उपेक्षित वर्ग का महत्वपूर्ण दृश्य / जयप्रकाश चौकसे

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उपेक्षित वर्ग का महत्वपूर्ण दृश्य
प्रकाशन तिथि :14 जुलाई 2017


बोनी कपूर की उदयवार निर्देशित 'मॉम' के एक दृश्य में श्रीदेवी अभिनीत पात्र को एक महत्वपूर्ण सूचना और सहयोग किन्नर से प्राप्त होते हैं। अरसे पहले खाकसार बोनी कपूर के घर आमंत्रित था और एअरपोर्ट छोड़ने के लिए श्रीदेवी की कार उपलब्ध कराई गई। एक ट्रैफिक सिग्नल पर कार देखकर कुछ किन्नरों को निराशा हुई कि कार में श्रीदेवी नहीं है। ड्राइवर ने बताया कि श्रीदेवी इन किन्नरों को बहुत-सा धन देती हैं और इनमें से कुछ से वे भलीभांति परिचित भी हैं। अत: यह संभव है कि 'मॉम' के उस दृश्य की रचना में श्रीदेवी का सहयोग भी रहा हो। इस बात का अर्थ लेखक उदयवार से उनका हक छीनने का नहीं है।

किन्नरों पर 'दरमियान' नामक फिल्म भी बनी है। पाकिस्तान में इस विषय पर एक बड़ी संवेदनशील फिल्म बनी थी। मेहमूद की एक फिल्म में किन्नरों पर गीत फिल्माया गया था, जिसके बोल थे, 'सज रही गली मेरी अम्मा सुनहर गोटे में।' दरअसल, समाज का यह उपेक्षित वर्ग अत्यंत संवेदनशील है और अपनी कमतरी से कुंठाओं का जन्म नहीं होने देता। यह वर्ग अपने दर्द का कोई सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं करता। दर्द को दबा लेना और आंसुओं को पीकर मुस्कराते रहने की उनकी ताकत का सम्मान किया जाना चाहिए। किसी भी परिवार में बच्चे के जन्म के समय यह वर्ग उसे दुआ देने जाता है और निर्मम लोग इनका अपमान करने की चेष्टा करते हैं। शायद इसी वर्ग की दुआ ऊपर वाला सुनता है, क्योंकि संभवत: अपने सृजन की इस कमतरी पर वह कुछ शर्मिंदा भी है। जीवन की आपाधापी अौर अन्याय आधारित व्यवस्था से दुखी होकर कुछ लोग पलायन करना चाहते हैं। उन्हें इस उपेक्षित वर्ग के जीने के माद्‌दे से प्रेरणा लेनी चाहिए कि बहुत कुछ छीनकर भी वह सबकुछ नहीं छीन पाता। अवाम तो लाचार है परंतु सृजन करने वाला शायद अवाम से भी अधिक लाचार है। हताशा यक सी है- इधर भी और उधर भी।

यह वर्ग अत्यंत अनुशासित है और इसकी सामाजिक संरचना सशक्त है। एक का अपमान, वहां सबका अपमान माना जाता है। ये अपने वार्षिक समारोह की खबर कहीं किसी को नहीं होने देते। इनकी गालियां गज़ल के अंदाज में अदा होती हैं। रूखी-सूखी, कभी-कभार अधपेट भोजन करने वाले इस वर्ग के लोग अत्यंत शक्तिशाली होते हैं और अगर संघर्ष की स्थिति बने तो उनका एक व्यक्ति सामान्य के दस पर भारी पड़ता है परंतु यह वर्ग लड़ना नहीं चाहता। उसे बहुत उकसाया जाता है परंतु वह अपना धीरज नहीं खोता। संभवत: सच्चाई यह है कि यह धीरज नहीं वरन घोर नैराश्य है कि प्रतिरोध अब बेमानी व बेअसर कर दिया गया है और मौजूदा व्यवस्था की कटु आलोचना करने वाले भी उसी दल को मत दे आते हैं। यह बात कुछ हद तक अदूर की फिल्म की तरह है, जिसमें एक खूनी संघर्ष के अंत में शोषित व दमित व्यक्ति के हाथ में तलवार है और ताउम्र उसका शोषण करने वाला व्यक्ति निहत्था है और जमीन पर पड़ा है परंतुु शोषित व दमित व्यक्ति तलवार फेंककर चला जाता है। सदियों की गुलामी उसके अवचेतन में इतनी गहरी पैंठी हुई है कि वह उसे मारता नहीं है। भय का वातावरण इस तरह बनाया गया है कि आप उसकी आलोचना भी नहीं कर पाते। हुड़दंगी समानांतर सरकार ने इस भय की रचना की है।

दशकों पूर्व 'जोरू का गुलाम' नामक फिल्म के एक दृश्य में दुबले-पतले जॉनी वॉकर पर एक मोटा-तगड़ा आदमी हमला करता है परंतु अपने आवेग और गति के कारण वह नीचे गिर पड़ता है, तो दुबला-पतला जॉनी वॉकर उसकी छाती पर बैठकर उसे घूंसे मारता है और साथ ही रोता भी है तो एक तनाशबीन उससे पूछता है कि वह रो क्यों रहा है। जॉनी वॉकर जमीन पर पड़े व्यक्ति को घूंसे मारते हुए कहता है कि वह रो रहा है, क्योंकि यह उठेगा तब उसका क्या होगा। आज अवाम मारने की स्थिति में आ भी जाए तो रोएगा कि यह उठेगा तब क्या होगा। कुछ इस तरह भय की संरचना हुई है।

पचास पार श्रीदेवी की यह 300वीं फिल्म है। कमल हासल की तरह उन्होंने भी बचपन से ही अभिनय करना प्रारंभ किया है। कुछ वर्ष पूर्व चेन्नई में अपने पुराने बंगले के नवीनीकरण के समय उन्होंने एक दावत दी थी, जिसमें रजनीकांत और कमल हासन अतिथियों की आवभगत इस तरह कर रहे थे मानो वे ही मेजबान भी हों। यह उनका सद्‌व्यवहार है कि दक्षिण के सुदूर सितारे उनके लिए कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं। 'मॉम' में नवाजुद्‌दीन सिद्‌दीकी और अक्षय खन्ना ने भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं अभिनीत की है। अक्षय खन्ना की सभी प्रारंभिक फिल्में असफल रहीं परंतु वे प्रतिभाशाली कलाकार हैं। उनके पिता विनोद खन्ना सुपर सितारे रहे हैं। 'मॉम' के बाद उन्हें चरित्र भूमिकाएं अवश्य मिलेंगी। 'मॉम' के निर्देशक उदयवार से बहुत आशा की जा सकती है, क्योंकि फिल्म की हर फ्रेम पर उनके हस्ताक्षर हैं। बोनी फिल्म बनाते समय पैसे की परवाह नहीं करते। 'मॉम' का क्लाइमैक्स उन्होंने यूरोप में शूट किया है। दरअसल फिल्में पैशन से बनती हैं, एक किस्म का उन्माद होना जरूरी है।