ई-साइबोर्ग दुनिया / मनोहर चमोली 'मनु'
विकसित देशों के साथ विकासशील देश भी माजरी की सम्पन्नता से अभिभूत हैं। एक समय था जब माजरी खाद्य सामग्री भी आयात करता था। लेकिन आज स्थिति उलट है। टापू पर बसा माजरी आज विश्व का अग्रणी देश है। आज अधिकतर सम्पन्न देश किसी न किसी रूप में माजरी से कुछ न कुछ आयात करते हैं। पिछले एक ही दशक में माजरी नई सूचना तकनीक, प्रौद्योगिकी, कंप्यूटर व विद्युतीय तकनीकी के मामलों में विश्व का अग्रणी देश बन गया। नामचीन विश्वस्तरीय पत्रिकाओं ने माजरी को इक्कीसवीं सदी के मध्य तक दुनिया का सबसे संपन्न और शक्तिशाली देश बनने की घोषणा तक कर डाली।
सब कुछ माजरी के अनुकूल चल रहा था। मगर अचानक माजरी में जैसे विपत्तियों का ग्रहण लग गया हो। नवजात शिशु रहस्यमय ढंग से गायब होने लगे। यह सब इतनी तेजी से हुआ कि माजरी के राष्ट्रप्रमुख को आपातकाल की घोषणा तक करनी पड़ी। उच्च तकनीक का प्रयोग करने के बाद भी कोई सुराग हाथ नहीं लगा। असहाय-से हो चुके माजरी ने विश्व समुदाय से सुरक्षा की गुहार की। शक्तिशाली और अतिसम्पन्न माजरी लाचार और बेबस नजर आने लगा। हद तो तब हो गई जब विश्व के विकसित कई देश माजरी के हालातों पर बराबर नजर गड़ाए हुए थे, लेकिन सहायता करने की पहल कोई नहीं कर पा रहा था।
माजरी से लगभग पॉच सौ नवजात शिशु लापता हो चुके थे। अब दो वर्ष तक की आयु के बच्चे भी गायब होने लगे। थक-हार कर माजरी ने विश्व सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व युवा तुर्क मनोविज्ञानी खगोलविद् वैज्ञानिक अदिता ने किया। नामचीन वैज्ञानिक इस अज्ञात संकट पर चर्चा कर रहे थे। भारत को भी बोलने का अवसर मिला। विश्व वैज्ञानिकों का ध्यान आकृष्ट कराते हुए अदिता ने कहा-”माजरी के नवजात शिशुओं को दूसरी दुनिया में ले जाया जा रहा है। हमारी धरती से गायब हो रहे यही नवजात शिशु 2040 में एक अनोखी नौजवान दुनिया के संचालक होंगे। मैंने और मेरे भारतीय वैज्ञानिकों ने उस दूसरी दुनिया को ‘अजरा’ नाम दिया। ‘अजरा’ हमारी पृथ्वी से अधिक समृद्ध पृथ्वी होगी। वहां का एक-एक मानव कालजयी होगा। कारण साफ है। वहां का मानव हमारी धरती का आधा मनुष्य और आधा मशीनी मानव होगा। अजरा का मानव कभी बूढ़ा नहीं होगा। उसकी आयु स्थिर हो जाएगी। वह हम प्राकृतिक मनुष्यों से हर मामलों में दस गुना आगे होगा। अजरा की पहली पीढ़ी की संताने हमसे बीस गुना आगे होगी। दूसरी पीढ़ी हमसे चालीस गुना आगे होगी। इस तरह गुणित अनुपात में वह कुछ ही सालों में हमसे सौ साल आगे हो जायेंगे। एक उच्च तकनीक के माध्यम से वे माजरी के स्वस्थ शिशुओं का अपहरण कर रहे हैं। पृथ्वी से अलग उस दूसरी जगह की सशक्त मशीनी इंसानी दुनिया 2050 तक हम प्राकृतिक इंसानों का नामोनिशान तक मिटा देगी। नवजात से लेकर दो वर्ष की आयु के शिशुओं के दिमाग को आसानी से मशीनीकृत बनाने के उद्देश्य के चलते यह सब हो रहा है।”
अदिता अभी अपनी बात रख ही रही थी कि विश्व के वैज्ञानिक बौखला गए। अधिकतर वैज्ञानिक अदिता के वक्तव्य को काल्पनिक और बकवास कहते हुए एक साथ उठ खड़े हुए। कई सारे सवालों की बौछार होने लगी। अदिता ने शोर में ही लगभग चिल्लाते हुए कहा-”मैं एक-एक सवाल का जवाब देने को तत्पर हूं। लेकिन आप धीरज तो रखें।”
अदिता इतना ही कह पाई थी कि सबकी आंखों के सामने खिड़की से कबूतर की तरह दिखने वाला एक पक्षी अंदर आया और पलक झपकते ही वह मंच पर एक उड़नतश्तरी के रूप में बदल गया। अजीब तरह की आकृति के कुछ जीव बाहर आए और उन्होंने अदिता को जबरन भीतर खींच लिया। पलक झपकते ही वह उड़नतश्तरी कबूतर की आकृति में कब बदली और कब खिड़की के रास्ते से बाहर निकलकर गुम हो गई, किसी को ठीक से अहसास भी नहीं हुआ।
बस फिर क्या था। माजरी और अजरा को लेकर अटकलों का बाजार समूची दुनिया में गर्म हो गया। सबकी निगाह भारत स्थित भारतीय खगोल एवं अंतरिक्ष प्रचार प्रसार संस्थान की ओर जम गईं। अदिता की सहयोगी टीम की विशेष सुरक्षा के लिए स्पेशल टॉस्क फोर्स का गठन कर लिया गया। भारत की उच्च सुरक्षा जांच एजेंसी के प्रमुख परवेज आलम ने मीडिया सहित विश्व से माजरी, अजरा और अदिता के संदर्भ में कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। सभी को सलाह दी गई कि इस आपात स्थिति में धैर्य से काम लें। भारतीय खगोल एवं अंतरिक्ष प्रसार संस्थान के अग्रणी वैज्ञानिक उच्च स्तर पर अदिता को खोजने के प्रयास में जुटे हैं।
एक पखवाड़ा बीत चुका था। अदिता के संबंध में कोई भी सुराग हाथ नहीं लगा। वहीं माजरी से अब बच्चों के गायब होने की घटनाएं भी यकायक बंद हो गईं। सब कुछ पहले की तरह सामान्य हो गया। यदा-कदा माजरी में आयोजित विश्व सम्मेलन की चर्चा शुरू होती और खत्म हो जाती। फिर एक दिन माजरी के राष्ट्र प्रमुख ने देश के नाम विशेष संदेश जारी करते हुए कहा-”आंकड़ों के मुताबिक हमारे देश के 500 नवजात शिशु और 500 नन्हें बालक आज तक लापता हैं। अथक प्रयासों के बावजूद भी उनके संबंध में विश्वस्तर पर अब कोई जानकारी मिलने की उम्मीद नहीं है। भारतीय वैज्ञानिक अदिता का हमारे देश में रहस्यमय ढंग से लापता होने का हमें अफसोस है। होनी को कौन टाल सकता है। हम सभी को इसे एक दुःखद अध्याय मानकर भूल जाना होगा। प्रभावित परिवारों के एक-एक सदस्य को राजकीय सेवा प्रदान की जाती है। साथ ही नाबालिग सदस्यों की शिक्षा-दीक्षा की जिम्मेदारी माजरी सरकार उठाएगी। भारत सरकार के माध्यम से अदिता के परिवार से सम्पर्क साधा जा रहा है। ताकि हम अदिता के परिवार को आंशिक भरपाई कर सकें। समूचे विश्व से भी मैं इस घटना को भूल जाने की पुरजोर अपील करता हूँ।”
वक्त का पहिया कभी नहीं रुकता। जैसा अधिकतर मामलों में होता है, वैसा माजरी में हुए विश्व सम्मेलन की घटना के संदर्भ में भी हुआ। कुछ नई और दूसरी घटनाओं के चलते लोगों ने उसे लगभग भूला दिया। माजरी भी सूचना तकनीक के मामलों में रम गया। वह भी भूल-सा गया कि उनके देश में कभी बच्चे रहस्यमय ढंग से गायब हुए थे।
ये ओर बात थी कि भारत में कुछ दिमाग और कुछ जोड़ी ऑखें थीं, जो हर पल-हर क्षण सक्रिय थीं। भारत का भारतीय खगोल एवं अंतरिक्ष प्रचार प्रसार संस्थान माजरी के विकसित होने के समय से ही सक्रिय था। अदिता और उनके सहयोगी विशेष परियोजना में जुटे हुए थे। ‘अजरा-2050’ इस परियोजना का नाम था। अदिता ही ‘अजरा-2050’ की प्रमुख थीं।
सब कुछ इतना गोपनीय था कि संस्थान के अन्य वैज्ञानिक भी नहीं जानते थे कि अदिता और उसके ग्यारह सहयोगी किस परियोजना में काम कर रहे हैं। वे बस इतना ही जानते थे कि खगोल विज्ञान में किसी परियोजना में काम चल रहा है। अदिता के गायब होने के बाद सारी जिम्मेदारी उसकी सहयोगी परवीना पर आ गई थी। परवीना हमेशा की तरह ही संस्थान की उसी प्रयोगशाला में जुटी हुई थी। जहां से ‘अजरा-2050’ पर कार्य हो रहा था। हमेशा की तरह प्रयोगशाला में परवीना उस समय काम कर रही थी जब समूचा भारत नींद की आगोश में था। अचानक विशालकाय स्क्रीन पर अदिता की ध्वनि सुनाई देती है। ध्वनिबाधित प्रयोगशाला में अदिता की आवाज गूंजती हैं। परवीना झट से कानों में हेड स्पीकर लगाती है। कहती है-”महीनों गुजर गए। कब से इंतजार कर रही हूं। ऑनलाईन क्यों नहीं हो पा रही थीं?”
स्क्रीन में किसी आकाशगंगा का चित्र उभर जाता है। अदिता जवाब देती है-”परवीना। बड़ी मुश्किल से संपर्क कर पा रही हूं। अजरा काफी विकसित हो चुका है। इस दुनिया में मशीनीमानव हैं। ये मुझे सूंघ रहे हैं। इन्हें पता है कि इनकी दुनिया में कोई सम्पूर्ण मानव है, जो इनके कोड में नहीं है।”
“कोड मतलब?” परवीना ने पूछा।
अदिता ने बताया-”अरे। माजरी से जो नवजात शिशु और बच्चे उठाये गएं हैं, उन्हें कोड दिया गया है। कुल 999 बच्चे हैं। एक बच्चे ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया था। इन बच्चों को साईबोर्ग बनाने की सम्पूर्ण तैयारी हो चुकी है।”
“साईबोर्ग! यानि मशीनीकृत इंसान?”
“हॉ परवीना। ये मशीनीकृत बच्चे दिखने में हमारी तरह ही होंगे। लेकिन इनके मस्तिष्क में एक चिप लगा दी गई है। ये उस चिप में जमा डेटा से ही संचालित होंगे। लेकिन आपातस्थिति में हमारी-तुम्हारी तरह अपना दिमाग भी इस्तेमाल कर सकेंगे। इन बच्चों को मोबाइल के रूप में देखो। जैसे ही हम उसमें चिप डालते हैं, वह चल पड़ता है या चिप में दर्ज आंकड़ों के मुताबिक व्यवहार करने लगता है।”
“अरे! लेकिन वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? अदिता अजरा में तो मशीनी मानव हैं ही। तब हमारे बच्चों के साथ ऐसा करने का ठोस कारण क्या है?”
“परवीना। धरती का मानव सर्वश्रेष्ठ है। वे ऐसा मानते हैं। अति बौद्धिक मशीने आखिर हैं तो मशीने ही। मशीनें आदमी की काबलियत को चुनौती नहीं दे सकती। सो वो आधा मानव और आधा मशीनी मानव बनाना चाहते हैं। काम आधामशीनी मानव करेगा और फैसले मानवशरीर का दिमाग करेगा। कुछ समझ में आया?”
“तो इसका मतलब यह हुआ कि ‘अजरा-2050’ के प्रति हमारा शक सही निकला? अति बौद्धिक मशीनी मानव का संसार फैलेगा? कल तो ये अपना प्रतिरूप भी बनाने लग जाएंगे। प्राकृतिक जन्म और मृत्यु तार-तार हो जाएगी?”
“बिल्कुल परवीना। इन मशीनी मानवों ने हमारे बच्चों के सेंट्रल नर्वस सिस्टम में सैकड़ों इलेक्ट्रोड्स फिट कर दिये हुए हैं। उनके दिमाग और केन्द्रीय स्नायुविक तंत्र में होने वाले प्राकृतिक सम्प्रेषण को मशीनी प्रणाली से जोड़ दिया है। उनका मानना है कि इससे कुदरती मानव शरीर का दर्जा अपग्रेड हो सकेगा। बुढ़ापे के लिए जिम्मेदार हार्मोन और कोशिकीय बदलाव को ये शरीर से अलग करने की तकनीक तक विकसित कर चुके हैं। मतलब ये हुआ हमारी पृथ्वी के 999 मानव बच्चे कभी भी बूढ़े नहीं होंगे। तुम मुझे सुन पा रही हो न परवीना?”
“हाँ। मैं तुम्हें सुन रही हूं अदिता। मैं तो हैरान हूँ कि वे लोग आखिर ऐसा करना क्यों चाहते हैं?”
“बताती हूं। तुम तो जानती ही हो कि बच्चों के अपहरण के समय यहॉ पहुंचने में हमें कितनी मेहनत करनी पड़ी। माजरी से इनके यान में मुझे गोपनीय ढंग से बिठाने में तुम लोगों को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा। हालांकि ये जानते हैं कि पृथ्वी से कुल 1000 जिस्म नहीं 1001 जिस्म उनकी धरती पर आए हुए हैं। एक मृत जिस्म उनके पास सुरक्षित है। एक मृत जिस्म वो भी नवजात शिशु का जब तक इन्हें नहीं मिलेगा, ये चैन से नहीं बैठेंगे। तब तक मैं भी सुरक्षित धरती पर लौट नहीं सकूंगी। इन्होंने अजरा से हमारी पृथ्वी में आने का पूरा परिपथ बंद कर दिया है। मैं जैसे ही लौटना चाहूंगी। इनके द्वारा मार गिरा दी जाऊंगी। परिपथ और पृथ्वी से यहां की दूरी मैं पहले ही तुम्हें भेज चुकी हूं। यही कारण है कि अब ये माजरी से बच्चों के अपहरण का काम बंद कर चुके हैं। जब तक उनका मशीनी मस्तिष्क एक हजार एक इंसानी देह के आंकड़ें को दुरूस्त नहीं करेंगे उनका अजरा 2050 अभियान आगे नहीं बढ़ेगा।”
“ओह। उसकी चिंता मत करो। मृत नवजात शिशु की देह तुम तक पहुंच जाएगी। लेकिन ये तो बताओ कि क्या वे 999 बच्चों पर प्रयोग शुरू कर चुके है?”
“हाँ परवीना। मैंने बताया तो। ध्यान से सुनो। ये तो तुम भी मानती हो कि हम मनुष्यों की ऑखें एक हद तक ही देखती हैं। हमारी आंखों की भी एक सीमा है। हमारा मन कल्पनाओं की उड़ान अनंत तक कर सकता है। लेकिन अनंत से आगे भी तो बहुत कुछ है। जहां हमारे मन की आंखें भी नहीं सोच-देख पाती। मानवीय अभिव्यक्ति की भी अपनी सीमा है। ये मशीनी मानव प्रोद्यौगिकी के सहारे मानवीय क्षमताओं को बढ़ाना चाहते हैं। कृत्रिम बुद्धि के साथ-साथ मानवीय बुद्धि का जोड़कर इन्होंने ‘ई-साइबोर्ग मानव’ की तकनीक विकसित कर ली है। परवीना ये 999 ई-साइबोर्ग मानव कल ई-मेल के माध्यम से, एस.एम.एस. के माध्यम से कहीं भी आ-जा सकेंगे। अपना लक्ष्यकार्य पूर्ण कर वापिस अपने घर लौट जाएंगे। ये न थकेंगे, न सोयेंगे। इन्हें भूख भी नहीं लगेगी। ये असीमित ऊर्जा से लबरेज होंगे।”
परवीना ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा-”तो तुम ये कहना चाहती हो कि हमारे 999 बच्चे अब हमें दोबारा नहीं मिल सकंेगे।”
“नहीं। वे अब मशीनी मानव में बदल दिये गए हैं। मुझे तो मेरा लौटना ही मुश्किल लग रहा है। मैं हूं तो इनके आस-पास। इन्हें हवा की मानिंद महसूस हो रही हूं। दिखाई नहीं दे रही हूं। लेकिन ये जानते हैं कि कोई इनकी दुनिया में अदृश्य होकर इनके काम को देख रहा है। वे थ्री-डी तकनीक पर काम कर रहे हैं। अगर उन्हें उसमें सफलता मिल गई तो वे मुझे बंदी बना लेंगे। मेरे लौटने का परिपथ तो उन्होंने बंद कर ही दिया है। इस परिपथ से सिर्फ मशीनी मानव ही आ-जा सकंेगे। प्राकृतिक मानव आने या जाने की कोशिश करेगा तो ये उसे अपनी नैनो तकनीक से उड़ा देंगे। मैं इनके सर्किट में जैसे ही खोज ली जाऊंगी,मारी जाऊंगी।”
परवीना ने पूछा,”ओह! शिट् ! तो तुम लौटोगी कैसे?”
“उसकी छोड़ो। पर ये तो बताओ कि ‘अजरा-2050’ का तोड़ ढॅूढा?”
“हाँ। तुम्हारे इशारे पर ये एक घंटे में तबाह कर दिया जाएगा। लेकिन उन 999 बच्चों का और तुम्हारा क्या होगा?”
“परवीना। तुम्हें मेरी और 999 बच्चों की चिंता हो रही है? समूची दुनिया किसी अप्राकृतिक अवस्था में चली गई तो? मेरी बात समझ लो। इससे पहले कि पृथ्वी का अस्तित्व ही मिट जाए, उससे पहले और किसी भयावह संकट में झोंके जाने से अच्छा है कि मेरी जान चली जाए। हॉ! मजरी के 999 बच्चों का मुझे भी अफसोस रहेगा। लेकिन ये इस मिशन पर काम करने से पहले ली गई शपथ में शामिल था। था न?”
“लेकिन हम अपनी प्रमुख को खोना नहीं चाहते। मैं अपने दस साथियों को क्या जवाब दूंगी।”
“पागल मत बनो। विज्ञान तकनीक भावनाओं के सहारे नहीं चलती। जरा सोचो। जरा सी चूक से ये 999 मशीनी मानव पूरी दुनिया में तबाही मचा देंगे। 2040 से पहले ये मशीनी मानव हमारी धरती को तबाह करने की योजना पर अंतिम रूप से काम कर चुके होंगे। माजरी इन बच्चों को वैसे भी कब का भूल चुका होगा। इनके माता-पिता भी भाग्य को कोसते हुए रोजमर्रा के जीवन में रम गए हैं। रही बात मेरी, तो मैं खुश हूं कि मैंने जीते जी दुसरी दुनिया के लोग देख लिये हैं। मैं जान चुकी हूं कि मनुष्य अमर होने के लिए क्या-क्या कदम उठा सकता है। विज्ञान प्रगति सब कुछ दे सकती है, लेकिन शहादत तो प्राकृतिक ही हो सकती है न। मैं मानसिक रूप से तैयार हूं। मुझे एक फीसदी भी धरती पर लौटने की उम्मीद नहीं है। लेकिन सोचो जिस दिन तुम्हारे माध्यम से ये खबर पूरी दुनिया में फैलेगी कि हमारी भारतीय टीम ने एक ऐसी दुनिया बसने से पहले मिटा दी जो मानवीय जीवन को खत्म करने के लिए अस्तित्व में आ चुकी थी।”
“साईबोर्ग तकनीक का क्या होगा? उससे तो हम वंचित हो जाएंगे। यदि तुम न लौटी तो।”
“साइबरनेटिक आर्गेनिज्म का मानव जो इंसान भी होगा और मशीनी भी तो वह सुःख-दुःख, हर्ष-विषाद के साथ-साथ नैतिकता,मानवता, दया-करूणा-ममता से कोसो दूर होगा। क्या ऐसी दुनिया चाहोगी तुम? सोचो परवीना सोचो। तुम्हें तो फख्र होना चाहिए कि हम कितनी बड़ी अप्राकृतिक स्थिति को मिटाने में सहयोग कर रहे हैं।”
परवीना सिसकते हुए कहती है,”मुझे फख्र है अदिता कि मैं तुम्हारी टीम की सदस्य हूं। मुझे फख्र है कि मैं तुम्हारी आवाज सुन रही हूं। लेकिन....तुम सुरक्षित लौटो न। प्लीज।”
“चाहती तो मैं भी हूं। लेकिन मैंने कहा न। ये लोग अब दोबारा धरती पर नहीं आना चाहते। वे जान चुके हैं कि कोई विकसित मस्तिष्क वाला इंसान धरती से इनकी इच्छा के बगैर इनके बीच में आ चुका है। यहॉ अफरा-तफरी मची हुई है। इनकी सूंघने की शक्ति बेहद सशक्त है। वैसे भी ये बेहद खुश है कि 999 मानवीय साइबोर्ग इनके मुताबिक काम करने लगे हैं। एक हजारवें बच्चे की देह भी इन्होंने सुरक्षित रखी है। वे उस पर भी शोध कर रहे है। एक पूरी टीम मृत शरीर में जान फूंकने या उसकी मृत देह के इस्तेमाल की संभावना पर भी काम कर रही है। इनका प्रमुख मानता है कि एक साइबोर्ग मानव आम आदमी से सात गुना चिंतनशील और हर कार्य में दस गुना फुर्तीला है। वे आपात स्थिति में धैर्य बनाए रखता है। अति सूक्ष्मता के अवलोकन की क्षमता रखने वाला साइबोर्ग इनकी दुनिया को बहुत आगे ले जायेगा। ये साईबोर्ग मानवों से धरती के कुदरती मानवों का सरलता से सफाया करने की योजना बना चुके हैं। ये लोग समूची दुनिया में साईबोर्ग मानव की सत्ता को कायम करने में आशातीत कार्य करने में सफल हो रहे हैं।”
“मतलब 2050 तक कुदरती दुनिया के इंसान का सफाया ही नहीं साइबोर्ग दुनिया को स्थापित करने का सपना पूरा करना चाहते हैं अजरावासी?”
“बिल्कुल। अब ध्यान से सुनो। साइबोर्ग शिशुओं का मस्तिष्क काम करने की समझ को तीन गुना गति से आत्मसात् कर लेता है। ये कभी भी अपने काम की शुरूआत कर सकते हैं। ये मुझे कभी भी खोज पाने में सफल हो सकते हैं। सभी साथियों को सूचित कर दो। वस्तुस्थिति से अवगत करा दो। अधिक से अधिक तुम्हारे पास तीस दिन का समय है। सब कुछ ऐसा ही रहा तो भी तुम्हें तीसवें दिन मुझे मेरे मोबाइल पर कॉल करनी है।”
“क्या? आपको कॉल करने का मतलब तो....।”
“हॉ मैं अपना काम कर चुकी हूं। भारतीय खगोल एवं अंतरिक्ष प्रसार संस्थान से जैसे ही कोई मेरे मोबाइल पर मुझे कॉल करेगा, नैनो तकनीक का सुपर कंप्यूटर स्वतः ही काम करना शुरू कर देगा। एक घण्टे के भीतर ये मशीनी मानव की दुनिया राख हो जाएगी। परवीना। तुम सुन रही हो न मुझे? मैंने क्या कहा? क्या मुझे एक प्रमुख की तरह तुम्हें दोबारा निर्देश देने होंगे?”
परवीना लगभग रोने ही लगी। संयत भाव से उसने जवाब दिया-”नहीं अदिता। मैंने एक-एक शब्द सुन लिया है। मैं ठीक तीसवें दिन आपको कॉल कर दूंगी। जय हिंद।”
परवीना को भी अदिता की बुलंद आवाज सुनाई दी-”जय हिंद।” प्रयोगशाला में स्वतः ही उजाला हो गया। परवीना ने केलेण्डर पर नजर दौडाई। उसकी नजर ठीक तीसवें दिन की तारीख पर टिक गई। उसने लाल मार्कर से दो तारीख पर गोल घेरा खींचा। वह बुदबुदाई-”दो अक्तूबर। अदिता को कॉल करने की अंतिम तारीख।