उपसंहार / राखाल बंदोपाध्याय / रामचन्द्र शुक्ल
Gadya Kosh से
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सम्राट शशांक को कलिंग आए अठारह वर्ष हो गए। एक ऊँचे पहाड़ी दुर्ग के प्रासाद में राजर्षि शशांक पलंग पर लेटे हैं। उनके पास सोलह सत्राह वर्ष का एक बालक बैठा है। गुप्तवंश के गौरवगीत की मधुर ध्वनि दूर से किसी रमणी के कण्ठ से निकलकर आ रही है। सम्राट कह रहे हैं-
“पुत्र, आदित्यसेन! अब तुम सयाने हुए। तुम सम्राट महासेनगुत के पौत्रा हो। गुप्तवंश के गौरव की रक्षा अब तुम्हारे हाथ है। तुम्हारे पिता माधवगुप्त को मित्रा कहकर हर्षवर्ध्दन उत्तारीय भारत के सम्राट बने हुए हैं। यह मित्राता एक मायाजाल मात्रा है। मगध में गुप्तवंश के पूर्ण प्रताप की घोषणा के लिए यह आवश्यक है कि थानेश्वर से किसी प्रकार का सम्बन्धा न रखा जाय। तुम्हारे पिता के किए यह न होगा। यह तुम्हारे हाथ से होगा। मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ, तुम गुप्तवंश के परमप्रतापी सम्राट होगे”।
उपन्यास 'शशांक' समाप्त।
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