उमेश कक्का / मृदुला शुक्ला
अतीत के वही ऐंगना में एक टा चेहरा आरो झलकी जाय छै। हाँलाकि ऊ चेहरा आपनोॅ घोॅर के आदमी के नै छेकै, तैहियो हमरोॅ ऐंगना में हुनकोॅ उपस्थिति ज़रूर बुझाय छेलै। हमरा सिनी केॅ हुनकोॅ गप्पोॅ में बड़ा मजा आवै छेलै आरू जतना देर हुनी ऐंगना में बैठी केॅ गप्प हाँकै-माय के ध्यान हमरा सिनी केॅ पढ़ाय या गलती पर नै जाय छेलै, ई एकठो बड़का फायदा छेलै।
हमरा याद आवै छै कि हम्में आरू हमरा सें बड़ोॅ दोनो भाय, तीन छोटका भाय।बहिन खाय लेॅ बैठियै, तेॅ जोर सें आवाज आवै-उमेशवा रे ए...ए ...ए। हमरोॅ फूल भैयौं होन्हे आवाज निकालै-आबै छियौं हो ऽऽऽ। फेनू जै सें कोय बूझेॅ नै पारै, हुनी मूड़ी झुकाय केॅ खाय में लागी जाय। मतरकि वहेॅ आवाज आधोॅ।आधोॅ घन्टा पर ऐत्है रहै आरू जेकरा लेॅ ऊ आवाज या पुकार छेलै-हुनी केकरहौ घोॅर में मजलिस लगाय केॅ गप्प हाँकत्हैं रहै। उमेश कक्का के बाबूजी एकदम दुबरोॅ।पातरोॅ विधुर ब्राह्मण छेलै, जिनका खेती के नामोॅ पर बस एतन्है आवै छेलै कि छः महीना खाय तेॅ छः महीना केन्हौ करजा।बियां करी केॅ पेट भरै छेलै। सीधा।सोझोॅ आदमी छेलै-कामोॅ सें काम राखै वाला। हुनकोॅ बारे में हम्मू बेसी नै जानै छियै। मतरकि हुनके सपूत छेलात आशु कवि उमेश कक्का-जिनका गामोॅ भरी नें उमेशवा कहै। हमरा सिनी घोॅर के डरोॅ सें उमेष कक्का कहियै। हुनकोॅ की उमर छेलै-ई बताना मुश्किल छै, कैन्हें कि गरीबोॅ आरू माय विहीन होलोॅ परानी के उमर के पता लगाना कठिन होय छै। मतरकि हुनी हमरोॅ बड़का भाय सें शायद छोटोॅ होतै।
काम देखी केॅ उमेश कक्का केॅ जूड़ी बोखार चढ़ी जाय छेलै। हमरा याद छै-केकर्हौ घरोॅ में कुटुम आवै कि उमेश कक्का हाजिर होय जाय। पहुना लोगोॅ के मनोरंजनो होय छेलै आरू घरोॅ के लोगोॅ केॅ ओतना देर अच्छो लागै छेलै। मतरकि जखनी चाय।नास्ता के समय आवै तेॅ जहाँ आरू लोग धीरें। धीरें खिसकेॅ लागै छेलै, वहाँ उमेश कक्का पहुना के बिछौना, गद्दा, तोसक-सब पर पसरलोॅ जाय छेलै। हारी।फारी केॅ भीतरोॅ में जबेॅ एक तस्तरी आरू नास्ता या एक कप चाय के हुकुम जाय छेलै, तेॅ रसोय में रहै वाली कुड़मुड़ावै आरू जबेॅ ई मालूम हुवै कि ई नास्ता उमेश कक्का लेॅ जैतै, तबेॅ तेॅ आरू कुढ़ी जाय छेली। मतरकि तहिया आपनोॅ।पराया के भाव एतना खुल्लम।खुल्ला नै छेलै। उमेश कक्का केॅ बातोॅ के कोय रोष नै लागै छेलै। पता नै केन्होॅ रिश्ता छेलै, जे हुनी हमरी माय केॅ मामी कही केॅ बोलाय छेलै। जखनी हमरा सिनी भागलपुरोॅ सें अइयै कि थोड़े देरोॅ में उमेश कक्का हाजिर होय जाय छेलै आरू भैगना बनी केॅ सौंसे समय जमलोॅ रहै छेलै। बस कखनू।कखनू हिन्नेॅ।हुन्नेॅ रहै, नै तेॅ आपनोॅ घरोॅ में सूतै या खाय लेॅ जाय छेलै।
गंभीर बात, कथा आरू गोपनीय प्रसंग चलाय के पहिनें लोगें बढ़िया सें निहारी लै कि उमेश तेॅ नै आवी रहलोॅ छै। कैन्हें कि जेन्हे लोगें आपनोॅ घोॅर में बात खतम करै तेॅ उमेेष शुकुल धीरें।धीरें दोसरा के दरवाजा पर बैठी केॅ कवित्त सुनैतेॅ मिलै। आरू थोड़ोॅ आदर।खातिर जहाँ मिललोॅ कि एकदम फुसफुसाय केॅ शुरू करी दै-"एक ठो बात जानै छौ मामी-एखनी फलनवां के बाबू गोस्साय रहलोॅ छै। सुल्तानगंज में कहीं मार।पीट करी केॅ ऐलोॅ छै-लाला टोली के दू गो छौड़वा साथें मिली केॅ। पुलिसवा खोजी रहलोॅ छेलै मासूमगंजोॅ में। बाप वाँही टका।रुपया लै केॅ गेलोॅ छेलै।" हमरोॅ दादी आपनोॅ आदत के अनुसार भुनभुनैली आवाजोॅ में डाँटै-"तोरा उमेशवा आरो कोय काम नै छौ। बूढ़ोॅ बाप खाना बनाय छौ आरू तोरा मटरगस्ती सूझै छौ।"
उमेश कक्का कहै-"तोरा कथी लेॅ गोस्सा लागी गेल्हौं? तोरो तेॅ चारो बेटा राम, लछमन, भरत, शत्रुघन बनीये नी गेल्हौं?" "जो, आपनोॅ घोॅर, जो, बाप बोलाय छौ" हमरोॅ दादी बड़बड़ावेॅ लागै।
"नानी माय के बोली नानीहै माय सुनै छै" कही केॅ उमेश बड़का तान खीचेॅ लागै-"आगू।आगू रामजी चलै, ओकरा पीछू लछमन भइया, ओकरा हो पीछू चलै सिया सुकुमारी हो..."
तबेॅ ताँय बाबूजी ऐंगना में आवै, तेॅ थोड़ोॅ मुस्काय केॅ कही दै छेलै-"है गीत तेॅ तोरोॅ नै छेक्हौं। कुछू आपनोॅ गीत सुनाभैं।"
"धौ मामा, हम्में कि गवैया।बजैया छेंका, हौ तेॅ होन्हैं कुछू बुड़बकवा सिनी केॅ सुनाय दै छियै" कही केॅ उमेश कक्का आपना केॅ बुद्धिमान समझी केॅ हाँसै लागै।
"अच्छा मामी, आबेॅ मामा केॅ चाय।चू दहू नी।"
"एकरोॅ मतलब छै कि उमेशो केॅ चाय पीयै के मोॅन छै"-कही केॅ बाबूजीं चाय बनाय लेॅ कही दै। यहेॅ रङ उमेष कक्का के बेफिकर जिनगी चली रहलोॅ छेलै।
एक दिन हमरी माय नें टोकी देलकै-"उमेष, भौजी केॅ लानै लेॅ गेलोॅ छेल्हौ तेॅ की होल्हौं, आनल्हौ नै?"
"धौ मामी, की कथा निकाली देल्हौ। अरे विदा कराय लेॅ गेला सें की होतै, हौ अगलगौनी ओकरी नानी नें आवै लेॅ थोड़े देलकै।" बस होय गेलै हमरोॅ उमेष कक्का के खिस्सा चालू "मामी तोंहें जों देखी लहोॅ हमरोॅ भौजी केॅ, तेॅ बेहोशे होय जैभौ।" "कैन्हेॅ हो..." ?
"धौ, तोहें तेॅ एकदम पटनिया नी छेक्हौ। ओकरोॅ झगड़ा सुनी केॅ तेॅ लागै छै कि पेटोॅ के बच्चा गिरी जैतै। एन्होॅ।एन्होॅ बात करै छै कि की कहियौं..." तबेॅ ताँय उमेष कक्का के बाबूजी के आवाज आवेॅ लागलै-"उमेषवा रे, कहाँ मरी।हेराय गेलैं रे..." उमेष कक्का हमरोॅ माय केॅ देखी केॅ कहै-"मरिये गेलियै तेॅ आवाज की भूतें देतै।"
हमरा सिनी खी।खी करी केॅ हाँसेॅ लागियै। हमरी माय, जे वहाँ कनियैनी नाँखी धीरेॅ।धीरें बोलेॅ लागै छेलै आरू हमरा सिनी पर हुनकोॅ अनुशासन के कोय पकड़ नै रही जाय छेलै, तबेॅ आँख कड़ा करी केॅ हमरा सिनी केॅ देखेॅ लागै छेलै आरू हमरा सिनी मूँ घुमाय केॅ हाँसेॅ लागै छेलियै।
"खाना बनी गेलौ रे उमेषवा...खाय लेॅ आवें रे" उमेष कक्का रोॅ बाबूजी के आवाज फेनू आवै। ई बेर उमेष जे पीढ़ा पर बैठी केॅ रेडियो केॅ सुनतें रहै, आगू।आगू कहेॅ लागै-"जानल्हौ मामी, हम्में खेतोॅ में डांडी.डांडी जाय रहलोॅ छेलां। देखै छी कि हौ मरद।मौगी कूड़ा लै केॅ खेतोॅ में पानी पटैवोॅ करै छेलै।"
"के हो उमेष?"
"अरे वहेॅ घरभरनो-भौजी के नानी-बुढ़िया केॅ बेटा नै छै नी-मतरकि खोंटी.खोंटी केॅ खरचा करथों आरू ओन्हें नतनीहो केॅ सिखैनें छै। बोलोॅ ब्राह्मण के बेटी.पुतोहू कँही खेतोॅ में काम करै लेॅ जाय छै।"
"आपनोॅ खेत नी छेलै हो आरू बेटा छेवे नै करै?" माय नें आपनोॅ मुँह बोलोॅ भैगना सें जबेॅ सवाल करलकै, तेॅ उमेष कक्कां हँसी देलकै-"तोंहे तेॅ एकदम शहरिया छौ मामी, कुछू जानथैं नै छौ। तबेॅ हौ दिन, हमरा देखत्हैं बकबकाबेॅ लागली-हम्में आभी विदा नै करभौं, छोटोॅ बच्चा छै, घरोॅ में सास नै ननद, केना रहतै?" हम्में कही देलियै-"सास ननद नै छै तेॅ की, नतनी के भाग छौं अच्छा-असकल्ले राज करथौं।"
तबेॅ कहै लागल्हौं-बेर ढली रहलोॅ छौं, एखनिए भर बस मिलथौं, नै तेॅ पैदल जाय में रात होय जैथौं? बोलोॅ तेॅ...अच्छा तोंही बोलोॅ बहिन, कुटुम आवै छै तेॅ एन्हे करै छै-कोय एकदम्में दनियालपुर के हुकरा जोखां-उमेष कक्का एकदम भाव में रहै-हम्मू वाँही ठां कही दलियै-"हे सुनी लेॅ, राखोॅ करेजा में बेटी केॅ, वाँही जाय केॅ की हमरा सिनी केॅ तारी देत्हौं। एन्हौं माँड़।भात खाय छी, हाथ जराय छी, होन्हौ बनैवोॅ? बस सुनाइये तेॅ देलियै-घरभरनो हे दाय। तोरोॅ घरोॅ तोॅर झगड़ा होय जाय-एतना सुनत्हैं बुढ़िया जे खिसयैली आरू हमरोॅ सौंसे पुरखा केॅ गरियावैॅ तेॅ लागली। हम्में कही केॅ चली देलां कि हम्में की डरै छिहौं। है गीत तेॅ हम्में सगरे सुनैवे करभौं।" बड़का ठो तुकबन्दी सुनाय में उमेष कक्का मस्त छेलै कि हुनकोॅ बाबूजी के आवाज फेनू ऐलै-"अरे उमेषवा रे, भात खाय ले रे।"
"एँह, ई बुढ़वा तेॅ..." आपनोॅ गप्प।प्रसंग आरू कविता रस।भंग होला सें उमेष कक्का खिजलाय केॅ बोलेॅ लागै-"बड़का खीर।पूड़ी बनलोॅ छै। सोजीना पत्ता के साग आरू धनिया पत्ता के चटनी-एकरा साथे मड़सटका भात, यहेॅ खाय लेॅ एतना हल्ला करी रहलोॅ छै।"
हमरी माय, जे चुल्हा लगी बनैलोॅ खाना समेटी रहली छेलै, हुनकोॅ मतलब बूझी जाय छेलै आरू एक कटोरी में तरकारी डाली केॅ राखी दै, मतरकि बोलै कुछू नै। उमेष कक्का आँखी सें वाँही देखै आरू हुनकोॅ धीरज चुकलोॅ जाय। एतन्है में तब तांय हमरी दादी केॅ ऐतेॅ देखै तेॅ जोर सें बोलै-"जाय छिहौं, मामी, अचार छौं तेॅ थोड़ोॅ टा दै दिहौ, तनी ऊ बुढ़वा खाय लेतै।" माय नें परोल के पत्ता में अचार आरू तरकारी के कटोरी सरकाय दै, मतरकि तबेॅ तांय हमरी दादी आवी जाय आरो कहेॅ लागै-"अरे उमेषवा, तोरा काम।काज वक्ती खोजै छियौ तेॅ अलोपित होय जाय छैं। हम्में असकरे मरतें रहै छी तेॅ नै आवै छैं आरू धिया।पूता जेन्हैं आवै छै कि धँसना गिराय केॅ बैठी जाय छै।"
"कथीलेॅ गोस्साय छौ नानी माय। हमरा तेॅ मामीहैं रोकी राखलोॅ छेल्हौं। जाय रहलोॅ छी।"
दादी के बातो सहिये छेलै आरू दादी उमेष कक्का केॅ बिना माय के जानी केॅ मानवो करै छेलै। मतरकि उमेष कक्का केॅ एकरोॅ कोय गम नै छेलै कि के हुनका की कहै छै आरू बूझै छै।
दुर्गा।पूजा में हमरा सिनी घोॅर जैयै तेॅ दादी केॅ जलावन के चिन्ता होय जाय छेलै। एक बेर सुक्खा जलावन एकदम नै छेलै। बड़का।बड़का लकडी़ के चेला छेलै, मतरकि कोय आदमी।मनुख नै मिली रहलोॅ छेलै, जौनें ओकरा चीरतियै। सब्भे आदमी बारी सिनी में लागलोॅ छेलै। हमरी माय लकड़ी के चूल्हा बढ़ियाँ सें जलावै नै पारै छेलै। दादी ई सब बातोॅ के बहुत ध्यान राखै छेलै। वहै दिन उमेष कक्का नें चाय पीवी केॅ कप राखलकै तेॅ दादी बोलेॅ लागली-"अरे ऽ उमेष, सुन तेॅ बेटा, दू ठो लकड़ी के चेला छै, ज़रा ओकरा चीरी दहीं तेॅ बाबू। रसोयो बनाय लायक लकड़ी नै छै। दुलहैनी सें खाली गोयठा पर खाना नै बनेॅ पारतै।"
उमेष कक्का लेली तेॅ जेना खौललोॅ दूधोॅ में पानी पड़ी गेलोॅ रहै, सब उत्साहे खतम। दस मिनट तक मुन्ड लटकैलोॅ शोक में बैठलोॅ रहलै। शायद सौचै छेलै-इहेॅ काम तेॅ घरभौ में छोड़ी केॅ भागलां आरू बुढ़वा चिल्लैथें रहलोॅ छेलै-यहूँ जीवोॅ मुश्किल। "
दादी कुछू नै कुछू बलोॅ सें धीरें।धीरें परछत्ती पर सें लकड़ी के चेला उतारलकी आरो फेनू मुलायम आवाजोॅ में कहलकी-"हले, हम्मी उतारी देलियौ। बस, आबेॅ ज़रा कुल्हाड़ी लै केॅ एकरा चीरी दहीं।"
"है एत्तेॅ मोटोॅ लकड़ी हमरा सें चिरैथौं नानी माय" उमेष कक्का नें भी बातोॅ केॅ मली।मली कहलकै।
"कैन्हेॅ रे, से कैन्होॅ सुकुमार छैं रे। थोड़ोॅ।सा तेॅ करिये पारैं छैं, बच्चा।बुतरू ऐलोॅ छै-तहीं कहै छियौ।"
उमेष कक्का धीरें।धीरें उठलोॅ। कुल्हाड़ी केॅ उलटी.पुलटी केॅ देखलकै, फेनू धीरें।धीरें बुदबुदैलै-"एकरा में तेॅ धारे नै छै, आरू बेंटबो ढील्ला छौं।" काँखी।कोथी केॅ दू बेर कुल्हाड़ी चलाय केॅ कमर सीधा करलकै। दादी यही बीचोॅ में लछमनिया माय केॅ पिसौनी दै लेॅ हटली आरू उमेष कक्का रसोय ओसरा पर आवी केॅ आपनोॅ कुल्हाड़ी लै केॅ-आवै छिहौं मामी-कही केॅ जे गेलोॅ से चार दिन ताँय कहीं पता नै। माय देखथैं रही गेलै आरू दादी कुड़मुड़ैली जाय, आखिर में बड़का भैया आरू कक्का मिली केॅ लकड़ी चीरी केॅ आनै, जे देखी।देखी केॅ दादी के परान कटै। हुनी उमेष कक्का पर ऊ दिन खूब बरसली-"है कोढ़िया उमेषवा, खाय वक्ती जम नाँखी बैठी जैथौं। कविता बनाय केॅ पेट भरथै हिनकोॅ। है चाली पर भौजाय वास देतै ई कामचोरोॅ केॅ। आरू बाप एकरे लेॅ मरलोॅ जाय छै।"
आरो जबेॅ पँचमा दिन लँगड़ैलोॅ।लँगड़ैलोॅ उमेष कक्का केॅ चोर नाँखी घोॅर घुसतें देखी केॅ हमरोॅ माय सिनी गदाल करेॅ लागलै-"आबोॅ।आबोॅ उमेष कक्का, तोरा सब्भैं खोजै छेल्हौं।" नया।नया अंग्रेज़ी के ज्ञान गामें में हमरोॅ माय सिनी नें खूब दिखाय छेलै-"किडनैपिंग बुझै छौ, हम्में बुझलिहौं कि तोरोॅ किडनैपिंग होय गेल्हौं, माने तोरा कोय भगाय केॅ लै गेल्हौं?"
"धूर, एन्होॅ कथी लेॅ कहै छैं, आरू हमरा के खोजै छेलै। गोड़ ठेसाय गेलोॅ छेलै तेॅ नै आवी रहलोॅ छेलियै। तोरा सिनी किताब निकाली केॅ बैठलोॅ छोॅ तेॅ पढ़ोॅ।लिखोॅ।एकदम्म गंभीर बनलोॅ भोला।भाला बनी केॅ हुनी पछियारी बरन्डा पर बैठी जाय, फेनू धीरें सें पूछै-" नानी माय कहाँ छै? "
ई सुनी केॅ कि हुनकोॅ आय एकादशी छेकै आरू फलाहार लेॅ सकरकंद उसनी रहलोॅ छै, निश्चिंत होय केॅ दोनों गोड़ पीढ़ा पर उठाय केॅ उमेष कक्का बैठी जाय। आरू फेनू शुरू होय जाय हुनकोॅ खिस्सा-"जानै छैं विजय, अरे ई गामोॅ में तेॅ कत्तेॅ नी बीहा होलै आरू कत्तेॅ नी बरातीयो देखलियै, लेकिन जेना फलनवां के बहिनी के बीहा में बराती के नखरा देखलां, से अजगुते छेलै। लागै, जेना दुनियां में सब्भे बुड़बक रहेॅ आरू एकटा हुनीये पढ़लोॅ।लिखलोॅ रहै। हर बातें में बुजाय मुँह फुलाय लै, हिन्नें भैया।भौजी हरवा।हरान आरू हुन्नें लड़का वाला मार फुटानी झाड़ै में। बताभैं, गामोॅ के सबसें सुन्दर बेटी तेॅ दयिये रहलोॅ छेलियै आरू लेन।देन के भी कोय कमी नै रहै, तहियो लड़का वाला के मूँ सीधा नै। हम्में जनवास में बैठी केॅ बड़ी देरोॅ सें सुनी रहलोॅ छेलियै-दोनो तरफ के बात। नै रहलोॅ गेलै तेॅ कहिये देलियै-सब्भे कुछ तेॅ ठीक छौं, तोहें बड़का आदमी तेॅ छेबे करौ, एक टा बात सुनी लेॅ-दस भरी सोनोॅ आरू बराती में तीन कानोॅ। एतने कहलियै तेॅ सब्भे छौड़वा सिनी हाँसेॅ लागलै आरू भैया हमरा डपटी केॅ भगावेॅ लागलै। बेटा के बाप पहिनें तेॅ मूड़ी झुकैलोॅ रहलै, फेनू तड़तड़ैलोॅ उठी केॅ आपनोॅ समान बाँधी।बूंधी करेॅ लागलै।" है मनोरंजक रङ के खिस्सा सुनी केॅ, आरू ऊ दृश्य याद करी केॅ किताबोॅ केॅ आँखोॅ पर रखी, पेट पकड़ी।पकड़ी हाँसेॅ लागलियै आरू उमेष कक्का भी खुश-"हम्में की केकरहौं सें डरै छियै, बाद में भौजी भी फोकनाय गेली कि हमरा बीहा में रंग।भंग करी देल्हौ। है सिनी नै कहना चाहियोॅ। मतरकि कहै छियौ-साँच केॅ आँच की?"
एन्होॅ मस्त उमेष कक्का के बाबूओजी एक दिन नै रहलै। ऊ समय में भी हम्में सिनी गाँमें में छेलियै। कातिक के महीना छेलै। उमेष कक्का केॅ एक सौतेलोॅ आरू एक सहोदर-दू ठो भाय छेलै। किरिया।करम करै में भी तीनो केॅ खरचा करै लेॅ पड़तियै। पासोॅ में पैसा तेॅ बस एक्के भाय केॅ रहै जे थोड़ोॅ-बहुत कमाय छेलै। खरचा लेॅ जमीन बँधक राखै के बात उठेॅ लागलै। हमरोॅ बाबूजी चाहै छेलै कि खाली कर्मकाण्ड भरी पैसा खर्चा करलोॅ जाय, कैन्हें कि हुनका सिनी के गरीबी भारी छेलै, विशेष करी केॅ उमेष कक्का केॅ तेॅ आरू, कोय सहारा छेवे नै करलै। मतरकि हुनकोॅ गोतिया सिनी ई कही।कही केॅ कि बापो फेनू मरतौं की-हुनका सिनी पर गामोॅ भरी के भोज-वहो कि चूड़ा।दही के-कराय लेॅ दवाब डाली रहलोॅ छेलै। हमरोॅ बाबूजी केॅ ई सिनी बातोॅ के अन्दरे।अन्दर बहुत गोस्सा भी छेलै, मतरकि गामोॅ के राजनीति में हुनी कुछू नै करेॅ पारलकै। आखिर हुनकोॅ जमीन सूदभरना में राखी करी केॅ पैसा ऐलै आरो धमगज्जड़ भोज होलै। वही किरिया।करम में उमेष कक्का के आपनी भौजी केॅ भी घोघोॅ निकाली, नाक सुड़कतें ऐली देखलियै। हमरा सिनी केॅ तखनी ऊ सिनी बातोॅ सें की मतलब? जहाँ पैट्रोमैक्स जललोॅ आरू पत्ता बिछाय केॅ ऐंगन में भोजन परोसलोॅ गेलोॅ कि खुश होय जाय छेलां। मतरकि बाबूजी भोज खाय लेॅ नै गेलै। हुनका आपना में ई बहुत बड़ोॅ पराजय लागी रहलोॅ छेलै।
वै दिनोॅ सें उमेष कक्का के माथा पर सें बापोॅ के छाया की हटलै, आबेॅ हुनका पुकारी केॅ, बुढ़ापा में हाथ जराय केॅ खिलाय वाला कोय नै रहलै। हुनकोॅ जीवने वीरान होय गेलै। हुनकोॅ हिस्सा के खेत नहिये छुटलै। आरू भाय के तेॅ घोॅर संसार छेलै, मतरकि उमेष कक्का के घोॅर भी नै बसलोॅ छेलै। कौन गुणोॅ पर, आरू के खाड़ोॅ होय केॅ हुनकोॅ बीहा करवैतियै।
फेनू एक दिन सुनलियै कि हुनकोॅ बीहा होय गेलै। हम्मू हुनकोॅ कनियैनी केॅ देखनें छेलियै। तखनी हुनकी भौजी नैहरा में छेलै। सब्भे सोचलकै कि चलोॅ आबेॅ उमेष कुछू कमाय।धंधा में लगी जैतै आरू घोॅर।संसार बसी जैतै। उमेष कक्का केॅ दूनू बेरा भोजन आरू दू जोड़ा धोती पर गामोॅ के भगवती स्थानोॅ में पुजारी के काम लगी गेलै। बारी।झारी सें कुछू आरू गामोॅ के लोग के सहायता सें केन्हौ केॅ दिन कटी रहलोॅ छेलै। यही बीचोॅ में हुनकी जनानी केॅ बच्चो होय केॅ रही गेलै। उमेष कक्का केॅ तेॅ कोय दोसरोॅ काम आवै नै छेलै, खेतोॅ में कोय चाहलकै कि कुछू काम करेॅ तेॅ वहो हुनकोॅ गोतिया केॅ पसन्द नै छेलै कि हरवाही करतै वाभन के बेटा। बराहमन होला मात्र सें हुनका बहुत कष्ट आरू दुख होलै। खेत में बनिहारी नै, कोय टहल टिकोर नै-है सब काम तखनकोॅ समाजोॅ में करै पर रोक छेलै, वहो यै लेॅ कि उमेष कक्का कमजोर छेलै। भुखली कनियैन कत्तेॅ दिन रहतियै, एक बेर नैहरोॅ गेलै तेॅ ऐवे नै करलै। ओकरोॅ बाद तेॅ उमेष कक्का आरू टूटी गेलै। गामोॅ के दबंग लोगोॅ नें केकर्हौ इशारा पर याष्शायद हुनकोॅ बचलोॅ जमीन केॅ हड़पै लेॅ हुनका पर चोरी के इल्जाम लगाय केॅ गाछी सें बान्ही केॅ मारलकै। फेनू सुनलियै-उमेष कक्का पगलाय गेलै। बहुत दिन बाद यहू सुनलियै हुनी आबेॅ ठीक छै। जै में जतना रस छै, अपनापन छै-कमजोरोॅ केॅ दवाबै के ओतन्है रस्ता छै।