उधार के ऐंगना / मृदुला शुक्ला
अतीतोॅ में झाकै छियै तेॅ झौआ।कोठी के ऊ सरकारी क्वार्टर के प्रति अपनत्व के हौ भाव जागी उठै छै, जे भाव हमरा सिनी के मनोॅ में तखनी अद्भुत छेलै। दुनियाँ के कोय घोॅर जेना ओकरोॅ बराबरी नै करेॅ पारै छेलै। एक रूप सें एक्के स्थानोॅ पर रहला के कारण ममत्व आकि निजत्व के भावनौ के विकास होय जाय छै। हमरोॅ बाबू जी आपनोॅ परिवारोॅ के साथें रहै आरू कम पैसाहै में पढ़ाय।लिखाय के सपना पालला के कारण, नौकरी साथें बहुत कुछ समझौता करनें छेलै। परमोसन हुनी कै बेर यही लेॅ छोड़ी दै छेलै कि परिवार बिखरी जैतोॅ आरू हम्में सिनी वहेॅ क्वार्टर में बच्चाहै सें बाबूजी के रिटायर होय तांय रही गेलियै।
ओकरोॅ अच्छाई.बुराई साथें एतना एकात्म होय गेलोॅ छेलियै कि ओकरा सें कभी दूरो जाय लेॅ पड़तै, यहेॅ नै सोचेॅ पारियै। बचपनोॅ के सीढ़ी चढ़ी केॅ जबेॅ पाठशाला सें मिशन स्कूल पहुंची गेलियै आरू कुछू।कुछू सोचै लायक होय गेलियै, तेॅ लागै कि वै घरोॅ में दिनोॅ में सोना आरू रात केॅ चांदी बरसै छै। अभावोॅ सें भरलोॅ घरो भावोॅ सें पूर्ण होय केॅ कतना सुन्दर होय जाय छै, हम्में एकरोॅ गवाह छी। खूब खेलै छेलियै, खूब बात करै छेलियै, खूब रूसै छेलियै आरू खूब खुश रहै छेलियै। हेना तेॅ हमरा काँही जाय के कोय अवसर याद नै पड़ै छै-यहाँ तक कि हम्में ननिहरो नै जाय छेलां। तहियो कभी।कदाल कँही जैय्यै, जेना दीदी के पास आकि गामोॅ में दादी के पास आरो लौटी केॅ अइयै तेॅ आपनोॅ घोॅर चारो तरफ घूमी।घूमी केॅ देखियै। मोॅन हुवेॅ कि बाँही में भरी लौं। जबेॅ बहुत खुश होय जैय्यै, तेॅ यहेॅ खेल रहै कि हाथ फैलाय केॅ घूमी।घूमी केॅ आपनोॅ घरोॅ केॅ देखियै, फेनू चाहे लड़खड़ाय केॅ गिरी जैय्यै। मतरकि ई कहियो नै सोचियै कि ई घोॅर।ऐंगना में हमरोॅ सिवा कोय दोसरो रहेॅ पारै छै।
माय नें ऐंगना में एकटा हरसिंगार के गाछ लगाय देनें छेलै। तुलसी चौरा लुग हरसिंगार के गाछ-बड़ी शोभै छेलै। बड़का भाय नें ऐंगना के एक कोना में कटहलोॅ के गाछो लगाय देनें छेलै, जे बड़ा विशाल होय गेलोॅ छेलै। हरसिंगार एतना फूलै कि हमरा अचरज लागै छै। आय।तांय बहुते हरसिंगार के पेड़ देखलियै, मतरकि यहू सच बात छेकै कि ऊ पेड़़ प्रकृति के एक अनोखोॅ देन छेलै, हम्मू आपनोॅ घरोॅ के सामनें में हरसिंगार लगैनें छियै, दोसरा के घरो में हरसिंगार खिललोॅ देखनें छियै, मतरकि ओतना फूल आरू खिललोॅ रङ कँही नै देखेॅ पारलियै। हमरोॅ घरोॅ में केकरो बीहा के बड़का डलिया राखलोॅ रहै, ओकर्हे में दू डलिया फूल ऊ छोटोॅ रङ हरसिंगार फूल के गाछी सें भोरे।भोर गिरलोॅ रहै। बादोॅ में गाछी केॅ हिलैला सें आरू झड़ै छेलै। माय तेॅ जेना ओकरा देखीये केॅ सुध।बुध बिसराय केॅ बस ताकतैं रहै।
ओन्हे छेलै कटहरोॅ के गाछ, जे बड़का भैया नें बच्चे में खेले।खेल में लगाय देनें छेलै। विहानै आरू सांझै ओकरा पर जबेॅ चिड़िया चुनमुन।कचकच करेॅ लागै, तेॅ लोगोॅ के कान भरी जाय छेलै। मतरकि ऊ झुंझलाहटो होन्हे मीट्ठोॅ होय छेलै, जेना बच्चा सिनी के किल्लोल करला पर बड़का के मनोॅ में उठै छै। हमरोॅ घरोॅ में भोरे।भोर सबकेॅ उठै लेॅ पड़ै छेलै, चाहे कोय कत्तो रातोॅ में सुतै। चिड़िया के कोहरामोॅ सें घोॅर केन्होॅ सुहानोॅ लागै छै, आबेॅ अनुभव करै छियै-जबेॅ धीरें।धीरें चिड़िया के प्रजाति सिनीयो कम देखाय पड़ेॅ लागलोॅ छै। संझा।बेरिया तेॅ गप्प करवे मुश्किल। हमरोॅ बीहा में जबेॅ बराती सिनी कन्या।निरीक्षण लेली ऐंगन ऐलै, तेॅ सब्भे बस कटहलोॅ के गाछ देखेॅ लागलै, जै में साठ के करीब कटहल लटकलोॅ होतै। बड़ी सहज मुद्रा में विशाल गाछ उत्तरदायित्व केॅ सम्भारलेॅ खाड़ोॅ छेलै। पेड़ आरू पौधा जीवन के केना गौरव के चीज होय छै, एकरे सें हमरा सिनी समझलियै। हमरा सिनी लेॅ कटहल कोय पसन्द के एन्होॅ फोॅल नै छेलै आरू सब्जीयो साधारणे पसन्द छेलै, मतरकि गाछ हमरोॅ परिवारोॅ के एक अंग छेलै। निशानाबाजी सीखै के उत्साहोॅ में छोटका चाकू सें हमरोॅ दूनो भाय नें कटहल गाछी पर प्रयोग कैनें छेलै, तेॅ बादोॅ में ओकरोॅ गोदलोॅ निशान देखी केॅ हुनकोॅ आँखी में पानी रङ कुछू तैरी गेलै।
जेठौन एकादशी के दिन हमरोॅ ऐंगन में जबेॅ तुलसी सें पूजा।घर तक चौक पुरलोॅ जाय, तेॅ सौंसें घोॅर हाँसेॅ लागै छेलै। हम्में तेॅ घोॅर में सब दिन छोटे रही गेलां। छोटोॅ होय के आपनोॅ लाभ आरू आपनोॅ हानी छै। मतरकि दोनों दीदी के परिश्रम आरू लगन नें ऊ घरोॅ केॅ खूब चमकैलेॅ छेलै।
जबेॅ मोॅन बड़ोॅ होय जाय छै, तेॅ जग्घो केना बड़ोॅ होय जाय छै, ई बात ऊ घरे सें जानलियै। ऊ घर में हम्में-छोॅ भाय।बहिन, माय।बाबूजी, दू ठो चच्चा, कहियो।कहियो दादी, फेनू हमरोॅ नैका बहनोय या चाची आरू कोय न कोय एक पहुनो-ई सब्भे समाय जाय छेलां। अन्तरंगता के डोरी सें ही अतीत के ऊ देश बान्हलोॅ रहै छेलै कि कोय भी बिखरेॅ नै पारै, छूटेॅ नै पारै। आबेॅ सब्भे सुख।सुविधा होय्यो केॅ कँही।न।कँही, कोय न कोय छूटी जाय छै आरू जे बची जाय छै-बस वही मोॅन केॅ कचोटै।
मैट्रिक पास करला के बाद हमरा पढ़ै के बहुत शौक छेलै, मतरकि हमरी बड़ी दोनों बहिनी के बीहा मैट्रिक तांय होय गेलोॅ छेलै आरू बड़की दीदी ने बीहा के बाद कॉलेजोॅ में नाम लिखैलेॅ रहै। ई मोड़ोॅ पर हमरोॅ भविष्य अनिश्चित रहै। ओना तेॅ बीहा के कोय चर्चा घरोॅ में नै रहै, कैन्हें कि हम्में दू क्लास छोड़ी केॅ ऊपर क्लास में नाम लिखाय केॅ समय सें कुछू पहिनें मैट्रिक पास करी लेलेॅ छेलियै, मतरकि कॉलेज में हमरोॅ नाम लिखाय के कोशिश करै वाली हमरी माय तखनी गाँव चल्लोॅ गेली रहै। हिन्नें कॉलेजोॅ में फार्म भरवोॅ शुरू होय गेलोॅ छेलै आरू घरोॅ में सब्भे चुप्पी साधलोॅ अनजान बनलोॅ छेलै।
लोगें पूछै-आगू आरू पढ़भौ की? तेॅ हमरी फूफू-जे वाँही छेलै, कहै लागली-"आरू पढ़ैला सें लड़को तेॅ वहेॅ रङ खोजै लेॅ पड़तै। आबेॅ असकल्ले लाल माय की।की करतै।" है सिनी सुनी केॅ हम्में अन्दरे।अन्दर खौलै छेलियै, मतरकि बाहरोॅ सें खाली खूब कानियै। हमरा में एक ठो अवगुण छै कि केकर्हौ सें नै आकि इन्कार करै के ताब या हिम्मत नै छै। यही लेली केकर्हौ सें कोय चीज नैं मांगेॅ पारै छियै, आपनोॅ बाबूओ जी सें नै। हिन्नें हम्में कानियै, खइयै नै, आरो हुन्नें बाबूजी केॅ तेॅ कुछू पता भी नै। बीच में कोय बात पहुँचाय वालाहौ नै छेलै। हमरोॅ सबसें बड़का वकील हमरी माय तेॅ घरोॅ में बैठली छेली। आखिर में माय ऐली तेॅ बड़की दीदी नें बतैलकै-"बेटी खाय।पीयै नै छौ, बस कानै छौ।"
माय नें सबके बात सुनी केॅ हमरा सें कक्का केॅ चिट्ठी लिखवैलकी। हम्में कक्का सें आपनोॅ मनोॅ के इच्छा बताय केॅ, नाम लिखाय लेॅ रुपया माँगलियै। कक्का के मनीआर्डरो तुरन्ते आवी गेलै। हमरोॅ विजय भैयां कॉलेजोॅ के फार्म भरी केॅ बाबूजी के सामनें दसखत लेॅ राखी देलकै। बाबूजी मुस्की केॅ हमरोॅ तरफ देखेॅ लागलै-"पढ़वे करभौ आखिर? आरू खरचा केना पुरतै।" माय कहलकै-"मालिक पुरैतै। एखनी तेॅ तोरा पैसा नै देना छौं, अशोकें भेजी देनें छै।" आजो लागै छै कि ऊ दिन ऐतिहासिक दिन छेलै-हमरोॅ जीवन के. हमरोॅ थोड़ो।टा ढीला पड़ला सें हमरोॅ पढ़ाय वांही रुकी जैतियै। माय के भले ई शौक छेलै कि बेटी कॉलेजो जाय आरू गाडन पहिनी केॅ फोटो खिंचावेॅ, मतरकि हमरोॅ सत्याग्रहैं हमरा जीत दिलैनें छेलै। हम्में सुन्दरवती महिला कॉलेज जबेॅ गेलां, तेॅ आँखी में एक नया सपना उगेॅ लागलै। हमरोॅ कॉलेज के पिं्रसपल शारदा वेदालंकार के व्यक्तित्व नें किशोरे उम्रोॅ में चरित्रोॅ के हड़ता आरू अपना केॅ कुछू अलग-दोसरां सें ऊपर-समझै के दृष्टि दै देलकै। मिशन स्कूल के सादगी आरू वेदालंकार के अनुशासन नें हमरा आपनोॅ जीवन के लक्ष्य स्थिर करै में बहुत मदद देलकै, नै तेॅ ऊ समय्यो में उमिर के वै सीढ़ी पर भटकै।भूलै के आरू सुनहरा सपना में आपना केॅ भुलाय के अवसर कम नै रहै छेलै। आपनोॅ लम्बाई के छोटोॅपन के कटु अनुभूति नें हमरा दिन।रात उकसावै कि जों सब हाँसै छै, तेॅ एक दिन हमरा अपना केॅ साबित करै लेॅ कुछू विशेष अर्जित करना छै।
याद करै छियै-तखनी घरोॅ के कोय कोना हम्में पढ़ैलेॅ खोजत्हैं रहियै। बी0 ए0, एम0 ए0 सब्भे पढ़ाय तांय हमरोॅ किताबोॅ के जग्घोॅ-कोय झरोखा के ताखहै रहै छेलै, कैन्हें कि हम्में सब्भे सें छोटोॅ छेलियै आरू सब्भे पढ़ैवाला सिनी नें सौंसे जग्घोॅ बाँटी लेलोॅ छेलै। तैहियो हमरा ई सिनी सहज ही लागै छेलै। नै सहज लागै छेलै, आकि मनोॅ में बेचैनी होय छेलै, तेॅ यै लेली कि हमरोॅ बात केॅ गम्भीरता सें कोय सुनै वाला नै रहै-नै हमरोॅ इच्छा आरू अनिच्छा के कभियो कोय सवाले घरोॅ में उठै छेलै। सोचै छेलै-माय तेॅ एकरा छोटकी बेटी समझी केॅ बहुत मानवे करै छै आरू कामो नै करेॅ दै छै। ई सिनी बात हमरोॅ घरोॅ में अनेक प्रसंगोॅ में, अनेक रूपोॅ मेें, अनेक रसोॅ में उठै छेलै। यै सें हम्में आहतो भी कम नै होय छेलियै। कैन्हें कि जीवनोॅ में हम्में आपनेॅ केॅ जतना अकेली घरोॅ में-भावना के स्तर-पर समझी रहलोॅ छेलियै, ऊ पीड़ा हमरोॅ आपनोॅ चीज छेलै। कॉलेजोॅ के पढ़ाय दिनोॅ में माय कहियो घोॅर जाय, कहियो भागलपुरोॅ में रहै आरू समय कटलोॅ जाय छेलै, मतरकि अन्दरे।अन्दर हमरोॅ मनोॅ में जे मन्थन उठै छेलै, आपनोॅ अस्तित्व आरू पहचान वास्तें जे संघर्ष उठै छेलै, वहीं शायद पढ़ै के तरफ एक नशा हेनोॅ मोड़ी देलकै। कोय खिस्सा, कोय गप, प्रेम।मोहब्बत, फैसन, लड़का-जे सिनी भाव ऊ उमिर में तरंग नाँखी उठै छै आरू हम्में कहेॅ पारै छियै कि शायद वांछनीयो होय छै, सब जेना पथराय गेलोॅ छेलै। हम्में पढ़ाय-नै परीक्षा।परिणाम सोची के, ॅ नै आपनेॅ केॅ जियाबै लेॅ करै छेलियै, एक धुन छेलै कि पढ़ियै-की, से नै जानै छेलियै, कुछू लिखियै, मतरकि केना?-से नै बूझै छेलियै-कैन्हें कि हमरा कोय रस्ता देखाय वाला या गाड फादर जीवन में कभी नै मिलेॅ पारलै। केकर्हो आपनोॅ लिखलोॅ देखाय के मोॅन भी नै करै, कहीं सें एन्होॅ नै लागै कि कोय हमरा समझेॅ पारलकै। सब्भे मजाक उड़ैतै-यहेॅ सोची केॅ डायरी में लिखियै आरू केकर्हौ।केकर्हौ चिट्ठीयो में।
बी0 ए0 पार्टवने में श्रद्धेय हंस कुमार तिवारी हमरोॅ कालेजोॅ में ऐलोॅ छेलात। हम्में साहित्य विषय लै चुकलोॅ छेलियै, यै लेली हुनकोॅ भाषण हमरा सिनी वास्तें होलोॅ छेलै। हुनकोॅ आटोग्राफ आरू पता भी लै लेनें छेलियै। लेनें छेलै ढेर सिनी लड़कीयो नें, मतरकि पत्र हम्मी देनें छेलियै-तीन प्रश्नोॅ के साथें। जवाब एकदम तुरन्ते आवी गेलै। फेनू तेॅ लागलै कि जीवन में एक बड़का उपलब्धि हमरोॅ हाथोॅ में आवी गेलोॅ रहै। जेकरोॅ बात घरोॅ में कोय नै सुनै छै-ओकरोॅ एक पत्र के उत्तर में एतना विस्तार, सोची।सोची हम्में आपनेॅ केॅ आसमानोॅ में समझलियै। तीन महीना होत्हैं।होत्हैं हमरोॅ दरवाजा पर हुनकोॅ सफेद एम्बेसडर कार लागलोॅ छेलै। तखनी हमरोॅ मोॅन के की दशा होतै-ई अकल्पनीय छै। हम्में कॉपी खरीदै वास्तें नजदीक के दोकानी पर गेलोॅ छेलियै कि "तोरोॅ घरोॅ में कोय गाड़ी सें ऐलोॅ छों आरू तोरा खोजी रहलोॅ छौं।" चिट्ठी सें हुनी आवै के सूचना तेॅ देलेॅ छेलै, मतरकि बतैलेॅ छेलै कि "चित्रशाला स्टूडियो में पता करना या इन्कम टैक्स आफिसर अजातशत्रु के घर से पता करना।" हम्में कोशिश करनें छेलियै, मतरकि हमरा कुछु पता नै लागेॅ पारलै। आरू आबेॅ हुनी सीधे हमरोॅ दरवाजा पर आवी गेलोॅ छेलै। हम्में बुझ्है नै पारियै कि आबेॅ की करियै आरू की नै। महान चरित्र एन्हें छोटोॅ।छोटोॅ बातोॅ सें महान होय छै आरू निरअहंकारीयो-वै दिन हमरोॅ ज्ञान के किताबोॅ पर यहू मन्त्र नाँखी लिखाय गेलै, जे ऊ समय के वास्तें हमरोॅ सबसें बड़ोॅ शिक्षा छेलै। घोॅर ऐलियै तेॅ देखै छी कि हुनी हमरोॅ बाबूजी सें एकदम अंगिका में बतियाय रहलोॅ छेलै आरू कतना सहज छेलै हुनकोॅ मुद्रा। हम्में संकुचित होय रहलोॅ छेलियै, कैन्हें कि हम्में हुनकोॅ मान।सम्मान कॉलेजोॅ में देखनें छेलियै, मतरकि हमरोॅ बाबूजी तेॅ जेना कोय बड़ी दिन के बिछुड़लोॅ सुहृदय सें मिललोॅ रहै-से है रङ मिली रहलोॅ छेलै। हौ दिन हुनका ऐला सें हमरोॅ आन्तरिक जगत में बड़ा परिवर्तन होय रहलोॅ छेलै। स्नेह।सुधा के बरसा सें तेॅ हम्में आय।तांय भीजी रहलोॅ छी, मतरकि ऊ घटना के बाद सबसें बड़ोॅ बात ई होलै कि हम्में आपना केॅ जे साहित्य में कुछु करै लायक कहियो नै समझतियै-ई कुंठा सें हमरा हुनिये मुक्ति दिलैलेॅ छेलै।
जाय वक्ती कही देलकै-"मृदुला, खूब लिखोॅ।" ऊ दिन तेॅ हम्में कुछू सोचै।बोलै के स्थितिये में नै छेलां, वाणी जेना निर्वाक् होय गेलोॅ रहै। मतरकि जबेॅ हम्में आपना पर भरोसा करी केॅ हुनका सें शंका।समाधान चिट्ठी सें करेॅ लागलियै आरू जबेॅ हुनी कभियो सिनेट के बैठक में, कभियो हिन्दी के विशिष्ट अधिकारी आरू कभी राष्ट्रभाषा परिषद् के निदेशक बनी केॅ भागलपुर आवेॅ लागलै, तबेॅ हम्में एक दिन कही देलियै-"चाचाजी, लिखना तो चाहती हूँ, परन्तु जो मैं लिख रही हूँ-वही अगर सब लिख रहे हैं, तो फिर मैं क्यों लिखूं?" हुनी मुस्कावेॅ लागलै। फेनू कहलकै-"उपन्यास होता क्या है-एक पुरुष, दो नारी या दो पुरुष, एक नारी-फिर प्रेम और मिलन या विरह। हर आदमी इसी को लिखता है-सब अपने को लिखता है। कभी भी दो व्यक्ति एक उपन्यास नहीं लिखता। उसी से तुम जो लिखोगी, तुम्हारा होगा-अपना।" एतना बड़ोॅ बात सतरह।अठारह बरस के एक लड़की केॅ एतना सुलझैलोॅ ढंग सें समझाय वाला हमरा कोय नै मिललोॅ छेलै, बल्कि आय तेॅ आरू हँसै वाला, निरूत्साहित करै वालाहै मिलै छै। हमरा एक संजीविनी मिली गेलै कि हम्में जे लिखै छियै, ऊ हमरोॅ कविता छेकै आरू दोसरा नें जे लिखै छै-ऊ दोसरा के यानी लिखवा के अधिकार हमरोॅ मौलिक अधिकार छेकै।
बी0 ए0 आरू एम0 ए0 के रिजल्टोॅ के बीच बहुत सिनी घटना होलै। राजनीति, कूटनीति आरू आपनोॅ प्रारब्ध के बहुत तरह के चेहरा सामना ऐलै आरू हम्में फेनू भीतरोॅ सें टूटेॅ लागलोॅ छेलियै, मतरकि हुनकोॅ चिट्ठी नें हमरा आवी केॅ उबारी लै छेलै। जीवन के पुरनका पन्ना उलटतें।पुलटतें एक जग्घोॅ पर आवी केॅ रुकी जाय छियै आरू हुनी प्रकाश।स्तम्भ नाँखी स्थिर देखाय पड़ै छै।
बी0 ए0 के परीक्षा साथें हमरोॅ वीहा के चर्चा घरोॅ में चलेॅ लागलै। आपनोॅ भविष्य आरू आगू के पढ़ाय बारे में सोची केॅ हमरोॅ मोॅन फेनू व्यथित होय रहलोॅ छेलै। हम्में हंस कुमार तिवारी नाँखी चाचाजी सें फेनू शंका। समाधान लेॅ सवाल पुछलियै, पत्र के माध्यम सें-"कभी कर्त्तव्य और उद्देश्य में संघर्ष हो जाय तो मुझे किसका साथ देना चाहिए" हुनी बहुत सिनी उदाहरण दै केॅ, समझाय केॅ बतैलकै, मतरकि हम्में खुश छेलियै कि हमरा एतना पुछल्है सें हुनी समझी गेलै कि एक लड़की के ई उमर में एन्होॅ मनःस्थिति के कारण की हुवेॅ पारेॅ, जबेॅ कि साधारण लोग कुछू आरू भी समझेॅ पारै छेलै। संजोग सें एक दिन हुनी ऐलै तेॅ हमरा फेनू विवाह आरू दाम्पत्य के महत्त्व भी समझैलेॅ छेलै। हिन्नें हमरोॅ बीहो अचानके ठीक होय गेलै। हमरोॅ पढ़ाय छुटै के चिन्ता नें हमरोॅ जीवन के बहुत सिनी रस आरू आनन्दोॅ सें वंचितो रखने छेलै, जैमें यहो एक घटना छेलै-हम्में एम0 ए0 के पढ़ाय में स्कालरसीप वास्तें भी हुनका सें बात करी रहलोॅ छेलियै। यही बीचोॅ में हमरोॅ बीहा के निमंत्रण हुनका बाबूजी नें देनें छेलै। हुनकोॅ ऊ दिन राँची आकाशवाणी में कार्यक्रम छेलै, जे पहिले बनी चुकलोॅ छेलै। मतरकि तीन दिन बाद हुनी सपत्नीक ऐलै। हम्में सोसरारी सें वापिस जखनी नैहरा के दरवाजा पर उतरी रहलोॅ छेलियै आरू विधि।विधान सिनी होय रहलोॅ छेलै, तखनीये हुनकोॅ गाड़ी हमरोॅ दरवाजा पर लागलोॅ छेलै। सब रीति।रिवाज के खतम होला पर हम्में होने नथिया।टीका पिन्हले भागी केॅ हुनकोॅ पास पहुँची गेलियै आरू प्रणाम करी केॅ आपनोॅ रिजल्ट बतावै लेॅ होलियै कि हुनी हाँसेॅ लागलै-"तुम्हारा सीता।जानकी वाला रूप तो देख लिया और तुम्हारे राम को भी...अब शाम को गाड़ी भेज दूंगा, तुम दोनों सर्किट हाउस आ जाना, तब बात करेंगे।" हुनकी पत्नी बंगलाभाषी छेली आरू बहुत सरल। हमरी माय केॅ कहै लागली-"जमाय बहुत अच्छा मिला है आपको।" मांय कहलकै-"आपलोगों का ही आशीर्वाद है।"
ऊ बेर हुनी सर्किट हाउस में ठहरलोॅ छेलै। हमरा वास्तें सांझ केॅ गाड़ी भेजी देलकै आरू दरबान केॅ कही देलकै कि-कोय मिलनें आये तो कहना उनकी लड़की।दामाद आए हैं, सुबह मिलेंगे। हौ दिन हुनी साहित्यकार नै, एक वत्सल पिता के भूमिका में छेलै आरू ऊ अनुभव के सामनें जिनगी छोटोॅ पड़ी जाय छै। के छेलियै हम्में हुनकोॅ? लिखै के हमरा में हुनी की ताकत देखलकै, कुछ भी हमरोॅ पास नै छेलै-सिवा महत्त्वाकांक्षा के कि हम्में साहित्य सिरजेॅ सकौं। एक बेर ढेर सिनी लोगोॅ सें हुनी हमरोॅ परिचय करवावेॅ लागलै, तीन।चार आदमी के घोॅर लै गेलै। कोय पूछी बैठलकै-"ये भी लिखती हैं क्या?" हम्में लाज सें मरी रहलोॅ छेलां, कही बैठलियै-"मैं सिर्फ़ चिट्ठी लिखती हूँ।" हुनी कहलकै-"वह भी लिखती रहो, उसी में उपन्यास है, उसी में कहानी और कविता तो वह है ही।" एतना बड़का सम्मान हुनका सें मिलला के बाद आरू की पावै के इच्छा रहेॅ पारेॅ। हौ दिन हमरोॅ पति सें कहेॅ लागलै-"पढ़ना चाहती है तो पढ़ने दीजिए, प्रतिभा के पनपने में सहयोग देना भी कम बड़ा काम नहीं है। स्त्री।पुरूष का सम्बन्ध विश्वास और सहारे से शुरू होता है।"
हमरोॅ पति नें हुनकोॅ ऊ बात केॅ ध्यान सें सुनलेॅ छेलै आरू घरोॅ के मुखिया के विरुद्ध जाय केॅ, आपनोॅ स्वभावो के प्रतिकूल आचरण करी केॅ हमरा पढ़ै आरू नाम लिखाय में आपनोॅ स्वीकृति देनें छेलै।
कखनू।कखनू सोचै छियै कि एक श्रेष्ठ साहित्यकार एतनाहौं श्रेष्ठ मानव हुवेॅ पारै छै, जे एकदम सच छेकै। हम्में कालेजोॅ में जबेॅ पहिलोॅ बेर हुनका देखलेॅ छेलियै, तेॅ गीतांजली के दू पंक्ति के अनुवाद सुनैलेॅ छेलै-
" एक।एक कर तार पुराने फेको सभी उतार
वह आता होगा जो छेड़ेगा अन्तिम झंकार। "
आय्यो हुनकोॅ गीत कानोॅ में गूंजै छै। सच्चे हुनी कहलेॅ छेलै-"अभी।अभी साकार खड़े थे, अब तो ध्यान बने जाते हो।"
वही घरोॅ में हम्में हुनका देखलियै, फेनू तेॅ पटना जाय केॅ ही बीचोॅ।बीचोॅ में मिली लै छेलियै।
हमरोॅ बीहा के आठ।दस महीना बादे हमरोॅ बाबूजी रिटायर होय गेलोॅ छेलै, मतरकि ऊ क्वार्टर हमरोॅ बड़का भाय-जे कचहरी में ही काम करै छेलै-हुनकोॅ नाम पर होय गेलोॅ छेलै। ओकरोॅ पीछुओ एक कारण छेलै-बाबूजी कचहरी में रिश्तेदार छेलै आरू हौ पोस्ट वाला केॅ हाईकोर्ट नें तखनी दू साल के सेवा विस्तार ज़रूरे दै छेलै। एन्हे कोय रोगी आरनी रहै आकि नै करै लेॅ चाहै तेॅ अलग बात छेलै। मतरकि वही साल एक बेर छप्पन साल आरू अन्ठावन साल के बवाल उठी गेलोॅ छेलै। मानी कि सरकारें छप्पन साल करै के सोची रहलोॅ छेलै। एहनोॅ होलै तेॅ नै, फेनू सरकार के नियमें सें कचहरी के नियमो थोड़ोॅ अलगे होय छै। मतरकि ई सब के प्रभाव या दवाब ई पड़लै कि कचहरी में जहाँ सेवा।विस्तार आकि एक्सरेसन साधारण बात छेलै, ओकरा हाईकोर्ट नें अस्वीकृत करेॅ लागलै। बाबूजी सें ज़्यादा हुनकोॅ हाकिम नें चाहै छेलै कि हुनी दू बरस आरू रही जाय। यै सें हमरा सिनीयो केॅ लाभ होवे करतियै। मतरकि सात महीना तक बाबूजी सें कचहरी में काम करैला आरू कोशिश करला के बादो जज साहब सेवा।विस्तार नै दियेॅ पारलकै। हुनी बाबूजी के इज्जतो करै छेलै आरू बाबूजी के स्मरण।शक्ति तथा काम सें प्रभावित भी छेलै, यै लेली क्वार्टर के समस्या केॅ प्रमुख समझी केॅ हमरोॅ भैया नामोॅ पर क्वार्टर करी देलकै, मतरकि भैया तखनी जूनियर छेलै-यै ली दू बरस लेॅ शब्द भी लिखी देलकै। " हमरा सिनी निश्ंिचत होय गेलियै। हमरा सिनी के आपनोॅ मकान तिलकामाँझी में बनी रहलोॅ छेलै, मतरकि पैसा के अभावोॅ आरू कुछू व्यवधान सें ऊ पूरा नै हुवेॅ पारलोॅ छेलै। क्वार्टर रहला सें हम्में वांही सें पी0 जी0 करलियै। मतरकि दू साल ठीक पूरा होलै कि जे बात हमरा सिनी भुलाय गेलोॅ छेलियै-वहेॅ बात बाबूजी के निकटतम व्यक्ति नें ही आपनोॅ रिटायरमेन्ट पर उठाय देलकै। नया हाकिम केॅ पहिलें वाला जज नें सब बात बताय देनें छेलै आरू हुनियो ई समझी रहलोॅ छेलै कि अचानक क्वार्टर छोड़ला सें हमरा सिनी केॅ की कष्ट हुवेॅ पारै छै। मतरकि कानून केॅ तेॅ आपनोॅ काम करना छेलै। यै लेली हमरोॅ बाबू जी के हितैषी सिनीयो नें मिली केॅ यहेॅ तय करलकै कि क्वार्टर कोय सीनीयर के नामोॅ पर-जेकरा क्वार्टर के ज़रूरत नै छै-लेलोॅ जाय आरू हिनका सिनी तबेॅ आराम सें वही क्वार्टर में रहेॅ पारतै। ई बात पर सब्भे के सहमतियो होय गेलै आरू बाबू जी के उपकार चुकावै लेली हुनकोॅ पुराना दोस्त सिनी भी तत्पर होय रहलोॅ छेलै। बाबू जी नें आपनोॅ एक होने आदमी केॅ क्वार्टर दै लेली हाकिमोॅ सें आग्रह करलकै, जेकरा पर हुनका ज़्यादा विश्वास छेलै, जिन्ही बीस बरस सें यै लेली क्वार्टर नै लै रहलोॅ छेलै कि हम्में शहर के खरचा में नै पड़वोॅ। क्वार्टर हुनकोॅ नाम सें होय गेलै आरू हमरा सिनी सोचलियै कि खाली कानूनी अड़चन के कारण नाम बदललोॅ छै, बाकी सब होन्हे छै, मतरकि सोच में हमरा सिनी ग़लत छेलियै, नाम बदलला सें आरो पद छिनला सें-सब कुछ बदली जाय छै।
ऊ दिन के कड़वाहट आरू अपमान, हम्में आय।तांय नै भूलेॅ पारै छियै...हमरोॅ बाबूजी केॅ खिचड़ी बहुत अच्छा लागै छेलै...तखनी हमरा सिनी हवा में उड़ियैलोॅ पत्ता नाँखी चारो तरफ डोली रहलोॅ छेलियै। मकान लिन्टर तक बनी केॅ रुकलोॅ छेलै, बाबू जी आपनोॅ खाना।पीना हौ ढंगोॅ सें नै करेॅ पारै। ओतना दिन बाद हम्में स्टोव पर खिचड़ी बनैलेॅ छेलियै, साथें केला के भुजिया-जे हुनका पसन्द छेलै। बाबूजी के वास्तें थरिया परोसी केॅ आपनो लेॅ जल्दी।जल्दी निकाली रहलोॅ छेलियै। बाबूजी पूजा खतम करी केॅ गुरु महाराज के फोटो केॅ अगरबत्ती देखाय लेॅ बैठक वाला कमरा में गेलै। तखनिये एक रिक्सा रुकलै। बाबूजी हमरा आवी केॅ कहलकै-"देखैं तेॅ, कोय जनानी छेकै।" हम्में देखलियै-जिनका ऊ क्वार्टर मिललोॅ छेलै, हुनके जनानी आपनोॅ, दू ठो बच्चा।बुतरू आरू बक्सा।बेडिंग लेनें उतरी केॅ बरण्डा पर खाड़ी छै। हमरोॅ बाबूजी सें परदा करी केॅ पीठ करनें छै। हम्में हतप्रभ नाँखी हुनकोॅ असामयिक आरू बिना सूचना के आगमन के कारणें हुनकोॅ-हुनके घरोॅ में स्वागतो नै करेॅ पारलियै। दौड़ी केॅ बाबूजी केॅ बतैलियै। बाबूजी नें हाथोॅ में अगरबत्ती पकड़ले हमरोॅ तरफ सवाले नाँखी ताकलकै। हम्में कुछु बोलेॅ नै पारलियै कि ई तरह सें हुनका आवै के की अर्थ हुवेॅ पारेॅ। अजबे लागेॅ लागलै-कि सौंसे घोॅर में तेॅ हमरोॅ समान छै, मतरकि घोॅर हुनकोॅ नाम पर छै। हम्में आपनोॅ परोसलोॅ थरिया आरू पकैलोॅ खाना वहेॅ रङ छोड़ी केॅ कॉलेज वाला बैग उठाय लेलियै। कुछु कपड़ा अलमारी में ही बन्द छेलै। बाबूजी कुरता पिन्ही केॅ, जूता आरू छाता हमरा सें मँगवाय केॅ दोसरा दरवाजा सें निकली गेलै। दोनों थरिया होने परोसलोॅ रही गेलै...ऊ दिन के पीड़ा हम्में केन्हौं केॅ व्यक्त नै करेॅ पारै छियै। बाबू जी के ऊ सहकर्मी के क्वार्टर लेना तेॅ तनियो टा अनुचित नै छेलै आरू क्वार्टर लेला पर जों हुनकोॅ मोॅन बदली गेलोॅ छेलै, तेॅ वहो स्वभाविके छेलै, मतरकि ऊ तरीका ग़लत छेलै। जेकरा कल तांय भगवान बनाय केॅ सेवा करै लेली तत्पर रहै छेलै, ओकरा सें छल करना-अनुचित छेलै, औचक्के में आवी केॅ एक संवेदनशील प्राणी केॅ ई अहसास दिलाना ग़लत छेलै कि-आबेॅ तोरोॅ मकान नै छेकौं, आबेॅ तोहें जा। हमरा सिनी केॅ समय देना चाहियोॅ, ताकि हम्में सिनी निकलेॅ पारौं आरू हुनी आवी जैतियै...खैर ई सब होलै, जे आज भी हमरा मथै छै।
हमरोॅ बाबू जी भीतर सें परमहंस व्यक्ति छेलै, मतरकि बहुत भावुको। हुनी ऊ दिन अन्तर तांय घायल होलोॅ छेलै। जीवन में हुनी बहुत संघर्ष करनें छेलै, मतरकि स्वाभिमान आरू आपनोॅ हक सें ज़्यादा कुछु नै चाहै छेलै। कचहरी जाय केॅ बड़का भाय केॅ बतैलकै आरू आपनोॅ पुरानोॅ सहकर्मी।रिश्तेदार सिनी के पास जाय केॅ बैठी गेलै। हुनका सिनी के पुछला के बाद बाबू जी फूटी.फूटी केॅ कानें लागलोॅ छेलै। विश्वास के टूटै के दरद बड़ा गहरा होय छै। फेनू बैंक वाला भाय केेॅ कहलकै-"आपनोॅ समान समेटी लेॅ, हमरा सिनी भरम में छेलां। आबेॅ हौ घर आपनोॅ नै छेक्हौं। ऐंगना में जे घोॅर बनैलोॅ छौ, वांही में तब तांय राखी दहू। हम्में गांव जाय रहलोॅ छिहौं। एतना अपमान हम्में कहियो नै महसूस करलेॅ छेलौं।" बाबूजी नें फेनू कहलकै-"ढेर सिनी याद भले ऊ घरोॅ के रहेॅ, मतरकि हौ उधार के ऐंगन छेकै, वापस करी दहू।"
ऊ दिन भुखलोॅ।पियासलोॅ-साठ बरस के उमर के एक आदमी, विश्वासघात के घाव लेनें सांझ पड़ला साथें आपनोॅ गामोॅ के घर लौटलै तेॅ दीदी बाद में बतैनें छेलै-"बाबूजी केॅ देखतिहें, तेॅ कानी देतिहैं।"
ऊ अप्रीतिकर प्रसंग हेने छेलै जे हमरोॅ पूरा परिवार के दिशा बदली देलकै। यहू बतैलकै कि सारा रिश्ता स्वार्थ के होय छै आरू सरकारी क्वार्टर-जेन्हे स्वागत करै छै, तेन्हें एक दिन निकाली केॅ बाहरो करी दै छै। ओकरा कभियो घोॅर नै मानना चाहियोॅ। मतरकि ई ज्ञान मिलल्हौ पर की आदमी पूरा बदलेॅ पारै छै? आदमी तेॅ आदमी छेकै-चिड़िया नाँखी ज़रूरत के बाद घरोॅ के मोह तुरन्ते कहाँ त्यागेॅ पारै छै।
आय्यो ऊ घरोॅ के अन्दर एन्होॅ।एन्होॅ अतीतोॅ के परछाँही डोलै छै कि ओकरा सें पीछा छुड़ाना मुश्किल छै। शायद ऊ रङ सें निकलला के कारण हमरोॅ सपना में ऊ घोॅर हरदम आवै छै। बचपन, शादी, हमरोॅ बेटी के जनम, चाचा हंस कुमार तिवारी जेन्होॅ आदमी के आगमन में हँसै।मुुसकाय आरू बतियावै वाला घोॅर-भले सरकारी रहै, मतरकि हमरोॅ भावना तेॅ आपनोॅ छेकै नी।
उधार के सही-ऊ ऐंगना नें हमरा बहुत सिनी सपना देनें छै आरू अतीत के दूर क्षितिज तांय, ढेरी चेहरा, ढेरी अनुभव के रूपोॅ में ऊ आय्यो घोॅर।ऐंगना हमरोॅ साथें छै।