उन्मुक्तचंद होने का अर्थ क्या है? / जयप्रकाश चौकसे

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उन्मुक्तचंद होने का अर्थ क्या है ?

प्रकाशन तिथि : 28 अगस्त 2012

कप्तान उन्मुक्तचंद के अविजित सैकड़े ने भारत को अंडर-१९ क्रिकेट विश्वकप में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ जीत दिलाई। उन्नीस वर्ष से कम आयु के खिलाडिय़ों की विगत तीन क्रिकेट स्पर्धाओं के निर्णायक मैचों में वे सैकड़ा जमा चुके हैं। वर्ष २००० से लेकर अब तक भारत तीन बार यह विश्वकप जीत चुका है। क्रिकेट की ये शौर्यगाथाएं भारत के युवा वर्ग की प्रतिभा, परिश्रम तथा असीमित सपनों की अभिव्यक्ति हैं। भारत में युवा लोगों का प्रतिशत अन्य देशों से अधिक है, परंतु संसद या अन्य संस्थाओं में उनका प्रतिशत कम है। आज के युवा की ऊर्जा और सपने अन्य किसी भी कालखंड के युवा से अलग हैं। वह नितांत अनौपचारिक है और परिणाम द्वारा शासित है। उनके साध्य स्पष्ट परिभाषित हैं और साधनों की पवित्रता को वह कोई मुद्दा ही नहीं मानता। सफलता के प्रति उसका असीम आग्रह उसे व्यर्थ की दुविधाओं में नहीं फंसाता। उसका फोकस अर्जुन की तरह है, जिसे केवल पंछी की आंख नजर आ रही थी, परंतु यह युवा उस अर्जुन से भिन्न है, जिसे कुरुक्षेत्र में अपने रिश्तेदारों के खिलाफ शस्त्र उठाने में संकोच हो रहा था। यह युवा 'हेमलेट' की दुविधा 'टू बी ऑर नॉट टू बी' से भी मुक्त है।

इस युवा का पहला सपना तमाम पारंपरिक बंधनों से मुक्त होना है। सभी उन्मुक्त हैं। धन्य हैं उन्मुक्तचंद के माता-पिता, जिन्होंने १९९२ या १९९३ में उसके जन्म के समय उसका नाम उन्मुक्त रखा। वह प्रधानमंत्री नरसिंह राव एवं उनके वित्तमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा जन्मे आर्थिक उदारवाद का कालखंड था। इसका अर्थ यह है कि उन्मुक्त के माता-पिता ने उदारवाद के सूर्योदय के समय ही उसके भावी ताप का अनुमान लगा लिया था। क्या उन्हें इसका भी अनुमान था कि उदारवाद के साथ ही नए जीवन-मूल्य भी आएंगे? मौजूदा प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की कार्यशैली से अब यह स्पष्ट हो गया है कि १९९१-९२ में परिवर्तन का सारा श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव को दिया जाना चाहिए। दरअसल नरसिंह राव का सही मूल्यांकन कभी हुआ ही नहीं। आज कई विचारक उदारवाद को ही खलनायक मानते हैं और भविष्य में वही सबसे खतरनाक सिद्ध होगा। इन विचारकों का कहना है कि उदारवाद ने आर्थिक खाई को बहुत गहरा कर दिया है।

बहरहाल, युवा कप्तान उन्मुक्तचंद ने भारत में अंग्रेजी के पत्रकारों और महानगरों में अंग्रेजियत के हिमायती लोगों के सामने यह मुश्किल खड़ी कर दी है कि उनसे उन्मुक्त बोलते नहीं बनता, इसलिए सारी सुर्खियों में चंद कहा गया है। मुंबई के अधिकांश लोग तो उन्मुक्त का अर्थ ही नहीं जानते। आजादी के इतने वर्ष बाद भी चहुंओर अंग्रेजियत छाई है। अनेक हिंदी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित होने वाले अखबार भी हिंग्लिश को पसंद करते हैं। पचास वर्ष पश्चात विशुद्ध हिंदी के जानकार उतने ही होंगे, जितने आज संस्कृत के हैं।

अगर आप उस क्रिकेट फाइनल का पुनप्र्रसारण देखें तो मैच के उतार-चढ़ाव में भारत के युवा का जीवन दृष्टिकोण समझ सकते हैं। केवल ९७ रनों पर चार विकेट खोने के बाद उन्मुक्त चंद ने स्मित पटेल के साथ मोर्चा संभाला और लगभग छब्बीस ओवर में उनकी टीम को लगभग १३० रन बनाने थे। चालीसवें ओवर की चौथी गेंद पर उन्मुक्त ने छक्का जड़ दिया। उनके बेखौफ खेलने के अंदाज में आप युवा लोगों के साहस को देखें। उनके द्वारा मारे गए चौकों व छक्कों की संख्या में ज्यादा अंतर नहीं है। इस मैच में भारतीय युवा ने ऑस्ट्रेलिया के ढंग का क्रिकेट खेला है। ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट में मारक शक्ति रही है और क्लीनिकल दक्षता से वे शत्रु के अवचेतन में प्रवेश करते रहे हैं। चालीसवें ओवर की चौथी गेंद के छक्के से ऑस्ट्रेलिया के सामने पहली बार हार का खतरा नजर आया। उन्मुक्त उनके चिंतन पर छा गए। शत्रु के दिमाग में सेंध मारना आवश्यक है।

आज के युवा को आप पारंपरिक परिभाषाओं में नहीं बांध सकते। वह धर्म के हव्वे से भयभीत नहीं है, क्योंकि उसे तथाकथित स्वर्ग में कोई आरक्षण नहीं चाहिए। वह वर्तमान के क्षण में सदियों के अनुभव से गुजरता है और उसके लिए केवल वर्तमान सत्य है। वह प्रेम की संकरी गलियों से भी नहीं गुजरता। वह सीधे देह के राजमार्ग पर आना चाहता है। उसे संगीत में आलाप नहीं सीधे सम पर आना है। वह 'शास्त्रीयता' से मुक्त है। उसे उस मोक्ष की भी कामना नहीं है, जिसमें तमाम स्मृतियों का लोप हो जाता है। स्मृतिविहीन होकर स्वर्ग में जाने का क्या मजा है? उन्मुक्त की निगाह और निशाना केवल स्कोर बोर्ड है। उन्हें ट्रॉफी चाहिए, उसका वादा नहीं।