उम्मीद / एक्वेरियम / ममता व्यास
उस दिन तुम मेरे लाख रोकने पर भी नहीं रुके. तुम्हें अपने सपनों का पीछा करने का रोग था और मुझे तुम्हारी फिक्र का मर्ज। दोनों ही रोगी थे।
तुम कहते थे तुम्हें मील के पत्थर नहीं, सिर्फ़ मंजिल दिखती है और तुम इतनी तेजी से चले कि सच में तुमने रास्ते में कोई मील का पत्थर नहीं देखा। आसपास की नदियाँ, झरनों और वृक्षों पर भी तुम्हारी नजर नहीं पड़ी।
मैं बहुत पीछे थी और तुम्हारी गति से हैरान-सी...मैंने थक कर मील के पत्थरों पर अपने काजल से 'मंजिल' लिख दिया और वहीं रुक गयी।
जिन आवाजों पर तुम शब्दभेदी बाण चलाते थे। उन आवाजों को ही तुमने अब अपनी राह का रोड़ा मान लिया।
क्यों? आखेट छोड़ दिया तुमने अब?
सुनो! कोई कितनी भी यात्रायें कर ले एक दिन उसे लौटना ही होता है, उन्हीं रास्तों से। ये बेजान मील के पत्थर वापसी पर राहों का पता देते हैं। इनके पास कई रहस्य होते हैं। ...कई दस्तावेज, कई कहानियाँ, कई अफसाने, पर तुम्हें तो फुर्सत नहीं थी सुस्ताने की। अगर ठहर कर सुनते इनकी बात तो ये ज़रूर तुम्हें आने और पाने का इल्म देते। अब जाने दो सब।
तुमने दो पल रुककर उस सर्दी की शाम जो कोयले जलाए थे न, वह अब राख बन चुके हैं।
हाँ, वह सुलगना चाहते थे सदियों तक। पर पिछली रात बहुत भारी बरसात हुई और उन्हें बहा ले गयी। अब जब लौटोगे तो आंच नहीं पाओगे...आंच क्या राख भी नहीं पाओगे।
पर क्या तुम लौट सकोगे?
कैसे लौटोगे? कि जाते हुए तुमने कोई पदचिह्न नहीं छोड़े थे। तुमने कोई पहचान चिह्न भी तो नहीं बनाये किसी पेड़ पर...फिर कैसे खोजोगे रास्ता आने का?
पेड़ से याद आया। इन पेड़ों ने, इन हवाओं ने, इन रास्तों के मील के पत्थरों ने तुम्हें बहुत पुकारा था कि तुम उस कोने पर लगी तख्ती को ध्यान से पढ़ लो। उस पर यात्रा के नियम और लौटकर आने के रहस्य खुदे थे। पर तुम तो तुम थे...तुमने एक नजर भी नहीं डाली उस पर...तुमने तो किसी चीज का मान ही नहीं रखा है न?
तुम्हारी इस अनदेखी से सभी पेड़-फूल, तितली, हवा और समंदर और हाँ आसमान सभी नाराज हैं और अब तुम्हें कोई भी रास्ता नहीं बताएगा वापसी का...अभी कल तक ये हवा मुझे तुम्हारी खबर देती थी। अब वह भी उदास है। तुम्हारा इस जंगल में कोई इंतजार नहीं करता कि तुम बिन बताये दौड़े थे और आने का वादा भी तो नहीं किया था। अब तुमसे सम्पर्क टूट चुका है। कोई बादल, तुम्हें छूकर नहीं आता अब...अब कोई आभास नहीं होता, तुम्हारे होने का।
कि अब तुम कहीं नहीं हो।
सोचती हूँ अब तुम किस रस्ते से आओगे? तुमने आने का कोई रास्ता नहीं छोड़ा, मैंने भी कल शाम थक कर उम्मीद का दीया फूंक दिया।