उत्सव के दौर में मनोरंजन / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
उत्सव के दौर में मनोरंजन
प्रकाशन तिथि : 31 अक्तूबर 2013


प्राय: दिवाली मंगलवार या शुक्रवार को आती है और किसी दौर में मंगलवार को दिवाली होने से अनुमान लगाया जाता था कि वर्ष किसान को खुशियां देगा तथा शुक्रवार को दिवाली व्यापारी के लिए शुभ मानी जाती थी। परंतु यह सच इसलिए नहीं हो सकता था कि किसान और व्यापारी की खुशी जुड़ी है। संभवत: इसका आशय यह हो सकता है कि मंगल अवाम के लिए शुभ होगा और शुक्रवार श्रेष्ठि वर्ग के लिए। गोया कि दिवाली कभी समाजवादी रही है तो अधिकतर पंूजीवादी।

कभी सुना नहीं कि किसी और तथाकथित आध्यात्मिक देश में धन की पूजा होती है। भारत अपने मूल स्वभाव में सामंतवादी है और उसका गणतंत्र भी सामंतवाद का ही मुखौटा है। दरअसल खुशहाली वर्गहीन ही होनी चाहिए अन्यथा वह एकांगी विकास का ढोंग है। ऐसा कम ही हुआ है कि दिवाली इतवार को हो और इस वर्ष है। अत: किस वर्ग के लिए शुभ है यह बताना कठिन है। परंतु चारों ओर चलती लहर संकेत देती है कि यह गैरधर्मनिरपेक्ष शक्तियों के लिए शुभ है। अर्थात राष्ट्र की हानि की आशंका है। यह तय है कि बाजार और विज्ञापन की ताकतों के लिए यह वर्ष अत्यंत शुभ सिद्ध होगा। रोजमर्रा के जीवन में नहीं काम आने वाली वस्तुओं की बिक्री आसमान तक जा पहुंचेगी। मनोरंजन उद्योग बाजार एवं विज्ञापन व्यापार का ही अंग है। अत: समय फिल्मकारों और सितारों के लिए शुभ है क्योंकि उत्सव के महीने में ही कृश (कृष्ण) एवं रामलीला का प्रदर्शन है।

उधर, छोटे परदे पर कुरीतियों को सुदृढ़ करने वाले तथाकथित तौर पर धार्मिक आख्यानों से प्रेरित सीरियलों की भरमार है। इनमें से कुछ का बजट तीस लाख रुपए प्रति एपिसोड है। अगले माह जयंतीलाल गढ़ा की एनीमेशन 'महाभारत' का प्रदर्शन है जिसमें पात्रों के लिए सितारों ने डब किया है जैसे भीष्म के लिए अमिताभ बच्चन ने।

ज्ञातव्य है कि राकेश रोशन ने 'कृश-3' की पटकथा पर पहले तीन करोड़ रुपए खर्च करके एक एनिमेशन फिल्म बनवाई है। सारे कलाकारों और तकनीशियनों को यह बार-बार दिखाई गई है कि ऐसा ही प्रभाव कलाकारों को साथ लेकर फिल्मांकन में पैदा करना होगा। इस अभिनव प्रयास से नया मार्ग खुला है कि पटकथा पर पहले एनिमेशन फिल्म बनाई जाए जिसे फिल्म का ब्लू प्रिंट मान सकते हैं या आर्किटेक्ट द्वारा बनाया गया भवन का नक्शा भी कह सकते हैं। वह दिन दूर नहीं जब आर्किटेक्ट भी एनिमेशन द्वारा पूरे भवन के लाभ ग्राहक को दिखा सकते हैं। आज के दौर में हर चीज बेचने के नए तरीके सामने आ रहे हैं। यह दौर देखकर खरीदने का दौर है। परंतु शैलेंद्र ने 'जागते रहो' के लिए लिखा था कि 'मत रहना अंखियन के भरोसे'। आज दुनिया एक बाजार है जिसमें विक्रेता है और अनगिनत खरीदार। परंतु उन लोगों की संख्या कम हो गई है जो कहें 'बाजार से गुजरा हूं, खरीदार नहीं हूं'। यह वर्ग ही हमें बचा सकता है।

इतवार को दिवाली व आने वाला वर्ष नेताओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। चुनाव तय करेंगे कि चीख-चीखकर गला फाड़कर झूठ पर झूठ बोलने वाले जीतेंगे या अपेक्षाकृत खामोश पक्ष जीतेगा। कहते हैं कि चीखने वाले का गुड़ बिक जाता है और खामोश रहने वाला शकर या शहद भी नहीं बेच पाता। आज इतिहास का मनगढ़ंत संस्करण बेचा जा रहा है और नया भूगोल भी पढ़ाया जा रहा है। यह दौर अंधड़ का, औघड़ों का दौर है परंतु भारत की आम जनता सब जानती है।