उत्तरी ध्रूव / रामचन्द्र शुक्ल
उत्तरी ध्रुव का पता लगाने के लिए समय-समय पर कितने ही साहसी योरपियन जा चुके हैं पर अब तक किसी ने नहीं कहा था कि ठीक ध्रुव तक पहुँचे हैं। अब डॉक्टर कुक और कमांडर पीरी नामक दो अमेरिकन लौटकर आए हैं जो कहते हैं कि हम ठीक ध्रुव तक हो आए। इनमें से कमांडर पीरी का नाम तो इस सम्बन्ध में पहिले भी सुना गया है पर डॉक्टर कुक से लोग उतने परिचित नहीं हैं। डॉक्टर कुक बहुत दिनों से ध्रुव यात्रा की चेष्टा में लगे थे। अन्त में डेनमार्क की सरकार ने उन्हें उत्तरी ध्रुव का पता लगाने के लिए भेजा। पहिली सितम्बर को डेनमार्क की राजधानी कोपनहेजिन से समाचार मिला कि डॉक्टर कुक उत्तरी ध्रुव का पता लगा आए। उन्होंने अपनी यात्रा का विवरण 2 सितम्बर के न्यूयार्क हेराल्ड (पैरिस संस्करण) में प्रकाशित कराया। विवरण संक्षिप्त रूप से हिन्दी पत्रों में भी निकल चुका है। उसमें कोई अधिक विशेषता नहीं। वही बर्फ के मैदान और पहाड़, कुहिरे का अन्धकार, छह महीने की मनहूस रात उसमें भी है। डॉक्टर कुक लिखाते हैं कि 21 अप्रैल को मैं ठीक ध्रुव पर पहुँच गया। वहाँ जो देखा तो उत्तर, पूर्व और पश्चिम दिशाओं का कुछ भी पता नहीं था। कम्पास की सुई हर एक ओर दक्षिण दिशा बता रही थी। किसी जीव-जन्तु का चिद्द भी नहीं था। गहिरा सन्नाटा छाया हुआ था।
इसके उपरान्त कमांडर पीरी, जो अमेरिकन सरकार की ओर से ध्रुव का पता लगाने के लिए भेजे गए थे, अपनी यात्रा से लौटकर आए और कहने लगे कि कुक ध्रुव तक कभी नहीं पहुँचे, ध्रुव तक पहुँचा हूँ मैं। इन्होंने यहीं तक बस न किया वरन कहा कि डॉक्टर कुक ने हमारे कुछ एस्किमों लोगों को अधिक रुपया देकर, अपनी तरफ बहँका लिया। पीछे से मालूम हुआ कि पीरी इससे कहीं बढ़कर अपराधों का स्वयं दोषी है। उसने डॉक्टर कुक की रसद को उठवा लिया जो जाड़े के खर्च के लिए एक जगह जमा थी और इस प्रकार डॉक्टर साहब और उनके साथियों को उन बर्फीले निर्जन मैदानों में भूखों मारने का सामान किया। एक उदारता और सुनिए। लौटती बार डॉक्टर कुक ने अपने यात्रा विषयक कागज-पत्र अमेरिका के मिस्टर ह्निटने के हवाले कर दिए थे। मिस्टर ह्निटने पीरी के जहाज पर चढ़कर लैब्रेडोर में खाली हाथ आए और कहले लगे कि हम वे सब कागज ग्रीनलैंड के एटा नामक स्थान में छोड़ आए हैं क्योंकि पीरी ने डॉक्टर कुक की वस्तु अपने जहाज पर लेना अस्वीकार किया। ये बातें पीरी की ईर्ष्याेप्रगट करने वाली और उसके कथन की सारता में सन्देह उत्पन्न करने वाली हैं।
(नागरीप्रचारिणी पत्रिका, अक्टूबर, 1909)