उत्तराखण्ड के राजेन्द्र सिंह को भारतीय तटरक्षक की कमान / डॉ. कर्नल(अ.प्रा.) डी.पी.डिमरी
मुखपृष्ठ » | पत्रिकाओं की सूची » | पत्रिका: युगवाणी » | अंक: मई 2016 |
डॉ. कर्नल(अ.प्रा.) डी.पी.डिमरी
सन् 2011 में मुम्बई में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को दहला दिया था। तब सीमा पार से हुई इस आतंकी कार्रवाही को अंजाम देने के लिए आतंकवादी समुद्री रास्ते से मुम्बई में दाखिल हुए थे जिनमें से एक अजमल कसाब को जीवित गिरफ्तार किया गया था। समुद्री रास्ते से घुसपैठ की यह पहली घटना तो नहीं थी पर इस घटना के बाद भारतीय तटरक्षक (कोस्ट गार्ड) की व्यवस्था को और चुस्त-दुरुस्त कर दिया गया। उत्तराखण्ड के लिए यह बड़े सौभाग्य की बात है कि देहरादून के चकराता परगने के राजेन्द्र सिंह को भारतीय तटरक्षक के सबसे उच्च पद ‘महानिदेशक’ के पद पर अभी हाल ही में तैनाती मिली है। 28 जून 1959 को जन्में श्री राजेन्द्र सिंह की प्राइमरी शिक्षा मसूरी में हुई और देहरादून के डीएवी कॉलेज से इन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद भारतीय तटरक्षक विभाग में अपनी नौकरी प्रारम्भ की। उत्तराखण्ड की गौरवपूर्ण सैन्य परम्परा को आगे बढ़ाते हुए श्री सिंह कोस्ट गार्ड के उच्चस्थ पद पर आसीन हुए हैं। भारतीय तटरक्षक सैन्य बल के महानिदेशक की कमान संभालने से पहले राजेन्द्र सिंह तटरक्षक मुख्यालय में अपर महानिदेशक के पद पर नियुक्त थे। आप 1980 में भारतीय तटरक्षक की सेवा में ऐसे समय में सम्मिलित हुए जिस दौरान भारतीय तटरक्षक अपनी स्थापना के दौर से गुजर रहा था। श्री सिंह उन सेवारत अफसरों में से हैं जोकि न केवल भारतीय तटरक्षक की विकास यात्रा के साक्षी रहे हैं अपितु इसको वर्तमान स्वरूप में लाने में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इन्हें, भारतीय तटरक्षक में शामिल हर प्रकार के पोत, अंतर्रोधी नौका से लेकर अत्याधुनिक अपतटीय गश्ती पोत तक, सभी श्रेणी के पोतों की कमान करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह अपने आप में इनकी नेतृत्व कुशलता का एक प्रमाण है, जो भविष्य में भी अन्य अधिकारियों को प्रेरित करता रहेगा। अस्सी के दशक में जब भारतीय समुद्री सीमा तस्करी अपने चरम पर थी और जो अपने राष्ट्र सहित पड़ोसी राष्ट्रों के लिए चिंता का विषय था, उस दौरान श्री सिंह ने तस्कर-विरोधी कार्रवाई में सक्रिय योगदान दिया तथा वर्ष 1989-90 के दौरान भारतीय तटरक्षक पोत अहिल्याबाई की कमान करते हुए लगभग 32 करोड़ का सोना एवं तस्करी का सामान पकड़ा, जोकि भारतीय तटरक्षक के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है। इस योगदान के लिए 15 अगस्त, 1990 को इन्हें सराहनीय सेवा के लिए तटरक्षक पदक से सम्मानित किया गया था। श्री सिंह को फील्ड फार्मेंशन में कार्य करने का विशाल अनुभव है। अन्य नियुक्तियों के अलावा, श्री सिंह ने महानिरीक्षक के रूप में भारतीय समुद्र तट के संपूर्ण पूर्वीं तट से लेकर पश्चिमी तट की कमान संभाली है, जो अपने आप में अद्वितीय है। श्री सिंह की भूमिका को रेखांकित करते हुए, भारत सरकार ने 15 अगस्त 2007 को इन्हें विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति के तटरक्षक पदक से सम्मानित किया। अपने 34 वर्ष के कार्यकाल में श्री सिंह ने चाहे समूद्र हो या स्थल, सभी जगह विविध नियुक्तियों में अपना असीम सहयोग दिया है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और मैत्री को बढ़वा देने के लिए महानिदेशक राजेन्द्र सिंह की कमान के अंतर्गत भारतीय तटरक्षक पोत संग्राम को सुदूर पूर्व जापान, फिलीपींस एवं वियतनाम में सौहार्द स्थापित करने के लिए भेजा गया और इन लक्ष्यों की पूर्ति में इनके द्वारा किए गए प्रयासों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर 111111111पर अत्यंत सराहना की गयी। मंुबई में 26/11 की घटना के उपरांत, भारतीय तटरक्षक की जिम्मेदारियों और कार्यों में अपेक्षाकृत अत्यधिक वृद्धि हुई है। तटीय सुरक्षा हो या खोज एवं बचाव अथवा प्रदूषण नियंतण, इन सभी क्षेत्रों में तटरक्षक को अनेक संस्थाओं तथा नौसेना, तटीय फलिस, सीमा-शुल्क, मत्स्य विभाग, विदेश मंत्रालय यहाँ तक कि पड़ोसी देशों के तटरक्षक बलों के साथ ताल-मेल बिठाकर अपनी जिम्मेदारियों का निवर्हन करना पड़ता है। इसमें तटरक्षक मुख्यालय में बतौर अपर महानिदेशक के रूप में राजेन्द्र सिंह ने अहम भूमिका निभाई है। समुद्र में सभी गतिविधियों में मछुवारा समुदाय की अभिन्न भूमिका रही है। इस समुदाय को तटरक्षक की जानकारी देने और सुरक्षा सुनिश्चित करने एवं उनसे मेल-जोल बढ़ाने की सर्वप्रथम शुरुआत की और पूर्वी तट से लेकर पश्चिमी तट तक मछुवारों के विभिन्न सामुदायिक संपर्क कार्यक्रम संचालित किए। महानिदेशक राजेन्द्र सिंह को अपनी मातृभूमि उत्तराखण्ड से अगाध स्नेह है। पवित्र गंगा के उद्गम स्थल की इस देव भूमि का होने पर, वह स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं। श्री सिंह का कहना है कि जिस प्रकार मानव के जीवन के लिए जल एवं वायु (H2O) आवश्यक है, उसी प्रकार मनुष्य के वास्तविक विकास के लिए (H2C) अर्थात् हार्डवर्क, होनेस्टी एवं कमिटमेंट, जोकि किसी भी उत्तराखण्डी का प्राय मानी जाती है। श्री सिंह युवाओं को जोड़कर आगे बढ़ना चाहते हैं। पहाड़ के युवाओं को भारतीय तटरक्षक के साथ जोड़ने के लिए वे सदैव तत्पर रहते हैं। श्री राजेन्द्र सिंह जी का विवाह श्रीमती उर्मिला सिंह से हुआ है और उनकी दो पुत्रियाँ हैं। युगवाणी परिवार उन्हें उनकी इस उपलब्धि पर हार्दिक शुभकामनाएँ अर्पित करता है।