उछलू की चित्रकारी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उछलू बंदर बहुत नटखट था। सुबह से शाम तक शैतानी और ऊधम बस उसका एक ही काम था। कभी इस पेड़ से उस पेड़ तो कभी इस डाल से उस डाल कूदता रहता था। खूब मस्ती करता था दिन भर, परंतु दिमाग़ का वह बहुत तेज था। उसे प्राकृतिक दृश्य बहुत अच्छे लगते थे। । कल-कल बहती नदी के किनारे वह घंटों बैठा रहता, नीले जल को निहारता और उछलती हुई लहरों को देखकर खुश होता रहता। नदी के पीछे सुदूर पर्वतों को देखता और सोचता कितने सुंदर होते हैं पर्वत। उसे हरे-भरे पेड़ अच्छे लगते, वह डालियों को निहारता और उस पर बैठे पक्षियों की आवाज़ सुनकर आनंदित होता रहता। उछलू सोचता काश उसके पास कागज़ और रंग होते तो वह लकड़ी की कूची बनाकर सुंदर चित्रकारी करता। नदी बनाता उसमें तैरने वाले डोंगे बनाता और बतखों को कागज़ पर उतार देता।

नीले आकाश के तारों को भी ज़मीन पर लाकर कागज़ पर उतारने की इच्छा हो आती। पर क्या करता, रंग, कागज़ कुछ भी तो नहीं था उसके पास। नदी किनारे रेत से खेलता उदास बैठा रहता।

एक दिन वह पास की बस्ती की एक दुकान में गया और दुकानदार से कुछ कागज़ और रंग मांगे। दुकानदार बहुत उदार था उसने चित्रकारी का सब सामान उछलू को दे दिया। उछलू ने दुकानदार को भरोसा दिलाया कि जैसे ही चित्रकारी के पैसे मिलेंगे वह उधारी चुका देगा। उसकी योजना थी कि वह अपने सब मित्रो के चित्र बनायेगा और उन्हें बेचकर पैसे कमायेगा। सबसे पहिले उछलू ने नदी का चित्र बनाया, पानी बनाया उछलती हुईं लहरें बनाईं और तैरती हुई नाव बनाई। नदी के पीछे वाले हरे-भरे वृक्षों से लदे पहाड़ बनाये। उसकी चित्रकारी की बात बहुत जल्दी जंगल में आग की तरह चारों तरफ़ फैल गई कि उछलू बहुत अच्छी चित्रकारी करता है।

एक दिन गिल्लो गिलहरी उसके पास आई और कहने लगी"उछलू भैया उछलू भैया मेरा चित्र बना दो न।"

"चल हट आइने में अपना मुँह देखा है कभी, चित्र तो सुंदर लोगों का बनाया जाता है।" उछलू ने चिढ़ते हुये जबाब दिया।

"भैया मैं भी तो सुंदर हूँ चिकना शरीर सुंदर प्यारी पूंछ और कैसी होती है सुंदरता?" गिल्लो इठलाकर बोली।

"ठीक है आजा, परंतु चित्र बनवाने के दस रुपये लगेंगे।"

"क्या? किंतु मैं पैसे कहाँ से लाऊंगी?"

"ले आना किसी आदमी के घर से, पास में बहुत से घर हैं।"

"ठीक है तुम चित्र बनाओ मैं रुपये लाकर दूंगी।"

जब चित्र बन गया तो उसे देखकर गिलहरी बहुत खुश हुई और बस्ती के एक घर में घुसी और घर मालिक के पेंट की जेब से एक दस का नोट ले आई और उछलू को दे दिया।

अब तो जंगल के दूसरे जानवरों में भी उछलू से अपने-अपने चित्र बनवाने की होड़ लग गई। सरकू शेर दौड़ता हुआ आया और बोला "मैं जंगला का राजा हूँ मेरा चित्र बहुत सुंदर और अच्छा बनना चाहिए उछलू।"

"क्यों नहीं राजा साहब आपका चित्र तो मैं ऐसा बनाऊंगा कि दुनियाँ वाह-वाह कर उठेगी परंतु।"

"परंतु क्या उछलू" शेर ने पूछा।

"फीस कुछ ज़्यादा लगेगी" उछलू इठलाकर बोला।

"अबे कितनी लगेगी? मैं इस जंगल का राजा हूँ जो मांगोगे दूंगा।" शेर ने थोड़ा अकड़ते हुये जबाब दिया।

"महाराज सौ रुपये ठीक रहेंगे क्योंकि आप राजा हैं और इससे कम लेने पर आपके पद और कद का अपमान होगा, स्टेटस सिंबल भी तो कोई चीज़ है।"

अरे बिल्कुल उछलू भाई सौ क्या मैं दो सौ दूंगा, आखिर राजा हूँ मुझे पैसे की क्या कमी। " शेर अपनी तारीफ सुनकर गदगद हो गया था।

वह अकड़कर सीधा बैठ गया आख़िर चित्र जो बनवाना था। । उछलू ने बहुत शानदार चित्र सरकू शेर का बना दिया। शेर पास के ही एक घर में दहाड़ता हुआ घुसा और घर मालिक का कुर्ता उठा लाया उसमें से दो सौ रुपये निकाले और कुर्ता वहीं छोड़ दिया। उछलू अपने नाम के अनुरूप ज़ोर से उछलने कूदने लगा। उसने चित्र बनाने के भाव भी बढ़ा दिये। सरकू ने जब दो सौ रुपये दिये हैं तो अब मैं छोटे जानवरों से सौ और बड़े जानवरों से डेढ़ सौ रुपये

लूंगा। सुबह से शाम तक वह चित्र बनाता और अपना मेहनताना बसूलता और एक पेड़ की खोह में रखता जाता।

अब तो उछलू मालामाल हो गया। उसको अपने धन की रखवाली करना पड़ती। जहाँ दूसरे बंदर उछलते कूदते, कहीं भी घूमते रहते, उछलू बंधुआ होकर रह गया। उसे डर लगा रहता कि कोई उसके रुपये न चुरा ले जाये। उसने सोचा अब वह धनवान हो ही गया है कोई भी बंदरिया उससे खुशी-ख़ुशी विवाह कर लेगी और धन की रखवाली भी कर लेगी। वह ठाठ से रहेगा। पास में बिंदो बंदरिया रहती थी। वह बहुत सुंदर थी और मिलनसार भी थी। उछलू सीधा उसके पास गया और शादी का प्रस्ताव उसके सामने रखा ' बिंदो-बिंदो क्या तुम मुझसे शादी करोगी? "देखो मैं जंगल का सबसे धनवान जानवर हूँ, मेरे पास बहुत सारे रुपये हैं मैं तुम्हें रानी बनाकर रखूंगा। , देश विदेश कि सैर कराऊंगा।"

"शादी और तुमसे, बिंदो ने मुँह फेर लिया। तुम जैसे धन जोड़ू से कौन शादी करेगा।" बिंदो का रूखा, टके-सा जबाब सुनकर उछलू को बड़ा ताज्जुब हुआ।

"मत कर, मुझे कमी है क्या" ऐसा कहकर वह बुक्की बंदरिया के पास जा पहुँचा"बुक्की बुक्की तुम मेरे साथ शादी कर लो मजे में रहोगी, मेरे पास इतना पैसा है कि तुम जो चाहोगी मैं तुम्हारे कदमों में डाल दूंगा ख़ूब सारे गहने बनवा दूंगा।"

"क्या मुझे पागल कुत्ते ने काटा है जो तुझ जैसे आदमी के गुणों वाले बंदर से शादी कर अपनी ज़िन्दगी बर्बाद कर लूंगी। चल हट यहाँ से और कहीं ठिकाना देख।"

उछलू फिर भी निराश नहीं हुआ। उसे विश्वास था कि उसके पास बहुत सारा धन होने के कारण कई सुंदर और जवान बंदरियाँ शादी करने को तैयारा हो जायेंगी। वह दौडता हुआ बकली बंदरिया के पास जा पहुँचा। बकली पेड़ की शाखा पर आराम कर रही थी। उसने नीचे से ही आवाज़ लगाई"बकली, मैं तुम्हारे पास बहुत ही ज़रूरी काम से आया हूँ ज़रा नीचे तो आओ।"

" अभी तो मैं आराम कर हूँ, कल आना। ' बकली ने अंगड़ाई लेते हुये जबाब दिया।

"बकली सोच ले, मैं तेरे पास अपनी शादी का प्रस्ताव लेकर आया हूँ मौज करेगी एक बार हाँ बोल दे बस देख फिर मैं तेरे लिये आसमान से तारे भी तोडकर ला सकता हूँ, चल मेरे साथ देख कितने सारे रुपये मैंने खोह में जमा करके रखे हैं।"

बकली उसके साथ चल पड़ी। एक पेड़ की खोह में उछलू ने ख़ूब सारे पैसे एकत्रित करके रखे थे। बकली ज़ोर से हँसने लगी। " अरे पागल हम बंदरों का इन पैसों से क्या काम, भगवान ने हमें इतने सुंदर हरे-भरे वृक्ष रहने को दिये हैं इनमें मीठे-मीठे फल लगे हैं, धरती सा

हरा-भरा बिछौना है, ऊपर नीले आकाश की चादर है फिर इन पैसों का तू क्या करेगा। क्या तू आदमी बन गया है? पैसे तो इंसान ही जोड़ते हैं और जोड़ते-जोड़ते मर जाते हैं। हम तो बंदर मस्त कलंदर हैं, सारे जंगल में विचरते हैं, जहाँ फल मिल गये खा लिये और जहाँ जल मिल गया पी लिया। । तुमने तो बंदर धर्म छोड़कर आदमियत अपना ली है। फेक दो ये रुपये मैं अभी तुमसे शादी कर लेती हूँ। इतने में बिंदो और बुक्की भी वहाँ आ गईं। तीनों ने बंदर के गले में हाथ डाल दिये। उछलू घबड़ा गया खोह में घुसा और सारा धन निकालकर बाहर फेकने लगा। तीनों बंदरियों ने वह सारा धन उठाकर दूर सड़क पर फेक दिया। अब उचलू से विवाह करने के लिये तीनों बंदरियाँ तैयार थीं।

उछलूअब भी चित्र तो बनाता है किंतु बिल्कुल मुफ्त में।