उजास / मंजरी शुक्ला

Gadya Kosh से
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नहीं करनी हैं तुम्हे कोई ड्राइविंग व्राइविंग...कहते हुए नितिन ने गुस्से में अपना महँगा आई फ़ोन ज़मीन पर पटक दिया जो उसका बरसों का सपना था और जिसे उसने तमाम दुकानों की ख़ाक छानने के बाद खरीदा था I टूटे आई फोन को देखकर निशि के दिल के खाली कोने में जल रहे उम्मीदों के असंख्य नन्हे दीप जैसे टिमटिमाकर लप से बुझ गए I पसीने में नहाई और डर से काँपते हुए उसने मेज को भींच रखा था मानों वही मेज जैसे अभी जीवित होकर उसके आँसुओं का हिसाब माँगने लगेगी I अचानक उसके हाथ में दर्द की एक लहर उठी I उसने देखा कि मेज के कोने की नुकीली लकड़ी का पतला-सा टुकड़ा उसके हाथों में अन्दर तक धंसता चला जा रहा था I और कोई दिन होता तो वह तुरंत हमेशा तरह मम्मी को अपनी तकलीफ़ बच्चों की तरह फ़ोन करके बताती पर आज तो जैसे उसे इस दर्द में भी एक अजीब तरह का सुकून मिल रहा था I आखिर कोई तो था उसके अपमान का साक्षी उसके बहते आंसुओं का एकमात्र गवाह और उसकी पकड़ मेज पर मजबूत होती चली गई I

उसने बहुत ही बेबसी से नितिन की तरफ देखा जो उसके दर्द और आँसुओं से बेखबर अभी भी बद्बदाये चला जा रहा था I थोड़ी देर तक सामन इधर उधर करने के बाद वह कमरे से दनदनाता हुआ निकल गया I निशि ने धुंधली आँखों से दरवाज़े की ओर देखा और झटके से खींचकर मेज के टुकड़े से अपना हाथ निकल I बहते खून को देखकर उसे एक अजीब संतुष्टि का एहसास हो रहा था I वह थर्मस से चाय निकाल कर पीने बैठ गई I बचपन से ही उसे गुड्डे गुड़ियो की जगह कारों और छोटी-छोटी जीप का पागलपन की हद तक शौक रहा I जहाँ एक ओर उसकी सहेलियां रंगबिरंगी चुनरी से अपनी टूटी फूटी गुड़ियो को शादी वाले दिन खूब सजाती वह एक कोने में बैठी अपने भाई से उसकी कार के लिए लड़ रही होती I और जाहिर था कि सहेलियों से लेकर बुआ, चाची, ताई सब मैदान में आ जाती और हाथ नचा-नचा कर उसके भाई का पक्ष लेते हुए उसे मर्द जात के खेलों और चीजों से दूर रहने के लिए डांटती हुई शालीनता का पाठ पढ़ाती I कई बार उसका मन होता कि वह पलट कर पूछे कि गला फाड़-फाड़ कर छोटी बच्ची को तमाम गन्दी बातों को बोलना क्या शालीनता होती हैं पर वह एक ऐसे युद्ध क्षेत्र में थी,

जहाँ पर ना तो उसके पास कोई सैनिक था और ना ही कोई हथियार, निहत्थे वह भला टुकुर-टुकुर सबका मुहँ ताकने के अलावा क्या कर सकती थी I सिर्फ़ पापा ही थे जो चुपके-चुपके उसे छोटी-छोटी कार लाकर देते थे जिन्हें वह सबके सो जाने के बाद अपनी तकिया के नीचे से निकालती और धीरे से सहलाती कि कही कार में उसका नाख़ून ना लग जाए या उसका रंग ना निकल जाए और फिर वह उसे सीने से चिपटा कर सो जाती I अब वह बहुत खुश रहती क्योंकि उसने सपनों की दुनियाँ में रहना सीख लिया था जहाँ पर सिर्फ़ वह होती और उसकी कारे I अब सारी औरतें बहुत खुश थी क्योंकि वे सब सोचती थी कि भले ही देर से ही सही पर उसे ये समझा ही दिया गया था कि औरत और आदमी के सपने भी अलग होते हैं I सबसे मजे की बात यह कि सपनों की सतरंगी दुनियाँ में जाने के लिए उसे ना जाने कितनी समाज की बनाई हुई मान्यताओं के रहमो करम से गुज़रना पड़ता I

खैर समय के साथ उसकी दीवानगी कारों के लिए बढ़ती ही चली गई और पहली ही मुलाक़ात में जब नितिन ने उससे कहा कि स्त्री ही समाज की धुरी हैं और उसे हर वह काम करने की पूरी आज़ादी होनी चाहिए जो एक पुरुष कर सकता हैं तो ख़ुशी के मारे वह जैसे बौरा गई और उसने बिना आगे-पीछे का सोचते हुए शादी के लिए हाँ कर दी क्योंकि अब वह बहुत खुश थी कि अब वह अपना कार चलाने का सपना ज़रूर पूरा करेगी I वह नन्हा-सा सपना जो अब उसके साथ जवान हो चुका था और जिसने आँगन में खिलती हुई रात की रानी की तरह उसकी अंतरात्मा तक को सुगन्धित कर दिया था I पर जब क्रूर हकीकत से उसका सामना हुआ तो उसके पैरों तले जैसे ज़मीन खिसक गई I उसकी सास, ननन्द और फिर नितिन की चाची, बुआ और भी ना जाने कितनी औरते मोर्चा संभाले यहाँ नए रूप में प्रकट हो चुकी थी I सिर्फ़ चेहरे बदले थे... नहीं बदली थी तो उन सबकी रूढ़ीवादी सोच और आडम्बरपूर्ण जीवन...अब तो निशि को लगने लगा कि वह घुट कर मर जायेगी I और आज सुबह जब उसने नितिन को बताया कि कैसे उसने ड्राइवर से खाली समय में कार चलाना सीख ली तो जैसे घर में भूकंप आ गया और नितिन ने उसे वह सब कहा जो किसी भी शरीफ आदमी को किसी भी चरित्रवान स्त्री ।से नहि कहना चाहिए I उसने अपनी सास की तरफ बेबसी से देखा जो कि अपनी मुस्कान दबाये उसे खा जाने वाली नज़रों से घूर रही थी I

वह जितना कार को भूलने की कोशिश कर रही थी उतनी ही कार उसके सपनों में आकर उसे बुला रही थी I धीरे-धीरे चिंता में उसका खाना पीना छूट गया और वह बस एक रोबोट की भांति घर में सारे काम यंत्रवत करती रहती बिना किसी को कुछ कहे I पर कहते हैं ना कि इतिहास अपने आप को दोहराता हैं तो अब फिर एक बार सब खुश थे क्योंकि उसने कार का नाम लेना छोड़ दिया था I दिन और रात समय के पहियों में लगे चक्कर की तरह घूमते रहे और वह अपने ही घर में एक जिन्दा लाश बन कर रह गई I पर कहते हैं ना कि चौदह साल बाद तो घूरे के भी दिन बदलते हैं तो फिर वह तो भला इंसान थी I एक दिन नितिन जब टूर पर गए थे और सासू माँ रात में जीनो से गिर पड़ी तो वह घबराते हुए तुरंत उनकी ओर दौड़ी और उन्हें उठाने की कोशिश की I पर सासू माँ तो हिल भी नहि पा रही थी I उसने घबराते हुए नितिन को फोन लगाया तो नितिन के डर के मारे हाथ पैर फूल गए I उधर सासू माँ दर्द के मारे चीखे जा रही थी I नितिन फोन पर ही चिल्लाते हुए बोला-"वहाँ खड़े-खड़े तमाशा देख रही हो और क्यों नहीं कार में बैठाकर ले जा रही हो उन्हें डॉक्टर के यहाँ?"

निशि की आँखों से आँसुओं का सैलाब बह निकला I वह फूट-फूट कर रोते हुए बोली-"दिन रात मैं अपने अरमानों का खून करके एक मशीन बनकर सिर्फ़ साँस लेती रही I मैंने भी सिर्फ़ कार ही चलाने को कहा था पर तुम सबने मुझे मेरे सामान के साथ घर से बाहर फ़ेंक दिया था I मैं ठण्ड में काँपती सड़क पर खड़ी रही और पड़ोसिओं के कहने पर तुमने मुझे घर के अन्दर बुलाया था I"

नितिन ये सुनकर उसे अपशब्द कहते हुए चीखा-"ये सब घड़ियाली आँसूं बाद में बहाना I अभी उन्हें तुरंत डॉक्टर के यहाँ ले जाओ I"

"मैं नहीं ले जाऊँगी I समझ लो मुझे कार चलाना नहीं आता I" कहते हुए निशि ने फोन काट दिया

और सास के सामने जाकर बैठ गई I

पर सास के बहते हुए आँसुओं और सूज रहे पैरों को देखकर वह अपना-अपना सारा अपमान, दुःख और मार भूल गई और काम वाली की मदद से किसी तरह उन्हें कार में बैठाकर हॉस्पिटल ले गई I

दवा वैगरह का सारा इंतज़ाम करके वह थकान के मारे बाहर बेंच पर बैठे-बैठे ही सो गई I

सुबह जब आँख खुली तो नितिन को अपने बगल में बैठे देखा I वह कुछ कहती उससे पहले ही नितिन प्यार से उसके माथे को चूमते हुए बोला-"तुम्हारे लिए नई कार खरीद दूँ या यही वाली चलाओगी?"

पहली बार उसकी आँखों में ख़ुशी के आँसूं झिलमिला उठे I जो अंसंख्य नन्हे दीप उसके मन में कहीं सालों पहले बुझ चुके थे, वो आज सूरज की सतरंगी किरणों के साथ मिलकर जैसे सारे संसार में जगमगा उठे थे I उसने मुस्कुराते हुए नितिन की तरफ़ देखा और उगते सूरज की लालिमा को निहारने लगी...