उम्र की ढलान पर यादों का सहारा / जयप्रकाश चौकसे

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उम्र की ढलान पर यादों का सहारा
प्रकाशन तिथि : 26 अप्रैल 2013


आज जूही मेहता (चावला) अपने पुराने मित्र शाहरुख खान से कुछ खफा-सी हैं। उनका भाई बॉबी चावला शाहरुख की निर्माण संस्था का मुख्य अधिकारी उनकी पहली फिल्म से लेकर 'पहेली' तक था। दुर्भाग्यवश वह बीमार पड़ा और अस्पताल में लंबे समय से कोमा की स्थिति में है। यह कहा जाता है कि शाहरुख खान ने उसके इलाज का खर्च वहन किया और शायद आज भी कर रहे हैं। स्वयं जूही अपने भाई के इलाज के लिए समर्थ हैं। शाहरुख खान ने केवल कुछ माह पूर्व बॉबी की जगह अन्य व्यक्ति को नियुक्त किया। इसकी सूचना स्वयं शाहरुख खान ने जूही को नहीं दी, परंतु कार्यभार संभालने वाले ने अवश्य दी है। शाहरुख खान व्यस्त सितारा होने के साथ ही एक बड़े व्यवसाय का प्रबंध भी करते हैं और वे अपने बड़े होते हुए बच्चों को भी समय देते हैं। इसलिए उनके पास अब जूही चावला या अजीज मिर्जा से मिलने के लिए वक्त नहीं है। व्यावहारिकता का तकाजा है कि हर आदमी अपने जीवन में इतना व्यस्त है कि सामाजिक औपचारिकताओं के लिए समय नहीं है।

जूही मेहता शायद इसीलिए थोड़ी-सी खिन्न हैं कि उन्हें उस दौर की बहुत याद आती है, जब संघर्षरत युवा शाहरुख खान को नायक लेकर अजीज मिर्जा 'राजू बन गया जेंटलमैन' में नायिका की भूमिका लेकर पहले से स्थापित सितारा जूही चावला के पास आए और उसने सहर्ष प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। यह शाहरुख खान पर उनका उपकार था। इसके कुछ वर्ष पश्चात शिखर पर पहुंचते ही शाहरुख खान ने अजीज मिर्जा और जूही के साथ फिल्म निर्माण संस्था प्रारंभ की और पहली फिल्म थी 'फिर भी दिल है हिंदुस्तानी'। ज्ञातव्य है कि 'राजू बन गया जेंटलमैन' राज कपूर की 'श्री ४२०' से प्रेरित थी और नई कंपनी की पहली फिल्म का नाम भी उसी फिल्म के टाइटिल गीत से पे्ररित है।

शाहरुख खान, जूही और अजीज मिर्जा ने लंबा सफर साथ तय किया, परंतु किसी मकाम पर भागीदारी समाप्त कर दी गई। इसमें कोई कड़वाहट नहीं थी। जूही चावला आज भी शाहरुख के क्रिकेट व्यवसाय में भागीदार हैं। जीवन के सफर में मिलना-बिछुडऩा सब कुछ स्वाभाविक है, परंतु ढलती उम्र में लोग अत्यधिक भावुक हो जाते हैं और थोड़ा-सा भी अनदेखा करना उन्हें सहन नहीं होता। जूही ने लंबी सफल पारी खेली है और आज भी वे सक्रिय हैं। 'गुलाबी गैंग' में माधुरी केंद्रीय पात्र हैं तो जूही नकारात्मक भूमिका में प्रस्तुत हो रही हैं। जूही स्वयं अपने क्षेत्र में सफल हैं। उनकी पुत्री तथा पुत्र भी कमसिन उम्र में हैं। दरअसल, प्रतिदिन का मिलना गहरी मित्रता का सुबूत नहीं है और कभी लंबे समय तक नहीं मिल पाना मित्रता के टूटने का प्रमाण नहीं है। शादी प्रेम का प्रमाण नहीं है और लंबी जुदाई रिश्ते के टूटने का संकेत नहीं है, क्योंकि दिखाई देने वाले यथार्थ संसार के साथ ही हर व्यक्ति के भीतर एक पूरा संसार भी धड़कता रहता है। आप एक जगह मौजूद होकर दूसरी जगह अदृश्य हो सकते हैं।

अजीज मिर्जा ने फिल्म बनाना छोड़ दिया है और वे अपना बहुत-सा वक्त गोवा में गुजारते हैं। एक जमाने में उनका बैंड स्टैंड पर छोटा-सा फ्लैट युवा संघर्षरत लोगों का अड्डा होता था, जहां उनकी पत्नी निर्मला सबके आराम का खूब ख्याल रखती थीं। वह फ्लैट कमोबेश धारावाहिक सीरियल 'नुक्कड़' की तरह था, जिसका निर्माण कुंदन शाह और अजीज मिर्जा ने किया था। इसी अड्डे पर कई पटकथाएं बनी हैं, कई युवा लोगों ने सपने देखे हैं। आज शाहरुख खान की भव्य हवेली 'मन्नत' इसी 'नुक्कड़' के निकट है और आते-जाते उन्हें याद नहीं आती हो, यह मुमकिन नहीं है, परंतु जिंदगी की रफ्तार थोड़ा-सा ठिठकने की इजाजत नहीं देती। महत्वाकांक्षाओं के रथ के तेजी से घूमते चक्र के नीचे कुछ कोपलें कुचल दी जाती हैं।

यादों के अर्थ हर व्यक्ति अपने व्यक्तिगत मिजाज से तय करता है। यादों को आप चाशनी बनाकर भावना की तितलियों के पंख निर्बल कर सकते हैं और सतत भागते हुए जीवन की जद्दोजहद में भी यादों को दिल में संजोए रख सकते हैं। भावना चौबीसों घंटे अभिव्यक्त नहीं की जा सकती और कई बार उनका अधिक अभिव्यक्त करना अश्लील भी हो सकता है। उम्र की ढलान पर कई ऐसे मकाम भी आते हैं, जब व्यक्ति दर्द की सेज पर सांसों का क्लोरोफॉर्म लेते हुए यादों के संसार में विचरण कर सकते हैं। बहरहाल, २९ अप्रैल को आमिर खान अपनी पहली सफल फिल्म 'कयामत से कयामत तक' के प्रदर्शन के २५ वर्ष पूरे होने पर एक दावत दे रहे हैं, जिसमें नायिका जूही चावला भी आमंत्रित हैं। शायद निर्देशक मंसूर खान भी मौजूद हों। जूही को स्मरण खना चाहिए कि सभी रिश्ते कयामत से कयामत तक नहीं निभाए जाते, परंतु समय के जिस पड़ाव पर वे बने थे, वे पड़ाव ध्वस्त नहीं होते।