उपहार / शोभना 'श्याम'
भाई ने अपने घर बुलाया था-"कानपुर और अम्बाला से दोनों बड़ी बहनें आ रही है, तू भी आ जा, अच्छा लगेगा सब मिल कर बैठेंगे, खाएंगे-पिएंगे।"
हाँ अच्छा तो लगेगा। बातचीत के साथ चाट और तरह-तरह के व्यंजनों का दौर चलेगा। चारों बहन-भाई मिलकर कुछ पुरानी यादें ताज़ा करेंगे। सबके बच्चे मिल कर धमाल मचाएंगे। लेकिन ...खाली हाथ तो जा नहीं सकती।
बड़ी बहनें तो महंगे-महंगे उपहार लेकर आएंगी...वो क्या करे? एक घर में पैदा हुए भाई बहनों की आर्थिक स्थिति में इतना अंतर? क्या करूँ... क्या लेकर जाऊँ? महीने का अंतिम सप्ताह है, जेब और बैंक अकाउंट सब खाली। आखिर क्यों बने हैं ये कुछ लेकर जाने के रिवाज़ ...?
तभी बेटा टेबल-टेनिस की गेंद उछालते घर में घुसा। लो मिल गया उपहार, उसके टेबिल टेनिस के होनहार खिलाडी बेटे को स्पोर्ट्स फेडरेशन से स्कॉलरशिप के साथ खेल-सामग्री भी मिलती है। उसने बेटे से पूछ कर उसकी अलमारी से चार गेंद निकाल कर एक छोटे डिब्बे में रखी, उस पर एक सुन्दर-सा रिबन बाँधा और चल दी भाई के घर।
वहाँ बड़ी बहनो के द्वारा लाये शानदार उपहारों को देख उसने संकोच से अपना उपहार छुपा लिया। इतने में दस वर्षीय भतीजा बोल उठा, "छोटी बुआ आप क्या लाई हो?"
हार कर उसे सकुचाते हुए भी गेंदों का डिब्बा उसकी ओर बढ़ाना पड़ा।
"वाउ!" जल्दी-जल्दी डब्बा खोलते ही भतीजा ख़ुशी से चिल्लाया, "बुआ आपको कैसे पता चला, मुझे ये बॉल चाहिए थी।" दिखा दिखा, हम भी लेंगे टेनिस बॉल! " कहते हुए बाकि दोनों छोटे बच्चे भी उस पर झपटे।
अब तीनो बच्चे टेनिस की गेंदों से खेल रहे थे। फर्श पर महंगे उपहार पड़े थे और दो आँखों में ख़ुशी के आंसू ।