उनका दर्द / जगदीश कश्यप

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उस रात धवल चाँदनी में नहा रहा एक पत्थर बोला—

'बहन शिला, किसान नहीं जानते कि उस खंडहर महल और हम पर देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कितना कुछ छपा है। विदेशी विद्वान कितनी मुसीबतें उठाकर यहाँ तक आते हैं और हम पर खुदे लेखों को कितनी सावधानी से पढ़ने की कोशिश करते हैं या फ़ोटो उतारते हैं ।'

शिला बोली— 'भाई मेरे ! इस गुमटी के आसपास उस वक़्त भी खेती होती थी, जब हमें यहाँ पर राजा की आज्ञा से उसकी यशोगाथा खुदवाकर गाढ़ा गया था । आज इन बातों को हज़ारों साल बीत गए हैं । उस राजा के ज़माने में भी किसान रोता था, और आज भी ये लोग रोते हैं । जबकि अनेक किसान समर्थक नेता और राजनीतिक लोग इनके समर्थन में जुलूस और रैली आयोजित करते रहते हैं ।'

'हाँ, ये चमत्कार क्या है बहन ? आज खेती करना कितना आसान हो गया है । ट्रेक्टर, खाद, बीज, थ्रैशर, बिजली-पानी की सुविधा आज के किसान को उपलब्ध है । फिर इनके रोने का कारण क्या है ?'

इस पर शिला कुछ सोचते हुए बोली— 'खेती चाहे कितनी भी आधुनिक क्यों न हो जाए, पर ग़रीब किसान वही हल-बैल से आगे नहीं बढ़ पाएगा । सच में इनकी नियति हमारी तरह है । शासक आएँगे, चले जाएंगे, पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी ये लोग ऐसे ही रहेंगे जैसे कि हम । क्या कभी किसान के नाम का पत्थर या शिलाखंड कहीं गाड़ा गया है, जिसपर किसान के दुख और कष्ट उकेरे गए हों ?'

तभी चँद्रमा के मुख पर काले बादल छा गए और उस घोर अँधकार में पत्थर कुछ सोचने लगा ।