिष्ठ और गरिष्ठ नेता...( और अब पतित भी ) बुढ़ापे में अपने से आधी उम्र की युवती से इश्क फरमा रहे...”गाता रहे मेरा दिल” गा रहे...टी.वी.न्यूज में”ब्रेकिंग न्यूज” बन छा रहे...लोगों को बता रहे-” प्यार किया तो डरना क्या?” खुले आम कह रहे-” खुल्लम-खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों”....और आप....’

‘अच्छा....अच्छा....तुम हमारे”राजाजी” की बात कर रही हो...राजा-महाराजाओं की तो बात ही निराली....जो पसंद आया, उठा लिए... यह उनका निजी मामला है यार...इस पर हमें टिपण्णी करने का कोई हक़ नहीं...इसे राजाजी जाने या फिर उनकी नई वाली”रानीजी”...पर भला इससे तुम्हें क्या लेना-देना? मैंने उलटे सवाल कर दिया.

‘अरे क्यों लेना-देना नहीं? समाज के प्रति उनकी कोई नैतिक जिम्मेदारी हो न हो, मेरी तो है... देश का एक बड़ा और बुजुर्ग नेता”बत्तमीज दिल-बत्तमीज दिल” करते बेशर्मी से बुढापे में इश्क लड़ाए तो समाज पर क्या असर होगा? देश के नौजवानों पर क्या असर होगा?...उनके लिए भी तो कोई काम छोड़े? दस साल सत्ता में रहते भी बेचारों को काम-धंधा तो दिलाने से रहे...बेरोजगारों की बड़ी फौज तैयार कर दी....एक इसी काम के सहारे तो बेचारे आस लिए सांस ले रहे...अब इसे भी उनसे छीन लेंगे तो गरीब-परवर करेंगे क्या? अपने राजाजी से कहो- नौजवानों पर मेहरबानी करे...उनका”टाईम-पास” न छीने... उनके सपने न चुराएं....नहीं तो उनकी बद-दुआ जड़ तक लगेगी उनको...’

‘तुम दुनिया-जहान की बातें छोडो यार...जब जिसको जैसा वक्त मिलता है...वैसा” इश्क” फरमाता है...कोई जवानी के पहले अंजाम देता है तो कोई भरी जवानी में इसे आजमाता है... (इस रोग को) गले लगाता है...और जिन्हें इन दोनों अवस्थाओं में यह मयस्सर नहीं वे बुढापे में ट्राई मारते हैं...और इस उम्र में सभी कोशिश करते हैं कि पब्लिक से बचा के करें ( डरते हैं कि”मुश्किल से हासिल” चीज कहीं छिन न जाए )...पर कहते हैं न कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते...’ मैंने ज्ञान बघारा.

‘अरे वाह...आप पहले तो ऐसे न थे...क्या हो गया आपको? बुढ़ापे में वह प्रेम की पींगे बढ़ा रहा... आवारागर्दी कर रहा....और आप उनका समर्थन कर रहे?’ वह गुस्से से बोली.

‘देखो यार...हम राजनितिक लोगों के जीवन में”समर्थन” का बड़ा महत्त्व है......आज सत्ता में हैं तो केवल अन्य पार्टियों के समर्थन से...दो-चार पार्टी वापस ले ले तो अभी के अभी हम अर्श से फर्श पर आ जाएँ...हमें तो देशवासियों की हर बात का समर्थन करना होता है... बाध्य हैं हम....लोग कहते है- गरीबी बढ़ी है...हम हामी भरते हैं- हाँ...जरुर बढ़ी है ( अब गरीब नहीं होंगे तो वोट कौन देगा?...यही तो सत्ता के प्रमुख किरदार हैं...परदे के पीछे वाला...) लोग कहते हैं-मंहगाई बढ़ी है...हम समर्थन करते हैं- बढ़ी है ( इसे कंट्रोल करेंगे तो उन्हें कौन कंट्रोल करेगा जो चुनाव में लाखों-करोड़ों का चंदा देते हैं...) इसलिए बस...सबका समर्थन करते जाते हैं और वादा करते हैं कि वोट दो...आगे ये सब नहीं बढ़ने देंगे... अब भला कोई आज तक किसी के”ग्रोथ” को रोक पाया है?बच्चा बढ़ता है...जवान होता है...जवान बढ़ता है...वृद्ध होता है...फिर आखिर में उसके कदम श्मशान की ओर खुद-बा-खुद बढ़ जाता है...किसी भी अवस्था को आज तक कोई बढ़ने से कभी रोक पाया? ‘मैंने एक सांस में भाषण के लहजे में बात कही.

‘आपसे तो बात करना भी फिजूल....कहाँ की बातें कहाँ ले जाते हो...खुद तो विषयांतर होते हो...मुझे भी उलझा देते हो....मैं जिस समर्थन की बात कर रही...उसे आप अच्छी तरह समझ रहे...आपको तो उनकी हरकतों का विरोध करना चाहिए...’ पत्नी ने कहा.

‘अरे पार्टी के वे वरिष्ठ नेता हैं...उनकी पार्टी का होकर उनका समर्थन मैं न करू तो क्या विरोधी पार्टी करेंगे?’

‘विरोधी तो अभी उनकी टांग ही खींच रहे...आगे न जाने और क्या-क्या खींचे...पर आप इनसे बाज आयें...और अविलम्ब ये पार्टी छोड़ दें...’ पत्नी ने आदेश जैसे स्वर में फरमाया.

‘ओफ्फो...क्या हो गया तुम्हें? जानती हो न... हमारा कई शहरों में बिजिनेस है...इसे बढाने और बचाए रखने के लिए राजनीति में होना जरुरी है....ले-देकर अभी-अभी पार्टी में मेरे”पर” निकले हैं...पार्टी में मेरी पूछ-परख बढ़ी है...चुनाव के बाद किसी कारपोरेशन के चेयरमैन बनने के आसार बन रहे...और तुम कहती हो-पार्टी छोड़ दूँ? वह भी एक छोटी सी बात को लेकर? ‘मैं गुस्साया.

‘ये छोटी सी बात नहीं है जी...यह सेवेन्टी एम.एम.वाली बड़ी बदनामी वाली बात है...आज राजाजी ऐसे कारनामें कर रहा...कल को गर आपने ऐसा कुछ किया तो मैं तो फांसी ही लगा लूंगी....’ वह अशांत सी हो गयी.

‘अरे...फांसी लगाए तुम्हारे दुश्मन...’ मैंने उसे सहज करते कहा- ‘क्यों ऐसे घबरा रही हो? हमारी पार्टी तो ऐसे कारनामों से भरे पड़े हैं...किस-किस का नाम गिनाऊँ? इस लिहाज से तो मुझे ये पार्टी ही नहीं ज्वायन करनी थी... और पिछली दफा जब एन.डी.का डी.एन.ए. टेस्ट हुआ तब तुमने क्यों विरोध नहीं जताया?...क्यों नहीं कहा कि पार्टी छोड़ दो....’

‘वो क्या हैं जी कि दरअसल तब नहीं जानती थी कि डी.एन.ए. क्या होता है...’

‘अच्छा छोडो...इतना तो तुम जानती ही हो न कि प्यार कोई करता नहीं... हो जाता है...इसमें उमर का भी कोई बंधन नहीं होता...नेता तो नेता...कई पुराने प्रधानमन्त्री तक इससे नहीं बच पाए....ऐसे प्यार के चर्चे तो विदेशों में भी विख्यात रहे- इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकार्णों से लेकर बिल klingtanक्लिंगटन तक...फिर भला ये राजाजी क्या बला है?’

‘तो इस बला को आप छोड़ रहे न? ये पार्टी छोड़ रहे न? ‘उसने सवाल दागा.

‘अरे यार...तुम्हारे लिए तो जहाँ तक छोड़ दें हम......पार्टी क्या चीज है? लेकिन समझ नहीं आता कि एकाएक तुम्हें ऐसा क्यों शक हुआ कि मैं भी राजाजी जैसे किसी ऐसे (हसीन)काण्ड को अंजाम दे सकता हूँ...मैंने तो भरी जवानी में तुमसे प्यार कर यह”कोटा” पूरा किया...इस गुनाह का दंड भी भोगा....तुमसे शादी करके...क्या अभी भी मुझमें कोई आकर्षण शेष है कि कोई मुझे घास डाले? ‘

‘अरे कैसी बात करते हो...आप तो मेरे अमिताभ हैं...और अमिताभ के आकर्षण को आप जानते ही हैं...क्या बच्ची...क्या युवती...क्या बूढी...सब मरे जाते हैं उन पर...’

‘चलो...तारीफ करने का शुक्रिया...पर अमिताभ तो निहायत ही शरीफ आदमी हैं... उन्होंने तो कोई गुल नहीं खिलाया अब तक...फिर मुझ पर शक क्यों? ‘मैंने जिज्ञासा प्रगट की.

‘वो इसलिए कि मैं जया नहीं...जया होती तो चुपचाप घर सजाते घर तक ही सिमित रहती...पर मैं तो आपकी प्रेयसी-कम-पत्नी हूँ...मेरा धर्म है- पति-प्रेमी पर हर पल शक करना...मेरी माँ ने शादी के पहले कहा था-” पति- एक ऐसा बन्दर जो कभी भी गुलाटी मार सकता है...अतः बीच-बीच में उसे केले देकर ( वार्निंग देकर,समझा–बुझाकर ) प्रेम-पूर्वक हैंडील करते रहना चाहिए...” इसलिए...’

‘अच्छा...तो अब समझा... तुम मुझे केले दे रही हो... युसूफ साहब का एक पुराना पिक्चर था न –”दिल दिया ,दर्द लिया” उसमें उसने एक गाना गाया था- दिलरुबा मैंने तेरे प्यार में क्या-क्या न किया- दिल दिया ,दर्द लिया. कहीं इस फिल्म को.तुम्हारी मम्मी बनाती तो इस फिल्म का नाम होता “ दिल दिया,केला लिया” और गाना भी कुछ इसी तरह का होता...’ मैंने मजाक किया तो वह गुस्से से पैर पटकते हमेशा की तरह किचन की ओर भाग गई.

सोच रहा हूँ...अब दिल्ली वाली सेक्रेटरी दिलजीत को लम्बी छुट्टी पर भेज दूँ... कहीं किसी दिन वो अमिताभ की ( मेरी) इमेज न ख़राब कर दे...”ब्रेकिंग न्यूज” से मुझे भी काफी डर लगता है...