उपसंहार / क्यों और किसलिए? / सहजानन्द सरस्वती

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मेरा खयाल था कि अंत में अपने मुख्य-मुख्य विचार भी लिख कर इस दास्तान को पूरा करूँ। मगर इसकी काया यों ही विस्तृत हो गई। इसीलिए मजबूरन वह खयाल छोड़ना पड़ा। वे विचार अब अलग ही लिखे जाएगे ऐसा तय कर लिया है।

लेकिन इतना तो जान ही लेना चाहिए कि मैं कमानेवाली जनता के हाथ में ही, सारा शासन-सूत्रा औरों से छीनकर, देने का पक्षपाती हूँ। उनसे ले कर या उन पर दबाव डाल कर देने-दिलवाने की बात मैं गलत मानता हूँ। हमें लड़कर छीनना होगा। तभी हम उसे रख सकेंगे। यों आसानी से मिलने पर फिर छिन जाएगा यह सत्य है। यों मिले हुए को मैं सपने की संपत्ति मानता हूँ।

इसके लिए हमें पक्के कार्यकर्ताओं और नए नेताओं का दल तैयार करना होगा। मगर जो किसानों, मजदूरों आदि को आर्थिक प्रोग्राम के आधार पर कहीं-न-कहीं उनका संगठन कर के उनकी लड़ाई में सीधे शामिल न हों वह लोग उनके और हमारे नेता या कार्यकर्ता नहीं हो सकते। मैं किताबी ज्ञान नहीं चाहता। केवल किताबी ज्ञान से धोखा होता है। मैं लड़ाई और लड़नेवाले चाहता हूँ। मैं आर्थिक लड़ाई को छोड़कर आजादी की लड़ाई का विरोधी हूँ। मैं आर्थिक युध्द को ही आजादी के युध्द में परिणत करना चाहता हूँ। मैं सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्रांति चाहता हूँ और यह दूसरे तरह हो नहीं सकती। मैं वैसे ही लोगों का साथ दूँगा।

मगर दलबंदियों से ऊब जाने के कारण किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होने से डरता हूँ। भरसक किसी भी दल में शामिल न हूँगा।