उम्मीद अभी बाकी है / जयप्रकाश चौकसे
उम्मीद अभी बाकी है
प्रकाशन तिथि : 31 जुलाई 2012
आमिर खान के 'सत्यमेव जयते' की आखिरी कड़ी रविवार २९ जुलाई को प्रस्तुत हुई और भारतीय टेलीविजन पर सामाजिक सोद्देश्यता का शंखनाद करने वाले कार्यक्रम का अंत हुआ। रुग्ण समाज की खुली शल्य चिकित्सा विगत तीन माह से प्रस्तुत हो रही थी और मवाद व खून के रिसाव से देश सुन्न पड़ गया था। अनेक लोगों के लिए यह यकीन करना कठिन हो रहा था कि क्या हम इतने गिरे हुए हैं? अंतिम कड़ी यह निदान प्रस्तुत करती है कि मरीज मरा नहीं है। अभी भी सुधार के लघु प्रयास चल रहे हैं। इस घोर नैराश्य में भी सदियों के अंधविश्वास और कुरीतियों की चट्टानों पर नन्हे हाथ छोटे-छोटे प्रहार कर रहे हैं और हम कामयाब होंगे एक दिन।
एपिसोड के प्रारंभ में आमिर खान ने सभागृह में मौजूद बच्चों से उनके सपनों के भारत के बारे में पूछा तो किसी ने धर्म और जाति की संकीर्णता से मुक्ति की बात की, किसी ने भ्रष्टाचार से मुक्त भारत की बात की, तो किसी ने क्लीन और ग्रीन भारत की बात की। भावी नागरिकों के हृदय का विश्वास एक देश की ताकत होता है। वर्तमान भारत गांधी या नेहरू के सपनों का देश नहीं बन पाया और न ही सरदार पटेल या मौलाना अबुल कलाम आजाद को देश के वर्तमान हश्र का भय था। देश की स्वतंत्रता के लिए संग्राम करने वालों की आशाओं और सपनों को बाबासाहब आंबेडकर की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने संविधान के पहले पृष्ठ पर ही अंकित कर दिया था कि समानता, स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता हमारे आदर्श मूल्य हैं और न्याय आधारित समतावादी समाज की रचना हमारा संकल्प है। अनेक कारणों से संविधान में प्रस्तुत आदर्श का निर्वाह नहीं हुआ और हमने एक सड़ांधयुक्त व्यवस्था का निर्माण कर दिया। इस दुखद परिणाम की जवाबदारी हम सबकी है।
आमिर का विश्वास है कि सपना मरा नहीं है। उन्होंने इस कार्यक्रम में देश में अनेक जगह हो रहे आदर्श प्रयासों का विवरण दिया। ये गैरसरकारी कोशिशें ही इस बीमार देश के स्वस्थ होने की आशा जगाती हैं। कच्छ में २००१ में भूकंप आया और २००२ में गुजरात में सांप्रदायिकता का तांडव हुआ। सूरत के सर्वोदय ट्रस्ट ने दोनों हादसों में हुए अनाथों की परवरिश का प्रयास किया। श्री अरविंद, परिमल, तृप्ति और सुशीला बहन ने अपने अनेक साथियों की सहायता से इंसानी जख्मों पर सेवा का मरहम लगाया। नईम नामक बालक के हाथ से जातिवाद को मानने वाली सुशीला ने लड्डू खाए और दिव्य संकेत को समझ लिया कि मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं। कश्मीर की वादियों में अनेक पंडित परिवारों को हजारों साल की अपनी पुश्तैनी जमीन छोड़कर भागना पड़ा। कश्मीर के एक छोटे हिस्से से भागने वाले एक हिंदू परिवार को मुसलमानों ने रोक लिया और उनकी हिफाजत का वचन दिया। उन्होंने चुनाव में उस हिंदू महिला को विजय दिलाई और वह मुस्लिमबहुल समाज का प्रतिनिधित्व करती है। आंध्रप्रदेश में 'प्रज्ज्वला' नामक संस्था सुश्री सुनीता ने स्थापित की है। ये संस्था देह व्यापार के बाजार से महिलाओं को निकालकर उन्हें स्वावलंबी बनाने का प्रयास कर रही है। दिल्ली के संजीव चौधरी एक बार बिहार में बसे अपने गांव गए तो उन्होंने छुआछूत की अमानवीयता से संघर्ष के लिए अपने सुविधा-संपन्न जीवन को नकार दिया। डोम मुर्दे ढोते हैं, परंतु उन्हें गंगा स्नान की आज्ञा नहीं है। कोल्हापुर में नसीमा ने 'हेल्पर ऑफ हैंडीकेप' नामक संस्था का विकास किया और बाबू काका दीवान ने उनकी सहायता की। अठारह हजार विकलांगों को समान जीवन का अधिकार दिलाने में सफल हुआ यह प्रयास। विप्रो के जनक अजीम प्रेमजी साहब ने आठ हजार करोड़ दान देकर एक ट्रस्ट खड़ा किया है। फैजाबाद के मोहम्मद शरीफ लावारिस शव के अंतिम संस्कार की व्यवस्था मरने वाले के धर्म के अनुरूप करते आ रहे हैं। झारखंड में ईमानदार अफसर सत्येंद्र दुबे को गोली मार दी गई। उनकी स्मृति में उनके पिता भ्रष्ट संस्था से लड़ रहे हैं।
दरअसल आमिर खान ने उन्हीं सब मुद्दों को उठाया, जिनके लिए महात्मा गांधी ने संघर्ष किया था। कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई को गांधीजी ने स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बनाया था। देश के विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे ये गैरसरकारी प्रयास आशा जगाते हैं। आमिर खान को बधाई।