उन्मुक्त स्वर( कविता-संग्रह): डॉ.इन्दिरा अग्रवाल / सुधा गुप्ता
उन्मुक्त स्वर' कविता संग्रह: डॉ.इन्दिरा अग्रवाल 'उन्मुक्त स्वर' कवयित्री डॉ.इन्दिरा अग्रवाल का तीसरा काव्य-संग्रह है, जिसमें मुक्त छन्द में छोटी-बड़ी एक सौ पैंतालीस कविताएँ हैं। यहकाव्य-संग्रह एक विशाल चित्र-फलक पर सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों के साथ-साथ नितान्त निजी अनुभूतियों के व्यक्ति-चित्र भी उकेरता है। संग्रह को पढ़ने से पूर्व कवयित्री का 'स्वगत कथन' मनोयोग पूर्वक पढ़ा जाना चाहिए । मैं तो अतियथार्थवाद के धरातल पर विचरण करती हूँ। जो कुछ देखती हूँ, भोगती, सुनती और सहती हूँ, सीधी-सादी सहज वाणी में बिना किसी लाग लपेट के, बिना किसी प्रशंसा कि आस लिये, स्वच्छन्द छन्द में, उन्मुक्त स्वर में कह जाती हूँ' कवयित्री की यह सादगी भरी' साफ़गोई' प्रशंसनीय है। यह' उन्मुक्त स्वर' इस काव्य-संग्रह में नानाविध मार्मिक रूपों में प्रकट हुआ है।
अलीगढ़ जैसे मुस्लिम संस्कृति और उर्दू भाषा से रचे-बसे विख्यात शहर में जन्मी, पली-बढ़ी और रह रही डॉ.श्रीमती इन्दिरा अग्रवाल हिन्दी के साथ उर्दू भाषा पर भी विशेष अधिकार रखती हैं। शै, लम्हे, नग़मे, तन्हाई, इश्क, अश्क, हर्फ़, दास्तां, ग़ैर, शिकवा, अरमाँ, मजमाँ, उम्दा, महफ़िल, जाम, जुदाई, मुहब्बत, इज़हार, मशगूल, फ़लक, अहसास, आतशी आहें, सनम, सुकूँ जैसे शब्दों की बहार है। शब्दों की बात छोड़िये, पद रचना भी उर्दू से ज्यों की त्यों, बेहिचक उठाकर रख दी गई है: जुल्मो सितम, ग़मे ज़िन्दगी, जश्ने-बहाराँ, दर्दे-दिल, दिल-ए-दामन, जज्-बा-ए-दिल, अहदे-वतन, ग़मे-अँधियारे जैसे दर्जनों प्रयोग हैं। उर्दू न समझने वाले पाठकों को कविता समझने में काफ़ी कठिनाई हो सकती है।