उंच नीच / रघुविन्द्र यादव
"क्या बात है मोम? किस पर गुस्सा हो रही हो?"
"ये बेशर्म सुबह कॉलेज का नाम लेकर गई थी और अब रात नौ बजे घर आई है, पता नहीं कहाँ गुल छर्रे उड़ा रही थी? यह तो नाक कटवाकर ही छोड़ेगी।"
"क्यों दामिनी कहाँ थी दिनभर?"
"रोहन, यही सवाल मैं तुझ से पूछूं तो?"
"मैं वेलेंटाइन डे मनाने गया था? पर तू कहाँ थी?"
"मैं भी वेलेंटाइन डे मनाकर आई हूँ।"
"देखा बेटा इस बेशर्म को। पता नहीं किस यार के साथ थी दिनभर। यह पैदा होते ही मर क्यों नहीं गयी?"
"जो काम आपका बेटा करके आया है, वही मैं करके आई हूँ, फिर इस पर इतना प्यार और मुझ पर इतना गुस्सा क्यों मोम?"
"बेटियाँ घर की इज्ज़त होती हैं बेशर्म। अगर कुछ उंच नीच हो गयी तो किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे।"
"रोहन भी तो किसी की बेटी, नहीं नहीं किसी की इज्ज़त के साथ ही था दिनभर। उसके साथ भी तो उंच नीच हो सकती थी या यह केवल अपनी बेटी के ही साथ होती है?"