उमराव जान का फितुर और अभिषेक का संकट / जयप्रकाश चौकसे

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उमराव जान का फितुर और अभिषेक का संकट
प्रकाशन तिथि :29 मई 2015


अभिषेक कपूर की 'फितुर' चार्ल्स डिकेन्स के उपन्यास 'ग्रेट एक्सपेक्टेशन्स से प्रेरित है और इसमें एक वृद्ध अमीर महिला का पात्र है जिसे अपनी जवानी में प्रेम में धोखा हुआ, अत: वह अपनी आश्रित युवा लड़की की प्रेम कहानी के खिलाफ हैं। बाद में उसका हृदय परिवर्तन होता है और मरते समय वह अपनी सम्पति गरीब आश्रिता के नाम कर जाती है। अभिषेक कपूर ने पूरा प्रयास किया कि श्रीदेवी यह भूमिका स्वीकर करे परंतु उन्होंने इंकार कर दिया। आदित्य राय कपूर और कैटरीना कैफ युवा प्रेमियों की भूमिका में हैं और अमीर वृद्धा की भूमिका रेखा ने अभिनीत की परंतु संपादन के समय फिल्म देखकर रेखा को लगा कि वह यथेष्ट सुंदर नहीं दिख रही है। उसके इसरार पर निर्देशक ने शूटिंग के लिए मेहबूब स्टूडियो में सेट लगाया परंतु शूटिंग के दिन रेखा ने काम करने से इंकार कर दिया और फिल्म से स्वयं को मुक्त घोषित किया। अब अन्य कलाकार का चयन और दोबारा सेट लगाने में समय लगेगा। असली चिंता यह है कि व्यस्त कैटरीना कैफ कब समय दे पाएंगी।

अभिषेक कपूर रेखा के वक्तव्य के बाद भी अपनी फिल्म प्रदर्शित कर सकते हैं, क्योंकि उन्होंने रेखा को मेहनताना दिया है और उनके माथे पर रिवॉल्वर रखकर तो शूटिंग नहीं की थी। फिल्म में उनका 'लुक' उनकी सहमति से तय किया गया था। एक विकल्प यह भी है कि वह निर्माता संघ और कलाकार संघ से अपील करे कि रेखा शूटिंग का खर्च और दंड की रकम अदा करें परंतु अभिषेक जानते है कि ये संगठन अन्य संस्थाओं की तरह माथा देखकर तिलक करते हैं और अभिषेक अदालत जाएं तो न्याय मिलते वे ही वृद्ध हो जाएंगे। इस देश में अन्याय सहन करने को समझदारी कहा जाता है। इसी 'समझदारी' के दम पर तो हमने यह हाल कर लिया अपना और अपने देश का। शायद ऐसे ही किसी संदर्भ में निदा फाज़ली ने लिखा, 'समझदारों को थोड़ी नादानी दे मौला'। बहरहाल, इस प्रकरण से एक और बात जुड़ी है। रेखा की तरह अनेक लोग हैं जो उम्रदराज होने के बाद भी सदैव जवां और हंसी नजर आना चाहते हैं, विशेषकर सबके सामने अपने गुजरे जमाने की छवि ही कायम रखना चाहते हैं। गौरतलब है कि हर उम्र के अपने लाभ और हानियां हैं और सच्चाई के जानवर को सींग से ही पकड़ना चाहिए, उसकी पूंछ पकड़ने से कहीं घूरे में फैंके जा सकते हैं। सींग पकड़ने पर विजय भी मिल सकती है या जायज शहादत तो तय है।

अब रेखा जी अगर अभी तक उमराव जान अदा ही बनी हुई हैं तो वे 'फितुर' की वृद्ध षड्यंत्रकारी बेगम कैसे हो सकती हैं? उन्हें अपनी दुविधाओं के चलते बेचारे अभिषेक कपूर को पहले ही मना कर देना था। कहीं ऐसा तो नहीं कि निर्देशक कपूर के अभिषेक होने पर वे मीठीं यादों में खो गईं और गफलत में भूमिका स्वीकर कर बैठीं। कुछ समय पूर्व ही उन्होंने बेचारे इंदर कुमार से भी फिर शूटिंग कराई थी और आवश्यकता से अधिक धन खर्च करने पर भी वह फिल्म देखने कोई नहीं आया। उस हादसे से उभरने के लिए बेचारे इंतर कुमार को ग्रैंड मस्ती की अश्लीलता की ओर लौटना पड़ा। रेखा कभी भी सरल व सीधी नहीं थीं, वे हमेशा आंकी-बांकी रहीं और अपने जिस्म के पोशीदा रव्वाब में डूबी रहीं। उन्हें कभी किसी ने यह नहीं बताया कि बिकनी पहनकर स्वीमिंग पूल में डुबकियां लगाने से इतिहास नहीं बनता।

रेखा एक विभाजित परिवार की कन्या रहीं और सोलह की उम्र में ही उन्हें रोटी कमानी पड़ी। विश्वजीत के साथ उनके चुंबन का फोटो किसी अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में मुखपृष्ठ पर प्रकाशित किया गया। उनके जीवन में सुसंस्कृत अमिताभ बच्चन बर्नाड शॉ के नाटक के पात्र प्रोफेसर हिगिंस की तरह आए, जिन्होंने फुटपाथ पर रहने वाली को लिखा-पढ़ाकर भद्र समाज में खानदानी लेडी तरह प्रस्तुत कर अपने मित्र से दस पाउंड की शर्त जीती थी। इस नाटक पर 'माय फेयर लेडी' बनी और हमारे अमित खन्ना ने टीना मुनीम और देव आनंद के साथ 'मनपसंद' बनाई थी, जिसका मधुर संगीत राजेश रोशन ने दिया था। गब्बर अमजद खान के भाई इम्तियाज ने मुझे एक कहानी सुनाई थी, जिसमें उम्रदराज तवायफ रोज बन-ठनकर बैठती और पूरे मोहल्ले ने उनके जवान दिखने के भ्रम को बड़े जतन से सम्हाल रखा था परंतु एक गंवार ग्राहक ने उसे बूढ़ी कह दिया और वह हृदयघात से मर गई।