उमाव / सत्यनारायण सोनी
हमेस री भांत रेखाराम आज ई भाई री सूनी पोळ साम्हीं ऊभो हुयÓर सूनी अर पथराई आंख्यां भीतर रो दरसाव देखतो रैयो। साम्हीं कोठै रै किंवाड़ां माथै हींडतो ताळो। आंगण जमी गर्द अर खिंड्योड़ा फूस-पानका। रोंवतो-सो चूल्हो। पोळ माथै खिड़को अर खिड़कै रै कूंटै- कन्नाळो। उणरो छोटियो भाई हीरो भण-गुणÓर आयो। नौकरी नीं लाग्यो तो अठै ई खेती-पाती में गुजरान करणो विचार्यो। पण बरसो-बरस पड़तो काळ अर कदै बीजा-बाओ होवै तो ई तंत-बायरो। गुजरान चालै तो चालै कीकर! उण समझायो मोटोड़ा भाई साÓब नै- भाईजी, इण जीवणै सूं तो मौत भली। रोज-रोज री भूख नीं काढीजै। काÓल नै टाबरां नै भणांवणा है, भळै अेढा-मेढा ई तो काढणा पड़सी। इण कमाई सूं तो पार को पड़ै नीं।ÓÓ बात तो साची है भाई हीरा!ÓÓ साची है जणां गांव छोड्यां ई पार पड़सी।ÓÓ गांव तो नीं छोडीजै रै भाई, तूं पाछो अैड़ो नांव मत लीजै। साची म्हारा बीर, म्हनै भोत साÓरो है थारो। मिल-बैठनै सुख-दुख री बतळायां जीव हळको हुय ज्यावै अर भळै बीखो कोई रोज-रोज तो रैवै कोनी।ÓÓ थोड़ो थमÓर अेक लाम्बी निसांस छोड़तो रेखाराम दूहो सुणायो- हंसा सरवर ना तजो, जे जळ खारो होय। डाबर-डाबर डोलतां, भला न कहसी कोय।ÓÓ भाईजी, बात आपरी सोळा आना साची। पण जमानो भोत आगै बध रैयो है। आपां नै अठैवाळी जमीन बेचÓर पाणीवाळी कोई भलेरी जाग्यां कबाडऩी चाइजै।ÓÓ बावळी बात मत कर म्हारा बीरा! जिण गांव में जलम लियो, जठै री माटी में खेल-खायनै बड़ा होया, बा आपणी मां है, इणनै छोड कीकर सकां? राम चांच दीहै जकै नै चूंण ई देÓसी। ओखी-सोखी पार पड़ ज्यासी म्हारा भाई! जीव छोटो मत कर।ÓÓ पण भाईजी, साची बात तो आ है कै म्हारी तो पार पड़ै कोनी अठै। झ्यानबिनां रा खरचा है अर आमदनी कोनी धेलै री। जमीं नीं बेचणी तो मत बेचो। स्हैर में जायÓर कोई बांणियै री मील में नौकरी कर लेस्यूं।ÓÓ अर कोनी मान्यो हीरो तो पछै कोनी ई मान्यो। टाबर-टीकरां समेत स्हैर पूगग्यो। गुजरान चालगी अर रेखाराम रैयग्यो अेकलो, भींतां रै बटका बोडतो-सो। आज पूरो अेक महीनो होयग्यो हीरै नै गयां। बीं रा समचार आंवता रैवै। अेकर बो खुद ई जायÓर आयो। साची, बीं रो पेट तो भोत बळै, पण जोर-जोर सूं अरड़ा ई तो कोनी सकै। लोग भूंडैला- बेटी रा बाप! बरस पचास खाया है टाट में अर इयां डुसक्यां भरै?ÓÓ दुरभख सूं आंती आयÓर घणकरो गांव बारणां भींटका देयÓर मंऊ मारग व्हीर होयग्यो हो। गांव रा कोई-कोई सा घरां में चूल्हा सिलगता रैया हा। चूल्हां रै सिलगण में ई कोई तंत को हो नीं, बस धक्का-पेल चालै ही। लोग भूख सूं बांथेड़ो करै हा। कूआं रो खारो पाणी पी-पीयÓर ढांढा बिराइजै हा। रेखाराम रो छोरो पड़ोसियां रै अेवड़ लारै पंजाब कानी व्हीर होयग्यो हो। कीं मजूरी पल्लै पड़ण री आस ही। आखै दिन खैं-खैं चालती आंधी, ताती लूवां अर सूरजी री झाळ चाम बाळै। ढांढां रो दूध सूखग्यो। आंतड़ा बैठग्या। पण आं सगळी बातां री चिंता रेखराम नै को ही नीं। बो तो भाई रै दुख-दूबळो हो। जिकै घर में बैठ आथण हथाई करतां भाई-भाइयां रो मन रळतो। बो आज सूनो है। भाई रो उणियारो लगोलग उणरी आंख्यां आडो आवै हो। बो घरै मांची माथै बैठ्यो-बैठ्यो सुपना देखै, जाणै हीरै रो नानडिय़ो रोवै है। बो भाजÓर जावै उभाणै पगां। पण खाली-खाली अंागणो अर बारणै आडो खिड़को देखÓर हियो भर आवै। बो बूबड़ी मारणी चावै। पण नां। इयां तो नीं करणो चाइजै बीं नै। कदै-कदै बो देखै, नानडिय़ो बीं री गोदियां खेलै है अर बो लाड करै। पण जद आंख खुलै तो पिछतावो पल्लै रैवै। जोड़ायत पूछै- मोÓनियै रा बापू! ओ कांई हाल बणा राख्यो है। बोलो नीं- चालो नीं। आखै दिन बगना-सा होया रैवो। जीव छोटो कर्यां पार कियां पड़सी!ÓÓ सुणतो रैवै, टुकर-टुकर देखतो रैवै रेखाराम। पळींडै कनै बैठ मूंडो धोवै। भळै गोडां माथै हाथ मैÓल ऊभो हुवै। बरस पचास घणा को हुवै नीं, पण डील में सत कोनी। पल-पल टिपणो ओखो। अै भाखर मांन दिन टिपै तो टिपै कियां! दो दिन हीरजी कनै जाय आओ। कीं जीव लाग ज्यासी।ÓÓ कैवै मोÓनियै री मां, पण बो जाणै, दो दिन तो जीव लाग ज्यासी, पण पाछो आयां पछै कियां लागसी। जीव तो थाम्यां ई पार पड़सी। बो ताण मारै, पण जीव थमै कियां। जीव नै थ्यावस देवण सारू बो कदै-कदै पूरणै अर रामै बडैवाळी चूंतरी पर जाय बैठै। बां साथै चिलम रा सुट्टा लगावै। दुख-सुख री बंतळ करै। बैसाख उतरग्यो। जेठ लागग्यो। पण धरती बियां ई तपै। आभै में बादळी रो चूंखो ई नीं मंडै। आंधी चालै अर दीदां में धोबां-धोबां धूड़ पड़ै। आथणपौर बो जोÓड़ै रै पाळियै बैठ्यो देखै। डाळ-डाळ होयोड़ो जोÓड़ो डुसक्यां भरतो लखावै। पाळियै रा रूंख सूना होयग्या। पानकां रो नांव नीं। पांख-पंखेरू तो जाणै मउवां मारग व्हीर होयग्या हा। बस, कोई-कोई गिरजड़ा कै कागडोड दीख जांवता हा। करतां करतां जेठ ई उतरग्यो। आसाढ सूखो जासी तो भळै पार कियां पड़सी। बूढ़ा-डोकरा चूंतरियां बैठ्या चिंता करै। अेक दिन आंधी मचको खायो। बादळ मंड्या। आथणपौर आभै बीजळ पाटी। आखै गांव हरख रो पार नीं। देखतां-देखतां सांगोपांग बिरखा हुयी। जीयाजूण नै जाणै संजीवणी मिलगी। लोगड़ां में संगति अर जोस बापरग्यो। जेठू बाजरी अर मोबी पूत भागवाळां नै मिलै। जेठ तो उतरग्यो, पण मोड़ो को होयो नीं। हळोतियो करो भाई! मऊ गया लोग ढोर-डागरां समेत पाछा बावड़ग्या। मोÓनियो अेवड़ लेयÓर पाछो आयग्यो। गांव में रुणक बधगी। रूंखां पर हर्या-हर्या पानका फूट्या। धरती सूं मीठी-मीठी महक आवण लागी अर घांस-कूटळो फूटण लाग्यो। गांव रो तळाव हळाडोब होयग्यो। पाळियै डेडरां री डरूं-डरूं अर दरखतां पखेरूवां रो गुंजार। आभै अर धरती रो अेक-अेक जिनावर किलौळ करतो लखावै। हळ जुड़ग्या। तेजो गांवता किरसाण मूंग, मोठ, बाजरी अर ग्वार रै साथै काकडिय़ा-मतीरियां रा बीज बीजण लाग्या। हरख अर कोड रो छेÓड़ो नीं रैयो। इणी मोद में रेखाराम रै चेÓरै चेळको बापर्यो। अब तो म्हारो मां-जायो बावड़सी पाछो। अणूंतै उमाव बो भाई नै लेवण स्हैर पूग्यो- भाई, बावड़ रै पाछो, मेह बरसग्यो। जमानो होयग्यो। बीजारै नै मोड़ो होवै। अर अेक बात और सुण, भाई, लारलै दिनां गांव में सरकारी गाडिय़ां आई, फीता गेर्या, नाप-जोख होयी। सुण्यो है नहरां आÓसी। आपणी जमीन सोनो निपजैली। भळै कोई भूखो-तिरस्यो को रैवै नीं।ÓÓ पण भाई रो जवाब मिल्यो- नहरां तो आंवती-सी आÓसी। आपड़ली आं है जकै नै चूंण ई देÓसी। ओखी-सोखी पार पड़ ज्यासी म्हारा भाई! जीव छोटो मत कर।ÓÓ पण भाईजी, साची बात तो आ है कै म्हारी तो पार पड़ै कोनी अठै। झ्यानबिनां रा खरचा है अर आमदनी कोनी धेलै री। जमीं नीं बेचणी तो मत बेचो। स्हैर में जायÓर कोई बांणियै री मील में नौकरी कर लेस्यूं।ÓÓ अर कोनी मान्यो हीरो तो पछै कोनी ई मान्यो। टाबर-टीकरां समेत स्हैर पूगग्यो। गुजरान चालगी अर रेखाराम रैयग्यो अेकलो, भींतां रै बटका बोडतो-सो। आज पूरो अेक महीनो होयग्यो हीरै नै गयां। बीं रा समचार आंवता रैवै। अेकर बो खुद ई जायÓर आयो। साची, बीं रो पेट तो भोत बळै, पण जोर-जोर सूं अरड़ा ई तो कोनी सकै। लोग भूंडैला- बेटी रा बाप! बरस पचास खाया है टाट में अर इयां डुसक्यां भरै?ÓÓ दुरभख सूं आंती आयÓर घणकरो गांव बारणां भींटका देयÓर मंऊ मारग व्हीर होयग्यो हो। गांव रा कोई-कोई सा घरां में चूल्हा सिलगता रैया हा। चूल्हां रै सिलगण में ई कोई तंत को हो नीं, बस धक्का-पेल चालै ही। लोग भूख सूं बांथेड़ो करै हा। कूआं रो खारो पाणी पी-पीयÓर ढांढा बिराइजै हा। रेखाराम रो छोरो पड़ोसियां रै अेवड़ लारै पंजाब कानी व्हीर होयग्यो हो। कीं मजूरी पल्लै पड़ण री आस ही। आखै दिन खैं-खैं चालती आंधी, ताती लूवां अर सूरजी री झाळ चाम बाळै। ढांढां रो दूध सूखग्यो। आंतड़ा बैठग्या। पण आं सगळी बातां री चिंता रेखराम नै को ही नीं। बो तो भाई रै दुख-दूबळो हो। जिकै घर में बैठ आथण हथाई करतां भाई-भाइयां रो मन रळतो। बो आज सूनो है। भाई रो उणियारो लगोलग उणरी आंख्यां आडो आवै हो। बो घरै मांची माथै बैठ्यो-बैठ्यो सुपना देखै, जाणै हीरै रो नानडिय़ो रोवै है। बो भाजÓर जावै उभाणै पगां। पण खाली-खाली अंागणो अर बारणै आडो खिड़को देखÓर हियो भर आवै। बो बूबड़ी मारणी चावै। पण नां। इयां तो नीं करणो चाइजै बीं नै। कदै-कदै बो देखै, नानडिय़ो बीं री गोदियां खेलै है अर बो लाड करै। पण जद आंख खुलै तो पिछतावो पल्लै रैवै। जोड़ायत पूछै- मोÓनियै रा बापू! ओ कांई हाल बणा राख्यो है। बोलो नीं- चालो नीं। आखै दिन बगना-सा होया रैवो। जीव छोटो कर्यां पार कियां पड़सी!ÓÓ सुणतो रैवै, टुकर-टुकर देखतो रैवै रेखाराम। पळींडै कनै बैठ मूंडो धोवै। भळै गोडां माथै हाथ मैÓल ऊभो हुवै। बरस पचास घणा को हुवै नीं, पण डील में सत कोनी। पल-पल टिपणो ओखो। अै भाखर मांन दिन टिपै तो टिपै कियां! दो दिन हीरजी कनै जाय आओ। कीं जीव लाग ज्यासी।ÓÓ कैवै मोÓनियै री मां, पण बो जाणै, दो दिन तो जीव लाग ज्यासी, पण पाछो आयां पछै कियां लागसी। जीव तो थाम्यां ई पार पड़सी। बो ताण मारै, पण जीव थमै कियां। जीव नै थ्यावस देवण सारू बो कदै-कदै पूरणै अर रामै बडैवाळी चूंतरी पर जाय बैठै। बां साथै चिलम रा सुट्टा लगावै। दुख-सुख री बंतळ करै। बैसाख उतरग्यो। जेठ लागग्यो। पण धरती बियां ई तपै। आभै में बादळी रो चूंखो ई नीं मंडै। आंधी चालै अर दीदां में धोबां-धोबां धूड़ पड़ै। आथणपौर बो जोÓड़ै रै पाळियै बैठ्यो देखै। डाळ-डाळ होयोड़ो जोÓड़ो डुसक्यां भरतो लखावै। पाळियै रा रूंख सूना होयग्या। पानकां रो नांव नीं। पांख-पंखेरू तो जाणै मउवां मारग व्हीर होयग्या हा। बस, कोई-कोई गिरजड़ा कै कागडोड दीख जांवता हा। करतां करतां जेठ ई उतरग्यो। आसाढ सूखो जासी तो भळै पार कियां पड़सी। बूढ़ा-डोकरा चूंतरियां बैठ्या चिंता करै। अेक दिन आंधी मचको खायो। बादळ मंड्या। आथणपौर आभै बीजळ पाटी। आखै गांव हरख रो पार नीं। देखतां-देखतां सांगोपांग बिरखा हुयी। जीयाजूण नै जाणै संजीवणी मिलगी। लोगड़ां में संगति अर जोस बापरग्यो। जेठू बाजरी अर मोबी पूत भागवाळां नै मिलै। जेठ तो उतरग्यो, पण मोड़ो को होयो नीं। हळोतियो करो भाई! मऊ गया लोग ढोर-डागरां समेत पाछा बावड़ग्या। मोÓनियो अेवड़ लेयÓर पाछो आयग्यो। गांव में रुणक बधगी। रूंखां पर हर्या-हर्या पानका फूट्या। धरती सूं मीठी-मीठी महक आवण लागी अर घांस-कूटळो फूटण लाग्यो। गांव रो तळाव हळाडोब होयग्यो। पाळियै डेडरां री डरूं-डरूं अर दरखतां पखेरूवां रो गुंजार। आभै अर धरती रो अेक-अेक जिनावर किलौळ करतो लखावै। हळ जुड़ग्या। तेजो गांवता किरसाण मूंग, मोठ, बाजरी अर ग्वार रै साथै काकडिय़ा-मतीरियां रा बीज बीजण लाग्या। हरख अर कोड रो छेÓड़ो नीं रैयो। इणी मोद में रेखाराम रै चेÓरै चेळको बापर्यो। अब तो म्हारो मां-जायो बावड़सी पाछो। अणूंतै उमाव बो भाई नै लेवण स्हैर पूग्यो- भाई, बावड़ रै पाछो, मेह बरसग्यो। जमानो होयग्यो। बीजारै नै मोड़ो होवै। अर अेक बात और सुण, भाई, लारलै दिनां गांव में सरकारी गाडिय़ां आई, फीता गेर्या, नाप-जोख होयी। सुण्यो है नहरां आÓसी। आपणी जमीन सोनो निपजैली। भळै कोई भूखो-तिरस्यो को रैवै नीं।ÓÓ पण भाई रो जवाब मिल्यो- नहरां तो आंवती-सी आÓसी। आपड़ली आं जमीनां अर जमानां रो भरोसो कोनी। बीजा-बाओ सझै जिस्यो थे करल्यो। म्हानै तो फोरो कोनी। अर भळै गोदी आळै नै मारÓर पेटआळै री आस को करीजै नीं।ÓÓ रेखाराम रो सगळो उमाव माठो पड़ग्यो। टूटेड़ी-सी चाल सूं आथणपौर बो भळै गाम पूगग्यो। दूजै दिन झांझरकै ई दोनूं बाप-बेटां हळ जोड़ दियो। सोच्यो, अब तो खेतीबाड़ी में मन लगायां ई पार पड़सी। भाई तो बावड़ै कोनी। दोनूं भाइयां री सगळी जमीन में चोखी बीजांत कर दीन्ही। दिन पन्द्रहवैं भळै बिरखा हुयगी। आखी रोही में हिराळ पाटै। काकडिय़ा-मतीरियां री बेलां उफणती आवै। पण बीं रो मन भळै ई को लागै नीं। भाई साथै होंवतो तो आथण-दिनूगै साथै आंवता-जांवता। धोरियै री ढळांत बैठ साथै-साथै कोई काकडिय़ो-मतीरियो खांवता। बाजरी सीटा काढसी। अर दिनूगै-दिनूगै दोनूं भाई मोरण फाकता। अब अेकलै नै अै मुरधर रा मेवा अणखांवणा ई लागसी। सावण लागग्यो। छोरियां-लुगाइयां आथण घर रो काम निवेड़Óर चूंतरियां पर भेळी होवै। गीत गावै, 'सावण सुरंगो भादवो......।Ó मौज मस्ती अर उमाव रा दिन आयग्या। बूढा-डोकरा चूंतरियां बैठ्या मधरी-मधरी मनमोवणी बातां करै। हांसी-ठ_ा करै। च्यानणी रातां में टाबर-टीकर रमता फिरै। गोधा खड़्या खैरूं करै। धोरियां ऊपर कर आंवतो झीणो-झीणो बायरियो किरसाणां रो थाकेलो हरै। च्यारूंमेर उठती हरख री इण हिलोर में रेखाराम नै भाई बिनां कियां सरै। रेखाराम दिनूगै खेत जावै। आथण बावड़ै। पण मन तो नीं लागै। तीजां रा दिन नेड़ा आयग्या। दिन कोई दसेक रैया। तीजणियां हींडो-हींडै। आपरी बहनां नै लेवण बीनणियां रा भाई आवै। तो गांव री छोरियां सासरै सूं बावड़ै अर बीनणियां पीÓरै जावै। रेखाराम ई आपरी दोनूं छोटकी बहनां नै सासरै सूं ल्यावण री तेवड़ी। बहनां आई। बहनां नै भाई हीरै रो घर सूनो-सूनो लाग्यो। भाई, तीजां पर तो हीरै नै ई बुलावो भेजो नीं। भाई-भौजाई सूं मिल्यां घणा दिन होयग्या। नानडिय़ो ई मोटो-सारो होयग्यो होसी।ÓÓ बहनां री बात सुण रेखाराम रो मूंडो मंगसो पड़ग्यो। साची, भाई बिना रुणक तो कोनी। दिनूगाळी बस सूं बो स्हैर व्हीर होयग्यो। भाई हीरा रे, अबकै तीजां पर तो गांव आई। साथै टाबर-टीकरां अर बीनणी नै ई ल्याई। खेती रो रंग देख्यां जीवसोरो होवै। बेलां पर फूल आवण लागग्या अर तीजां तांई तो बाजरी ई सिर सूधी होयÓर गोटै आय ज्यासी। रुक्मा अर लिछमा दोनूं बहनां आई है। म्हारी मानै तो दो दिन पैली पधार भाई!ÓÓ हीरै नै औसाण तो कोनी हो, पण गांव खातर बीं रो डाढो जीव करण लागग्यो हो। टाबरां ई कई बरियां रीरो कर लियो हो। हीरै हामळ भरी, भाई, अेक्यूंआळै दिन पूग जास्यां। अबकै दो-तीन दिन गांव में जरूर रैयस्यां।ÓÓ सुणÓर रेखाराम रै तो जाणै पांख लागगी। ईं हरख अर उमाव में बो आथण गांव पूगग्यो। सगळां नै सुभ समचार सुणायो। दिनूगै ई हीरैवाळै घर री कूंची लेयÓर ताळो खोल्यो। सगळै घर री बुहारा-झाड़ी करी। नणंद-भावज मिल गारो लीप्यो। दो दिन में घर पळका मारण लागग्यो। आज अेक्यूं है अर आथण हीरो टाबर-टीकरां अर बीनणी समेत गांव पूग ज्यासी। गांव में आथण छव बज्यां बस आवै। कोडायतो रेखाराम जाणै कूदतो फिरै। मन में भांत-भांत रा विचार करै- दिनूगै भाई नै खेत ले जास्यूं, देखÓर बीं रो जीवसोरो होय ज्यासी। भळै बीं नै स्हैर तो जावण ई को द्यूं नीं, भलांई कीं ई होय ज्यावै। म्हैं काठी बांथ भर लेÓस्यूं। नां भाई, अब तो गांव छोडÓर जावणो ई कोनी। पतो नीं बो कित्ती ई बातां सोचतो रैयो। दोपारै नींद ई को आई नीं। बगत कटणो ओखो होयग्यो। मांची माथै पड़्यो-पड़्यो बो पसवाड़ा फोरतो रैयो। आथण होयो। बो फळसै पूग्यो। गांव रै फळसै आथण बस पूग्या करै। छव बजगी पण बस आंवती को दीखै नीं। अजै तांई तो धर्राट ई को सुणीजै नीं। बो चूंतरी माथै ऊभो हुयÓर दिखणादै पासै धोरियै कानी तकावै। धोरियै चढती बस खासी दूर सूं ई दीख जाया करै। इत्ती देर में बण पत्तो नीं कित्ती बार घड़ी कानी तकायो अर पतो नीं कित्ती बरियां धोरियै कानी। कदै ऊभो होवै तो कदै चूंतरी री कूंट पर बैठ ज्यावै। मन में भांत-भांत रा विचार करै। इतराक में बीं रै कानां बस रो धर्राटो सुणीज्यो। बस आयगी!ÓÓ किणी छोरै रा बोल ई सुणीज्या। उण धोरियै कानी तकायो। धोरियै ढळती बस दीखी। भाई मिलण रै कोड में काळजो फड़कै चढग्यो, होठ फरूकण लाग्या अर आंख्यां सूं टळक-टळक करता दो मोती निकळ पड़्या।
(1997)