ईर्ष्यालु बहनों की कहानी / अलिफ लैला

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पुराने जमाने में फारस में खुसरो शाह नामी शहजादा था। वह रातों को अक्सर भेस बदल कर सिर्फ एक सेवक को अपने साथ रख कर नगर की सैर किया करता था और संसार की विचित्र बातें देख कर अपना ज्ञान बढ़ाया करता था। जब अपने वृद्ध पिता की मृत्यु होने पर वह राजगद्दी का मालिक हुआ तो उसने अपना नाम कैखुसरो रखा। किंतु उसने भेस बदल कर नगर का घूमना तब भी जारी रखा। हाँ, उसके साथ सेवक के बजाय मंत्री होता था।

एक दिन इसी तरह नगर भ्रमण करते हुए वह एक गली में जा पड़ा। वहाँ एक मकान के अंदर से स्त्रियों की कुछ ऐसी बातचीत सुनाई दी कि वह कान लगा कर उस दरवाजे पर खड़ा हो गया। दरवाजे की दरारों से झाँक कर देखा तो उसे एक दालान में तीन नवयुवतियाँ बातें करती दिखाई दीं। यह तीनों बहनें थीं। बड़ी बहन ने कहा, मुझे अच्छी रोटियाँ खाने का शौक हैं। अगर मेरा विवाह शाही नानबाई से हो तो मजा आ जाए। मँझली बहन बोली, मैं तो तरह-तरह के खानों की शौकीन हूँ। मैं चाहती हूँ कि मेरा विवाह बादशाह के बावर्ची से हो। छोटी बहन चुप रही। उसकी बहनों ने बहुत पूछा तो उसने कहा, मेरा काम नौकर-चाकरों से नहीं चलेगा, मैं तो स्वयं बादशाह से शादी करना चाहती हूँ। इतना ही नहीं, मैं चाहती हूँ कि बादशाह से मेरे एक बेटा पैदा हो जिसके एक ओर के बाल सोने के हो, दूसरी ओर के चाँदी के। वह बालक जब रोए तो उसकी आँखों से आँसुओं की जगह मोती गिरें और जब वह हँसे तो उसके होंठों में कलियाँ खिली हुई मालूम हों। उसकी बड़ी बहन यह सुन कर हँसने लगी और बोली कि तू हमेशा पागलों जैसी बात करती है।

बादशाह को इस वार्तालाप से बड़ा कौतूहल हुआ। उसने मंत्री को आज्ञा दी कि इस घर को अच्छी तरह पहचान रखो और कल सुबह इन तीनों बहनों को मेरे सामने हाजिर करो। मंत्री ने दूसरे दिन उसकी आज्ञा का पालन किया और तीनों बहनों को बादशाह के समक्ष ला कर पेश कर दिया। बादशाह ने देखा कि छोटी बहन अपनी अन्य बहनों से कहीं अधिक सुंदर है। वह निगाहों से बुद्धिमान भी लगी। बादशाह उसे देख कर मुग्ध हो गया।

फिर बादशाह ने कहा, तुम लोग कल रात को अपने दालान में बैठी क्या बातें कर रही थीं। ठीक-ठीक वही बताना जो तुमने कहा था। खबरदार, एक शब्द का भी अंतर न पड़े। याद रखो कि तुम्हारी बातें कल रात को मैंने खुद अपने कानों से सुनी हैं। गलत बात कहोगी तो मुझे मालूम हो जाएगा। यह सुन कर तीनों बहनें सिर झुकाए बैठी रहीं, लज्जा और भय के कारण उनकी जबान बंद हो गई। पूछने पर उन्होंने कहा कि हमें कुछ याद नहीं कि हमने क्या कहा था।

बादशाह ने उन्हें तसल्ली देते हुए कहा, तुम लोग भूली कुछ भी नहीं हो। निडर हो कर बताओ कि कल रात आपस में क्या बातें कर रही थीं। तुम कोई बुरी बात नहीं कर रही थीं। मैं केवल अपने सामने एक बार फिर तुम्हारी बातें सुनना चाहता हूँ। बादशाह का काम प्रजा की आवश्यकताएँ पूरी करना होता है। मैं भी जहाँ तक हो सकेगा तुम्हारी इच्छाएँ पूरी करूँगा। हाँ, यह ख्याल रहे कि तुम लोग वही कहो जो तुमने कल रात को कहा था। बयान बदला न जाए।

मजबूर हो कर तीनों ने एक-एक करके बताया कि पिछली रात क्या कह रही थीं। बादशाह सुन कर मुस्कुरा उठा। उसने अपने नानबाई और बावर्ची को बुलाया और नानबाई को बड़ी तथा बावर्ची को मँझली का हाथ पकड़ा दिया और कहा कि इन लोगों को बढ़िया रोटियाँ और सालन खिलाते रहना। उसने मंत्री को आदेश दिया कि इसी समय काजी और गवाहों को बुला कर इनका निकाह पढ़वा दिया जाए। छोटी के लिए कहा, जैसी इसकी इच्छा थी, इसके साथ मैं विवाह करूँगा। यह विवाह पूरी शाही शान-शौकत से होगा, उसी तरह जैसे मैं किसी राजकुमारी को ब्याह रहा हूँ। मेरी शादी की इसी समय से तैयारियाँ शुरू कर दी जाएँ। यह कहने के बाद वह उठ कर दरबार को चला गया।

बड़ी और मँझली बहन की शादी उसी दिन क्रमशः नानबाई और बावर्ची के साथ हो गई। छोटी का विवाह पूरी धूमधाम से बादशाह के साथ कुछ दिन बाद हुआ और उसे शाही जनानखाने में पहुँचा दिया गया। दोनों बहनों को छोटी के भाग्य से बड़ी ईर्ष्या हुई। वे सोचतीं और आपस में कहा करतीं कि छोटी को तो एक बात मुँह से निकालने पर ही राजपाट मिल गया और हम लोग उसकी एक तरह से नौकरानियाँ हो गईं। एक दिन बड़ी ने मँझली से कहा, यह छोटी ऐसी कौन-सी हूर परी है कि इसे बादशाह ने ब्याह लिया। मुझे तो इस बात से बड़ा बुरा लग रहा है। मँझली बोली, मुझे भी बड़ा बुरा लग रहा है। आखिर बादशाह ने उसमें क्या देखा कि उसे मलिका बना लिया। कही हुई बातों का क्या है, आदमी हर तरह की बातें करता है। मेरी समझ में तो छोटी नहीं बल्कि तुम बादशाह के योग्य थीं। बड़ी ने कहा, मुझे भी यह देख कर आश्चर्य है कि बादशाह की क्या आँखें फूट गई थीं जो उसने उस चुहिया को पसंद किया, उससे तो तुम हजार दरजे अच्छी थीं।

फिर दोनों ने सलाह की कि इस तरह कुढ़ने और एक-दूसरे को तसल्ली देने से काम नहीं चलेगा। किसी तरह उसे खत्म किया जाए या बादशाह की निगाहों से गिराया जाए तभी मन को शांति मिलेगी। फिर भी उनकी समझ में न आता कि इसके लिए क्या उपाय किया जा सकता है। यद्यपि यह ठीक बात थी कि जब वे दोनों छोटी बहन से मिलने जातीं तो वह उनकी हैसियत का ख्याल न करती बल्कि बहनों की तरह ही अपनेपन से उनकी अभ्यर्थना किया करती थी। फिर भी उनकी हैसियत उससे नीची थी ही। सभी लोग जानते थे कि वे दोनों नौकरों की स्त्रियाँ हैं और उनकी बहन रानी है। बादशाह भी अपने सेवकों की पत्नियों को क्यों खातिर में लाता।

कुछ महीनों बाद रानी को गर्भ रहा। यह सुन कर बादशाह को बड़ी खुशी हुई। अब उन दोनों ने अपनी छोटी बहन से कहा, हमें इस बात से इतनी प्रसन्नता है कि बयान नहीं कर सकते। हम दोनों की इच्छा है कि तुम्हारी प्रसूति और उसके चालीस दिन बाद तक तुम्हारी देखभाल पूरी तरह हमारे ही सुपुर्द हो। मलिका ने कहा, इससे अच्छा क्या हो सकता है। तुम दोनों मेरी माँ जाई हो, तुम से बढ़ कर कौन देखभाल करेगा। तुम अपने पतियों के द्वारा यह आवेदन बादशाह के सामने करो। आशा है वे इसे स्वीकार कर लेंगे। उन्होंने अपने-अपने पतियों के द्वारा बादशाह से यह आवेदन किया तो उसने कहा कि मलिका से पूछ कर ही यह अनुमति दूँगा। उसने अपनी मलिका से पूछा तो वह खुशी से तैयार हो गई क्योंकि उसने तो पहले ही बहनों की बात मान ली थी। बादशाह ने कहा, मेरी समझ में भी यही बात ठीक रहेगी। वे कुछ भी हों, हैं तो तुम्हारी बहनें ही। गैर आदमियों से तो अधिक अच्छी तरह तुम्हारी देखभाल करेंगी। इस बातचीत के बाद बादशाह ने दोनों बहनों को प्रसूति के समय मलिका की देखभाल करने की अनुमति दे दी। वे दोनों महल के अंदर रहने लगीं।

अब उन्हें अपनी दुष्टता को कार्यान्वित करने का अवसर मिल गया। जब मलिका की प्रसूति का समय आया तो उन्होंने समस्त दासियों को वहाँ से हटा दिया। मलिका ने एक अत्यंत सुंदर पुत्र को जन्म दिया। इससे उन दोनों की डाह और बढ़ी। उन्होंने चुपचाप उस बच्चे को महल के बाहर पहुँचा दिया और एक मरा हुआ पिल्ला ला कर रख दिया। बच्चे को उन्होंने एक कंबल में लपेट कर एक पिटारी में रखा और एक नहर में बहा दिया और महल में आ कर दासियों को दिखाया कि मलिका ने मरा पिल्ला जना है। सब लोगों को इस पर बड़ा आश्चर्य हुआ किंतु बादशाह को जब यह मालूम हुआ तो उसका क्रोध से बुरा हाल हो गया। वह कहने लगा, ऐसा मरा पिल्ला जननेवाली रानी का मैं क्या करूँगा, मैं उसे मरवा दूँगा। संयोग से मंत्री भी वहाँ मौजूद था। उसने समझा-बुझा कर बादशाह का क्रोध शांत कर दिया।

जिस नहर में ईर्ष्यालु बहनों ने बच्चेवाली टोकरी बहाई थी वह शाही बागों के अंदर से जाती थी। सारे शाही बागों के व्यवस्थापक यानी बागों के दारोगा का स्थान उसी नहर के किनारे था। उसने नहर में टोकरी बहते देखा तो एक माली से कह कर उसे निकलवाया क्योंकि नहर में इधर-उधर की चीजें नहीं आनी चाहिए। देखा तो उसमें एक अत्यंत सुंदर बालक था। दारोगा को देख कर आश्चर्य हुआ कि टोकरी में रखा बच्चा नहर में कैसे आ गया। लेकिन उसने अधिक सोच-विचार नहीं किया। वह निपूता था। बच्चे को उठा कर वह पत्नी के पास ले गया और कहा, भगवान ने यह बच्चा हमें दिया है। उसकी पत्नी भी बड़ी प्रसन्न हुई और बच्चे का पुत्रवत लालन-पालन करने लगी।

दूसरे वर्ष मलिका के फिर एक पुत्र पैदा हुआ। इस बार भी उसकी बहनों ने वैसी ही दुष्टता की। बच्चे को बाहर जा कर नहर में बहा दिया और मलिका के नीचे एक मरा बिल्ली का बच्चा ला कर रख दिया। महल में फिर मातम सा छा गया और बादशाह का क्रोध फिर आसमान छूने लगा और उसने मलिका का वध कराने की बात फिर कही। इस बार भी दयालु मंत्री ने समझा-बुझा कर उसे मलिका को मरवाने से रोका। मलिका पहले से अधिक अपमान की स्थिति में रहने लगी। इधर जिस टोकरी में बच्चा रखा था वह फिर बागों के दरोगा के हाथ लगी। वह इस बच्चे को भी पहले की भाँति पालने लगा।

कुछ दिनों बाद मलिका को फिर गर्भ रहा। बादशाह को आशा थी कि इस बार की संतान ठीक-ठीक होगी। लेकिन दोनों दुष्ट बहनें अब भी वहाँ मौजूद थीं और उनके मुँह खून लग चुका था। इस बार मलिका के बेटी हुई। मलिका की बहनों ने उसे भी नहर में बहा दिया। उस टोकरी को भी बागों के दारोगा ने निकलवा लिया और ईश्वरीय देन समझ कर इसका पालन-पोषण करने लगा। उधर दुष्ट बहनों ने मशहू्र किया कि मलिका ने छछुंदर जना है।

इस बार बादशाह अपना क्रोध बिल्कुल नहीं सँभाल पाया। उसने कहा कि ऐसी जीव-जंतु पैदा करनेवाली रानी से बदनामी ही होगी, इसे जरूर मरवा देना होगा। दयालु मंत्री ने उसके पैरों पर गिर कर कहा, पृथ्वीपाल, आप कुछ न्याय-अन्याय का विचार करें। इसमें रानी का क्या अपराध है? आप की बदनामीवाली बात ठीक है। तो इसके लिए यह करें कि मलिका के पास जाना छोड़ दें।

बादशाह ने कहा, तुम इतना कहते हो तो उसे जान से नहीं मरवाऊँगा। लेकिन मैं सजा जरूर दूँगा और सजा भी ऐसी दूँगा जो मृत्युदंड से भी बढ़ कर कष्टकारक हो। और इस सजा के बारे में मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनूँगा।

यह कह कर उसने शाही इमारतों के निर्माता को बुला कर कहा, जामा मसजिद के ठीक सामने एक कैदखाना बनाओ। उसका द्वार खुला रहे और मलिका को एक लकड़ी के पिंजरे में वहाँ बंद कर दिया जाय। वहाँ एक शाही फरमान लगाया जाए कि जो भी नमाज पढ़ने आए मसजिद में जाने के पहले मलिका के मुँह पर थूक कर जाए। जो आदमी ऐसा न करे उसे भी वही सजा दी जाए जो मलिका को दी जा रही है। मंत्री यह सुन कर चुप हो रहा लेकिन सोचने लगा कि मलिका को जो सजा दी जा रही है उसके योग्य तो उसकी बहनें हैं। खैर, बादशाह ने जिस तरह कहा था उसी तरह का कैदखाना और पिंजड़ा तैयार किया गया और मलिका को उसमें रखा गया। दिन भर सैकड़ों नगर निवासी मसजिद में नमाज के लिए जाते और नमाज से पहले मलिका के मुख पर थूका करते। उन्हें इस बात का बड़ा दुख होता कि वे निर्दोष मलिका को दंडित कर रहे हैं लेकिन क्या करते, बादशाही आदेश था और दंड का भय भी। बेचारी मलिका भी ईश्वरीय इच्छा समझ कर सब कुछ सह लेती।

उसके पुत्रों और पुत्री को, जिनके जन्म से भी वह अनभिज्ञ थी, बागों का दारोगा और उसकी पत्नी बड़े प्यार और सावधानी से पाल-पोस रहे थे। तीनों बच्चों को खेलता देख कर उन दोनों को अपार हर्ष होता था। वे कुछ बड़े हुए तो दारोगा ने बड़े लड़के का नाम बहमन, छोटे लड़के का परवेज और लड़की का परीजाद रखा। जब वे लोग कुछ और बड़े हुए तो बागों के दारोगा ने उनकी शिक्षा-दीक्षा के लिए विद्वानों और विभिन्न कलाओं के विशेषज्ञों को नियुक्त किया। तीनों की शिक्षा एक साथ होती और परीजाद भी जो बुद्धि में अपने भाइयों से कम नहीं थी, विभिन्न विषयों में उन्हीं की भाँति पारंगत हो गई। तीनों ने काव्य, इतिहास, गणित आदि सभी प्रचलित विद्याएँ सीखीं।

तीनों की बुद्धि इतनी तीक्ष्ण थी कि उनके अध्यापक कहने लगे कि यह लोग तो कुछ दिनों में हम से भी बढ़ कर विद्वान हो जाएँगे, इन्हें तो कोई बात सीखने में देर ही नहीं लगती।

लिखने-पढ़ने के अलावा तीनों ने घुड़सवारी, धनुर्विद्या, शस्त्र-संचालन आदि की शिक्षा भी ली और जल्द ही इनमें भी प्रवीण हो गए। इसके अलावा परीजाद ने गाना और वाद्य वादन भी सीखा। दारोगा को ख्याल तो पहले भी था कि यह लोग शाही महल के जन्मे होंगे, अब विश्वास भी हो गया। उसे अपना छोटा-सा घर उनके निवास के उपयुक्त न लगा। उसने शहर के बाहर जंगल के समीप उनके लिए विशाल भवन बनवाना शुरू किया।

दारोगा ने अपनी देखरेख में वह भवन बनवाया। वह तैयार हो गया तो उसकी दीवारों पर प्रख्यात कलाकारों द्वारा बड़े सुंदर चित्र बनवाए और महल को हर प्रकार की सुंदर और मूल्यवान सामग्री से सजाया। उसके पास ही उसने बड़ी मनोरम पुष्प वाटिका बनवाई जहाँ वे लोग मन बहलाया करें। इसके अतिरिक्त एक बड़ा भूमिक्षेत्र घिरवा कर उसमें बहुत-से जंगली जानवर रखवाए ताकि वे लोग घर के समीप ही शिकार खेल सकें क्योंकि स्वस्थ रहने के लिए शिकार अच्छी कसरत है।

महल के बन जाने पर दारोगा ने बादशाह से निवेदन किया कि मैंने जंगल के पास एक नया मकान बनवाया है, आपकी अनुमति हो तो मैं बाग के छोटे मकान को छोड़ कर नए मकान में रहूँ। बादशाह उससे खुश था इसलिए उसे तुरंत अनुमति मिल गई। इससे कुछ वर्ष पूर्व दारोगा की पत्नी का देहांत हो गया था। महल बनवाने में उसका कुछ उद्देश्य पत्नी की मृत्यु का दुख भुलाना भी था। किंतु महल बनने के कुछ महीनों बाद ही वह अचानक बीमार हो कर मर गया। उसने काफी धन-दौलत छोड़ी थी और उन तीनों को जीविका की कोई चिंता न थी किंतु उसकी अचानक मौत से उन्हें बड़ा दुख हुआ। अंत समय में वह इन तीनों से इससे अधिक कुछ न कह सका कि आपस में मिल-जुल कर रहना।

उसके मरने पर उसका विधिपूर्वक अंतिम संस्कार करके तीनों बहन-भाई मिल-जुल कर रहने लगे। दोनों भाइयों को एक प्रतिष्ठित राज पद भी मिल गया यद्यपि उनकी बादशाह से भेंट न होती थी। एक दिन दोनों शहजादे शिकार खेलने को गए। परीजाद घर में अकेली थी, सिर्फ उसकी दो-एक दासियाँ उसके साथ थीं। उसी समय एक धर्मनिष्ठ वृद्धा वहाँ आ कर कहने लगी, बेटी, नमाज का समय है, अनुमति दो तो अंदर आ कर नमाज पढ़ लूँ। परीजाद ने तुरंत अनुमति दे दी। जब वह नमाज पढ़ चुकी तो परीजाद के इशारे पर दासियों ने उस बुढ़िया को सारा महल इत्यादि दिखाया। उसने खुश हो कर कहा कि निःसंदेह जिसने यह महल बनवाया है वह अपने कार्य का विशेषज्ञ है।

मकान दिखाने के बाद दासियाँ, बुढ़िया को परीजाद के पास ले आईं। परीजाद ने कहा, बैठिए, आप जैसी धर्मनिष्ठ महिला का साथ करके मैं स्वयं को भाग्यशाली मानती हूँ। बुढ़िया ने नीचे फर्श पर बैठना चाहा लेकिन परीजाद ने उसे खींच कर अपने तख्त पर अपने बगल में बिठाया। बुढ़िया ने कहा, मालकिन, मेरी आपके साथ बैठने की हैसियत बिल्कुल नहीं है, लेकिन आपका अनुरोध टाल भी नहीं सकती, इसलिए बैठ रही हैं।

परीजाद बुढ़िया से उसके ग्राम, परिवार आदि के बारे में बातें करने लगी। कुछ देर बार परीजाद की दासियों ने जलपान उपस्थित किया जिसमें भाँति-भाँति की रोटियाँ, नान, कुलचे तथा हरे फल और सूखे मेवे थे। कई प्रकार की मिठाइयाँ भी थीं। परीजाद ने कई चीजें अपने हाथ से उठा कर वृद्धा को दीं और कहा, अम्मा, अच्छी तरह पेट भर कर खाओ, तुम देर की अपने घर से निकली हो। थक भी गई होगी और रास्ते में कुछ खाया भी नहीं होगा। बुढ़िया ने कहा, बेटी, तुम जुग-जुग जियो। इतनी सुशील कोई अमीरजादी हो सकती है। यह बात मैं सोच भी नहीं सकती थी। मैं निर्धन हूँ, ऐसी स्वादिष्ट वस्तुएँ खाने की मेरी आदत नहीं है, लेकिन तुम इतने प्यार और आदर से कह रही हो तो खुशी से खाऊँगी। मैं इसे भगवान की दया समझती हूँ कि उसने मुझे तुम्हारा घर दिखाया।

नाश्ता करने के बाद परीजाद ने बुढ़िया से और भी बातें कीं क्योंकि वह कई विषयों की जानकार मालूम होती थी। उसे बुढ़िया से धर्म और ईश्वर भक्ति के बारे में कई प्रश्न पूछे जिनका उसने बहुत अच्छी तरह उत्तर दिया। फिर परीजाद ने बुढ़िया से पूछा, अम्मा, मेरे महल और बाग वगैरह के बारे में तुम्हारी क्या राय है? क्या और भी कोई वस्तु है जो तुम्हारी राय में यहाँ होनी चाहिए? बुढ़िया हँस कर बोली, बेटी, यह प्रश्न मुझ से न करो तो अच्छा हो। मैं कुछ कहूँगी तो तुम कहोगी कि यह दो टके की बुढ़िया मेरे महल और बाग में नुक्स निकालती है। परीजाद ने जोर दे कर कहा, मैं ऐसा कुछ नहीं कहूँगी। तुम जो कुछ कमी इसमें समझती हो वह मुझे जरूर बताओ, मैं उसे पूरा करने की कोशिश करूँगी।

बुढ़िया ने कहा, यहाँ सब कुछ है। किंतु मेरी समझ में यहाँ पर तीन चीजें और आ जाएँ तो संसार में तुम्हारा बाग अद्वितीय हो जाए। लेकिन उनका मिलना कठिन है। एक तो बुलबुल हजार दास्ताँ है। जब वह बोलता है तो हजारों चिड़ियाँ जमा हो जाती हैं ओर उसके स्वर में स्वर मिलाने लगती हैं। दूसरा एक गानेवाला पेड़ है। उसके पत्ते मोटे और चिकने हैं। जब हवा चलने पर पत्ते एक दूसरे से रगड़ खाते हैं तो उनसे मधुर संगीत निकलता है। इस संगीत से हर एक सुननेवाला मुग्ध हो जाता है। तीसरी वस्तु है सुनहरा पानी। उसकी एक बूँद किसी बर्तन में रख दी जाए तो वह बर्तन अपने आप भर जाता है और फिर उसमें से एक फव्वारा निकलता है जो कभी नहीं रुकता, क्योंकि वह पानी लौट कर उसी बर्तन में गिरता है।

परीजाद बोली, अम्मा, तुम्हें इन चीजों के बारे में इतने विस्तार से पता है तो यह भी जानती होगी कि यह वस्तुएँ कहाँ मिलती हैं। मुझे बताओ तो मैं उनकी प्राप्ति का प्रयत्न करूँ। वृद्धा ने कहा, पूरा हाल तो मैं नहीं बता सकती लेकिन इतना बता सकती हूँ कि इस देश में कहीं भी यह चीजें नहीं मिल सकतीं। यहाँ से कोई व्यक्ति अमुक दिशा में जाए और सीधा चलता ही चला जाए तो बीस दिन की यात्रा के बाद जो पहला व्यक्ति उसे मिले उससे पूछे कि यह तीनों वस्तुएँ कहाँ मिलेंगी। वही आगे की राह बताएगा। अच्छा बेटी, अब मुझे काफी देर हो गई है, मैं चलूँगी।

बुढ़िया को यह क्या मालूम था कि परीजाद इतनी साहसी लड़की है कि खुद इन चीजों की तलाश में निकल पड़ेगी। इसलिए इसने विस्तार से वह सब कुछ बता दिया जो उसे मालूम था। परीजाद ने उसकी बताई एक-एक बात याद रखी। वह इस चिंता में पड़ गई कि उपर्युक्त तीनों चीजें कैसे प्राप्त की जाएँ। कुछ देर बाद दोनों शहजादे शिकार से वापस आए तो देखा कि बहन गहरी चिंता में डूबी है। उन्होंने कहा, क्या बात है, परीजाद? तुम्हारी कुछ तबीयत खराब है या कोई बात तुम्हारी मरजी के खिलाफ हो गई। परीजाद ने सिर झुका कर कहा, नहीं, कोई बात नहीं है।

बहमन ने कहा, यह तुम झूठ कह रही हो। कुछ ऐसा है जरूर जो तुम्हें दुख दे रहा है। अगर तुम नहीं बताओगी तो हम तुम्हारे पास से उठ कर नहीं जाएँगे। जब परीजाद ने देखा कि दोनों भाई बात के जानने पर अड़े हुए हैं तो उसने कहा, मैं तुम्हें इसलिए नहीं बताती थी कि जो मैं कहूँगी उससे तुम चिंता और कष्ट में पड़ जाओगे। अब तुम जिद कर रहे हो तो बताए देती हूँ। हमारे पिता ने यह महल हमारे लिए बनवाया था और अपनी समझ में उन्होंने सुंदरता और सजावट की कोई चीज यहाँ लाने से न छोड़ी। मैं भी अभी तक यही समझती थी कि इसमें कोई कमी नहीं है किंतु आज मुझे तीन चीजों के बारे में मालूम हुआ कि अगर यहाँ आ जाएँ तो हमारा महल अद्वितीय हो जाए।

शहजादों ने कहा, कौन-सी चीजें हैं वे? परीजाद बोली, एक तो आदमियों जैसा बोलनेवाला बुलबुल हजार दास्ताँ है जिसका संगीत सुनने और जिसके स्वर में स्वर मिला कर गाने के लिए हजारों पक्षी आ जाते हैं। दूसरा गानेवाला पेड़ जिसके पत्तों के रगड़ खाने से संगीत निकलता है। तीसरे सुनहरा पानी है जिसकी एक बूँद ही से कभी न खत्म होनेवाला फव्वारा बन जाता है। मैं इसी चिंता में हूँ कि इन्हें कैसे प्राप्त करूँ। बहमन ने कहा, अगर तुम यह बता दो कि कहाँ या किस ओर जाने से यह चीजें मिंलेगी तो मैं कल सुबह ही रवाना हो जाऊँ। परवेज ने उसे उद्यत देख कर कहा, भैया, तुम्हारी बुद्धि और बल में संदेह नहीं किंतु अच्छा हो अगर तुम यहाँ रह कर यहाँ का कामकाज सँभालो। बहमन बोला, साहस और बुद्धि तुम में भी कम नहीं है। लेकिन मैं बड़ा हूँ, इसलिए इस मामले में आगे मुझी को होना चाहिए।

दूसरे दिन बहमन ने अपनी बहन से पूरी जानकारी ली और अस्त्र-शस्त्र ले कर घोड़े पर बैठ गया। अब परीजाद उसे देख कर रोने लगी और बोली, भैया, मैं भी बड़ी दुष्ट हूँ जो अपने जरा-से शौक के लिए तुम्हें मुसीबत में फँसा रही हूँ। मैं अपनी माँग वापस लेती हूँ। अब कभी तीनों चीजों में एक का भी उल्लेख नहीं करूँगी। तुम न जाओ। बहमन ने कहा, एक बार कमर कस कर मैं पीछे नहीं हटता। अगर अब मैं सफर नहीं करता तो हमेशा मेरे दिल में यह खटक रहेगी कि मैं कायर हूँ।

परीजाद ने कहा, यहाँ हम लोग भी तो परेशान रहेंगे। हमें नहीं मालूम हो सकेगा कि तुम किस हाल में हो। बहमन ने कहा, इसका प्रबंध मैं कर रहा हूँ। यह खंजर लो। यह जादू की चीज है। रोज इसे म्यान से निकाल कर देखना। अगर यह साफ और चमकता हुआ दिखाई दे तो समझना कि मैं जहाँ भी हूँ सकुशल हूँ। लेकिन अगर इसमें से खून की बूँदें टपकने लगें तो समझ लेना कि मैं जीवित नहीं रहा। यह सुन कर परवेज और परीजाद और अधीर हुए और बहमन से कहने लगे कि ऐसी खतरनाक यात्रा न करो। लेकिन बहमन ने उनकी बात न सुनी और घोड़ा दौड़ा दिया।

बहमन सीधी राह पर लग लिया। उसने ध्यान रखा कि कहीं दाएँ-बाएँ न मुड़ जाए। फारस की राजधानी से बीस दिन की राह पूरी करने पर वह सोच रहा था कि आगे जाऊँ या न जाऊँ। तभी उसे एक अजीब-सा दृश्य दिखाई दिया। एक घने पेड़ के नीचे एक झोपड़ा पड़ा हुआ था और उसके बाहर एक बूढ़ा बैठा था जिसे बहुत ध्यान से देखने पर ही मालूम होता था कि कोई आदमी बैठा है। उसके बाल बर्फ की तरह सफेद थे। उसके सर, दाढ़ी, मूँछों और भौंहों के बाल इतने बढ़ गए थे कि उसका सारा शरीर बालों से ढक गया था। उसके हाथों और पैरों के नाखून बहुत बढ़ गए थे और कीलों की तरह मालूम होते थे और उसके सिर पर एक लंबी टोपी रखी हुई थी। उसने अपना शरीर एक चटाई से ढक रखा था। जिसके ऊपर उनके बाल पड़े हुए थे। बहमन उसे देख कर समझ गया कि वह कोई तपस्वी सिद्ध है जो ऐसे दुर्गम और निर्जन स्थान में अकेला बगैर खाए-पिए तपस्यारत रहता है।

बहमन को तो तलाश थी ही कि कोई आदमी मिले क्योंकि पहला मिलनेवाला ही उसे गंतव्य स्थान का पता दे सकता था। वह यह भी समझ गया कि पहला और आखिरी आदमी यहाँ यह ही मिल सकता है और यह भी स्वाभाविक ही है कि ऐसी अलभ्य वस्तुओं का पता किसी सिद्ध तपस्वी से लगे। बहमन घोड़े से उतरा और उसने वृद्ध तपस्वी के पास जा कर प्रणाम किया। बहमन को उस जगह से जहाँ वृद्ध का मुख हो सकता था कोई ध्वनि तो सुनाई दी किंतु उसकी समझ में कुछ भी नहीं आया।

कुछ देर बाद बहमन ने समझ लिया कि मूँछों और दाढ़ी के घने बालों ने बूढ़े सिद्ध का मुख इस रह बंद कर रखा है कि इसकी आवाज घुट कर रह जाती है। उसने अपना घोड़ा एक पेड़ से बाँधा और तपस्वी के पास आ कर अपनी जेब से एक छोटी-सी कैंची निकाली। फिर वह बोला, हे तपस्वी पिता, तुम्हारी बात मेरी समझ में बिल्कुल नहीं आई। अगर अनुमति दो तो मैं तुम्हारी भौंहें और मूँछें छाट दूँ। इनके कारण तुम्हारी सूरत आदमी के बजाय रीछ जैसी मालूम होती है। तपस्वी ने इशारे से उसे अनुमति दे दी।

बहमन ने उसकी भौंहों और मूँछों को छाँट डाला तो तपस्वी का चेहरा बिल्कुल बदल गया। शहजादा बहमन बोला, तपस्वी पिता, अगर मेरे पास दर्पण होता तो मैं तुम्हें दिखाता कि हजामत के बाद यही नहीं हुआ कि तुम रीछ के बजाय आदमी लगो बल्कि तुम बूढ़े के बजाय जवान भी लगने लगे हो। तपस्वी इस प्रकार की मनोरंजक वार्ता सुन कर मुस्कुराया और बोला, बेटे, मैं तुम्हारी सेवा से प्रसन्न हुआ। अब बताओ कि इतनी दूर किस लिए आए हो ताकि तुम्हारे उद्देश्य की सिद्धि के लिए मैं जो कुछ मदद कर सकता हूँ वह करूँ।

बहमन बोला, तपस्वी पिता, मैं बहुत दूर से बुलबुल हजार दास्ताँ, गानेवाला पेड़ और सुनहरा पानी लेने के लिए आया हूँ। आप कृपा कर के मुझे बताएँ कि यह वस्तुएँ मुझे कहाँ और कैसे मिलेंगी। बूढ़े ने यह सुन कर सिर झुका लिया और बहुत देर तक चुपचाप बैठा रहा। बहमन ने फिर कहा, तपस्वी पिता, तुमने मौन क्यों साध लिया है। अगर तुम्हें नहीं मालूम तो कह दो कि नहीं जानता। मैं किसी और से पूछूँ।

तपस्वी ने कहा, मुझे मालूम तो है लेकिन मैं तुम्हें इसलिए नहीं बताना चाहता कि तुम्हारी सेवा के बदले तुम्हें मुसीबत में नहीं डालना चाहता। बहमन ने कहा, यह क्या बात हुई? सिद्ध ने कहा, जहाँ यह चीजें हैं वहाँ का मार्ग बड़ा भयावह है, तुम्हारी तरह बीसियों आदमियों ने वहाँ जाने की राह मुझसे पूछी है और कोई वापस नहीं लौटा। इसलिए तुमसे कहता हूँ कि जहाँ से आए हो वापस चले जाओ।

बहमन ने कहा, मैं वापस जाने के लिए यहाँ तक नहीं आया हूँ। मुझे अपना कार्य पूरा करना ही है चाहे इसमें मेरी जान चली जाए। अपने उद्देश्य में असफल हो कर मैं कायर की तरह जीना नहीं चाहता। अभी तक कोई शत्रु मुझे हरा नहीं सका है। जिसकी मौत आई होगी वही मेरी राह में रोड़ा अटकाने आएगा। तुम केवल इतनी कृपा करो कि मुझे राह बता दो, आगे की पूरी जिम्मेदारी मेरी। तुम मेरे युद्ध कौशल पर विश्वास तो करो।

तपस्वी ने कहा, बेटे, यही तो मुश्किल है कि तुम्हें युद्ध कौशल दिखाने का अवसर नहीं मिलेगा। तुम्हें जो शत्रु मिलेंगे वे सामने से मुकाबला नहीं करते बल्कि छुपे तौर पर वार करते हैं। शहजादे ने कहा, मैं छुपे तौर पर वार करनेवालों से भी निबटना जानता हूँ, आप मुझे वहाँ जानेवाली राह तो बताएँ।

तपस्वी ने उसे बहुत समझाया लेकिन जब यह देखा कि बहमन किसी तरह अपनी जिद छोड़ता ही नहीं और जब तक राह न मालूम कर लेगा हरगिज नहीं टलेगा, तो उसने अपने झोले से एक गेंद निकाली और कहा, मुझे तुम्हारी जवानी पर अफसोस हो रहा है। लेकिन तुमने जिद पकड़ रखी है तो अपना भला-बुरा तुम्हीं जानो। तुम सवार हो कर उधर को जाओ और उस गेंद को भूमि पर गिरा दो। यह गेंद खुद ही लुढ़कने लगेगी और तुम इसी के पीछे-पीछे चले जाना जब तक यह लुढ़कती रहे, तब तक तुम भी चलते रहना। एक पहाड़ के नीचे जा कर यह गेंद रुक जाएगी। वहाँ तुम रुक कर घोड़े से उतर जाना और घोड़े की लगाम उसकी गर्दन पर डाल देना ताकि वह ठहरा रहे। तुम फिर पहाड़ पर चढ़ना। तुम अपने दोनों ओर काले पत्थर काफी अधिक संख्या में देखोगे। उन पर तुम ध्यान न देना। इसके अलावा अपने पीछे से आते हुए बहुत-से अपशब्द और धमकियाँ सुनोगे। यह बहुत जरूरी है कि तुम इन गालियों की पूर्ण उपेक्षा कर दो। अगर तुमने एक बार भी डर कर पीछे की ओर देखा तो तुम और तुम्हारा घोड़ा दोनों काले पत्थर बन जाएँगे। तुम्हें राह में मिलनेवाले काले पत्थर भी तुम्हारी तरह उन तीन चीजों की खोज में जानेवाले आदमी थे। पीछे देखने के कारण वे पत्थर बन गए हैं।

अगर तुम कुशलतापूर्वक पहाड़ की चोटी पर पहुँच गए तो वहाँ एक वृक्ष पर टँगा हुआ पिंजड़ा मिलेगा जिसमें गानेवाली चिड़िया मौजूद है। उस चिड़िया की बातों से भी न डरना और उससे गानेवाले पेड़ और सुनहरे पानी का पता पूछना। वह तुम्हें बताएगी कि यह चीजें कहाँ मिलेंगी। इन सब चीजों को पाने के बाद तुम्हारी राह में कोई खतरा नहीं रहेगा। मैंने यह सब तुम्हें बता जरूर दिया है लेकिन मेरा अब भी यही कहना है कि तुम वापस लौट जाओ। मैं साफ देख रहा हूँ कि तुम वहाँ गए तो काला पत्थर बन कर रह जाओगे।

बहमन ने कहा, अब जो होना है वह हो ही कर रहेगा, मैं पीछे तो लौटता नहीं। यह कह कर शहजादे ने घोड़ा खोला और उस पर सवार हो कर तपस्वी की दी गई गेंद गिरा दी। गेंद लुढ़कती हुई आगे को चली। काफी दूर जाने पर गेंद एक पहाड़ की तलहटी पर रुक गई जहाँ ऊपर जाने के लिए एक तंग रास्ता था। शहजादे ने घोड़े से उतर कर उसकी गर्दन पर लगाम डाली और पहाड़ पर चढ़ने लगा। कुछ दूर जाने पर उसे बड़े-बड़े काले पत्थर दिखाई दिए। इसके आगे चार-पाँच कदम ही चला था कि पीछे से बड़ी अप्रिय आवाजें आने लगीं। कोई आवाज होती, यह कौन बेवकूफ आगे चला जा रहा है, पकड़ो इसे। कभी आवाज आती, यह बड़ा दुष्ट है, इसे पकड़ कर मार डालो। कभी चीखती और गरजती आवाजें आतीं, वह जा रहा है चोर, खूनी, बदमाश। घेर लो इसे। कभी हलकी-सी आवाज आती, इसे पकड़ कर बाँधे रखना, यह बोलती चिड़िया को चुराने के लिए आया है। कभी कोई यह कहता जान पड़ता, यह वहाँ पहुँच कहाँ पाएगा, रास्ते में छुपे गढ़े में गिर कर मर जाएगा।

पहले बहमन ने इन आवाजों की उपेक्षा की और अपनी राह पर बढ़ता चला गया। किंतु यह आवाजें कम होने के बजाय कदम-कदम पर तेज ही होती गईं और उसके कानों के परदे फटने लगे और दिमाग सुन्न हो गया। तपस्वी ने उसे जो बताया था वह भी उसके दिमाग से निकल गया और एक बार डर कर पीछे देखने लगा। तुरंत ही वह और घोड़ा दोनों काले पत्थरों के रूप में बदल गए।

अपनी कुशलता की सूचना देने के लिए जो खंजर बहमन ने परीजाद को दिया था वह उसे रोजाना म्यान से निकल कर देखती। जिस दिन बहमन काला पत्थर बना उस दिन परवेज ने कहा, परीजाद, आज मुझे खंजर दो। आज भैया का हाल मैं मालूम करना चाहता हूँ। परीजाद ने उसे खंजर दे दिया। उसने म्यान से उसे निकाला तो उसकी नोक से उसे खून की बूँद निकलती दिखाई दी। परवेज ने हाथ से खंजर फेंक दिया और हाय-हाय करने लगा।

परीजाद को भी जब खून टपकाता हुआ खंजर दिखाई दिया तो वह चिल्ला-चिल्ला कर रोने लगी और सिर पटक-पटक कर कहने लगी, हाय भैया, मेरी नादानी से तुम्हारी जान गई। न जाने किस मनहूस घड़ी में वह कमबख्त बुढ़िया आई थी। न वह आती न यह झंझट होता। मक्कार ने मुझे बेकार के लालच में डाल दिया। मैंने उसके साथ ऐसा सद्व्यवहार किया और उसने मुझे इसका ऐसा बदला दिया। अब मिले तो उस कलमुँही की बोटियाँ नोच लूँ। मेरे प्यारे भाई की जान उसी के दिलाए लालच के कारण गई। हे भगवान, तू भैया को जिंदा घर लौटा, चाहे मेरी मौत भेज दे। भैया न रहे तो चिड़िया, पेड़ और पानी को पा कर भी मैं क्या करूँगी। मुझे यह चीजें नहीं चाहिए, मुझे और भी कुछ नहीं चाहिए। मुझे सिर्फ मेरा भाई चाहिए।

परीजाद बहमन की बातों को याद करके देर तक रोती रही। परवेज भी आँसू बहाता रहा। फिर उसने कहा, परीजाद, अब रोने-धोने से कुछ नहीं होगा। अब मैं जाता हूँ। मैं पता लगाऊँगा कि भैया किसी प्राकृतिक कारण से मरे हैं या किसी शत्रु ने उन्हें मारा है। किसी ने उन्हें मारा होगा तो मैं उसे जीता नहीं छोड़ूँगा, भैया की मौत का बदला जरूर लूँगा। परीजाद ने बहुत समझा कर उसे रोकना चाहा। वह बोली, मैंने एक भाई तो खोया ही है, दूसरे को मौत के मुँह में नहीं जाने दूँगी। बड़े भैया तुम से कुछ कम बहादुर नहीं थे। लेकिन परवेज ने उसकी एक भी बात न सुनी। उसने दूसरे दिन सुबह अपनी साहस यात्रा पर जाने की तैयारी शुरू कर दी।

दूसरे दिन उसके रवाना होने के समय परीजाद रो कर बोली, बड़े भैया ने तो अपनी कुशल जानने को एक राह भी बताई थी, तुम्हारा हाल मुझे कैसे मालूम होगा? परवेज ने उसे मोतियों की एक माला दी। उसने कहा, देखो, इसके सारे मोती अलग-अलग हैं। इसे उँगलियों पर चलाने से एक-एक मोती उँगलियों में आता है। जब तक यह मोती ऐसे ही रहें तो समझ लेना कि मैं ठीक-ठाक हूँ। जिस दिन यह एक-दूसरे से चिपक जाएँ और माला न फेरी जा सके तो समझ लेना कि मैं भी दुनिया में नहीं रहा। यह कह कर परवेज निकल पड़ा।

बीस दिन की यात्रा के बाद वह वहीं पहुँचा जहाँ वह सिद्ध तपस्वी बैठा था। उसने आदरपूर्वक सिद्ध को प्रणाम किया और पूछा, क्या आप बता सकेंगे कि मुझे बोलनेवाली चिड़िया, गानेवाला पेड़ और सोने का पानी कहाँ से मिल सकते हैं? तपस्वी ने कहा, बेटे, वह राह बहुत खतरनाक है। तुम वहाँ जाने का इरादा न करो और यहीं से लौट जाओ। वहाँ से अभी तक कोई वापस नहीं आया है। एक महीने से भी कम हुआ तुम्हारी ही शक्ल-सूरत का एक नौजवान मेरे लाख रोकने पर भी उधर को गया था। वह भी नहीं लौटा है।

परवेज ने कहा, वह मेरा बड़ा भाई था। यह तो मुझे मालूम है कि वह जीवित नहीं है, लेकिन मैं यह नहीं जानता कि वह कैसे मरा, किसी प्राकृतिक कारण से मरा या किसी दुश्मन ने उसे मारा। सिद्ध ने कहा, मैं तुम्हें बताता हूँ। बहुत-से आदमी मेरी चेतावनी के बावजूद उस राह पर गए और काले पत्थर बन कर वहीं पर रह गए। तुम्हारे भाई के साथ भी यही हुआ है। तुम मेरी बात मानो और लौट जाओ वरना तुम भी काला पत्थर बन कर यहाँ हमेशा पड़े रहोगे।

परवेज ने कहा, मैं आपका आभारी हूँ कि आप मेरे हितचिंतक हैं लेकिन मैं आगे पाँव बढ़ा चुका हूँ, पीछे नहीं हट सकता। आप मुझे वह रास्ता अवश्य बताएँ। सिद्ध ने कहा, मैं तुम्हारे साथ चल सकता तो कोई बात नहीं थी किंतु बुढ़ापे के कारण मैं नहीं जा सकूँगा। तुम जिद करते हो तो जाओ। यह गेंद ले लो। इसे जमीन पर रखोगे तो यह खुद लुढ़कने लगेगी और तुम इसके पीछे लग जाना। पहाड़ के नीचे जा कर यह रुकेगा और तुम उसी पहाड़ पर चढ़ जाना। तुम्हारे पीछे से किसी तरह की आवाजें आएँ तुम पीछे मुड़ कर न देखना वरना तुम भी पत्थर बन जाओगे। ऊपर जा कर तुम्हें बोलनेवाली चिड़िया मिलेगी और वही तुम्हें अन्य दो चीजों का पता बताएगी।

परवेज सिद्ध को माथा नवा कर सवार हो कर चला। गेंद उसे रास्ता दिखाती जा रही थी। कुछ देर बाद एक पहाड़ की तलहटी में जा कर गेंद रुक गई। परवेज घोड़े को वहीं खड़ा करके पहाड़ पर चढ़ने लगा। दो-चार ही कदम गया होगा कि उसने सुना कि पीछे से कोई डाँट कर कह रहा है, अबे ओ बदमाश, बदतमीज, कहाँ बढ़ा जा रहा है। रुक जा कमबख्त, तुझे सजा दूँ। परवेज को जल्दी क्रोध आ जाता था। उसने गालियाँ सुनीं तो उसका खून खौल गया और वह तपस्वी द्वारा दी हुई चेतावनी को भूल गया। उसने म्यान से तलवार खींच ली और पलट कर देखा कि गाली देनेवाले के टुकड़े-टुकड़े कर दूँ। किंतु पीछे देखते ही वह काले पत्थर का ढोंका बन गया और उसके घोड़े का भी यही हाल हुआ।

परवेज के जाने के बाद परीजाद को बहमन की यात्रा के समय से भी अधिक शंका बनी रहती थी। वह बहमन के दिए खंजर को तो कभी-कभी ही देखती थी किंतु परवेज की दी हुई माला को अपने गले में डाले रहती और हमेशा उसके मोतियों पर हाथ फेर कर उनकी दशा को देखती रहती थी। चुनांचे ज्यों ही परवेज काले पत्थर की शिला के रूप में परिवर्तित हुआ उसके कुछ ही देर बार परीजाद को उसकी मृत्यु का हाल मालूम हो गया क्योंकि माला के मोती एक-दूसरे से ऐसे चिपक गए थे कि माला फेरना असंभव था।

परीजाद उस समय तो दुख के कारण अचेत हो गई किंतु बाद में होश आने पर उसने फैसला किया कि दोनों भाइयों को मौत के मुँह में भेजने के बाद अब मेरे जीवन का भी कोई अर्थ नहीं है। उसने भी घुड़सवारी और शस्त्र संचालन की शिक्षा ली थी और उसमें साहस की कमी न थी। उसने मर्दाने कपड़े पहने, हथियार लगाए और घोड़े पर सवार हो गई। उसने गृह-प्रबंधक को आदेश दिया कि जब तक वह वापस न आए वह खुद महल की देखभाल करे, किसी प्रबंध में कमी न होने पाए।

बीस दिन तक घोड़े पर चलने के बाद वह भी उसी तपस्वी सिद्ध पुरुष के पास पहुँची। उसने प्रणाम करके बोली, सिद्ध पिता, कृपया मुझे बताएँ कि बोलनेवाली चिड़िया, गानेवाला पेड़ और सुनहरा पानी कहाँ मिलेगा। वृद्ध ने कहा, तुमने कपड़े तो आदमियों जैसे पहने हैं किंतु स्पष्टतः तुम स्त्री हो जैसा तुम्हारा स्वर बता रहा है। मुझे मालूम है कि वे चीजें कहाँ हैं, लेकिन तुम उन्हें क्यों पूछ रही हो? परीजाद बोली, जब से मैंने उनके बारे में सुना है तभी से उन्हें पाने की इच्छा है। तपस्वी ने कहा, हैं तो वे चीजें संग्रहणीय लेकिन उन्हें प्राप्त करने के मार्ग में बड़े खतरे हैं। तुम लड़की हो, तुम्हारे लिए अच्छा यही है कि अपनी इच्छा पर संयम रखो और उन्हें प्राप्त करने का विचार छोड़ दो। बड़े-बड़े बहादुर उस राह पर जा कर वापस नहीं लौटे हैं। घर लौट जाओ।

परीजाद बोली, तपस्वी पिता, बीस दिन चल कर तो मैं यहाँ पहुँची हूँ। अब तो यहाँ से यूँ ही वापस नहीं जा सकती। आप कृपया मुझे विस्तार से बताएँ कि उस मार्ग में क्या क्या खतरे हैं ताकि मैं उनसे निबटने का उपाय ढूँढ़ सकूँ। मेरा विचार है कि अगर मैं सोच-समझ कर आगे बढ़ूँगी तो हर तरह के खतरों का सामना कर सकूँगी। आप कृपया मेरा मार्गदर्शन करें।

वृद्ध तपस्वी ने परीजाद को वे सारी बातें बताईं जो उसने बहमन और परवेज को बताई थीं। उसने कहा, खतरे सिर्फ तब तक हैं जब तक कोई पहाड़ की चोटी पर न पहुँच जाए। फिर तुम्हें बातें करनेवाली चिड़िया मिलेगी और वह तुम्हें गानेवाले पेड़ और सुनहरे पानी के स्थानों को भी बताएगी। लेकिन पहाड़ चढ़ने के समय अप्रिय और कटु शब्द सुनाई देंगे। रास्ते के सारे काले पत्थर आदमी ही हैं जो उन तीनों चीजों की खोज में गए थे किंतु गालियों या धमकियों से डर कर या क्रुद्ध हो कर पीछे देखते ही काले पत्थर की शिला बन गए। परीजाद ने कहा, मतलब यह है कि वे केवल शब्द हैं और किसी का कुछ बिगाड़ नहीं सकते अगर कोई पीछे मुड़ कर न देखे। सिद्ध पिता, आप विश्वास करें कि यद्यपि मैं स्त्री हूँ तथापि सुने हुए किसी शब्द से विचलित नहीं हूँगी। मैं न तो इन आवाजों से भयभीत हूँगी न उन पर क्रोध करूँगी। मैं पूरा आत्मसंयम रखूँगी। इसके अलावा मैं अपने दोनों कानों में कस कर रूई ठूँस लूँगी ताकि मुझे वे आवाजें सुनाई ही न दें।

सिद्ध ने मुस्कुरा कर कहा, बेटी, मालूम होता है कि तुम्हारे ही भाग्य में है। इतने लोग वहाँ गए हैं किंतु यह उपाय किसी को अभी तक नहीं सूझा। बस, सब कुछ इस पर निर्भर है कि चाहे जो कुछ सुनाई दे आदमी उसका असर अपने मन पर न पड़ने दे। परीजाद ने कहा, विश्वास रखिए कि मैं आपकी दी हुई सलाह पूरी तरह मानूँगी। अब आप यह बता दीजिए कि पहाड़ को कौन-सा रास्ता जाता है। बूढ़े तपस्वी ने कहा, बेटी, तुम होशियार तो बहुत मालूम होती हो लेकिन मैं एक बार फिर तुम्हें सलाह दूँगा कि घर लौट जाओ।

परीजाद आगे जाने की जिद पर अड़ी रही तो वृद्ध ने मजबूर हो कर अन्य लोगों की भाँति उसे भी मार्ग प्रदर्शन करनेवाली गेंद दी और कहा, इसे भूमि पर डाल दो। यह अपने आप लुढ़कती हुई पहाड़ के नीचे जा कर रुक जाएगी। तुम वहीं घोड़े से उतरना और पहाड़ पर चढ़ना शुरू कर देना। परीजाद ने ऐसा ही किया और तेजी से लुढ़कती हुई गेंद के पीछे घोड़ा दौड़ाने लगी। गेंद पर्वत के नीचे जा कर रुक गई तो वह घोड़े से उतर पड़ी और उसकी गर्दन पर लगाम डालने के बाद उसने अपने कानों में ठूँस-ठूँस कर रूई भर ली और धीरे-धीरे पहाड़ पर चढ़ने लगी। उसके पीछे आवाजें होने लगीं किंतु वे कानों में रूई ठुँसी होने के कारण उसे सुनाई न दीं और वह बढ़ती गई। फिर पीछे से आनेवाली आवाजें और तेज हुईं। यह आवाजें भी उसे धीमी सुनाई दीं और उन्होंने उसके मस्तिष्क को बिल्कुल विचलित नहीं किया। फिर उसे ऐसी गालियाँ सुनने को मिलीं जो स्त्रियों के लिए होती हैं और बड़ी अपमानजनक होती हैं। परीजाद को एक क्षण तो बुरा लगा किंतु फिर वह उन गालियों पर हँस पड़ी।

इसी तरह उस भयानक चढ़ाई को दृढ़ता और संयम से पूर्ण करने के बाद वह शिखर पर पहुँची तो देखा कि एक पिंजड़े में एक सुंदर चिड़िया मधुर स्वर में गा रही है। परीजाद को देखते ही वह सिंह की तरह गरज कर बोली, ए लड़की, खबरदार मेरे पास न आना। परीजाद इस पर हँसने लगी और दौड़ कर चोटी पर पहुँच गई। वहाँ भूमि समतल थी। उसने दौड़ कर चिड़िया के पिंजड़े पर हाथ रखा और बोली, चिड़िया रानी, आज से मैं तुम्हारी मालकिन हूँ और तुम मेरे कब्जे में रहोगी। फिर उसने कानों की रूई निकाल दी। चिड़िया बोली, तुम ठीक कह रही हो। अब मैं सदैव तुम्हारी सेवा और हित साधना करती रहूँगी। मैं पिंजड़े में बंद रहती हूँ किंतु संसार की कोई बात नहीं जो मुझे मालूम नहीं है। तुम्हारा हाल इतना जानती हूँ जितना तुम भी नहीं जानतीं और मेरे कारण तुम्हें अयाचित लाभ मिलेगा। अब तुम मेरी स्वामिनी हुई और तुम्हारी सेवा करना मेरा धर्म है। इस समय तुम बताओ कि मुझ से क्या चाहती हो। मैं बगैर ना-नुकुर के उसे करूँगी।

चिड़िया की बातों से परीजाद को प्रसन्नता हुई यद्यपि उसे अपने भाइयों के विनाश का बड़ा दुख भी था। उसने चिड़िया से कहा, मुझे तुमसे बहुत-सी बातें पूछनी हैं। सबसे पहले यह बात बताओ कि मुझे सुनहरा पानी कहाँ मिलेगा। चिड़िया ने जो मार्ग बताया उस पर चल कर परीजाद सुनहरे पानी के कुंड पर पहुँची और एक चाँदी की सुराही में, जो वह अपने साथ ले गई थी, अच्छी तरह पानी भर कर ले आई। फिर उसने चिड़िया से गानेवाले पेड़ के बारे में पूछा। चिड़िया ने कहा, तुम्हारे पीछे की ओर एक बड़ा जंगल है। यह जंगल बहुत दूर नहीं है। उसी में गानेवाला पेड़ मिलेगा। तुम्हें आसानी से मालूम हो जाएगा कि कौन-सा पेड़ है क्योंकि संगीत सिर्फ उसी से निकल रहा होगा। परीजाद ने कहा, यह तो ठीक है, लेकिन मैं उस पेड़ को उखाड़ कर लाऊँगी कैसे। चिड़िया बोली, पेड़ नहीं उखड़ेगा, तुम सिर्फ एक टहनी तोड़ कर ले आओ। जब तुम अपनी वाटिका की भूमि में उसे लगाओगी तो वह कुछ ही समय में पूरे वृक्ष के रुप में परिवर्तित हो जाएगी। देखनेवाले ताज्जुब करेंगे कि एक ही दिन में यह पूरा पेड़ कैसे आ गया।

परीजाद चिड़िया के बताए रास्ते पर चल कर जंगल में गई और वहाँ से गानेवाले पेड़ की टहनी तोड़ लाई। वह बहुत प्रसन्न थी कि तीनों चीजें मिल गई हैं। फिर भी उसे अपने भाइयों का ख्याल बना हुआ था। उसने चिड़िया से पूछा, यहाँ आने की राह में मेरे दोनों बड़े भाई काले पत्थर बने पड़े हैं। क्या यह संभव है कि मैं उन्हें फिर से जीवित करूँ? मैं तो यह नहीं पहचानती कि उन पत्थरों में कौन-से मेरे भाई हैं। चिड़िया ने कहा, तुम यह करो कि सुराही में जो सुनहरा पानी लाई हो उसकी एक-एक बूँद सारे शिला खंडों पर डाल दो। वे सभी लोग अपने पूर्व रूप में आ जाएँगे और उनके घोड़े भी। उन्हीं में तुम्हारे भाई भी होंगे जिनके पुनर्जीवित होने पर उन्हें पहचान लोगी।

शहजादी चिड़िया की बातें सुन कर प्रसन्न हुई और पिंजड़ा, सुराही और टहनी ले कर पहाड़ से उतरने लगी। जहाँ भी काले पत्थर दिखाई दिए उसने उन पर एक-एक बूँद सुनहरा जल छिड़क दिया। सारे पत्थर आदमी बन गए और उनके घोड़े भी असली रूप में आ गए। इन लोगों में बहमन और परवेज भी थे जो अपने-अपने घोड़ों के साथ जी उठे। परीजाद दोनों भाइयों को पहचान कर उनके गले लग कर रोने लगी। फिर उसने कहा, तुम्हें मालूम है, तुम्हारा क्या हाल था? उन्होंने कहा कि हमें तो ऐसा लग रहा है जैसे अभी तक हम लोग सो रहे थे ओर अभी-अभी सो कर उठे हैं।

परीजाद ने कहा, कुछ याद है तुम्हें? तुम लोग मेरे लिए बोलनेवाली चिड़िया, गानेवाला पेड़ और सुनहरा पानी लेने आए थे और यहाँ अपने काम को और मेरी याद को भूल कर सोने लगे। दोनों भाई अचकचा कर उसे देखने लगे तो उसने कहा, महानुभावो, तुम लोग सो नहीं रहे थे, तुम काले पत्थर की चट्टान बन कर यहाँ पड़े हुए थे। तुमने आते समय बहुत-सी काली चट्टानें देखी होंगी। अब देखो, उनमें से कोई मौजूद है या नहीं। यह सब लोग जो यहाँ दिखाई दे रहे हैं यही वे चट्टानें बने हुए थे।

तुम्हें ताज्जुब हो रहा होगा कि तुम सबके सब जी कैसे उठे। जब मुझे चिड़िया, पानी और पेड़ की टहनी मिल गई तो इनके मिलने से भी तुम्हारे बगैर मुझे बुरा लग रहा था। मैंने इसी चिड़िया से पूछा कि क्या करूँ तो उसने कहा कि सुनहरे पानी की एक- एक बूँद सभी चट्टानों पर डाल कर उन्हें फिर से जीवित कर लो। मैंने इस समय यही किया है।

यह सुन कर बहमन और परवेज तो धन्य-धन्य कर ही उठे, अन्य लोग भी कहने लगे कि तुमने हमें जीवन दान दिया है, हम आजीवन तुम्हारे कृतज्ञ रहेंगे और तुम्हारी आज्ञा का पालन करेंगे।

परीजाद बोली, मैंने तुम लोगों पर कोई अहसान नहीं किया। मैं अपने भाइयों को जिलाना चाहती थी। इसमें अगर तुम्हारा लाभ भी हो गया तो मेरे लिए खुशी की बात है। अब तुम लोग अपने-अपने निवास स्थानों के लिए प्रस्थान करो।

जब वह घोड़े पर चढ़ी तो बहमन ने चाहा कि पिंजड़ा आदि सारी चीजें अपने घोड़े पर लादे ताकि परीजाद का बोझ हलका हो। परीजाद ने कहा, चिड़िया की मालिक तो मैं हूँ, वह मेरे पास रहेगी। तुम लोग चाहो तो एक टहनी और दूसरा पानी की सुराही ले लो। अतएव बहमन ने टहनी और परवेज ने सुनहरे पानी की सुराही ले ली। फिर अन्य पुनर्जीवित लोग भी अपने-अपने घोड़ों पर बैठे और सभी चलने को तैयार हुए क्योंकि काफी दूर तक सभी का एक ही रास्ता था।

परीजाद ने कहा, तुम लोगों में जो सर्वश्रेष्ठ हो वह इस समूह का नायक बन कर आगे चले। सभी लोगों ने एक स्वर में कहा, सुंदरी, तुम से श्रेष्ठ कौन होगा? तुम हमारी जीवनदात्री हो। तुम्हीं सबके आगे चलो। परीजाद शालीनता से बोली, मैं अवस्था में सब से छोटी हूँ और किसी प्रकार भी दल की नेत्री बनने के योग्य नहीं हूँ। किंतु तुम लोग विवश कर रहे हो तो तुम्हारे प्रति आभार प्रकट करते हुए मैं भी दल के आगे चलती हूँ।

यह दल आगे बढ़ा। सभी लोग उस सिद्ध के दर्शन करना चाहते थे जिसने सभी को राह बताई थी। किंतु जब यह दल उसकी कुटिया पर आया तो उसका कुछ पता न पाया। मालूम नहीं वह काल-कवलित हो गया था या वहाँ पर तीन अद्भुत वस्तुओं की राह बताने के लिए ही मौजूद था और उन चीजों के न रहने पर वहाँ से गायब हो गया। सब लोगों को इस बात का बड़ा खेद रहा कि अंतिम बार उसे धन्यवाद न दे सके। यह दल आगे बढ़ा। हर आदमी जहाँ-जहाँ से मार्ग अलग होता था वहाँ-वहाँ से परीजाद के प्रति कृतज्ञता प्रकाशन करके चला गया।

यह तीनों भाई बहन खुशी-खुशी अपने घर में आए। मकान की बारहदरी के सामने जो बाग का हिस्सा था उसमें परीजाद ने बोलनेवाली चिड़िया का पिंजड़ा लटका दिया। कुछ ही देर में उसके आसपास बीसियों तरह के पक्षी जमा हो गए और उसके स्वर में स्वर मिला कर बोलने की कोशिश करने लगे। उसी जगह थोड़ी दूर पर परीजाद ने गानेवाले वृक्ष की टहनी जमीन में रोप दी। कुछ ही देर में बढ़ते-बढ़ते वह पूरा पेड़ हो गई और हवा चलने पर पत्तों की रगड़ से उसमें से ऐसा ही संगीत उठने लगा जैसे मूल वृक्ष से उठ रहा था। परीजाद ने कारीगरों को बुलवा कर एक संगमरमर का हौज बनवाया। उसके बन जाने पर उसमें एक स्वर्ण पात्र रखा और उस पात्र में चाँदी की सुराही से निकाल कर सुनहरे पानी की कुछ बूँदें डालीं। तुरंत ही पानी बढ़ने लगा और बरतन उससे भर गया और फिर उसमें से एक बीस हाथ ऊँचा फव्वारा उठने लगा। फव्वारे का पानी फिर आ कर बरतन ही में गिरता था और इस तरह बरतन में पानी की कमी नहीं होती थी और पानी बाहर भी नहीं बहता था। दो-चार दिन ही में बागों के दारोगा के महल की इन चीजों की चर्चा सारे शहर में होने लगी। सारे शहर के लोग तमाशा देखने के लिए परीजाद के बाग में आने लगे। परीजाद ने सैर के लिए आनेवाले नागरिकों के प्रवेश पर कोई रोक नहीं लगाई और इस प्रकार यह तीनों भाई-बहन नगर में सर्वप्रिय हो गए।

कुछ दिनों तक आराम करने के बाद बहमन और परवेज ने पहले की तरह मृगया का मनोरंजन शुरू किया। वे अपने घिरे हुए जंगल के बाहर भी शिकार खेलने के लिए जाने लगे। एक रोज वे शहर से लगभग एक कोस की दूरी पर स्थित एक जंगल में शिकार खेल रहे थे। संयोग से उसी समय बादशाह भी वहाँ शिकार खेलने आया हुआ था। इन दोनों ने यह देख कर चाहा कि शाही फौजियों की निगाह बचा कर निकल जाएँ क्योंकि वह जंगल शाही शिकारगाह था। लेकिन बच निकलने के चक्कर में वे ऐसे रास्ते पर पड़ गए जहाँ से हो कर बादशाह की सवारी आ रही थी। यह देख कर उन्होंने चाहा कि बगल के किसी रास्ते से निकल जाएँ। यह संभव न हुआ और वे बादशाह के सामने पड़ गए।

मजबूरी में वे घोड़ों से उतरे और बादशाह को झुक कर सलाम करने लगे। पहले बादशाह ने समझा कि वे उसके सामंतों में से हैं और देखने को ठहर गया कि कौन हैं। उसने उन्हें उठने की आज्ञा दी। वे उठे और सिर झुका कर खड़े हो गए। बादशाह उनकी सूरतें देख कर ठगा-सा रह गया। फिर उसने उनका नाम और निवास स्थान पूछा। बहमन ने हाथ जोड़ कर कहा, हुजूर, हम लोग आपके भूतपूर्व बागों के दारोगा के पुत्र हैं। हमारे पिता नहीं रहे। हम जंगल के किनारे उस महल में रहते हैं जो उन्होंने आपसे अनुमति ले कर बनवाया था। हमें वे इसीलिए अच्छे वातवरण में रखते थे कि बड़े हो कर हम आपकी सेवा करें।

बादशाह ने कहा, यह तो ठीक है। लेकिन लगता है कि तुम यहाँ शिकार खेल रहे थे। क्या तुम्हें मालूम नहीं कि यह शाही शिकारगाह है जहाँ और कोई शिकार नहीं खेल सकता? बहमन ने निवेदन किया, सरकार, हमारे पिता असमय ही जाते रहे और हमारा निर्देशक कोई नहीं रहा, इसीलिए हम लोगों का ज्ञान अधूरा है और अन्य नौजवानों की तरह हमसे भी भूल हो जाती है। बादशाह उनकी इस चतुराई पर मुस्कुरा उठा। फिर उसने पूछा, शिकार खेलना आता भी है? दोनों ने कहा, आप अवसर दें तो हम भी देखें हमें कितना शिकार खेलना आता है। बादशाह ने कहा, शिकार खेल कर दिखाओ। जंगल में पहुँचे तो बहमन ने एक शेर और परवेज ने एक रीछ को बरछियों से मार कर बादशाह के आगे रखा। दोबारा घने जंगल में जा कर बहमन ने एक रीछ और परवेज ने एक शेर मारा। बादशाह ने कहा, बस करो, क्या सारे जंगली जानवर आज ही मार डालोगे? मैं तो सिर्फ यह देखना चाहता था कि तुम लोगों में कितना शौर्य है।

बादशाह उनके शिष्टाचार, शारीरिक सौंदर्य और वीरता से अत्यधिक प्रभावित हुआ। वह उन्हें अपने से अलग करना ही नहीं चाहता था। उसने कहा, मैं चाहता हूँ कि तुम लोग यहाँ से मेरे साथ महल में चलो और मेरे साथ भोजन करो। बहमन ने कहा, हुजूर, इस समय आपका साथ न कर सकेंगे। इस उद्दंडता के लिए क्षमा चाहते हैं। बादशाह ने आश्चर्य से पूछा, क्यों? बहमन बोला, हमारी एक बहन है। हम तीनों जो भी करते हैं तीनों की सलाह से करते हैं। हम बहन की सलाह ले कर ही आपके यहाँ आ सकेंगे।

बादशाह ने कहा, मुझे इस बात की बड़ी खुशी है कि तुम भाई-बहन एक-दूसरे की सलाह ही से काम करते हो। आज तुम अपने घर जाओ। अपनी बहन से सलाह करके कल यहीं शिकार खेलने आना और मुझे बताना कि तुम लोगों में क्या सलाह हुई है। बहमन और परवेज बादशाह से विदा हो कर अपने घर आए किंतु उन्हें बादशाह की कही हुई बात याद न रही और उन्होंने बहन से कोई सलाह नहीं ली। दूसरे रोज वे शिकार खेलने गए तो वापसी में बादशाह ने पूछा कि तुमने अपनी बहन से सलाह ली या नहीं। अब यह दोनों घबराए। अस्लियत यह थी कि दोनों का मन शिकार में ऐसा रमा था कि उन्हें शिकार के अलावा हर बात भूल जाती थी। बादशाह ने पूछा तो वे दोनों घबरा कर एक-दूसरे की ओर देखने लगे। आखिर में बहमन ने कहा, हमसे बड़ी भूल हुई, हम अपनी बहन से सलाह लेना बिल्कुल भूल गए। बादशाह ने कहा कि कोई बात नहीं, आज पूछ लेना और कल आ कर मुझे बताना।

लेकिन वे उस दिन भी भूल गए और तीसरे दिन फिर बादशाह के सामने लज्जित हो कर कहा कि हम लोग आज भी आपकी आज्ञा का पालन करना भूल गए। बादशाह इस पर भी नाराज न हुआ कि मैं इन लोगों के साथ भोजन कर इनका सम्मान बढ़ाना चाहता हूँ और इन्हें इतनी भी परवा नहीं कि बहन से याद करके मेरे निमंत्रण की बात करें। लेकिन उसने बहमन को सोने की तीन गेंदे दीं और कहा कि इन्हें कमर में बँधे पटके में रख लो, जब कमर खोलोगे तो पटके से यह गेंदें जमीन पर गिरेंगी और उस समय तुम्हें याद आ जाएगा कि मेरे निमंत्रण के बारे में तुम्हें अपनी बहन से सलाह लेनी है।

इतनी बातचीत होने पर भी दोनों घर जा कर इस बात को भूल गए। लेकिन रात को सोने के लिए जाते समय बहमन ने कमरबंद खोला तो गेंदें जमीन पर गिरीं। वह फौरन अपनी बहन के पास गया और परवेज को भी ले गया। परीजाद अभी तक अपने शयनकक्ष में नहीं गई थी। दोनों भाइयों ने उसे बताया कि बादशाह ने उन्हें भोजन का निमंत्रण दिया है और यह भी कहा कि दो दिन तक तुमने सलाह लेना भूलते रहे। उसने कहा कि यह तो तुम्हारा सौभाग्य है कि बादशाह ने तुम्हें खाने पर बुलाया है किंतु तुमने यह बड़ा बुरा किया कि दो दिन तक बादशाह तक की कही हुई बात को भूले रहे। भला बताओ, जब मुझे इस बात से इतना बुरा लग रहा है तो बादशाह को रंज न हुआ होगा? वैसे तो तुम्हें बादशाह का निमंत्रण मिलते ही उसे सधन्यवाद स्वीकार कर लेना चाहिए था। लेकिन अब जब इतनी बात हो गई तो मैं बोलती चिड़िया से भी सलाह ले लूँ। फिर वह चिड़िया का पिंजड़ा अपने कक्ष में ले गई और बोली, चिड़िया रानी, तुम्हें तो सारी छुपी हुई बातों का पता है और तुम्हारी सलाह हमेशा सही होती है। मुझे तुमसे एक सलाह लेनी है। मेरे भाइयों को बादशाह ने अपने साथ भोजन करने का निमंत्रण दिया है। वे दो-तीन दिन तक यह बात भूल-भूल जाते रहे हैं और आज ही उन्होंने मुझे बताया है। क्या तुम्हारी राय में अब उनका जाना मुनासिब है, बादशाह कहीं नाराज न हों।

चिड़िया ने कहा, मालकिन, तुम्हारे भाइयों को बादशाह की आज्ञा जरूर माननी चाहिए। वह अपने राज्य काल में सभी का मालिक है। उसका मेहमान बनने में इन दोनों को किसी प्रकार हानि नहीं होगी। वे शौक से जाएँ। लेकिन इसके बाद यह भी जरूरी है कि बादशाह को अपने घर आ कर भोजन करने का निमंत्रण दें। परीजाद ने कहा, मैं अब अपने भाई को उनके साधारण कामों के अलावा कहीं जाने देना नहीं चाहती। मैं उनकी सुरक्षा के लिए डरती रहती हूँ। चिड़िया ने कहा, उन्हें बेखटके भेजो, उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा। परीजाद ने कहा, अच्छा, जब बादशाह यहाँ आएँ तो मैं उनके सामने निकलूँ या नहीं। चिड़िया ने कहा, इसमें कोई हर्ज नहीं है। हर बादशाह अपनी सारी प्रजा के लिए पिता के समान होता है और पिता के सामने जाने में किसी को झिझक नहीं होनी चाहिए। परीजाद ने इसके बाद भाइयों से कहा कि तुम बादशाह का निमंत्रण स्वीकार कर लो लेकिन इसके बाद उससे एक बार यहाँ भोजन करने को भी कहो।

दूसरे दिन शिकारगाह में बादशाह ने उनसे पूछा कि आज तुमने अपनी बहन से पूछा या आज भी भूल गए। बहमन ने कहा, हम आपकी आज्ञा से बाहर नहीं हो सकते। हमने उससे पूछा तो उसने हमें आपका निमंत्रण स्वीकार करने की सलाह दी। इसके अलावा उसने हमें बुरा-भला भी कहा कि हम दो दिन तक यह क्यों भूले रहे।

बादशाह ने कहा, इसकी कोई बात नहीं है। तुम दो दिनों तक मेरी बात भूले रहे इसकी मुझे कोई नाराजगी नहीं है। दोनों भाई यह सुन कर बड़े लज्जित हुए कि बादशाह हम पर इतना कृपालु है और हम उसके प्रति इतने लापरवाह हैं। वे लज्जा के मारे बादशाह से दूर-दूर ही रहे। बादशाह ने यह देखा तो उन्हें पास बुला कर उन्हें आश्वासन दिया कि ऐसी छोटी-मोटी भूलों का मैं खयाल नहीं किया करता और मैं तुम लोगों से बिल्कुल नाराज नहीं हूँ। फिर उसने शिकार खत्म किया और महल को वापस हुआ। उसके साथ बहमन और परवेज भी थे। बादशाह ने इन दोनों की ऐसी अभ्यर्थना की कि उससे कई दरबारियों और सरदारों को ईर्ष्या होने लगी कि इन अजनबियों के प्रति बादशाह इतना कृपालु क्यों है।

किंतु महल के कर्मचारी और सेवक तथा अन्य उपस्थित प्रजाजन, यद्यपि उन्हें भी इस बात का आश्चर्य था कि इन नव परिचितों का इतना सम्मान हो रहा है, दोनों राजकुमारों के रंग-रूप और आचार-व्यवहार से प्रभावित थे। उनमें आपस में बातें होतीं कि बादशाह ने जिस मलिका को पिंजड़े में कैद कर रखा है उसके पेट से बच्चे पैदा होते तो वे इतने ही बड़े होते। खैर, जब बादशाह महल में आया तो भोजन का समय हो गया था। दासों ने स्वर्ण पात्रों में भोजन परोसा। बादशाह ने बहमन और परवेज को बैठने का इशारा किया। वे दोनों यह जानते ही न थे कि बादशाह के साथ कैसे भोजन किया जाता है। शाही रीति-आदाब बजा कर भोजन के आसन पर बैठने के बजाय वे सीधे अपने आसनों पर डट गए।

बादशाह इस पर भी मुस्कुरा उठा। उसने भोजन के दौरान इन दोनों से बातें करके उनकी शिष्टता और ज्ञान की परीक्षा ली जिसमें यह दोनों अच्छी शिक्षा पाने के कारण पूरे उतरे। बादशाह सोचने लगा कि अगर ऐसे कुशाग्र-बुद्धि और वीर शहजादे उसके होते तो कितना अच्छा होता। उनके प्रति बादशाह का आकर्षण उनकी भली बातों से बढ़ता जाता था किंतु वे जो भूलें करते थे उससे यह आकर्षण कम नहीं होता था। भोजन के बाद बादशाह उन्हें अपने मनोरंजन कक्ष में ले गया और देर तक उनसे बातें करता रहा। लगता था कि उनकी बातें सुनने से उसका जी भरता ही नहीं।

फिर बादशाह ने गायन-वादन आरंभ करने का आदेश दिया। अपने काल के सर्वश्रेष्ठ गायक और वादक आ कर उपस्थित हुए और उन्होंने अपनी श्रेष्ठ कला का प्रदर्शन किया। फिर नाच का इंतजाम किया गया और रूपसी कलाकार नृत्यांगनाओं ने मनमोहक नृत्य दिखा कर सभी का चित्त प्रसन्न किया। फिर नाट्यकारों और विदूषकों ने बादशाह और दूसरे मेहमानों का मनोरंजन किया। यह कार्यक्रम कई घंटों तक चलते रहे और जब वे समाप्त हुए तो संध्या होने लगी थी।

अब बहमन और परवेज ने अपने घर जाने की अनुमति ली। बादशाह ने कहा, कल तुम फिर शिकारगाह में मेरे साथ शिकार खेलने आना। शिकार के बाद कल भी मेरे साथ यहाँ भोजन करना। उन दोनों ने कहा, हुजूर की हमारे ऊपर बड़ी कृपा है। हम शिकारगाह में जरूर आएँगे किंतु हमारा निवेदन है कि जब आप शिकार खत्म करें तो हमारी कुटी में आ कर और हमारा रूखा-सूखा भोजन ग्रहण करके हमारा मान बढ़ाएँ। बादशाह तो उन से अति प्रसन्न था ही, उसने तुरंत ही उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया। उसने कहा, मुझे तुम्हारे यहाँ आ कर प्रसन्नता होगी। मैं तुम्हारी बहन से मिल कर भी बहुत प्रसन्न हूँगा क्योंकि तुम्हारी बातों से पता चला है कि वह बहुत बुद्धिमती और व्यवहारकुशल है। उसका मेहमान बन कर मुझे बड़ी खुशी होगी।

बहमन और परवेज घर पहुँचे तो उन्होंने परीजाद को बताया कि बादशाह ने सभी के समक्ष हमारा बड़ा सत्कार किया और यह भी वादा किया है कि कल शिकार से लौट कर वह हमारे घर आएगा और यहाँ भोजन करेगा। उन्होंने कहा, हम ने बादशाह को दावत तो दे दी है लेकिन अब यह भी जरूरी है कि उसकी प्रतिष्ठा के अनुकूल साज-सामान और भोजन का प्रबंध किया जाए। परीजाद ने भाइयों के हौसले की प्रशंसा की और कहा, तुम लोग चिंता न करो। मैं बोलनेवाली चिड़िया से सलाह ले कर सब प्रबंध कर रखूँगी। फिर वह चिड़िया का पिंजड़ा अपने कमरे में ले गई। उसने चिड़िया को पूरा हाल बताया तो उसने कहा, मालकिन, यह बड़े सौभाग्य की बात है कि बादशाह आ रहे हैं। तुम उनके स्वागत-सत्कार का जो भी प्रबंध कर सको वह यथेष्ट होगा। किंतु मेरे कहने से एक विशेष भोजन बनवाओ। तुम खीरे का गाढ़ा शोरबा बनवाओ और वह जिस प्याले में बादशाह के सामने लाया जाए उसमें शोरबे की सतह पर अनबिंधे मोती इस तरह बिछे हों जैसे पाक क्रिया के दौरान उसी सतह पर आ गए हों। परीजाद ने हैरान हो कर कहा, यह किस प्रकार का व्यंजन होगा? मेरी तो कल्पना में भी नहीं आता कि कोई व्यक्ति शोरबे के साथ मोती खा सकता है। बादशाह क्या कहेंगे? फिर अनबिंधे मोती मिलेंगे भी कहाँ से?

चिड़िया ने कहा, मालकिन, यह बात मैंने सोच-समझ कर कही है। तुम इस बारे में बहस मत करो, मेरी यह बात जरूर मान लो। मोती कहाँ मिलेंगे यह मैं तुम्हें बताती हूँ। तुम अपने कृत्रिम जंगल में जा कर दाहिनी ओर के सब से बड़े पेड़ की जड़ के पास की जमीन खुदवाना। वहाँ से तुम्हें अपनी आवश्यकता से कहीं अधिक मोती मिल जाएँगे। परीजाद को चिड़िया पर इतना भरोसा था कि उसने उसकी बात मान ली। दूसरे दिन सुबह दो मजदूरों को ले कर गई और वर्णित वृक्ष के नीचे जमीन खुदवाने लगी। खोदते-खोदते एक बार फावड़ा एक कड़ी चीज से टकराया। होशियारी से खोदा तो मजदूरों को एक सोने का संदूकचा मिला। उसे बाहर ला कर खोला गया तो उसके अंदर ढकने तक अनबिंधे मोती भरे हुए थे।

परीजाद उन्हें पा कर बहुत खुश हुई। चिड़िया के ज्ञान पर उसका विश्वास और बढ़ गया। वह सोने का संदूकचा उठा कर अपने मकान की ओर चली। बहमन और परवेज को सुबह ही यह देख कर आश्चर्य हो रहा था कि वह इस समय मजदूरों के साथ कहाँ जा रही है। इस समय सोने का संदूकचा लिए वापस आते देख कर और भी आश्चर्य में पड़े। उन्होंने कहा कि तुम सुबह-सुबह कहाँ गई थीं और यह संदूकचा कहाँ से लाई हो, सुबह जाते समय तो यह संदूकचा तुम्हारे हाथ में नहीं था। परीजाद ने कहा, यह लंबी बात है। खड़े-खड़े नहीं बताई जा सकती। अंदर चलो तो बताऊँगी। वे लोग उसके साथ घर के अंदर आए तो उसने कहा, कल शाम को मैंने बोलनेवाली चिड़िया से सलाह ली थी कि बादशाह की खातिरदारी के लिए क्या करना चाहिए। उसने सलाह दी कि और साज-सामान और व्यंजन तो ऐसे हों जैसे बादशाहों-अमीरों के खाने में होते हैं। लेकिन उसे एक प्याले में खीरे का गाढ़ा शोरबा भी दिया जाए जिसकी सतह पर अनबिंधे मोती पटे पड़े हों। मैंने बहुत विरोध करना चाहा कि बादशाह इसे मजाक समझेंगे और क्रुद्ध भी हो सकते हैं। लेकिन वह नहीं मानी, अपने सुझाव पर अड़ी रही। वह कहने लगी कि यह अजीब बात करने के लिए मैं बहुत सोच-समझ कर तुमसे कह रही हूँ और आश्वासन देती हूँ कि बादशाह नाराज नहीं होंगे और इस सब का नतीजा अच्छा ही निकलेगा। तुम जानते हो कि मुझे उसकी बात पर विश्वास है। उसी ने मुझे गानेवाला पेड़ और सुनहरा पानी दिलवाया है और उसी की सलाह से तुम दोनों और तुम्हारे साथ बीसियों और आदमी दोबारा जिंदगी पा सके हैं। इसीलिए मैं उसकी किसी बात को नहीं टालती। उसी की सलाह पर मैं अपने जंगल के उस पेड़ के पास खुदाई करा कर मोतियों का डिब्बा लाई हूँ।

बहमन और परवेज यह सुन कर चक्कर में पड़े और काफी देर तक सोचते रहे। अंत में उन्होंने यही ठीक समझा कि जो कुछ हो रहा है होने दिया जाए। वे कहने लगे, बहन परीजाद, तुम हम दोनों से अधिक बुद्धिमान हो। इसमें भी संदेह नहीं कि वह चिड़िया बहुत-सी ऐसी बातें जानती है जो संसार में कोई अन्य व्यक्ति नहीं जानता। इसलिए चिड़िया की बात मान लेनी चाहिए। बादशाह नाराज होगा तो देखा जाएगा।

परीजाद ने बावर्चियों को आदेश दिया कि दोपहर तक राजाओं, बादशाहों के लायक पूरा भोजन बनाओ। क्या बने यह तुम्हीं तय करो। सिर्फ एक चीज मेरे कहने से बनाना। वह है खीरे का गाढ़ा शोरबा जिसकी सतह अनबिंधे मोतियों से पटी पड़ी हो। बावर्चियों ने यह सुन कर बड़ा आश्चर्य प्रकट किया कि खाने की चीजों में साबुत मोती डालने का क्या मतलब है। उन्होंने कहा, सरकार, हमने ऐसा खाना कभी देखा क्या सुना तक नहीं। हंसों के मोती चुगने की बात जरूर सुनी हैं, आदमियों को मोती खाते कभी नहीं सुना। परीजाद ने कहा, मैंने तुम्हें बहस करने के लिए नहीं बुलाया। जो कहती हूँ वह करो। और जितने मोती बचें वह मेरे पास वापस भेज देना। वे बेचारे चुपचाप चले गए। इधर परीजाद ने मकान की ऐसी सफाई कराई कि वह शीशे की तरह चमकने लगा।

उसी समय शहजादे बढ़िया कपड़े पहन कर घोड़ों पर सवार हुए और शाही शिकारगाह में पहुँचे। शिकारगाह में कुछ देर तक उन्होंने बादशाह के साथ रह कर शिकार खेला। किंतु उस रोज गर्मी अधिक थी और धूप तेज थी, इसलिए उसने और दिनों से कुछ जल्दी ही शिकार खेलना खत्म कर दिया और अपने सैनिकों को वापस भेज कर दो-एक आदमियों को ले कर बहमन और परवेज के साथ उनके भवन की ओर चला। बहमन ने आगे बढ़ कर पहले से परीजाद को बताया कि बादशाह आ रहे हैं। वह ठीक कपड़े पहन कर भवन के मुख्य द्वार पर आ खड़ी हुई। बादशाह द्वार के सामने घोड़े से उतरा और भवन की ओर चला तो परीजाद आगे बढ़ी और उसने अपना सिर बादशाह के चरणों पर रख दिया।

बहमन और परवेज ने परिचय दिया कि यही हमारी बहन परीजाद है। बादशाह ने उसे उठा कर उसके सिर पर हाथ फेरा ओर उसके सुंदर रूप को वात्सल्यपूर्ण दृष्टि से देखता रहा। उसे यह देख कर ताज्जुब-सा हो रहा था कि परीजाद की जैसी सूरत उसकी स्मृति में धुँधली-सी उभर रही थी।

किंतु वह समझ न पाया कि किसकी सूरत है। इसके बाद परीजाद बादशाह को भवन के अंदर ले गई। उसने बादशाह को अपने सुंदर और विशाल आवास के हर भाग को दिखाया। बादशाह ने पूरा भवन देख कर कहा, बेटी, तुमने अपने महल की सजावट और रखरखाव खूब कर रक्खा है। अब मुझे अपना बाग भी दिखाओ। कोई आदमी मुझसे तुम्हारे बाग की बड़ी तारीफ कर रहा था।

परीजाद ने उस कक्ष का, जिसमें यह सभी लोग मौजूद थे, एक ओर का दरवाजा खोला तो हरा-भरा बाग दिखाई दिया। बाग में वैसे तो सब कुछ सुंदर था किंतु बादशाह की नजर फव्वारे पर अटक गई। सुनहरा पानी काफी ऊँचाई तक उछल रहा था। बादशाह ने उसे पास से देखना चाहा। परीजाद उसे फव्वारे के पास ले गई। बादशाह ने कहा, इसके सुनहरे पानी का हौज कहाँ है और किस चीज के जोर से यह फव्वारा इतना ऊँचा उछलता है। यहाँ तो मुझे कोई चीज दिखाई नहीं देती न कोई हौज...।

वह अपनी बात पूरी करने के पहले ही चौंक कर एक ओर देखने लगा जहाँ से सुमधुर संगीत का ध्वनि आ रही थी। उसने कहा, क्या तुम लोगों ने बाग के अंदर भी गाने-बजाने का प्रबंध कर रखा है और यह कौन गायक है जिसकी आवाज शाही गवैयों से भी अच्छी है? परीजाद हँस कर बोली, नहीं हुजूर, कोई गवैया नहीं है। यह आदमी नहीं, पेड़ गा रहे हैं। बादशाह की भौंहें चढ़ गईं, उसने सोचा परीजाद हँसी कर रही है। लेकिन परीजाद ने कहा, आइए, आपको दिखाऊँ। यह कह कर वह बादशाह को गानेवाले पेड़ के पास ले गई। बादशाह हक्का-बक्का रह गया। मधुर संगीत वास्तव में पेड़ ही से निकल रहा था। कुछ देर तक बादशाह के मुँह से कोई आवाज नहीं निकली। कभी फटी-फटी आँखों से गानेवाले पेड़ को देखता कभी सुनहरे फव्वारे को।

कुछ देर बाद उसने कहा, यह दोनों चीजें कल्पना के बाहर हैं। यह पेड़ तुमने कहाँ पाया? और हाँ, मैं पूछ रहा था कि फव्वारे का हौज कहा है और इतना ऊँचा किस चीज के जोर से उछलता है? परीजाद ने कहा, सरकार, इस पानी का कहीं हौज नहीं है, न किसी कल द्वारा इसे जोर की उछाल दी जाती है। संगमरमर के हौज के अंदर रखा हुआ जो बर्तन आप देख रहे हैं, उसी में कुल पानी है। यह उसी में से उछलता है और वहीं पर लौट कर गिरता है। यह सूखता भी नहीं इसीलिए कम नहीं होता। जो गानेवाला पेड़ अभी आपने देखा है उसकी अपनी विशेषता संगीत देने की है। इसके पत्ते ऐसे हैं कि जब हवा चलने पर आपस में रगड़ खाते हैं तो उनसे अपने आप मनोहर संगीत पैदा होता है। जब हवा बिल्कुल नहीं चलती तो यह वृक्ष मूक रहता है।

बादशाह ने कहा, यह तो बड़ी अजीब चीजें हैं। इनके जैसी किसी चीज की मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। तुमने इन्हें कहाँ पाया? परीजाद ने कहा, यह चीजें किसी देश में नहीं पाई जातीं। मैं इन्हें एक रहस्यमय स्थान से लाई हूँ लेकिन मेरे वहाँ से आने के बाद वहाँ का रास्ता भी बंद हो गया।

फिर परीजाद ने कहा, सरकार, मेरे पास एक और अजीब चीज है जिसे आप देखें। यह एक चिड़िया है जो आदमियों की तरह बोलती है। और जब यह गाती है तो सारे पक्षी जमा हो जाते हैं और इसके सुर में सुर मिला कर गाने गाते हैं। बादशाह ने कहा, उस चिड़िया को भी दिखाओ। परीजाद बादशाह को उस बारहदरी के पास लाई जिसमें उस चिड़िया का पिंजड़ा रखा गया था। बादशाह ने देखा कि आसपास के चार-छह पेड़ों पर सैकड़ों और विभिन्न प्रकार के पक्षी एक सुर में गा रहे हैं। उसने पूछा, क्या यह सब पक्षी तुमने पाले हैं? परीजाद बोली, नहीं। यह बारहदरी में रखे पिंजड़े में जो चिड़िया है उसके गाने से खिंच कर आए हैं और उसके साथ-साथ गा रहे हैं। बादशाह बारहदरी में गया तो देखा कि पिंजड़े में बंद एक चिड़िया मस्त हो कर गा रही है।

परीजाद ने कहा, बोलनेवाली चिड़िया, देखती नहीं कि बादशाह सलामत खुद आए हुए हैं? तेरा इधर ध्यान नहीं है। यह सुन कर चिड़िया चुप हो गई और उसके साथ ही आसपास के पेड़ों पर बैठे हुए सारे पक्षी चुप हो गए। चिड़िया ने बादशाह को प्रणाम किया और पूछा कि आपको यहाँ तक आने में किसी प्रकार का कष्ट तो नहीं हुआ। बादशाह को यह देख कर ताज्जुब हुआ कि यह चिड़िया बिल्कुल मनुष्य जैसी आवाज में बोलती है। उसने चिड़िया के अभिवादन का यथोचित उत्तर दिया और कुछ देर उससे बातें कीं। चिड़िया ने हर बात का शिष्टाचारपूर्वक उत्तर दिया। बादशाह उससे ऐसा प्रभावित हुआ कि खाने के समय भी उसका पिंजड़ा पास में रखवा लिया ताकि उससे बातें करता रहे।

बादशाह खाने पर बैठा तो संयोग से सबसे पहले खीरे के शोरबेवाला कटोरा ही उठाया। जब उसमें देखा कि उसकी सतह पर अनबिंधे मोती बिछे पड़े हैं, उसने खाने पर बढ़ा हुआ हाथ खींच लिया और नाराजगी से बोला, यह क्या मजाक है? यह क्या पेश किया गया है? तीनों भाई-बहन चुप रहे किंतु चिड़िया ने तपाक से कहा, सरकार, ईश्वर की माया अपरंपार है। मलिका के पेट से कुत्ते-बिल्ली निकल सकते हैं तो बादशाह के पेट में मोतियों के ढेर भी जा सकते हैं।

बादशाह पहले तो आँखें तरेर कर चिड़िया को देखने लगा। फिर उसे बीती बातें याद आईं तो उसने सिर नीचा कर लिया। कुछ देर मौन रहने के बाद बोला, चिड़िया, तेरी बात ठीक है। मैं भी सोचता हूँ जिन बातों पर मैंने विश्वास किया वे बुद्धि से कोसों दूर हैं। फिर भी मैंने उन पर इसलिए विश्वास किया कि स्वयं मलिका की बहनों ने यह कहा था और मैंने सोचा कि वे झूठ न कहेंगी क्योंकि वे उसकी सगी बहनें थीं, उसकी हितचिंतक थीं।

चिड़िया ने कहा, सरकार से यही तो भूल हुई कि आप ने उन्हें हितचिंतक समझा। जब से उन्होंने देखा कि वे नौकरों से ब्याही गईं और छोटी बहन राजरानी बन गई तो वे जल मरीं। उन दुष्टों ने इस बात का भी ख्याल न किया कि मलिका ने शादी के बाद भी उनसे बहनों जैसा प्रेम रखा था। मलिका को मृत्यु-दंड दिलाने के लिए ही उन्होंने तीन- तीन बार सफेद झूठ बोला। वह तो भला हो उस नेक मंत्री का जिसके कारण मलिका की जान बच गई।

मलिका के प्रति अपने दुर्व्यवहार को याद करके बादशाह की आँखों में आँसू आने लगे। चिड़िया फिर बोली, सरकार, अपने सामने बैठे इन तीन बच्चों को देखिए। यह वह पिल्ला, बिलौटा और छछूंदर हैं जिन्हें आपकी मलिका ने जन्म दिया था। मलिका की दुष्ट बहनों ने इनके जन्म पर इनकी जगह मरे जानवर रख दिए और इन्हें कंबल में लपेट कर टोकरियों में डाल-डाल कर बहा दिया था ताकि दूर जा कर डूब जाएँ और किसी को पता न चले। किंतु भगवान को इन्हें जीवित रखना था। आपके दिवंगत बागों के दारोगा ने इन तीनों को ही नहर से निकलवा लिया। उसके कोई संतान नहीं थी इसलिए उसने इनका लालन-पालन अपनी संतान की तरह किया और इन्हें भली प्रकार शिक्षा दिलाई और इनके लिए यह महल बनवाया। सरकार, यह तीनों और कोई नहीं हैं, आप ही की संतानें हैं।

बादशाह ने कहा, चिड़िया, तुझे मैं किस तरह धन्यवाद दूँ कि दुष्टों की दुष्टता और मलिका की दोषहीनता मेरे सामने स्पष्ट की और मेरे बच्चों को पहचनवाया। मैं भी बराबर सोचता था कि इन लड़कों के प्रति मन में अकारण ममता क्यों उपजती है और इनकी बातों पर नाराज क्यों नहीं हो पाता।

चिड़िया ने जो सूचना दी थी वह बादशाह ही के लिए नहीं, बहमन, परवेज और परीजाद के लिए भी नई थी। वे तीनों अपनी जगह से उठे और बादशाह के पैरों पर गिर पड़े। बादशाह ने सभी को उठा कर सीने से लगाया। चारों की आँखों से आँसुओं की धारा बह निकली। कुछ देर बाद जब सहज स्थिति में आए तो सबने मिल कर रुचिपूर्वक भोजन किया। कुछ देर तक बातें करने के बाद बादशाह ने उनसे कहा, अब मैं महल को जाता हूँ। कल फिर आऊँगा। कल तुम लोग मेरे ही नहीं, अपनी माता के स्वागत के लिए भी तैयार रहना और इसके बाद महल में रहने के लिए भी।

महल में पहुँच कर बादशाह ने मंत्री को बुलाया। उसने उसकी सुमति की प्रशंसा की जिसके कारण मलिका की जान बची थी। फिर उसने मलिका की बहनों की दुष्टता का वर्णन किया जिन्होंने अपनी शिष्ट और सदाचारी सगी बहन के विरुद्ध ऐसा घृणित षड्यंत्र रचा था और दो राजपुत्रों और एक राजपुत्री की लगभग जान ही ले ली थी। उसने आदेश दिया कि उन दोनों को अभी वधस्थल में ले जाओ और उनके सिर उड़वा दो। वे किसी प्रकार दया की पात्र नहीं। मंत्री ने अविलंब शाही हुक्म पर कार्य किया और दोनों दुष्टों को वह दंड मिल गया जिसकी भागी वे बहुत दिनों से थीं।

फिर बादशाह जामा मसजिद के सामने उस कैदखाने में गया जहाँ उसने मलिका को सतत अप्रतिष्ठा का दंड दे कर रखा था। उसकी दुर्बलता और फटे-पुराने वस्त्र देख कर बादशाह से बर्दाश्त न हुआ और वह उसे गले लगा कर फूट-फूट कर रोने लगा। उसने मलिका को बताया कि मैंने तुम्हें जो दंड दिया उसका कारण तुम्हारी वे बहनें ही थीं जिन्हें तुमने और मैंने तुम्हारा हितचिंतक समझा था। उसने बताया कि दोनों मरवा दी गई हैं। उसने यह भी कहा कि यह सब मुझे एक अलौकिक बोलनेवाली चिड़िया से मालूम हुआ।

मलिका यह सुन कर खुशी के मारे रोने लगी। बादशाह उसे महल में लाया। उसने हम्माम किया और शाही पोशाक पहनी। रात भर महल में हँसी-खुशी होती रही। सुबह बादशाह ने मलिका को बताया कि भगवान की दया से तुम्हारे दोनों बेटे और बेटी जिंदा हैं और बड़े आराम से हैं, तुम चल कर उनसे मिलो। यह खबर सारे राज्य में फैल गई और सभी लोग उत्सव-सा मनाने लगे।

हर जगह नाच-रंग होने लगे। मलिका बादशाह के साथ इन लोगों के महल में गई। तीनों बच्चे अपनी माँ से देर तक चिपटे रहे। फिर सब ने मिल कर भोजन किया। इसके बाद बादशाह और तीनों संतानों ने मलिका को गानेवाला पेड़, सुनहरे जल का स्वयंचालित फव्वारा और मनुष्यों की भाँति बोलनेवाली चिड़िया दिखाई। मलिका को मालूम हो रहा था कि वह स्वप्न देख रही है।

उन लोगों के निवास स्थान से शाही महल तक आनेवाली सवारी को देखने के लिए सड़कों पर जबर्दस्त भीड़ हो गई। बादशाह ने सार्वजनिक समारोह का आदेश दिया और कई दिनों तक खेल-तमाशे होते रहे। बादशाह ने इतना दान दिया कि शहर में कोई व्यक्ति निर्धन नहीं रहा। बादशाह ने इसी अवसर पर बहमन को युवराज घोषित करके क्रियात्मक रूप से उसके हाथ में सारा राज्य-प्रबंध दे दिया। परवेज को उसने सेना का अधिपति बना दिया। परीजाद को अपने एक मित्र बड़े बादशाह के एकमात्र पुत्र से ब्याह दिया।

शहरजाद ने यह कहानी खत्म की तो दुनियाजाद ने कहा, बड़ी सुंदर कहानी सुनाई। अब कौन-सी कहानी सुनाओगी? शहरजाद ठंडी साँस भर कर बोली, कोई नहीं। मुझे जो भी कहानियाँ आती थीं सब खत्म हो गईं और आज जल्लाद के हाथों मेरी कहानी भी खत्म हो जाएगी।

शहरयार ने मुस्कुरा कर कहा, नहीं बेगम, तुम्हारी कही हुई कहानियाँ अमर रहेंगी और तुम्हारी उम्र लंबी होगी। तुमने कहानियाँ सुना कर मेरा ज्ञानवर्धन भी किया है और मन का मैल भी धो दिया है। मैं आज घोषणा करूँगा कि आज से मैं अपना शादी करके पत्नी को मरवाने का नियम समाप्त कर रहा हूँ।

शहरजाद उसके पैरों पर गिर पड़ी। दुनियाजाद के आँसू बहने लगे।