इश्क बंदिश इकरारे इश्क, सलामे इश्क / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 30 दिसम्बर 2020
ऋचा चड्ढा फिल्मों में विगत 8 वर्षों से अभिनय कर रही हैं। उनकी पहली फिल्म ‘ओए लकी लकी ओए’ पसंद की गई थी। 2015 में प्रदर्शित ‘मसान’ में छोटी भूमिका में वे सराही गई थीं। उनकी ताजा फिल्म ‘शकीला’ प्रदर्शित होने जा रही है। ज्ञातव्य है कि ‘शकीला’ ने दक्षिण भारत की सभी भाषाओं में बनी फिल्मों में अभिनय किया। मीडिया में उनकी छवि लगभग विद्या बालन अभिनीत ‘द डर्टी पिक्चर’ से कुछ हद तक मिलती है। अंतर इतना है कि ‘द डर्टी पिक्चर’ की नायिका भद्र सामाजिकता के सारे मुखौटे नोंच फेंकती है। ‘शकीला’ ने व्यंग्य से मुस्कुराना नहीं छोड़ा और उनकी मुस्कान को रजामंदी मान लिया गया। शोषण के खिलाफ उनकी मुस्कान रजामंदी नहीं वरन असहायता अभिव्यक्त करती है। उनकी इस मुस्कान को मोनालिसा पेंटिंग में प्रदर्शित मुस्कान का एक तरह से लघु प्रयास ही मान सकते हैं। ऋचा चड्ढा के चेहरे पर शकीला का अभिनय करते समय मासूमियत अभिव्यक्त हुई है।
महानगर की एक कामकाजी महिला सारा दिन दफ्तर में काम करने वाले पुरुषों की कामुक नजरें झेलती रहती है। फिल्म ‘जब वी मेट’ में नायिका का संवाद है कि अकेली सुंदर स्त्री उस खजाने की तरह है, जिसे लोग लूटना चाहते हैं। दफ्तर की कामकाजी महिला घर लौटते समय लोकल ट्रेन में पर पुरुषों के चाहे, अनचाहे धक्के खाती है। रात में पति पूछता है कि वह पति के किसी भी स्पर्श पर कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं दे रही। अब स्त्री अपने पति को कैसे बताए कि सारा दिन नजर के नश्तर और पुरुष लोलुपता ने उसकी त्वचा को एनेस्थेसाइज कर दिया है? इस नीम बेहोशी ने उसकी आत्मा तक को स्पंदनहीन बना दिया है। यह सब स्पंदनहीन निर्भया कानून के दायरे के बाहर किए गए अपराध हैं। सारा दंड विधान ही दंश विहीन हो जाता है।
ऋचा चड्ढा और सह कलाकार अली फैजल एक-दूसरे के मित्र रहे परंतु ‘चैपलिन’ नामक फिल्म देखते समय उन्होंने अपने परस्पर प्रेम का इकरार किया। ग़ौरतलब है कि फिल्मों में चैपलिन द्वारा पहनी पोशाक भी आम आदमी के कष्ट को अभिव्यक्त करती है। देह पर धारण जैकेट तंग है। गोया कि आम आदमी अपनी मामूली आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाता। उसकी ढीली पतलून में उसके पैर उलझ जाते हैं। जूते के सोल में सुराख है।
चार्ली चैपलिन की एक फिल्म में वह लाख जतन करके अंधी फूल बेचने वाली युवती की आंख के ऑपरेशन के लिए पैसे जुटाता है। सफल ऑपरेशन के बाद युवती अपने पर उपकार करने वाले व्यक्ति को पहचान नहीं पाती।
चार्ली चैपलिन की फिल्में हमें अपने आपसे मिलने की जुगाड़ उत्पन्न करती हैं। वे फिल्में नहीं आईने हैं। इन आईनों में सूरत के साथ सीरत भी दिखाई पड़ती है। आईने महिला के पर्स में रखने लायक छोटे भी होते हैं और आदम कद भी होते हैं। आईनों से अधिक महत्व नजर का है। व्यवस्थाएं मोतियाबिंद की तरह नजर में दोष उत्पन्न कर रही हैं। ऋचा चड्ढा और अली फजल उम्र के 30 वर्ष पार कर चुके हैं वे लव जिहाद अष्टपद की पकड़ से बाहर हैं। व्यवस्था क्या जाने कि मलिक मोहम्मद जायसी लिख चुके हैं, ‘रीत प्रीत की अटपटी, जाने परे न सूल, छाती पै पर्बत फिरै, नैनन फिरे ना फूल।’