उत्सव से जुड़ा फिल्म प्रदर्शन / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :28 सितम्बर 2017
धार्मिक तीज त्योहार के दिनों में सिनेमाघरों में दर्शक संख्या में वृद्धि हो जाती है। आजकल फिल्मकार एकाधिक छुटि्टयों वाले सप्ताह में फिल्म प्रदर्शन की योजना बनाते हैं गोयाकि प्रदर्शन का दिन निश्चित करके उलटी दिशा में योजना बनाते हैं। उदाहरण के लिए अगले वर्ष की ईद और दिवाली पर प्रदर्शित की जाने वाली फिल्मों की पटकथा लिखी जा रही है, सितारों से अनुबंध किया जा रहा है। यह कुछ इस तरह है कि विवाह का शुभ मुहूर्त तय करने के बाद वधु की खोज की जा रही है। यहां तक कि शिशु का जन्म किस शुभ घड़ी में हो, यह तय किए जाने के बाद वधु गर्भधारण करती है और सामान्य डिलीवरी नहीं हो पाने पर ऑपरेशन द्वारा जन्म दिया जाता है। आजकल अनेक कारणों से सीज़ेरियन डिलेवरी की संख्या सामान्य से अधिक हो रही है। विज्ञान के दौर में ज्योतिष आधारित गतिविधियां बढ़ रही हैं। इस दौर में एक तरफ बैलेंस शीट का जोर है तो दूसरी तरफ कुंडली और ज्योतिष का। विरोधाभास और विसंगतियों के कारण कहीं कुछ साफ नज़र नहीं आता। हमारी आंखें धुंध की अभ्यस्त होती जा रही हैं।
इसके साथ ही पटकथा में तीज-त्योहार हमेशा शामिल किए जाते रहे हैं। यह संयोग देखिए कि दोस्तोवस्की की रचना 'व्हाइट नाइट' से प्रेरित राज कपूर, नूतन, रहमान अभिनीत 'छलिया' से मनमोहन देसाई ने फिल्में बनाना प्रारंभ किया और दशकों बाद उसी कथा से प्रेरित संजय लीला भंसाली की 'सांवरिया' में रणवीर कपूर नायक के रूप में प्रस्तुत किए गए। 'छलिया' का क्लाइमैक्स दशहरे के उत्सव पर रचा गया। रावण के पुतले को आग लगने पर हुई भगदड़ में ही अरसे पहले बिछड़े पति-पत्नी की भेंट होती है। सुजाय घोष की विद्या बालन अभिनीत 'कहानी' का क्लाइमैक्स भी दुर्गा पूजा ही है।
शशि कपूर की 'अजूबा' में भी रावण दहन का दृश्य है। फिल्म में रावण के पुतले के भीतर नायिका कैद है और दहन के पूर्व उसे बचाना है। राजीव कपूर की माधुरी अभिनीत 'प्रेमग्रंथ' में भी रावण दहन का दृश्य है। दीपावली पर पटाखों के शोर का सिनेमाई लाभ लेकर घटनाक्रम कई फिल्मों में रचे गए हैं। यहां तक कि गीत भी रचे गए हैं जैसे 'एक यह भी दिवाली है, एक वही दिवाली थी,' 'कहीं दीप जले, कहीं दिल' इत्यादि।
उत्सव पर प्रदर्शन से लाभ है, तो उत्सव के दृश्यों का समावेश भी लाभ देता है। 'शोले' में होली के उत्सव के समय ही गब्बर सिंह गांव पर हमला करता है। होली के दृश्य रखने पर नायिका के अंग प्रदर्शन के लिए अवसर बढ़ जाते हैं। यश चोपड़ा ने अपनी फिल्म 'सिलसिला' में भी होली उत्सव का लोकगीत रखा 'रंग बरसे, भीगे चुनर वाली.. खाए गोरी का यार बलम तरसे।' इस गीत में अपने पति संजीव कुमार की मौजूदगी में रेखा जया के पति अमिताभ बच्चन से लिपट जाती हैं और यही अभद्रता पारिवारिक दर्शक को पसंद नहीं आई। इसी फिल्म में परवीन बॉबी को हटाकर रेखा को लिया गया ताकि फिल्म में रिश्तों की भंवर ज्यादा असरकारक सिद्ध हो परंतु फिल्म को आशातीत सफलता नहीं मिली। कुछ लोगों का विश्वास है कि उस एक गीत की अभद्रता ही इतनी बड़ी स्टारकास्ट फिल्म को ले डूबी।
कथा फिल्मों के दूसरे ही दशक में एक सिनेमा मालिक रणजीत स्टूडियो के संस्थापक सेठ चंदूलाल शाह को पच्चीस हजार रुपए दे गया और उसे ईद पर एक मुस्लिम सामाजिक फिल्म चाहिए थी। सेठ चंदूलाल शाह ने एक गुजराती लोक-कथा पर फिल्म बना दी। सिनेमा मालिक ने समयाभाव के कारण मजबूरी में ईद पर 'गुण संुदरी' लगा दी परंतु वह मुकदमे की धमकी देकर गया। ईद पर 'गुण संुदरी' इतनी सफल रही कि उसने मुकदमा नहीं किया और सेठ चंदूलाल शाह को और धन लाकर दिया।
सहिष्णुता और भाईचारे के दौर में ईद पर 'गुण संुदरी' सफल रही परंतु आज यह संभव नहीं लगता। पारम्परिक त्योहार के साथ ही बाजार ने नए त्योहार भी रच दिए हैं जैसे 'वेलेंटाइन डे।' मिलावट के कारण पारम्परिक मिठाई का स्थान चॉकलेट ले रही है, क्योंकि वह मावे से नहीं बनती। हमारी अपनी संस्कारहीनता हमारे तीज-त्योहारों को डस रही है।