उत्सर्ग / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Gadya Kosh से
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हिन्नें व्यवस्था कुछ ऐनहोॅ होय गेलै कि गाँव के स्कूल सें हमरोॅ ट्रांसफर जिला सें बाहर दूर देहात में होय गेलै। लंबा कोनोॅ छुट्टी में ही घर-गाँव के वासतें समय निकालेॅ पारै छेलियै। कोय भी तरह के घटना, दुरघटना के समाचारोॅ रो माध्यम पत्नी मीरा होय गेलै। अतना हैरान-परेशान आरो कष्ट हुअेॅ लागलै नौकरी में कि नौकरी सें रिटायर होयके दिन गिनेॅ लागलियै। नौकरी आभियोॅ सात-आठ साल छेलै।

पक्का महिना भर बाद घर ऐलोॅ छेलियै। मीरा सें पता चललै कि जैवा दी बीमार छै। चलेॅ-फिरेॅ नै पारै छै। हमरोॅ मन उनका देखै लेली बेचैन होय गेलै मतुर रात होय गेलोॅ रहै। सौसे गाँव शांत छेलै। मीरा सें पूछलियै, "तोरा ठिंया तेॅ यै बीचोॅ में मिलै लेली दीदी ज़रूरेॅ ऐलोॅ होतौं।"

"हों, दीदी ऐली छेलै। ढ़ेर सीनी बात कानी-कानी बतैलकेॅ दीदी।" मीरा बोललै।

"कानी-कानी। से कौन बात होय गेलै।"

"यही दिनोॅ लेली सांय-बेटा होय छै। आय हुनी बीमार छै, मंदिरोॅ में असकल्ली पड़ली छै, कोय देखवैया नै। खाना बनाय केॅ कोय दै वाला नै। बुखार हिन्ने ठीक होय गेलोॅ रहै। पथोॅ में कुछ नै मिललै तेॅ चूड़ा-दूध खाय लेलकै। बेचारी के पेट चली गेलै, झड़ा-पैखाना कपड़ै में करेॅ लागलै। रातभर घोलटी-पोलटी केॅ वही अनसेधरेॅ कपड़ा लत्ता पर पड़ली रहलै, उ$ तेॅ धन्न कहियोॅ बालमुकुन बाबू के बेटी बिलैया जें भियानी सब सेवा-बरदास करलकै, गू-मूत्तोॅ सें घिनैलोॅ भगतोॅ केॅ नभाय-सोन्हाय केॅ कपड़ा-लत्ता खीची-खाची केॅ सुखाय केॅ सैंती केॅ राखलकै।"

जैवा दी केॅ सौसे गांमें भगत ही कहै छेलै। उनकोॅ भक्ति के कारण भगत नाम परसिद्ध होय गेलोॅ रहै। हम्में पत्नी सें कहलियै, "मीरा, हमरो सीनी केॅ भगत दीदी लेली कुछ करना चाहियोॅ।"

यै पर मीरा खरा-खरोटी बोललै, "सब दिन हुनी छोटका दादा के परिवारोॅ केॅ सेबी केॅ रैल्होॅ छै। अधिके दा के धन-संपत जोगलेॅ छै। पाँच बीघा जमीन अपना सीनी के दादा उनकै खाय लेली दै देनें छै। सेवा-वरदास करना उनकोॅ परिवारोॅ के धरम छेकै।"

"तैय्योॅ, आदमी होयके नाते ही सही।" हम्में केन्होॅ केॅ शब्द-शब्द जोड़ी केॅ कहलियै।

"भगत दीदी धरमोॅ के अवतार छेकै। मरनखाटोॅ पर अंतिम सांस गिनतें हुअें भी जे उचित छौं, वहेॅ बोलथौं। सैंटू केॅ बोलाय केॅ जैवा दी कहलकै।"

सैंटू, धरौआ नाम छेले संजय के. देखनगरोॅ लंबा, गोरोॅ-लारोॅ जवान छवारिक, छोटका दादा अधिक मड़रोॅ के पोता। दीदी के यै लंबा उमर में उनकोॅ दूनोॅ भाय, आठोॅ भतीजा स्वर्ग सिधारी चुकलोॅ छेलै। आवेॅ पोता केॅ जवान-जवान बेटा होय गेलोॅ रहै। कभी-कभार हालत यहाँ तांय होय जाय छेलै कि लपका समझ-बूझ वाला बच्चा केॅ बितैलोॅ-बतियैलोॅ ढ़ेर सीनी बात माथा में उमड़ी-उमड़ी केॅ आबेॅ लागलै।

यहेॅ साल भर पैन्हेॅ शिवराती दिनां हुनी चंदा मागै लेॅ ऐली छेलै। हँसी के ही बोलै के आदत छेलै जैवा दी केॅ ऐन्होॅ बात नै छेलै, समय आरो परिस्थिति ने उनका में ई मिठास भरी देनें छेलै। परिवार के प्रत्येक घर सें चन्दा लेना हुनी आपनोॅ कर्त्तव्य समझै छेलै। यै सें सौसे परिवारोॅ के पुण्य उपस्थिति बाबा भोलेनाथ के दर पर होय जाय छेलै।

जैवा दी हँसी केॅ कहनें छेलै, "आभरी मासटर तोरा बाजा-गाजा, बेंड-बाराती के खरचा दै लेॅ पड़थौं।"

"तोरा दीदी, पैसा रो कौन कमी छौं। पाँच बीघा के उपज, एक खाय वाला तोंय। अत्तेॅ पैसा केकरा लेॅ जमा करै छोॅ।" हम्मूं हाँसी केॅ ही कहलियै।

दीदी सच्चेॅ में हिसाब दियेॅ लागलोॅ छेलै, "अधबटैया पर खेत छौं। दू बीघा में बगीचा, पोखर आरो मंदिर, बचलौं तीन बीघा। तीन बीघा में आधोॅ जें खेत करै छै तेॅ हमरा उपजा डेढ़ बीघा खेतोॅ के ही न परापत होय छै। कत्तेॅ पचीस मोॅन धान, वै में बाबा आरो हमरोॅ खरचा। केनां पूरै छै मासटर, हम्मीं जानै छियै। पैसा जौं रहतियै तेॅ साले साल मंदिरोॅ में चूना करैतिहै आरो खूब धूमधामोॅ सें शिवजी रो बिहा करतिहै। मनरेगा कारनें मजूरी भी तेॅ ढेरी बढ़ी गेलै। २ॉॉ रु। जोॅन आरो ४ॉॉ रु। रोज मिसतरी, खाली चूना कराय में तीन-चार हजारोॅ के खरचा आवै छै।"

दीदी के हिसाब सहिये छेलै। हम्में उनकोॅ जोड़ी-तोड़ी केॅ चलवोॅ आरो कष्टोॅ में दिन खेपवोॅ के कलपना सें सिहरी गेलोॅ छेलियै। थोड़ोॅ देर चुप रहला के बाद हम्में एक दोसरोॅ रसता पैसा लेली उनका सूझैनें छेलियै, "बगीचा में अत्तेॅ गाछ छौं, पाँच-दस गाछ बेची कैन्हेॅ न लै छोॅ। अत्तेॅ घरखन कथी लेॅ उठाय छोॅ दीदी।"

हमरोॅ बात सुनतैं दीदी दोन्हू हाथोॅ सें कान पकड़ी लेनें छेलै आरो जिहोॅ केॅ दाँतोॅ सें दबैतें कहनें छेलै, "हरा-भरा गाछोॅ केॅ भी कोय काटै छै। गाछ आदमी के प्राण छेकै, साक्षात परमात्मा के रूप छेकै। गाछ काटवोॅ सें बढ़ी केॅ कोय दोसरोॅ पाप नै।"

"कहियो तेॅ कटबेॅ करतै दीदी।"

"उमर पूरा होला पर अपन्हेॅ सुक्खेॅ लागतै, तबेॅ काटी केॅ बेचै में कोय पाप नै।" दीदी केॅ हमरोॅ बात अच्छा नै लागलोॅ छेलै आरो हुनी उठी केॅ जाबेॅ लागलोॅ छेलै। हम्में जबेॅ निहोरा करी केॅ रोकलियै उनका तेॅ हुनी कहलकै, "दुनिया के चिन्ता गाछ लगावै पर छै आरो तोंय लिखी-पढ़ी केॅ हमरा गाछ काटै लेॅ कहै छोॅ। जानै छोॅ, गाछेॅ हमरोॅ संतान छेकै, बेटा-बेटी सबकुछ, कोय अपनोॅ संतानोॅ केॅ काटै छै। तोरोॅ चन्दा दै के मोॅन छौं?"

हाव दिन दीदी के चेहरा पर जिनगी में पैल्हेॅ दफा गोस्सा आरो तनाव देखलियै आरो हम्में सच्चेॅ में सिटपिटाय गेलियै। हम्में ई कहिकेॅ पिंड छुड़ैलियै कि "जा, न, मलकैनी दै देथों।"

चाय लैकेॅ मीरा आबी गेलोॅ छेलै। एैतें बोललै, "दीदी केॅ देखै लेॅ गेलोॅ छेलियै की?"

"हों, हुनका डाकटरोॅ कन लैकेॅ गेलोॅ छै।"

"दीदी रो हालत बेशी गड़बड़ छै की? मनझमान माथा पर हाथ धरी केॅ लेटलोॅ छोॅ।" मीरा चिन्ता भरलोॅ आवाज में बोललै।

"हों, उनको ढेर सीनी यादें घेरी लेनें छेलै।" हम्में बैठी केॅ चाय रो एक घूंट लेतें हुअें बोललियै।

बिछौना के गोड़थारी मीरा भी बैठी गेलोॅ रहै। चाय पियै तांय दोनों चुप ही रहलियै कुछ सें कुछ सोचतें हुअें।

मीरा ही बोललै, "कहियो मोॅन-तोॅन खराब नै होय छेलै दीदी के. लागै छै आवेॅ अंतिमें छै। दस रोज पैन्हेॅ सपरी केॅ ऐली छेलै भेंट करै लेॅ। अपन्हेॅ केॅ खोजी रैल्होॅ छेलै। कहि रैल्होॅ छेलै कि" आभरी मोॅन हहरै छौं कनियान। सपना में बढ़ियां-बढ़ियां घोॅर बनलोॅ देखै छियौं। अथाह समुन्दर में लाल-लाल पानी। शिवजी पकड़ी केॅ साँपोॅ सें कटवाय केॅ हाँसै छौं। "

"आरो कुछ्छू बोलै छेलौं दीदी।" हम्में पूछलियै।

"हौ जे किताब उनका पर लिखै छोॅ, पूछै छेलौं कि पूरा होलै की नै आरो एक ज़रूरी बात...?"

"की...?"

"वहेॅ जे हरदमें हुनी बोलै छौं कि हमरा मरला पर जराय लेॅ नै कहियोॅ। हमरा बद्रीनाथ में साधू रो छाप पड़लोॅ छै, हमरा मुँहोॅ में आगिन नै पड़तै। हमरा मांटी देलोॅ जैतेॅ। आरो कहनें छौं कि जौं परिवारें नहियें मानतै तेॅ मासटरे साहब के कहियौ आगिन देतै। बाजा गाँव के एक्को आदमी नै आना चाहियोॅ।" मीरा कहि केॅ चुप होय गेलोॅ रहै। हमरा उनका निष्ठा पर गौरव महसूस होलै।

सच में हमरा याद एैलेॅ कि ई दोनों बात हुनी जबेॅ आबै तबेॅ ज़रूरे सखियारै। कहै बाजा वाला के केकरो आगिन हम्में नै लेभौं। बाजा के लोगें अंत-अंत में भी हमरोॅ बहुते अपमान करनें छै। "

नहाय-खाय के बेर होय गेलोॅ छेलै। खाना खायकेॅ बगल सें पता लगाय के कोशिश करलियै कि ईलाजोॅ लेली दीदी केॅ कहाँ लै गेलोॅ छै लेकिन कोय पक्का पता नै चलेॅ पारलै। हमरा स्कूली लेली साँझैं निकलना ज़रूरी छेलै। भियानकोॅ मॉरनिंग स्कूल होयकेॅ कारण स्कूल छूटै के डोॅर छेलै।

तैयार होतें देखी केॅ मीरा कहलकै, "नै कोनोॅ छुट्टी छौं तेॅ दरमाहा कटतै, कोनोॅ फौजोॅ के नौकरी तेॅ नहियें न छेकै। आय रूकी जा, कल जहियोॅ, जैवा दी रो कोय ठिकानोॅ नै। अपन्हें तेॅ जोड़ी केॅ बतैनें छेलोॅ कि एक सौ तेरहवाँ वर्ष छेकै हुनकोॅ ई. परिवार भरी में अपनेॅ पर बेशी भरोसोॅ छै उनका। आय भेंट बिना करनें नै जैयेॅ।"

पत्नी के कहला पर हम्में रूकी गेलियै। साँझें दुआरी पर बैठलोॅ छेलियै। बड़ा अचरज होलै, दीदी रिक्शा पर बिलैया साथें बेठलोॅ मंदिर तरफें जाय रैल्होॅ छेलै। कुछ देर बाद सेंटू केॅ जैतेॅ देखी केॅ बोलैलियै। सेंटू हँसतें हुअें बोललै, "की कहियौं भैया, आय पाँच-सात रोजोॅ सें भगतोॅ पीछू परेशान छियौं। लै चलोॅ भोले बाबा आबेॅ आपनोॅ घोॅर। हे महादेव शिवशंकर, औघड़दानी कहाँ छोॅ हो" कहि-कहि दीदी कानै छै। "

"अखनी तेॅ रिक्शा पर जैतें लागलौ की एकदम ठीक छौ। चुपचाप मौनी बाबा नांकी बैठलोॅ छेलौ।" हम्में खुशी सें कहलियै।

"पुनसिया में भैरोॅ डाकटरें पानी चढ़ैलकेॅ। की-की सूइया चार-पाँच रंगोॅ केॅ मिलाय के पानी साथें देलकै की दीदी टनटनाय गेलै। अखनी तेॅ हँसै-बोलै छै।" सेंटू के चेहरा पर रतजगा के हरारत साफ झलकी रैल्होॅ छेलै।

सेंटू साथें मंदिर एैलियै। दीदी केॅ गोड़ छूवी केॅ परनाम करतें हुअें पूछलियै, "ठीक छोॅ दीदी।" दीदी खाली हँसलै, बोललै कुछ्छु नै।

सेंटू बोललै, "डाकटरें बेशी टोकै-बजाय लेॅ नै कहनें छै। तीन-चार रातोॅ सें सुतलोॅ नै छै। भैरोॅ बाबू कहलकै, नीन्दोॅ सें रातभर सुततौं तेॅ भियानी काफी फायदा बूझैतौं। नीनोॅ रो सूइया भी पड़ी गेलोॅ छै।"

हम्में बहुते देर तांय दीदी के थकचुरुवोॅ चेहरा अपलक ताकतें रहलियै। हुनी हमरा सें कुछ्छु बोलै लेॅ चाहै छेलै मतुर लागलै बोलै के दम नै छै।

हुनकोॅ आँखोॅ रो डिम्मी बंद-बंद होय जाय छेलै। हमरा आँखी से भरभराय केॅ लोर गिरी गेलै।

अच्छे रात होय गेलोॅ होतै जे हम्में घोॅर एैलोॅ होभेॅ। कल के छुट्टी तेॅ तय होय गेलोॅ रहै। खैलियै आरोॅ सूती रहलियै।

चैतोॅ के भियानकोॅ नीन्द बड्डी पियारोॅ होय छै। पौ फूटी चुकलोॅ छेलै। सूरज हँसलोॅ-खिलखिलैलोॅ पूरब के सरंगोॅ में छिटकलोॅ आबी रैल्होॅ छेलै। सेंटू रो आवाज आरो किवाड़ी पर दस्तक एक्केॅ साथ सुनी केॅ हड़बड़ाय केॅ उठलियै। किवाड़ी के हुड़का खोलतें पूछलियै, " की हो सेंटू, दीया बूती गेल्होॅ की?

"बुतलेॅ समझोॅ। कोय नै छै उनका ठिंया। जलदी चलोॅ। गंगाजल लैकेॅ जाय रैल्होॅ छियै।" सेंटू अतना कहि केॅ धड़फड़ करनें जावेॅ लागलै। हम्मू ओकरा साथैं झटकलोॅ चललियै।

रसता में सेंटू बोललै, "नीन रो दवाय के असर खतम होतें हुनी भोरे पहरें जगी केॅ पहिलकै नांकी बेचैन होय गेलै, फैरछोॅ होला पर हुनी हमरा सें कहलकै कि सबकेॅ बुलावोॅ आवेॅ हम्में नै बचभौं। रंगत बढ़ियां नै देखी केॅ हम्में तोरा ठिंया ऐलिहौं। सब सुतलोॅ छै। भगतें बाबा ठिंया, जै जघ्धा पर बैठी केॅ हुनी पूजा करै छेलै, लै जाय के जिद करी रैल्होॅ छेलै।"

मंदिर एैतें देखलियै कि बाबा भोलेनाथ रो पट खुललोॅ छै आरो जैवा दी शिवलिंग पर बेहोश गिरलोॅ छै। उनकोॅ माथोॅ शिवलिंग पर छेलै आरो दूनोॅ हाथ अरदास धरफनियां जुगता शिव केॅ पंजोठलेॅ-धेरनें छेलै।

तब तांय बिलैया भी आबी चुकलोॅ छेलै। हम्में दुन्हूँ दीदी केॅ पकड़ी केॅ माथोॅ गोदी में लैकेॅ सांसोॅ रो हालत देखै वासतें नाकोॅ पर हाथ धरलियै। दीदी मुँह बाय देनें रहै। हमरा सब रो देलोॅ गंगाजल उनका कंठोॅ में गटगट करी केॅ पार होय गेलै। थोड़ोॅ देरी में सब कुछ शांत। शिवमय जैवा दी के आत्मा शिव रूपी परमात्मा सें मिली गेलोॅ छेलै।

रौद बढ़ै के साथ दर्शन करबैया के भीड़ भी बढ़लोॅ जाय रैल्होॅ छेलै। जनानी-मरदाना, छोटोॅ-बड़ोॅ, बूढ़ोॅ-बच्चा जें सुनलकै जैवा दी केॅ एक झलक देखै लेॅ दौड़ी गेलै। तब तांय दीदी केॅ मंदिरोॅ के बाहर ऐंगना में खटिया पर उतरा-दखना राखी देलोॅ गेलोॅ छेलै। सौ सें बेशी जनानी लहासोॅ केॅ घेरी केॅ बैठलोॅ छेलै। दीदी के गोड़ छूवी केॅ परनाम करै लेॅ सौसे गाँव उमड़ी गेलोॅ छेलै। सबसें अचरज के बात छेलै कि उनका लाश में लाश के गंध नैं छेलै बलुक सौसे मंदिर परिसर चंदनी सुगंध सें गमगम करि रैल्होॅ छेलै।

मुख्य रूपोॅ सें दाह-संस्कार के पूरा जिम्मेदारी सेंटू मड़रोॅ के ही छेलै। कफ्फन देला के बाद गंगा घाट जायके तैयारी होय रैल्होॅ छेलै। सभ्भेॅ के एक्के राय छेलै आग ही पड़ना चाहियोॅ। बढ़ौना सें देवेनदर झा पंडीजी भी आबी केॅ यहेॅ फरमाय रैल्होॅ छेलै, "छाप के बाद हिनी गिरस्त नांकी घर-परिवारोॅ में जीलै, यै लेली हिनका आगिन ही पड़तै।" बराहमनें कहि देलकै, आबेॅ एकरा के टारेॅ पारै। जैवा दीदी के पैल्होॅ इच्छा मांटी में मिली चुकलोॅ छेलै। हमरा मुँहोॅ सें आवाज निकललै जे शायदे कोय भीड़ के शोर में सुनेॅ सकलेॅ होतै, उ$ बुदबुदाहट में एक पीड़ा छेलै, "जनमैेॅ सें जेकरोॅ विधाता वाम छै, मरलाा पर केनां होतै सहाय।"

आबेॅ आगिन के देतै, यै पर चरचा होय रैल्होॅ छेलै। दुपहर बाते-विचारोॅ में होय गेलै। सौ सें बेशिये मड़र परिवार होतै। सब रो सब विचार, कोय एकमत नै। केकरोह में मेल-मिलाप नै। तखनिये किशोरी बाबू के सौसे परिवार जेकरोॅ नानी घोॅर बाजा छेलै, आबी केॅ बोललै, "तोरा सीनी रो माथोॅ खराब होय गेलोॅ छौं की? बेटी रो बिहा होला के बाद नैहरा के पानी सें उतरी केॅ ससुरारी में पति के पानी ग्रहण करे छै। वहाकरे भाय-भतीजा के अंश रो आगिन दीदी केॅ पैठोॅ होतै।"

गोतिया में सभ्भेॅ के माथोॅ घूमी गेलै। सेंटू बोललै, "भगत दीदी कहने छेलै कि आगिन ।"

वाक्य पूरा होय के पैन्हेॅ मृत्युंजय गोस्सा सें आग होतें बोललै, "कहला आरो करला में अंतर होय छै। करलोॅ वहेॅ जैतेॅ जे उचित छै।"

"हम्में सीनी दीदी के इच्छा रो ख्याल करवै।"

सेंटू के अतना बोलथैं मृत्युंजय कहलकै, "केकरोॅ मजाल लहास उठाय लेतै, जें लहास उठैतेॅ ओकरोॅ लहास वही ठिंया गिराय देवै। हम्में बाजा खबर करी देनें छियै, वहाँ सें उ$ सीनी चार-चार गाड़ी पर सपरी केॅ चली चुकलोॅ छै। एैतेॅ, लहास वें सीनी उठैतेॅ। आगिन वें देतै, किरिया वें करतै।"

ऐकरोॅ बाद गाली-गलौज, मारपीट के नौबत, भागमभाग। सचमुचे आधोॅ घंटा पूरा होतैं बाजा गाँव के लोग, जैवा दी के पति स्व।कुलदीप मड़रोॅ के भाय-भतीजा सपरी केॅ आबी गेलोॅ छेलै। अपने गोतिया ओकरा साथें छेलै। बाकी लोगें चुप रहना ही अच्छा समझलकै। तुरत-फुरत में जेंना बिरनी काटनें रहेॅ, जैवा दी केॅ लहास उठाय के गाड़ी पर लादलकै आरो गंगा घाट बरारी लेली उठी गेलै। सौसे गाँव, गोतिया, आपनोॅ-पराया, जात-परमिन आँखोॅ में भरी-भरी लोर लेनें दीदी केॅ शाँत मनोॅ सें विदाय दै रैल्होॅ छेलै। हम्में छटपटाय केॅ कानतें कहलियै, " दीदी, हमरा माफ करिहोॅ। तोरा देलोॅ वचन हम्में पूरा नै करेॅ पारलिहौं।

गाड़ी पर लादलोॅ दीदी के लहास गुजरतें देखै केॅ हिम्मत हमरा में नै छेलै। घरोॅ में आबी केॅ बैठी रहलियै। कानोॅ में एक मरियल आवाज के साथ जैवा दी के लहास गुजरी गेलै, "राम नाम सत्त छै, राम नाम सत्त छै।"