उबाऊ फिल्म पर खर्च धन वापस देने की मांग / जयप्रकाश चौकसे

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उबाऊ फिल्म पर खर्च धन वापस देने की मांग
प्रकाशन तिथि :10 फरवरी 2016


शिकागो के एक सिनेमाघर में चल रही शाहरुख खान की 'दिलवाले' से नाराज एक दर्शक ने सिनेमा मालिक से अपने 23 डॉलर के टिकट के पैसे वापस मांगे, क्योंकि उसे फिल्म उबाऊ अौर फूहड़ लगी। सिनेमा अधिकारी ने पैसे वापस देने से इनकार किया और टिकट के पीछे छपी इबारत दिखाई, जिसमें स्पष्ट था कि पैसे वापसी का कोई प्रावधान नहीं है। कुछ समय पूर्व भारत में यह विवाद उठा था कि क्या मतदाता को अपना चुना हुआ प्रतिनिधि वापस बुलाने का अधिकार है, क्योंकि वह काम नहीं कर रहा है। अनेक विज्ञापित वस्तुओं में वह गुणवत्ता नहीं होती, जिसका दावा किया गया है। आजकल एक कंपनी गाय का उतना घी प्रतिदिन बेच रही है, जितना दूध गायें नहीं देतीं परंतु इस व्यावसायिक कंपनी के पास धर्म का कवच है और उसके माल की विश्वसनीयता पर प्रश्न करना धर्म पर प्रश्न करने की तरह है, जिसकी इस स्वतंत्र देश को आज्ञा नहीं है। जब भी कानूनी एवं न्याय संस्थाओं के अधिकारों के परे एक सार्वभौम सत्ता उभरती है, तब मनुष्य को बहुत कुछ झेलना पड़ता है। यह कंपनी पश्चिमी सभ्यता एवं कंपनियों की मुखालफत के लिए प्रसिद्ध है और अब यह 'कॉर्पोरेट' नूडल भी बेच रही है तथा इटली में जन्मी भारतीय नेता की बुराई इस आधार पर करती रही है कि वह इटेलियन हैं। अब यह कॉर्पोरेट कंपनी हमें बताएं कि नूडल्स और पिज़्जा कहां के पकवान हैं? यह कॉर्पोरेट संस्कृति की पहचान है कि कभी केवल एक प्रोडक्ट के भरोसे नहीं रहे और अनेक वस्तुओं का उत्पाद करें गोयाकि आज के युवा की तरह 'तू नहीं और सही।'

अब यह देश सचमुुच विकास कर रहा है! स्वयंभू संन्यासी व्यापारी हो गए हैं और कुछ व्यापारी अब संन्यास लेना चाहते हैं, क्योंकि इस 'गोरखधंंधे' में किसी भी 'व्यापार' से अधिक लाभ है। श्रद्धालु खरीदारों का उदय हो चुका है। वे वस्तु नहीं अध्यात्म खरीद रहे हैं। शीघ्र ही धरती पर स्वर्ग की स्थापना होगी और रिरियाता हुआ जीवित अवाम 'स्वर्गवासी' हो जाएगा। इस तरह कलयुग सतयुग में बदल रहा है। 'चित्रलेखा' के रंगीन संस्करण के गीत की याद आ रही है, 'संसार से भागे फिरते हो, भगवान को तुम क्या पाओगे। इस लोक को पा न सके, उस लोक में भी पछताओगे।' अभी-अभी पनपी इस संस्था ने अपने 'उत्पाद' के विज्ञापन के लिए भारी राशि अग्रिम धन के रूप में प्रतिष्ठित मीडिया को दी है ताकि वे इसके खिलाफ आवाज न उठाएं। इस कंपनी को सुझाव है कि वे अपनी व्यापार प्रबंधन संस्था खोलें, क्योंकि आज भारत महान में शिक्षा लाभप्रद व्यवसाय में बदल चुकी है। महान विद्वान आचार्य रजनीश (ओशो) पहले ही 'संभोग से समाधि तक' लिख चुके हैं। आचार्य रजनीश चलते-फिरते समृद्ध वाचनालय की तरह थे। मध्यप्रदेश का जबलपुर रमणीय भेड़ाघाट से अधिक प्रसिद्ध है हरिशंकर परसाई, ज्ञानरंजन और अाचार्य रजनीश के कारण। बेचारे सेठ गोविंददास जबलपुर को मध्यप्रदेश की राजधानी बनाने में असफल रहे परंतु परसाई, ज्ञानरंजन और रजनीश ने उसे किसी भी राजधानी से अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है। किसी कालखंड में 'धुआंधार फिल्म प्रोडक्शन कंपनी' की भी स्थापना हुई थी।

बेचा हुआ माल वापस नहीं किया जा सकता- इसका प्रावधान है। यह ठीक भी है अन्यथा भारत में बनने वाली अनेक उबाऊ फिल्मों के टिकिट का धन लौटाने में कई फिल्म कपनियां दीवालिया हो जातीं। अगर चुने हुए जन-प्रतिनिधि को वापस बुलाने का नियम बन जाए तो सारे वर्ष देश चुनाव-चुनाव नामक रोचक खेल खेलता रहेगा और अन्य खेल समाप्त हो जाएंगे, क्योंकि भारतीय अवाम को नदियों एवं उत्सव की तरह राजनीति में भी गहरी रुचि है, क्योंकि उसकी प्रथम पाठशाला परिवार में भी रिश्तों के खेल चलते रहते हैं। परिवार के दंगल में ही बचपन से हम कुश्ती के दांव-पेंच सीखते रहते हैं। दरअसल, 'बेचे माल की वापसी' से जीवन के कई प्रसंग चुड़े हैं। मसलन, कुछ विवाह टूट जाते हैं और कानूनी प्रावधान के तहत दहेज लौटाना पड़ता है। इस्लाम में हक-ए-मेहर के प्रावधान के तहत तय राशि देनी पड़ती है परंतु इस तरह के रिश्तों में बरबाद समय का कोई मुआवजा नहीं हो सकता। 'तलाक दे रहे हो गुरुर-ए-कहर के साथ, मेरा शबाब भी लौटा दो मेरे मेहर के साथ'