उद्धरण / कांग्रेस-तब और अब / सहजानन्द सरस्वती

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हमारा बादशाह किसान-मजदूर ─ हम किसी को बादशाह नहीं मानना चाहते। हमारा बादशाह किसान-मजदूर है। जिसकी कमाई से बासमती, गेहूँ, दूध-घी, चीनी-शक्कर, कपड़े और हमारे आराम की तमाम चीजें तैयार हों, वही तो हमारा बादशाह है। हमारा बादशाह दूसरा कौन? जिस बादशाह की कमाई हम खाते हैं, उसी की सरकार हम अपने मुल्क में चाहते हैं।

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हम व्यक्तिगत राज नहीं चाहते ─ हम क्रांति चाहते हैं, पर किसी का व्यक्तिगत राज होना हम नहीं चाहते। हम किसान-मजदूर राज चाहते हैं। इनकिलाब के मानी अराजकता नहीं, लूट नहीं। इसमें हम कम-से-कम जान माल का नुकसान कर किसान-मजदूर-राज स्थापित करना चाहते हैं।

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अपने कब्जे की बकाश्त मत छोड़ो ─ जो बकाश्त जमींदार अपने हल-बैल से करता है, उस पर मत जाओ। प्रांत भर में कुल 20 लाख एकड़ बकाश्त है। उनमें 19 लाख एकड़ किसान जोतते हैं और 1 लाख एकड़ जमींदार। इस 1 लाख के संबंध में कुछ नहीं सोचो─19 लाख एकड़ पर अपना कब्जा न छोड़ो। उस पर मर जाओ; पर उससे बेदखल न होओ। हम जमींदारों से कह देना चाहते हैं कि यदि वे गड़बड़ी करेंगे, तो उनकी 1 लाख एकड़ भी चली जाएगी।

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किसान-मजदूरों को क्या मिला ? ─ कहा जाता है, अपनी सरकार बन गई, अंग्रेज चले गए लेकिन किसान और मजदूरों को क्या मिला? आज सरकार की सारी ताकत जमींदारों के लिए, पूँजीपतियों के लिए सारी सहूलियतें मुहैया करने में लगी है, उनके लिए सरकार की पूरी तैयारी है पर उन किसान-मजदूरों को क्या मिला, उनके लिए कौन-सी सरकारी तैयारी हो रही है, जिनके बल पर सरकार बनी और कायम है?

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जमींदारों के एक पैसा भी नही ─ अगर हमारी चले, तो हम पलक में किसानों को जमीन का मालिक बना दें। जमींदार को जमींदारी के बदले में एक पैसा भी नहीं मिलना चाहिए। अगर जमींदारों को पैसा देंगे, तो दो सौ वर्षो से अंग्रेज इस मुल्क में रहे, इसके लिए भी हमें उन्हें पैसा देना चाहिए। जमींदारों ने बहुत मौज कीं, किसानों को लूट कर अपने को मालोमाल किया। अब मुआविजा कैसा? हमारे नेता कहते हैं, हमने चुनाव-घोषणा में वादा किया है कि जमींदारी को हासिल करेंगे, इसलिए मुआविजा देना वाजिब है। चुनाव-घोषणा में किसानों और मजदूरों के साथ भी बहुत वादे किए गए थे, परंतु आज उनमें एक को भी पूरा नहीं किया जा रहा है। आज किसानों के स्वार्थों के साथ, उनके सवालों के साथ, उनकी माँगों के साथ मखौल किया जा रहा है। आज भावली से नकदी करने में क्या हो रहा है, जमींदारी उठाने में क्या हो रहा है? आबपाशी के लिए क्या किया जा रहा है?

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यह सरकार मालदारों की है ─ 5 अगस्त के बाद राज कायम हुआ है, उसमें बिड़ला, डालमियाँ, टाटा, सिंघानियाँ को कारखाना खोलने में सहूलियत मिलेगी किसानों और मजदूरों को कोई सुख-सुविधा नहीं मिल सकती। यह सरकार मालदारों की है, जमींदारों की है। आज उन्हीं की मनमानी-घरजानी है, उन्हीं का बोलबाला है। मजिस्ट्रेट और पुलिस उन्हीं के इशारे पर नाच रहे हैं और किसानों और मजदूरों पर जुल्म और सितम ढा रहे हैं।

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जो अन्न-वस्त्र उपजाएगा , अब सो कानून बनाएगा ─ कांग्रेस के लोग तो किसानों के चिंतकों से भी नाक-भौं सिकोड़ते हैं। आपने देखा, उन्होंने असेंबली में किन लोगों को भेजा?─सिर्फ जमींदारों या उनके पिट्ठुओं को। किसानों की बात बोलनेवाला कहाँ कौन है? जहाँ ऐसी असेंबली है, वहाँ किसानों का खुदाहाफिज। अब असेंबली में भेजनेवालों में छँटैया करने के बाद कहीं किसानों और मजदूरों की असेंबली बनेगी। अब ऐसे आदमियों को वोट दो, जिनके कंधे पर हल और हाथ में कुदाल है। अब सिद्धांत बना लो कि जो अन्न-वस्त्र उपजाएगा, अब सो कानून बनाएगा? अगर ऐसा आदमी कानून बनाएगा और गड़बड़ करेगा, तो उसे कान पकड़ कर दो तमाचे भी लगा सकोगे, परंतु आजकल के एम. एल. ए. लोगों की तो शक्ल भी देखने में नहीं आती।

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समझौते की नीति से सब चौपट ─ हमारे नेताओं की समझौते की मनोवृत्ति ने सारा गुड़ गोबर कर दिया। हमारे जैसे लोग बराबर विदेशी हुकूमत से लड़ कर स्वराज हासिल करने पर जोर देते थे, पर सुनता कौन है? हमने हिंदुस्थान को दो हिस्सों में विभाजित करने का सदा विरोध किया, पर हमारे नेताओं ने हमारी एक भी न सुनी। उनका कहना था कि दंगे और खून-खराबी रोकने के लिए हिंदुस्तान का बँटवारा होना जरूरी है। मैं पूछता हूँ कि आज जो सांप्रदायिक दंगे, खून-खराबी और औरतों की बेइज्जती हो रही है, उससे ज्यादा पहले कभी हुई?

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स्वराज या पुलिसराज ? ─ लोग कहते हैं कि स्वराज आ गया; परंतु स्वराज नहीं यह तो पुलिसराज है। एम.एल.ए. का राज है। पुलिस जो चहती है, कर रही है। पुलिस का रवैया तो पहले से खराब है, उसकी धाँधली तो दिन-प्रतिदिन बढ़ ही रही है। एम.एल.ए. जो चाहते हैं, कर रहे हैं। उन्हें लोकमत की कोई परवाह नहीं है। लोग कहते हैं कि मैंने किसानों से कहा था कि कांग्रेस के उम्मीदवारों को वोट दो, ठीक है, मैंने ऐसा कहा था, परंतु कब? जब अंग्रेजी हुकूमत यहाँ थी और उसको हमें मार भगाना था। उस समय यदि कांग्रेस की हार होती, तो अंग्रेजों के खिलाफ जो हमारा मोर्चा था, वह कमजोर होता और अंग्रेजों की जड़ इस मुलक में मजबूत होती। परंतु अब तो 15 अगस्त के बाद यह बात नहीं रही। अब तो कांग्रेस ने अपना काम कर लिया। अब तो उसे मुक्ति मिलनी चाहिए।