ईश्वर और देवता / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल
किलाफिस नगर के एक मन्दिर की सीढ़ियों पर एक मिथ्यावादी खड़ा था। वह अनेक देवताओं के बारे में प्रवचन कर रहा था। लोग मन-ही-मन सोचते थे - "यह सब तो हम जानते ही है। क्या वे हमेशा हमारे साथ नहीं रहते? जहाँ भी हम जाते हैं, वे हमारे साथ नहीं होते?"
कुछ ही समय बाद, बाजार में खड़ा एक अन्य आदमी लोगों के बीच कह रहा था - "देवता नाम की कोई चीज दुनिया में नहीं है।" उसकी वाणी सुनने वाले बहुत-से लोग बेहद खुश थे क्योंकि देवताओं से वे त्रस्त होते थे।
किसी और दिन, वक्तृत्व शक्ति से भरपूर एक अन्य व्यक्ति आया और बोला, "ईश्वर है और सिर्फ एक है।" लोग हताश हो गए। उनके मन को इस डर ने घेर लिया कि अकेला ईश्वर अनेक देवताओं के मुकाबले उनका कितना हित कर पाएगा?
उसी दौरान एक अन्य यानी चौथा व्यक्ति नगर में आया। उसने लोगों से कहा - "देवता तीन हैं और वे एक की तरह हवा पर सवार हैं। उनकी एक माँ है जो उनकी साथी भी है और बहन भी।"
इस संदेश से सबने राहत महसूस की। लोगों ने अपने मन में कहा, "एकाकार तीन देवता हमारी गलतियों से असहमत हो सकते हैं। तब, उनकी महिमामयी माता उन गलतियों को क्षमा करने के लिए अवश्य ही हमारी तरफदारी करेंगी।"
किलाफिस नगर में आज भी बहुत-से लोग परस्पर इस वाद-विवाद में उलझे दीख जाते हैं कि देवता अनेक हैं या वे हैं ही नहीं; या फिर वह एक है या एकाकार तीन? और उनकी एक महिमामयी माँ भी है।