उम्मीद - 2 / एक्वेरियम / ममता व्यास
जि़न्दगी बहुत अजीब और रहस्यों से भरी है कभी समझ नहीं आते इसके रंग और ढंग भी। मुझे कभी समझ नहीं आया कि मैं जब-जब क्यारी में लाल गुलाबों को सींचती हूँ और हर सुबह उम्मीद करती हूँ कि ये नन्हा पौधा ज़रूर मुझे कल एक लाल गुलाब देगा, लेकिन हमेशा वह दूसरी तरफ रखे पीले गुलाब पर कलियाँ क्यों खिल जाती हैं।
मैं कभी भेदभाव नहीं करती पौधों को पानी देने में लेकिन हाँ कभी-कभी उम्मीद लगा लेती हूँ और मन ही मन सोचती हूँ इस बार चम्पा ज़रूर महकेगी, लेकिन फूल रजनीगंधा पर आ जाते हैं।
मैं ऐसे में गुलाब और चम्पा को कोसती भी नहीं उलटा महकते रजनीगंधा के प्रति प्यार और अनुराग से भर जाती हूँ।
मैं कुदरत का इशारा समझ जाती हूँ कि मेरा सींचना व्यर्थ नहीं गया। हाँ, वह लाल गुलाब नहीं खिला सका, लेकिन पीले गुलाबों से क्यारी को महका गया। दिन में चम्पा नहीं महकी तो क्या...रजनीगन्धा ने मेरी रात को महका दिया।