ईस्ट इंडिया कंपनी का नया स्वदेशी अवतार / जयप्रकाश चौकसे

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ईस्ट इंडिया कंपनी का नया स्वदेशी अवतार
प्रकाशन तिथि : 07 जनवरी 2020


जब आगे के रास्ते पर कोहरा छाया हो तब पीछे देखने की प्रक्रिया कोहरे को छांटने में मदद कर सकती है। व्यवस्था, महत्वपूर्ण क्षेत्र कॉर्पोरेट को सौंप रही है। देश का कॉर्पोरेटीकरण तेजी से हो रहा है। रक्षा और रेल जैसे विभाग प्राइवेट सेक्टर को सौंपे जाने की पहल की जा चुकी है। एक कंपनी देश को चला रही है। इतिहास हमें सिखाता है कि घटनाएं दोहराई जाती हैं और हम इतिहास से कुछ सीखना भी नहीं चाहते। इतिहास, शिक्षक की तरह है जिसके हाथ दंड देने की छड़ी होती है और वह तोता रटंत को प्रोत्साहित करता है। सवाल पूछने वाले छात्र को मुर्गा बनने का दंड दिया जाता है। कक्षा में एक ब्लेकबोर्ड होता है और उस पर लिखी इबारत को साफ करने के लिए डस्टर होता है। कभी-कभी डस्टर द्वारा साफ करने के बाद भी पुरानी लिखी इबारत की झलक दिखाई पड़ती है। मानो ब्लेकबोर्ड का अवचेतन है जिसे कोई डस्टर साफ नहीं कर पाता। मिटाई हुई इबारतें ब्लेकबोर्ड पर नृत्य करती सी दिखाई पड़ती हैं।

मुगल बादशाह ने अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी को हिंदुस्तान में व्यापार करने की इजाजत थी। इस तरह की इजाजत फ्रांस और पुर्तगाल के व्यापारियों को भी दी गई थी, परंतु ईस्ट इंडिया कंपनी का अजगर उन्हें निगल गया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी फौज भी खड़ी कर दी। छोटी-छोटी रियासतों में बंटे देश में अंग्रेजों ने हिंदुस्तानियों की आराम पसंदगी का लाभ यह उठाया कि राजा से कुछ जमीन मांगी जहां कंपनी की फौज रहेगी और पड़ोसी राज्य में उसकी रक्षा करेगी। अय्याश राजाओं ने निजी फौज की संख्या घटा दी और मात्र दशहरे की सलामी के लिए आवश्यक सीमित संख्या की फौज रखी। जब कोई राजा अपनी रक्षा के लिए किसी दूसरे पर निर्भर रहने लगता है तो वह अपनी स्वतंत्रता खो देता है।

लॉर्ड क्लाइव ने हिंदुस्तान में अंग्रेजों के साम्राज्य का विस्तार किया। लॉर्ड क्लाइव इतने सफल रहे कि इंग्लैंड में उन्हें हमेशा 'क्लाइव ऑफ़ इंडिया' कहा गया और उनके स्मारक पर भी यही लिखा है। कुछ अंग्रेज हिंदुस्तानियों के रंग में ऐसे रंगे कि वे बहुत हद तक भारतीय हो गए। ज्ञातव्य है कि केतन मेहता की आमिर खान अभिनीत फिल्म 'मंगल पांडे' में एक अंग्रेज और मंगल पांडे की मित्रता प्रस्तुत की गई है। अंग्रेज अफसर एक युवा विधवा को सती बनाए जाने से बचाता है। फिल्म में उनकी प्रेमकथा भावना गहराई से प्रस्तुत की गई है।

केतन मेहता की फिल्म में रानी मुखर्जी अभिनीत वेश्या का पत्र प्रस्तुत किया गया है। उसका एक संवाद है- 'हम तवायफें तो अपना शरीर ही बेचती हैं, परंतु आप मर्दों ने तो अपनी आत्मा बेच दी है।' दरअसल कुछ तवायफों ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वालों की हौसला अफजाई की है और शस्त्र भी उठाए हैं। ग्वालियर के कवि पवन करण ने माइथोलॉजी और मुगल कालखंड में उपेक्षित नारियों पर कविताएं लिखी हैं। उनकी 'स्त्री शतक' दो खंडों में प्रकाशित हुई है। मुगल कालखंड की उपेक्षित नारियों पर भी लिखा है। उनसे अनुरोध है कि उन तवायफों पर भी लिखें, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़े जाने वाले संग्राम में अपना योगदान दिया। पवन करण के भीतर बैठी स्त्री उनसे बहुत कुछ लिखवा रही है।

ज्ञातव्य है कि ईस्ट इंडिया कंपनी का लंदन में मुख्यालय एक भारतीय ने खरीदा है। जहां रखे दस्तावेज का अध्ययन किया जा सकता है। इंग्लैंड के चुनाव में दर्जनभर से अधिक विजेता भारतीय मूल के व्यक्ति हैं। भविष्य में यह भी संभव है कि इंग्लैंड की संसद में हिंदुस्तानी मूल के सांसदों की संख्या इतनी बढ़ जाए कि किसी दिन इंग्लैंड का प्रधानमंत्री कोई भारतीय मूल का व्यक्ति बन जाए। इतिहास का चक्र ऐसा ही घूमता है और कबीर से प्रेरित है। 'माटी कहे कुम्हार से तू क्या रौंदे मोय, इक दिन ऐसा आएगा मैं रौदूंगी तोय।'

ज्ञातव्य है कि आशुतोष गोवारीकर और आमिर खान की फिल्म 'लगान' में भी एक सहृदय अंग्रेज महिला गांव वालों की क्रिकेट टीम को खेल के नियम और बारीकियां सिखाती है। यह महिला मन ही मन नायक भुवन से प्रेम करने लगती है। गीतकार जावेद अख्तर ने प्रेम त्रिकोण में अंग्रेज महिला को राधा की जगह रखकर गीत लिखा था। ए.आर.रहमान ने मधुर संगीत रचा था। दरअसल 'लगान' बनाने के साथ ही आमिर खान ने अपने भीतर की खोज को तेज कर दिया। उनकी यह यात्रा अभी भी जारी है। विगत पखवाड़े आनंद मोहन माथुर ने निजीकरण के खिलाफ दो आयोजन किए। अरुणा रॉय, मेधा पाटकर, प्रोफेसर अरुण कुमार और श्री सत्यवान ने सभाओं में भाषण दिए। मनुष्य के कार्य और उसके विचार कभी-कभी उसके चेहरे को बदलने लगते हैं। आनंद मोहन माथुर कुछ हद तक जयप्रकाश नारायण की तरह नजर आ रहे हैं। माथुर साहब के समारोह में प्राय: दिग्विजय सिंह भी भाग लेते हैं। काश आज हमारे बीच सर्वकालिक महान पत्रकार राजेंद्र माथुर होते तो आनंद मोहन माथुर के पंख बन जाते। इरशाद कामिल ने भारतेंदु हरिश्चंद के नाटक 'भारत दुर्दशा' का स्मरण किया है। आलस्य से घिरे अवाम का विवरण इस तरह दिया है- 'तुम मुझे सहज न जानो जी, मुझे एक राक्षस मानो जी, कौड़ी-कौड़ी को करूं मैं सबको मोहताज, भूखे प्राण निकालूं इनके तो मैं सच्चा राज फूट और कलह बुलाऊं, घर-घर में आलस फैलाऊं....' भारतेंदु हरिश्चंद त्रिकालदर्शी विचारक थे। उन्होंने वर्तमान की कल्पना लगभग 150 वर्ष पहले ही कर ली थी।