उपन्यास 'मी, मीया, मल्टीपल' का विमोचन / जयप्रकाश चौकसे

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उपन्यास 'मी, मीया, मल्टीपल' का विमोचन
प्रकाशन तिथि :06 जुलाई 2015


एक जुलाई को मुंबई के उपनगर बांद्रा में टर्नर रोड पर 'टाइटल वेव' नामक पुस्तक की भव्य दुकान में मणिपुर में जन्मे युवा देबाशीष के पहले उपन्यास 'मी, मीया, मल्टीपल' का विमोचन समारोह प्रकाशक हार्पर कॉलिन्स ने आयोजित किया, जिसमें जावेद अख्तर, अर्जुन कपूर एवं खाकसार शामिल थे। अर्जुन कपूर ने अत्यंत साफगोई से यह स्वीकार किया कि उन्होंने यही नहीं, कोई भी उपन्यास नहीं पढ़ा। यहां तक कि 'टू स्टेट्स' पर आधारित सफल फिल्म में काम भी किया परंतु उपन्यास नहीं पढ़ा। उनका कहना है कि सिनेमा निर्देशक का माध्यम है। अत: उन्होंने उपन्यास पढ़ने से बेहतर समझा कि केवल फिल्मकार के निर्देश का पालन करें।

जावेद अख्तर ने कहा कि उपन्यास पढ़ते समय पाठक ही वर्णित दृश्य के लोकेशन की कल्पना करता है, वही वेशभूषा तथा पात्रों के व्यवहार की भी कल्पना करता है। पाठक को दर्शक से अधिक आजादी है और सृजन की संभावनाएं भी हैं। जावेद अख्तर की बात से याद आता है कि सिनेमा विधा के जन्म के कुछ वर्ष पश्चात ही फ्रांस के दार्शनिक बर्गसन ने कहा था कि सिनेमा का कैमरा मनुष्य मस्तिष्क की ही अनुकृति है। मनुष्य की आंखें लेन्स हैं और उसकी स्मृति वह प्रयोगशाला है जहां आंख से देखे चित्र रखे हैं और विचार उन्हें चलायमान करते हैं अच्छे सिनेमा की एक परिभाषा यह भी है कि उसके निर्माण में मशीनी कैमरे और मनुष्य के दिमाग रूपी कैमरे का सामंजस्य होता है।

जावेद अख्तर ने यह भी कहा कि एक दौर में उपन्यासों पर बुहत फिल्में बनी हैं और तब पढ़ा-लिखा मध्यम वर्ग ही दर्शक सरंचना का निर्णायक भाग होता था परंतु आज के दौर में मध्यम वर्ग के पढ़े-लिखे लोगों में व्यावहारिकता और व्यापार की समझ तो है परंतु जीवन मूल्यों में साहित्य बोध की कमी है। जावेद साहब ने यह आशा भी अभिव्यक्त की कि यह संक्रामक दौर है और मध्यमवर्ग के जीवन मूल्य तथा साहित्य बोध लौटेगा। उन्हें युवा देबाशीष के लेखन में भव्य संभावनाएं दिख रही हैं और देबाशीष के सिनेमा के पटकथा संसार से जुड़े होने के कारण भव्यतर पटकथाओं और उपन्यासों की संभावना की बात की।

मैंने कहा कि 400 पृष्ठों का यह उपन्यास रोचक है, तीव्र गति से होने वाले घटनाक्रम में यह केवल एक प्रेम-कथा नहीं है वरन् इसमें अनेक गहरी बातों के संकेत हैं। मसलन, आज नॉर्मल कौन है? इस दौर में अनेक चीजें पुन: परिभाषित की जा रही हैं, इतिहास भी नई दृष्टि से लिखा जा रहा है, जी.डी.पी. के मानदंड भी बदल गए हैं तथा विज्ञान व टेक्नोलॉजी के दौर में मनोविज्ञान भी बदला है। अत: किस व्यक्ति को नार्मल कहें? उपन्यास में युवा नायक की रक्षा को तत्पर उसकी तीन बहनें पारंपरिक तौर पर नार्मल हैं उनके मतानुसार उनका भाई एबनॉर्मल है परंतु एक अत्यंत रोचक प्रसंग में बहनों के मुखौटे गिर जाते हैं और वे कतई नॉर्मल नहीं हैं तथा अनायास मुंह से निकला कि ये सिस्टर्स करमाजोव लगती हैं। संदर्भ दोस्तोवस्की का उपन्यास 'ब्रदर्स करमाजोव'। मैंने बताया कि अन्सुल विजयवर्गीय और देबाशीष ने मिलकर 'रोशन' नामक अत्यंत रोचक पटकथा लिखी है और शीघ्र ही फिल्म की घोषणा भी होगी परंतु अर्जुन कपूर और कंगना रनोट काम करना स्वीकार करें तो इस उपन्यास पर भी फिल्म बन सकती है। इस उपन्यास से आज के युवा वर्ग का अवचेतन समझने में सहायता मिलती है। देबाशीष ने स्वीकार किया कि उसकी रचना के पात्रों की प्रेरणा उसे उन लोगों से मिली है, जिन्हें वह जानता है। दरअसल, सृजन प्रक्रिया की मिक्सी में यथार्थ लोग और उनका चरित्र-चित्रण इतना घुल-मिल जाते हैं कि पात्रों को जानकर भी हम पहचान नहीं पाते। दरअसल, सारी जद्‌दोज़हद ही खुद को समझने की है और हमारे अवचेतन इतने दुरूह हैं कि वहां अनेक यात्राओं के बाद भी समझ नहीं आता। कई बार लगता है कि भीतर का घटाटोप ही बाहर छा गया है या यह आगंतुक अंधेरा बिन बुलाए मेहमान की तरह हमारे घर में टिक गया है।